आवश्यकता है “महाराष्ट्र मोदी” की

महाराष्ट्र की जनता को चाहिये-जनता के प्रश्नों के साथ भावनिक रूप से एक होने वाले, जनता के प्रश्नों पर आंदोलन करने हेतु रास्तों पर उतरने वाले, जनता के प्रश्नों पर अपनों से भी आलोचना सहन करने वाले नेता।

सन् 2014 में जब महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव हुए थे, तब देश में मोदी लहर चल रही थी। इस लहर में शिवसेना के साथ समझौता न करते हुए भी भाजपा को 122 सीटों पर विजय प्र्राप्त हुई थी। 2019 में हुए चुनाव में 2014 की मोदी लहर ज्यादा वेगवान थी, फिर भी शिवसेना से समझौते के बावजूद भाजपा को केवल 105 सीटें मिली। यदि समझौता न किया होता तो बहुमत की भाजपा सरकार बनती। लेकिन राजनीति में किंतु-परंतु को कोई स्थान नहीं होता। भूतकाल कभी भी बदला नहीं जा सकता परंतु भविष्यकाल संवारा जा सकता है।

इसलिये यदि वर्तमानकाल का विचार करें तो महाराष्ट्र भाजपा में कोई जननेता नहीं है। यह वाक्य शायद कुछ लोगों को अखरेगा, कुछ के गले नहीं उतरेगा, कुछ लोग नाक-भौं सिकोडेंगे, परंतु इससे वस्तुस्थिति बदलने वाली नहीं है। अखिल भारतीय स्तर पर नरेन्द्र मोदी जननेता हैं। उनके नाम एवं कर्तृत्व के कारण वोट मिलते हैं। भारत की राजनीति ऐसे ही चलती है। जब तक इंदिरा गांधी जीवित थीं, तब तक मतदाताओं के सामने एक ही मुद्दा था, इंदिरा गांधी चाहिये या नहीं? मतदाता इंदिरा गांधी के पक्ष में वोट डालते थे। इसके कारण महाराष्ट्र सहित अनेक राज्यों में कांग्रेस सत्ता में आती थी। इसके पूर्व पं.नेहरू के विषय में भी यही बात आती थी। और अब नरेन्द्र मोदी के बारे में भी यही विषय सामने आता है।

यह स्थिति अच्छी है या बुरी, यह वाद-विवाद का विषय हो सकता है। उत्तम स्थिति यह होना चाहिये कि महाराष्ट्र का जन नेतृत्व महाराष्ट्र में से ही उभरे। आज भाजपा के जो नेता हैं, वे सब संगठन में से आगे आए हैं। उनके साथ व्यापक जनआंदोलन की पृष्ठभूमि नहीं है। वे कर्तृत्ववान हैं, चारित्र्य शुद्ध हैं, संगठन कुशल हैं, शासन किस प्रकार करना है, यह भी वे जानते हैं परंतु सही अर्थों में वे जननेता नहीं है।

भाजपा की विचारधारा लेकर महाराष्ट्र में एक जननेता का उदय हुआ था, वे थे गोपीनाथ मुंडे। उनका नेतृत्व कैसे विकसित हुआ? आपात्काल में वे जेल में थे। संगठन में महत्वपूर्ण पद पर थे। वे संघमान्य थे। फिर भी इतनी ही पूंजी पर कोई जननेता नहीं बन सकता। जननेता बनने के लिये जनता के साथ सतत संपर्क आवश्यक है, जनभावनाओं को समझना आवश्यक है। लोगों की समस्याओं के लिये संघर्ष करना पडता है। अलग-अलग समाचारपत्रों को पढ़कर जनभावनाओं को समझना यह  एक माध्यम है। परंतु उसमें से भी पूरी जनभावनायें समझ में आ ही जाएंगी, ऐसा नहीं है। समाचार पत्रों की विश्वसनीयता धीरे-धीरे रसातल की ओर जा रही है और इसीलिये सतत जनसंपर्क आवश्यक है।

गोपीनाथ मुंडे के समय जो विकट प्रश्न निर्माण हुआ था, वह था दाउद गिरोह का समानांतर शासन। यदि बहुत ही स्पष्ट कहना हो तो हिंदू बहुत ज्यादा असुरक्षित हो गया। गोपीनाथ जी ने वह विषय अपने हाथों में लिया। विधानसभा में मामला उठाकर हलचल पैदा की एवं बाहर संघर्षयात्रा प्रारंभ की। इस यात्रा के कारण गोपीनाथ जी जननेता बन गये। किसी विशिष्ट जाति के नेता नहीं बने वरन् ‘पार्टी द्वारा दिया गया नेतृत्व’, ऐसी उनकी प्रतिमा तैयार हुई। यह नेतृत्व उन्होंने अपने कर्तृत्व से प्राप्त किया।

नेता का पद इसी प्रकार स्वकर्तृत्व से प्राप्त करना पडता है। इस संदर्भ में ‘लिंकन ऑन लीडरशिप’ शीर्षक से डोनाल्ड फिलिप्स ने एक पुस्तक लिखी है। राजनीतिक क्षेत्र में काम करनेवाले लोगों को यह पुस्तक जरूर पढ़नी चाहिए। अब्राहम लिंकन अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति थे। वे सन् 1860 में अमेरिका के राष्ट्रपति बने। उससे पूर्व वे सिनेटर भी नहीं थे। किसी के मंत्रीमंडल में भी नहीं थे। शासन चलाने का कोई भी अनुभव उनके पास नहीं था। उसी समय उनके शासन संभालते ही सात राज्य अमेरिका से बाहर निकल गये। इन राज्यों ने अपना राज्यसंघ तैयार किया। उनके प्रदेशों में स्थित सभी किले, शस्त्रास्त्र, गोलाबारूद पर उन्होंने कब्जा कर लिया। राजधानी वॉशिंगटन की रक्षा करने की शक्ति भी लिंकन के पास नहीं बची। केवल 16 हजार सेना थी एवं उसका नेतृत्व एक 75 वर्षीय वृद्ध सेनापति के पास था। अर्थव्यवस्था रसातल को जा रही थी। बेरोजगारी बडे पैमाने पर बढ़ रही थी। अमेरिका को यूरोप के शत्रु जागृत हो गये थे।

अब्राहम लिंकन वकील थे। उनके साथ के वकील उन्हें दूसरे दर्जे का वकील मानते थे। उनके मंत्रीमंडल के सहयोगी उन्हें कामचलाऊ राष्ट्रपति मानते थे। हम इस राष्ट्रपति को अपनी उंगलियों पर नचा सकते हैं ऐसा उन्हें लगता था। परंतु इतिहास में आज यह अमेरिका का सबसे महान राष्ट्रपति, अमेरिका का दयालु चेहरा, अमेरिका को एक रखनेवाला महात्मा, महान वक्ता, इसाप के बाद कहानियां बताने वाला एक महान पुरूष-ऐसे जितने विशेषण उनके लिए लगायें, उतने ही कम हैं। ऐसा एक समय का शून्य मनुष्य इतना महान कैसे हुआ? वह भी राजनीति में रहते हुए?

लिंकन अपने गुणों के कारण महान बने। व्हाईट हाउस में राष्ट्रपति की कुर्सी पर वे बहुत कम बैठे। सदा लोगों से मिलते जुलते रहे। रक्षा मंत्रालय में वे अधिक समय व्यतीत करते थे। सेनाधिकारी, सामान्य सैनिक इनसे वे सतत संवाद करते थे। इसके कारण मोर्चे पर क्या स्थिति है, इसकी उन्हें हमेशा जानकारी रहती थी। मंत्रीमंडल की बैठकें व्हाईट हाउस में आयोजित न कर वे कभी रक्षा मंत्रालय तो कभी नेव्ही यार्ड में करते थे। शेष समय में वे अपने सहकारियों से मिलते रहते थे। उनसे चर्चा करते थे। ये सहकारी उनके विषय में अत्यंत गंदी भाषा में बात करते थे, यह उन्हें पता था। परंतु इस विषय में अपने मन में उन्होंने कभी द्वेषभाव नहीं रखा। देशकार्य के लिये सामने वाले व्यक्ति में क्या गुण हैं और उसका कैसा उपयोग करना है, यह वे अच्छी तरह समझते थे।

राजनीति में जिन्हें सफलता प्राप्त करनी है, आगे बढ़ना है, अतिशय महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करना है, उन्हें अपने अंतरंग सहयोगी बनाने पडते हैं। विल्यम्स सीवार्ड एवं एडविन स्टॅन्टन ये दोनों लिंकन के अत्यंत विश्वासपात्र सहयोगी थे। एक वित्तमंत्री थे तो दूसरे रक्षामंत्री थे। युद्धभूमि पर उनका विश्वस्त सहयोगी था जनरल ग्रेंड। जनरल ग्रेंड ने विद्रोही सेना को अंत में पराजित कर दिया। युद्ध जीता और अमेरिका अखंड रहा। राजनीति में चारण-भाटों की कोई कमी नहीं है क्योंकि वे लाचार होते हैं। प्रत्येक को अपने नेता से कुछ न कुछ प्राप्त करने की चाह होती है। लिंकन ने ऐसे चारण-भाटों को अपने आसपास जमा ही नहीं होने दिया। राजनीति याने सतत संघर्ष।  निरंतर जागरूक रहना पड़ता है। सैकडों लोग आते हैं। नम्रतापूर्वक झुककर सलाम करते हैं, साहब-साहब की रट लगाते हैं। परंतु इन दस में से नौ लोगों के मन में यही विचार घूमता रहता है कि साहब के पैर नीचे ओर किस तरह खींचे जाएं। इस नौ और एक की पहचान जिसे होती है वह सफल राजनेता है। और जिसे नहीं होती वह होता है…..।

जननेता होने के लिये इमानदारी, खरापन और प्रबल नीतिमत्ता आवश्यक ही है। पं.नेहरू के समय चीन ने हमें पराजित किया परंतु लोगों ने पं.नेहरू को सत्ता से बाहर नहीं किया, क्यों? क्योंकि पं.नेहरू की इमानदारी, सच्चाई एवं नीतिमत्ता पर लोगों को अटल विश्वास था। लोगों को लगता था कि चीन नालायक है, विश्वासघाती है, दगाबाज है, उसने एक सच्चे आदमी के साथ छल किया है। सच्चाई एवं इमानदारी का यह सामर्थ्य है। लोकसभा में अटलबिहारी बाजपेयी की सरकार मायावती के विश्वासघात के कारण एक वोट से गिर गई। लोगों को बहुत दु:ख हुआ। यह दु:ख सरकार गिरने का कम परंतु एक सच्चे इंसान साथ दगाबाजी का अधिक था। लोगों ने अटलजी को पुन: चुना एवं प्रधानमंत्री पद पर बिठाकर इस विश्वासघात का बदला लिया।

इसे दुर्भाग्य ही कहें कि आज महाराष्ट्र के अनेक भाजपा नेता अपनी जाति से ऊपर नहीं उठ सके हैं। किसी को लगता है कि मैं ओबीसी का नेता हूं, कोई अपने आप को चरवाहों का तो कोई अपने को मराठा या कुनबी समाज का नेता समझता है। वैसे ही कुछ अपने आप को दलितों का नेता सिद्ध करने में लगे रहते हैं। माफ किजीये, परंतु ऐसा जातिगत विचार करने वाले नेता संपूर्ण महाराष्ट्र का नेतृत्व नहीं कर सकते। महाराष्ट्र कोई एक जाति या एक धर्म के लोगों का प्रदेश नहीं है, वरन यहां कई जाति एवं उपासनापंथ के लोग निवास करते हैं। वे सभी एक राजनीतिक रचना में रहते हैं। इन सब को समाहित करने वाला नेतृत्व महाराष्ट्र को चाहिये।

लिंकन ने इस सब विषयों का विचार कैसे किया होगा? जिन्होंने विद्रोह किया था उन्हें कभी शत्रु नहीं समझा। वे अपने ही बंधु हैं, यह मानकर उनसे कभी गलत व्यवहार नहीं किया। मानसिक दृष्टि से विभाजित लोगों में समानता के धागे खोजे। अपना संविधान, स्वतंत्रता का आग्रह, समानता के प्रति वचनबद्धता, इश्वरीय अस्तित्व पर प्रगाढ़ श्रद्धा ये सब बातें एकता निर्माण करनेवाली हैं, यह लिंकन ने जाना। लिंकन के चार प्रसिद्ध भाषणों में उपर उल्लिखित बातों का किसी न किसी रूप में उल्लेख हैं। उनके इन भाषणों को केवल प्रसिद्ध भाषण कहना ही उपयुक्त नहीं होगा, क्योंकि ये भाषण ही अमेरिका है।

महाराष्ट्र का यदि विचार करें तो आज महाराष्ट्र के ज्वलंत विषय कौन से है? शिवसेना विरूद्ध भाजपा ऐसा विचार किया तो शिवसेना की सरकार यह भाजपा की दृष्टि से ज्वलंत विषय हो सकता है। जनता को इससे कोई लेना देना नहीं है। जनता की दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रश्न अलग हैं। सौ रूपये किलो प्याज यह आज का ज्वलंत विषय है। बैमौसम बरसात के कारण खेती एवं फलों के बगीचों को हुआ नुकसान यह दूसरी ज्वलंत समस्या है। शिक्षित युवक-युवतियों का भविष्य यह तीसरी एवं स्त्री-सुरक्षा यह चौथी ज्वलंत समस्या है। इन प्रश्नों पर कोई बोल रहा है क्या? भाजपा का कोई नेता इन प्रश्नों को लेकर आंदोलन कर रहा है क्या? व्यक्तिगत दुख एवं शिकवा-शिकायतों में ही अनेक नेता मग्न है। इन सबको यह ध्यान रखना चाहिए कि आपके व्यक्तिगत एवं राजनीतिक बातों से जनता को कोई लेना देना नहीं है। उसे रास्ते के गढ्ढे दिखते हैं, आसमान छूते प्याज के भाव दिखते हैं, बेहिसाब  बढ़ते जा रहे सब्जियों के भाव दिखते हैं और दिन भर यह चिंता सताती रहती है कि घर से बाहर गई उसकी लडकी, बहन, पत्नी शाम को सुरक्षित घर आयेगी या नहीं।

महाराष्ट्र की जनता को चाहिये-जनता के प्रश्नों के साथ भावनिक रूप से एक होने वाले, जनता के प्रश्नों पर आंदोलन करने हेतु रास्तों पर उतरने वाले, जनता के प्रश्नों पर अपनों से भी आलोचना सहन करने वाले नेता। लिंकन ने जब जनभावनाओं से अपने को जोड़ा तब उसके विरोधियों ने और सहयोगियों में से भी किसी ने उसे बन्दर कहा, गोरिला कहा, महामूर्ख कहा तो कभी-कभी अष्टावक्र कहा। लिंकन ने सब शांति से सुना। कभी भी प्रतिकार नहीं किया। किसी को उत्तर नहीं दिया और सही अर्थों में उसने लोगों के हृदयों में पैठ बना ली। एक मां द्वारा उसके विषय में प्रगट उद्गार इस प्रकार हैं,“इसे लोग अत्यंत कुरूप क्यों कहते हैं, यह मुझे समझ में नहीं आता क्योंकि वह विश्व का सर्वाधिक सुंदर पुरूष हैं।” लिंकन की यह सुन्दरता उसकी इमानदारी, सच्चाई और प्रबल नीतिमत्ता से प्रकट होती है।

नरेन्द्र मोदी की हवा तो रहेगी ही। वह अगले चुनावों में भी रहेगी। नरेन्द्र मोदी अपने कर्तृत्व से बडे हुए हैं। देश की हिंदू भावनाओं की उन्हें अच्छी समझ है। इसिलिये हिन्दू समाज को वे एक बडा आधार प्रतीत होते हैं। महाराष्ट्र में भी ‘महाराष्ट्र-मोदी’ (मोदी जैसा नेता) का उदय होना चाहिये। इन दोनों की जो शक्ति होगी वह महाराष्ट्र में परिवर्तन लायेगी। वही शक्ति तीन सौ साल के पूर्व के छत्रपति की याद दिलायेगी।

 

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