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भारती संस्कृति को  रशिन बहुत चाहते हैं…

भारती संस्कृति को रशिन बहुत चाहते हैं…

by अमोल पेडणेकर
in जनवरी २०२० - आप क्या चाहते हैं?, सामाजिक
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 ‘रशियन इंडियन फ्रेंडशिप सोसायटी-दिशा’ के चेयरमैन डॉ. रामेश्वर सिंह और वाईस चेयरमैन डॉ. नादिंदा विगत 10 सालों से रूस में भारत-रूस मैत्री के लिए कार्य कर रहे हैं। उनके सांस्कृतिक कार्यों से इन दो देशों में परस्पर सांस्कृतिक सामंजस्य बढ़ाने में योगदान मिला है। उनसे साक्षात्कार के माध्यम से उनके कार्यों का विस्तार एवं उपलब्धियां पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास…।

आप विगत 38 सालों से रूस में निवास कर रहे हैं। 1991 में सोवियत संघ का पतन हो गया। पतन के पूर्व का सोवियत संघ और पतन के बाद का रूस इन दोनों में आपने किस प्रकार का परिवर्तन महसूस किया है?

मैं हमेशा कहता हूं कि जब किसी देश या घर का बंटवारा होता है तो यह बहुत ही दु:खद चीज होती है। उस घर को फिर से संभालने और सजाने में काफी समय लगता है। जब 1991 में सोवियत यूनियन टूटी तब वहां पर सब कुछ बिखर गया। वहां पर कोई संविधान नहीं रहा। उसको फिर से बनाना हर चीज को एक नए स्तर से प्रारंभ करने में उसको स्थापित करने में समय लगा। सोवियत यूनियन के टूटने से उसके साथ कई सारे देशों से रिश्तें टूट गए थे। रूस एकदम सबसे अलग-थलग पड गया था। 10 साल तक उन्होंने अपने आप को अपने पैरों पर खड़ा करने की कोशिश की और उसमें लगे रहे। आज उन्होंने खुद को एक महाशक्ति के रूप में पुनर्स्थापित किया है।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने रूस के साथ सभी क्षेत्रों में मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किए हैं। भारत और रूस के इन मैत्रीपूर्ण संबंधों को रूस की जनता किस दृष्टिकोण से देखती है?

हम भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जी को धन्यवाद देना चाहेंगे कि दोनों राष्ट्रों के नेताओं की इतनी मधुर मित्रता से दोनों देशों के नागरिकों में एक अलग मैसेज जाता है। इसी कारण रूस के नागरिक भी भारत को बहुत प्रेम करते हैं। भारत के निवासियों से बहुत प्यार करते हैं। मैं भारत में भी देखता हूं कि जब भारतियों के सामने रूस का नाम आता है तो उनके चेहरों पर मैत्री भाव झलकता है। यह रिश्ता एक दिन में नहीं बना यह पीढ़ी दर पीढ़ी से चल रहा है।

रशियन इंडियन फ्रेंडशिप सोसाइटी की स्थापना क्यों और कब हुई?

यह समय की पुकार थी। सोवियत यूनियन टूटने के बाद वह पहलेवाली दोस्ती खत्म हो गई थी। हमारे यहां भारतीय निवासियों के लिए कुछ आर्गनाईजेशन हैं- जैसे हिंदुस्तानी समाज है, इंडियन बिजनेस अलायंस है लेकिन वह केवल रूस में जो इंडियन रह रहे हैं उनके लिए काम करती है। तब मेरे दिमाग में आया क्यों ना हम एक ऐसी संस्था की स्थापना करें जो दोनों देशों में रह रहे लोगों के लिए काम करें। अत: अक्टूबर 2010 में एक संस्था की स्थापना की गई जिसका नाम है ‘इंडियन रशियन फ्रेंडशिप सोसाइटी अर्थात ‘रूसी भारतीय मैत्री संघ- दिशा।’ अब ‘दिशा’ का नाम सुनने पर चाहे कोई रूसी हो या भारतीय उनके चेहरे पर मुस्कान आती है। यदि उनके सामने केवल ‘दिशा’ का नाम भी लेते हैं तो उन्हें यह समझ में आ जाता है कि यहां मित्रता का कोई काम है।

आपकी संस्था का मुख्य उद्देश्य क्या है?

जब संस्था बनाई गई थी तो इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय और रूसी परिवार हैं उनको इकट्ठा करना था। जैसे कि मेरी धर्मपत्नी  रशियन है। मैं लगभग 15 साल तक हिंदुस्तानी समाज संस्था का वाइस प्रेसिडेंट रहा हूं। हमारे जो महामहिम राजदूत रहे हैं, हमेशा कहते थे कि आपकी समस्या दूसरी है आप यहां के नागरिक हो गए हो, यहां रहते हो, आपके बच्चे आपके पोते-पोतियां भी यहीं पर रहते हैं। उनमें रूस के ही संस्कार आ रहे हैं। कुछ भी हो जाए अब आप उसको बदल नहीं सकते। लेकिन वे भारतीय भी हैं यह बात वे धीरे-धीरे भूल सकते हैं। भारतीय सरकार का भी कार्यक्रम है ‘नो योर इंडिया’, जिसमें वह बच्चों को, युवाओं को बुलाते हैं, भारत घुमाते हैं। अगर उनको पढ़ना होता है तो उसके लिए सुविधाएं उपलब्ध करवाते हैं। तो क्यों ना आप भी कुछ ऐसा करें जिससे कि वह भारत को जानते रहें। उनके बारे में समझते रहें ताकि उनके जींस भी उनसे यह कहते रहे कि हां मैं भारतीय भी हूं। अत: इस ऑर्गेनाइजेशन की स्थापना का मुख्य उद्देश्य बना भारतीय और रूसी परिवार को एक प्लेटफार्म पर लेकर आना। आज उसका रूप थोड़ा बड़ा हो गया है।

भारत और रूस के सांस्कृतिक संबंध बेहतर बनाने के लिए आपकी संस्था के माध्यम से कौन-कौन से प्रयास किये गये हैं?

‘भारतीय रूसी मैत्री संघ-दिशा’ का हमेशा से प्रयास रहा है कि हमारे भारतीय पुराण में रामायण, महाभारत, कृष्ण लीला के माध्यम से हम दिखाना चाहते हैं कि आदर्श परिवार की पद्धति कैसी है। और आदर्श परिवार कैसे चलता है। हम दिखाना चाहते हैं, कि पुत्र-पिता का संबंध क्या होता है। ऐसा होता कि अगर पिता बीमार हो गया या वृद्ध हो गया तो क्या उसे वृद्ध आश्रम में भेज दिया जाए और बेटा बड़ा हो गया, जॉब पर जाने लगे माता-पिता की नहीं सुनता। इसलिए रामायण समाज के संस्कार के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। भारत की संस्कृति ऐसी रही है यह सब चीजें हम लोग रामलीला के माध्यम से रूस में दिखा रहे हैं। देखिए यही हमारी मूल संस्कृति है। हमने भारतीय संस्कृति की वही छोटी-छोटी चीजें समाज को देने की कोशिश की है।

दो देशों के बीच व्यापारिक एवं सांस्कृतिक संबंध विकसित होने के लिए एक दूसरे की भाषाओं का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है। रूस और भारत की भाषाओं के परस्पर प्रचार प्रसार के लिए आपकी संस्था के माध्यम से कौन-कौन से प्रयास किये गए हैं?

हम दिशा के नाम से एक मैगजीन प्रकाशित करते हैं। लोगों ने कहा कि इसका स्रोत क्या है? क्योंकि वहां पर इतने हिंदी भाषी लोग नहीं है। उस समय वहां के महामहिम राजदूत वेंकटराघवन जी थे,जो हिंदी भाषी ना होते हुए भी उन्होंने हमारी काफी मदद की। हमें प्रोत्साहित भी किया कि आप कार्य प्रारंभ करो। आज पांच सालों में लोग इसे जानने लगे हैं। हम जो भी लिखते हैं उसे 3 भाषाओं में लिखते हैं, ताकि हम जो लिखना चाहते हैं वह लोगों तक तो पहुंचे क्योंकि रशियन लोग भारत से प्रेम करते हैं। लोग यहां के बारे में जानना भी चाहते हैं। हम इसमें भारत की संस्कृति लिटरेचर इन सब चीजों के बारे में लिखते भी हैं। दूसरा हमने चालू की हिंदी ज्ञान प्रतियोगिता। उसमें हम बच्चों को इकट्ठा करते हैं वहां हम उनसे अनुवाद, कविता पाठ का आयोजन करवाते हैं। इसमें भारतीय दूतावास के अंतर्गत आने वाला जवाहरलाल नेहरू संस्कृति केंद्र वहां उपस्थित रहता है। प्रतियोगिता में हम बच्चों को पुरस्कृत भी करते हैं। प्रोफेसर वर्ग जिन्होंने 70 से 75 साल भारत के लिए भारतीय संस्कृति के संवर्धन के लिए सतत संघर्ष किया है, उनको  हिंदी सेवा सम्मान और हिंदी मित्र सम्मान से महामहिम राजदूत सम्मानित करते हैं। हर साल दो इंटरनेशनल हिंदी सम्मेलन हम रूस में करवाते हैं।

आपके प्रयास को किस प्रकार से सफलता मिल रही है?

अभी यह कहना तो मुश्किल है, लेकिन लोगों में उत्साह बहुत बढ़ा है और उत्साह के साथ-साथ लोगों में जिज्ञासा भी बढ़ी है। नई तकनीक के माध्यम से हम अपने कार्यक्रमों को लोगों के बीच में पहुंचा रहे हैं। अपने कार्यक्रमों को हाइलाइट कर रहे हैं। यहां तक कि बच्चे और बच्चों के साथ-साथ 40 साल तक के लोगों को भी हिंदी भाषा पढ़ने की जिज्ञासा हो रही है। सही बात है कि जब तक आप दो भाषाओं के लोग एक दूसरे की भाषा नहीं जानते होंगे तब तक मित्रता नहीं हो सकती, दिल से दिल नहीं मिल सकते केवल एक अनुवादक के माध्यम से भाव शब्दों को इधर से उधर पहुंचाया जा सकता है। यह बहुत जरूरी है कि लोग एक दूसरे की भाषाओं को समझें और हमारा इसी क्रम में बहुत छोटा सा प्रयास है।

रूस में राज कपूर से लेकर अभी तक बॉलीवुड का बढ़ीया प्रभाव रहा है। लेकिन ऐसा महसूस होता है कि गत दस पंद्रह सालों से भारत की संस्कृति के संदर्भ में रूस में जागरूकता आई है। यह कैसे संभव हुआ है?

मैं पहले धन्यवाद करना चाहता हूं राज कपूर साहब का जिन्होंने भारत प्रेम की एक लहर रूस में फैलाई। बॉलीवुड केवल एक फिल्म इंडस्ट्री नहीं एक पूरी संस्कृति है। उसके माध्यम से लोग भारत को देखते हैं। भारत की संस्कृति को देखते हैं, भारत का खानपान देखते है, पहनावा देखते है। नृत्य देखते हैं, गाना सुनते हैं। वह हमारी संस्कृति की पहचान है। उसमें राज कपूर जी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। अब एक नई जनरेशन आ गई है, उनको नई चीजें चाहिए और बॉलीवुड उसमें भी बहुत बड़ा योगदान निभा रहा है। रूस में एक कंपनी है ‘इंडियन फिल्म्स’, जिसके सहयोग से हम लोग फिल्म फेस्टिवल करवाते हैं। लगभग 150 स्क्रीन पर रूस में इंडियन फिल्में चलाई जाती हैं। 10-15 साल पहले धीरे-धीरे वह चीजें खत्म हो रही थीं, लेकिन वह फिर से आज उसी चरम पर पहुंच रही हैं। हमारे सांस्कृतिक नृत्य कत्थक, ओडीसी इत्यादि की तो आप वहां किसी भी गांव में चले जाइए, एक दो रशियन बच्चे वहां पर टिपिकल क्लासिकल डांस करते हुए दिखाई देंगे। मिथुन चक्रवर्ती जी वहां पर बहुत ही पॉपुलर थे। और आज भी है। भारतीय संस्कृति को बाहर पहुंचाने में बॉलीवुड बहुत ही बड़ा भूमिका अदा कर रहा है।

भारत रूस द्विपक्षीय संबंधों में व्यापार सबसे कम प्रगति वाला पहलू है। सांस्कृतिक स्तर पर हम एक दूसरे के बहुत नजदीक हैं पर वह नज़दीकियां व्यापार क्षेत्र में क्यों नहीं है?

यह बहुत बड़ी विडंबना है। इतनी अच्छी दोस्ती होने के बाद भी व्यापार उतना नहीं है, जितना होना चाहिए। देखें क्षमता है। दोनों देशों में हमारी दोनों सरकारें इसके लिए काम भी कर रही हैं। कैसे इस व्यापार को बढ़ाया जाए। जितने भी समिट देखें उसमें व्यापार के स्तर को बढ़ाने की बात होती है। लेकिन ना जाने कहां जाकर बात रुक जाती है।

रूस एक शक्तिशाली देश है चीन, पाकिस्तान और एशिया प्रशांत देशों के साथ बढ़ते हुए संबंधों को देखते हुए रूस के भारत के संबंध के संदर्भ में क्या योजनाएं हैं?

हम सब स्वतंत्र देश हैं और सब का सब का अपना एक ही इंटरेस्ट है। और वह इंटरेस्ट राजनैतिक है। चीन और रूस दोनों के व्यापारिक संबंध बहुत पुराने हैं। लेकिन मित्रता कभी नहीं हुई है। पॉलिटिकली दोनों नजदीक जरूर है, चाइना को रूस केसाथ रहना जरूरी है। चीन तथा रूस दोनों को एक दूसरे का हाथ पकड़ के चलना जरूरी है। भारत का रूस के साथ संबंध अच्छा है, लेकिन चीन से और भी ज्यादा अच्छा है। मोदी और पुतिन कहते हैं कि डरने की जरूरत नहीं है। भारत और रूस के संबंध और अच्छे होते रहेंगे। जहां तक व्यापार की बात है तो आज नहीं तो कल अच्छे स्तर पर आ जाएगा।

रूस के छात्र भारत आते हैं और भारत के छात्र रूस जाते हैं। अत: दोनों देशों के छात्रों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर व्यवस्था होनी जरूरी है। इस विषय में कौन से उपाय दोनों देशों के माध्यम से होने चाहिए ऐसा आपको लगता है?

एक जमाना था जब भारत के विद्यार्थी रूस जाते थे, तब सबको स्कॉलरशिप मिलती थी। लेकिन जब सोवियत यूनियन टूट गया था वह चीजें बिल्कुल बंद हो गईं। करीब 10 साल की समयावधि आप ले सकते हैं। अभी फिर से यह शुरू हो गया है। जो बच्चे वहां मेडिकल और कमर्शियल पढ़ने जा रहा हैं उनको इंग्लिश में पढ़ाया जा रहा है। इसलिए अब वहां भारतीय विद्यार्थी बढ़ गए हैं। 8 हज़ार से 9 हज़ार विद्यार्थी वहां पर हैं, जिसमें 500 से 600 स्कॉलरशिप पर है। रशियन विद्यार्थी भारत में नहीं आ रहे। हालांकि भारतीय सरकार भी स्कॉलरशिप देती है। हायर एजुकेशन के लिए और रिसर्च के लिए कुछ रशियन लोग यहां आ रहे हैं।

रूस में रामायण महाभारत को लेकर के बहुत ज्यादा उत्सुकता है। रशियन नागरिक इसे किस दृष्टि से देखता है?

रूस में रामायण को जानना लोगों ने 1950 के आसपास शुरू किया। जब श्री निकट जी ने रूसी भाषा में रामायण का अनुवाद किया। अब रूसी लोग रामायण को बहुत पढ़ते हैं। रामायण के साथ-साथ गीता और महाभारत का अनुवाद भी हो चुका है। चूंकि रूस में 100% साक्षरता है, इसलिए लगभग ज्यादातर लोग पढ़ सकते हैं। 1960 से रूस में रामलीला का मंचन भी प्रारंभ हुआ। 1990 के दशक में रामायण का मंचन बंद हो गया। हम हमेशा यही सोचते थे कि इस मंचन को दोबारा चालू किया जाए। मैं अयोध्या संस्थान के निदेशक डॉक्टर योगेंद्र प्रताप सिंह को धन्यवाद करना चाहूंगा कि वह रूस आए और उन्होंने हमें प्रेरित किया और हमने इसको चालू किया। क्योंकि जितना किताब से पढ़कर सीखते हैं उससे ज्यादा किसी चीज को देखकर सीखते हैं। रामायण मंचन दोबारा चालू हुआ तो फिर से लोगों की जिज्ञासा बढ़ी। नई जनरेशन ने रामायण को अपने नजरिये से देखना प्रारंभ किया। रूसी लोगों को यह पसंद आ रहा है।

आप दिशा के माध्यम से भारत और रूस के मैत्री संबंधों के लिए कार्य कर रहे हैं। आप कुछ लोगों के उल्लेख कर सकते हैं जिन्होंने इसी प्रकार के कार्य किए हैं?

हां कई लोगों ने काम किया। उनमें से एक थे पद्मश्री डॉ मदनलाल मधु जी हम उनको अपना पितामह कहते हैं। वे हम सभी के पूजनीय थे। उन्होंने पूरी जिंदगी भारत और रूस की मैत्री को बढ़ाने के लिए दिया है। उन्होंने 1957 में हिंदुस्तानी समाज की स्थापना की और बहुत दिनों तक वो उसके अध्यक्ष रहे। वह हमारे एक तरीके से गुरु थे। आज वह हमारे बीच नहीं है। मैं उनका सहयोगी और संस्था का वाइस प्रेसिडेंट रहा हूं। उनके जितने गुण मैं ले पाया, मैंने लिए। यह मेरा सौभाग्य रहा।

आप दो देशों के बीच में सांस्कृतिक संबंध स्थापित करने का काम कर रहे हैं। दोनों देशों की सरकारों से आपको किस प्रकार की सहायता अपेक्षित है?

हमें तो बस चाहिए कि वे समय-समय पर हमें मार्गदर्शन देते रहें। मैं खुद एक रशियन जर्नलिस्ट हूं और साथ ही राजदूत का पार्लियामेंट्री एडवाईजर भी हूं। किसी काम को करने के लिए उसके अन्दर तक जाना जरुरी है। हम रशियन समाज में जा कर काम करना चाहते हैं, ना कि बाहर से हम काम करना चाहते हैं। भारत सरकार की तरफ से और भारतीय एंबेसी से समय-समय पर मदद मिलती रहती है। हम यही चाहते हैं कि हमारी जरुरत के समय आप हमारे साथ रहें।

रूस के राष्ट्राध्यक्ष व्लादीमीर पुतिन के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?

बहुत ही अच्छे प्रशासक हैं, कोई उनको दूसरे शब्दों में कठोर कह सकता है। वह एक रियल रशियन है, वह रूस के लिए काम कर रहे हैं। समय-समय पर वह पूरे देश को इकट्ठा कर लेते हैं और यही झलक हमें अपने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में देखने को मिलती है। एक बार जब देश को आह्वान करते हैं तो पूरा देश उनके साथ चल देता है। ऐसे महान प्रेसिडेंट के लिए मैं क्या कह सकता हूं। मैं यही कह सकता हूं कि इससे अच्छा प्रेसिडेंट नहीं मिल सकता।

मुंबई में संपन्न हुए अंतरराष्ट्रीय रामायण सम्मेलन पर आप अपना मत स्पष्ट कीजिए।

अंतर्राष्ट्रीय रामायण सम्मेलन जो 28 से 30 नवंबर तक हो रहा है यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। इतने बड़े विद्वानों को सुनने से हम लोगों का यहां आना सफल हो गया। रामायण एक धार्मिक ग्रन्थ नहीं है, रामायण एक सामाजिक ग्रंथ है। जो बड़े महापंडित वहां पर थे सभी ने एक स्वर में यही कहा है। किसी ने भी रामायण को धर्म से नहीं जोड़ा। सब ने इसको सामाजिक ग्रंथ कहा है, यह बहुत महत्वपूर्ण है। मैं श्री भागवत परिवार और वीरेंद्र याज्ञिक जी को धन्यवाद देना चाहूंगा कि इतना बड़ा और इतना अच्छा सम्मेलन किया। हम लोगों को इतना ज्ञान मिला कि अब हम और भी शक्ति के साथ काम करेंगे।

2020 में दूसरा अतंरर्राष्ट्रिय सम्मेलन रूस में संपन्न होगा?

रामायण का प्रचार-प्रसार केवल अपने भारत देश में, अपने शहर में ही न हो, वरन अपने भारत देश से निकाल कर हमको रामायण दुनिया में भी प्रसारित करनी है। दुनिया में अपनी बातों को पहुंचाना है। विश्व को भी रामायण के बारे में बताना जरूरी है। मैं समझता हूं कि पहली लकीर भागवत परिवार ने खींची हैं। मेरे लिए सबसे बड़ी खुशी की बात है कि अगर ईश्वर की दुआ रही तो जून 2020 तक हम अंतरराष्ट्रीय रामायण सम्मेलन रूस में करवाएंगे।

गत अनेक सालों से आप दो राष्ट्रों के बीच मैत्री संबंध स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं। आज जब आप स्वयं का सिंहावलोकन करते हैं तो आपको कैसा महसूस होता है?

हमें लगता है कि अभी हम लोग बहुत पीछे हैं। हमें अभी बहुत काम करना है। यह एक बहुत बड़ा संकल्प है। यह जल्दी पूरा भी नहीं होगा। क्योंकि जैसे-जैसे समय बीतेगा नई चुनौतियां आएंगी, उनको पार करना होगा। अभी मैं सोचता हूं कि अभी हम लोग बहुत ही पीछे हैं या बहुत ही छोटे स्तर पर हैं। लेकिन हम लोग धीरे-धीरे अपना प्रयास कर रहे है।

भविष्य के संदर्भ में आपकी क्या योजना है?

मेरी सबसे बड़ी योजना यह है कि रामलीला को इस स्तर पर पहुंचाएं कि पूरे रूस में रामलीला के माध्यम से रामायण और राम का चरित्र पहुंचे। साथ ही कृष्ण लीला के माध्यम से कृष्ण के चरित्र को  भी रूसी लोगों तक पहुंचाएं। अभी हमें ऑफर आया है कि हम टीवी चैनल पर भी इस कार्यक्रम को दिखाएं। टीवी के माध्यम से रूस में करोड़ों लोगों तक जा सकते हैं। बॉलीवुड को बहुत अच्छे स्तर तक लेकर जाना है। 2020 तक योगा फेस्टिवल अपने स्तर पर करना चाहते हैं। वैदिक साइंस, अपनी एस्ट्रोलॉजी के बारे में हम वहां पर लोगों को बताएंगे। रशियन लोग भारत के एस्ट्रोलॉजी और इन चीजों को भी जाने इस बारे में भी हमारा प्रयास है।

अभी तक हमने रूस और इंडिया के बारे में बात कि, आपके कार्य के बारे में बात की, लेकिन एक भारतीय होने पर आप रूस कैसे गए। वहां पर आपको स्वीकार कैसे किया गया। इस बारे में बताइए?

हम यूपी के सुल्तानपुर के एक गांव से हैं। ईश्वर की दया से जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में रशियन स्टडीज में मेरा दाखिला हो गया। उसके बाद मेरा एडमिशन मॉस्को में हो गया। मुझे हलकी-फुलकी रूसी भाषा आती थी। मैंने वहा लोगों से टूटी-फूटी भाषा में बात करना शुरू किया। वहां के लोगों को दोस्त बनाया। रूस को अपना घर मान लिया। फिर नादिंदा मिली, हमारी शादी हुई। अब हमें दो बच्चे हैं और आज हम रूस में रह रहे हैं। हम खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं कि देश से दूर रहकर दो देशों के सांस्कृतिक समन्वय के लिए कार्य करते हैं।

 

अमोल पेडणेकर

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