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सहिष्णुता पर वामपंथियों का घमासान

सहिष्णुता पर वामपंथियों का घमासान

by रमेश पतंगे
in दिसंबर -२०१५, सामाजिक
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आजकल देश में सहिष्णुता पर वैचारिक घमासान मचा हुआ है   इसे देखकर मुझे अचानक महाभारत में कर्ण अर्जुन के बीच युध्द की कथा का स्मरण हुआ। कर्ण के रथ का पहिया कीचड़ में धंस गया, कर्ण जैसे ही उस पहिये को कीचड़ के बाहर निकालने रथ से उतरा, तब कृष्ण ने अर्जुन से कहा ‘‘अर्जुन धनुष पर बाण चढ़ा तथा कर्ण को समाप्त कर दे।’’ तब कर्ण ने कहा, ‘‘यह धर्म युध्द नहीं है। मैं जमीन पर हूं, तथा युध्द के नियमानुसार जमीन पर खड़े योध्दा को रथारूढ़ योध्दा मार नहीं सकता।’’

कर्ण की धर्म पर इस बकबक को सुनकर कृष्ण ने कर्ण को जो उत्तर दिया, वह शाश्वत है तथा चिरंतन है। सभी अधर्र्मी लोगों पर पूरी तरह लागू होता है। कृष्ण ने कर्ण से कहा था, ‘‘तेरा प्राण जब संकट में आया तब तुझे धर्म याद आ रहा है? वरणावृत में पाण्डवों को जिंदा जला देने का षड्यंत्र करते समय तेरा धर्म कहां गया था? भरी सभा में द्रौपदी का वस्त्र हरण हुआ तब तेरा धर्म कहां गया था? अभिमन्यु को अकेले में घेर कर मारते समय तुम्हारा धर्म कहां गया था? पाण्डवों को द्युत क्रीड़ा के बहाने फंसा कर वनवास में भेज दिया गया तब तुम्हारा धर्म कहां गया था?

आज कर्ण के अवतार में शाहरुख खान, इरफान हबीब, सोनिया गांधी सहित पूरी वामपंथी टोली दिखाई दे रही है। कृष्ण की तरह उनसे सवाल किया जाना चाहिए कि मुंबई बमविस्फोट में साढ़े चार सौ निरपराध लोग मारे गए, मारने वाले खान और इरफान के धर्म के ही थे, तब तुम्हारी सहिष्णुता क्या वड़ा-पाव खाने गई थी? जब गोदरा में ट्रेन के डिब्बे में ५९ कारसेवकों को तुम्हारे ही जातिकुल के लोगों ने जिंदा जला दिया, तब तुम्हारी सहिष्णुता क्या मिसल-पाव खा रही थी? १९८४ के दंगों में कांग्रेस के लोगों ने सिख समुदाय के लोगों को ढूंढ ढूंढ कर मार डाला तब तुम्हारी सहिष्णुता कॉफी हाउस में कॉफी पी रही थी क्या? १९८० से ९० के दशक में जब कश्मीर में हिंदुओं की हत्याएं हो रही थीं, १३ लाख कश्मीरी पण्डितों को कश्मीर छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया, तब तुम्हारी सहिष्णुता मैगडानोल्ड में बर्गर खा रही थी क्या?

अभी देश में सहिष्णुता पर बोलने की गलाफाड़ प्रतियोगिता चल रही है। बालीवूड का शाहरुख खान भी इस मैदान में है, इसीलिए शुरुआत शाहरुख खान से ही होनी चाहिए। शाहरुख खान कहता है, ‘‘देश में असहिष्णुता बढ़ती जा रही है (यह एक साक्षात्कार है, और साक्षात्कार लेने वाला दिलिप सरदेसाई है, यानी करेला ऊपर से नीम चढ़ा) सभी धर्म समान हैं, यह स्वीकार किए बिना प्रगति सम्भव नहीं है। लोग बिना विचार किए हवा में शब्द बाण चला देते हैं। हम नए भारत की बात कर रहे हैं, पर यदि यह नवभारत सेक्युलर नहीं हुआ तो निरर्थक है। लोगों को अपना अलग विचार रखने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।

   यह बात चूंकि शाहरुख खान बोल रहा था तो उसे बीबी

सी से लेकर सब जगह प्रचार मिला, आखिर वह सुपर स्टार जो है। उसे सुपर स्टार हमने बनाया है। हम उसके सिनेमा को देखते हैं, उसके अभिनय की प्रशंसा करते हैं, क्योंकि उसके अभिनय का वह स्तर होता है। परन्तु सिनेमा का नायक किसी अन्य के द्वारा लिखी हुई स्क्रिप्ट को पढ़ता है, उसे याद करता है, तथा उन संवादों में अभिनय से जान डालता है। शाहरुख खान को असहिष्णुता की स्क्रिप्ट किसने लिख कर दी, यह मुझे नहीं मालूम। शाहरुख खान का यह उपदेश ८० करोड़ हिन्दुओं को अपमानित करने वाला है। दुनिया में कहीं भी हिन्दू जैसा सहिष्णु प्राणी मिल नहीं सकता। अमेरिकी इतिहासकार विल डुरान्ड कहते हैं, ‘‘भारत हमको सहिष्णुता तथा हृदय की परिपक्वता का पाठ सिखाएगा। दूसरों को समझ लेने की, सभी जोड़ने की तथा पूरी मानवजाति के प्रति प्रेम का भाव जगाने की सीख भारत ही देगा।’’ विल डुरान्ड जिस भारत की बात करते हैं वह सनातन भारत है, वैदिक भारत है, भगवान बुध्द का भारत है। विदेश से आए खानों के भारत की बात डुरान्डो नहीं कर रहे हैं। ऐसे भारत को क्या शाहरुख खान सहिष्णुता का पाठ पढ़ाएगा?

बेटा शाहरुख खान तू बेकार की स्क्रिप्ट मत पढ़ें। भारत का हिन्दू बहुत सहिष्णु है इसीलिए तू सूपर स्टार है। तेरे वंश वालों के पाकिस्तान में अक्षयकुमार कभी सुपरस्टार नहीं बन सकता। उसके सिनेमा पर वहां प्रतिबंध लगता है। यह खान मानसिकता तथा हमारी मानसिकता का अंतर है। इसीलिए फालतू के उपदेश देने की झंझट में न पड़ो तो ही ठीक है। हिन्दू समाज भोले बाबा का अवतार है, शांत तथा अपने में ही मगन। परन्तु जब शंकर क्रुध्द होते हैं, तो क्या होता है, यह जानने के लिए मार्कण्डेय पुराण पढ़ना चाहिए।

सहिष्णुता पर वैचारिक घमासान वामपंथियों ने शुरू किया। इसके लिए उनका स्वागत है। एक शब्द खोज कर निकालना, फिर उसके पीछे पूरी वैचारिक ताकत कैसे लगा देना, यह इनसे सीखने लायक है। हम सारे हिंदुत्ववादी तो इस सम्बंध में हाईस्कूल की परीक्षा भी पास नहीं कर पाए। चूंकि लेख की शुरुआत शाहरुख खान से हो रही है इसलिए कुछ फिल्मी डायलाग की तरफ बढ़े। ‘‘शीशे के घर में रहने वाले दूसरों के घर पर पत्थर नहीं फेंका करते’’ यह सिनेमा का प्रसिध्द डायलाग है। इस डायलाग का स्मरण इसीलिए हुआ; क्योंकि वामपंथी यानी कि मार्क्सवादी कांच के घर में रहने वाले अति असहिष्णु लोग हैं। विरोधी विचार उन्हें सहन तो नहीं होता; परन्तु यदि उनकी खुद की विचारधारा का कोई व्यक्ति उनके विचारों से थोड़ा भी विचलित हो जाए तो उसके जीवन की असहनीय बना देते हैं। इसका अभी अभी का उदाहरण लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष इन्द्रजीत गुप्ता (यहां पर सोमनाथ होना चाहिए था, कृपया सुनिश्चित कर लेंवे।) हैं जो आज किस दुनिया में है यह हमें ज्ञात नहीं। यह वामपंथी असहिष्णुता है।

इन वामपंथियों की सबसे बड़ी ताकत केरल तथा बंगाल में हैं। इन दोनों प्रांतों में इन्होंने जो राजनीतिक हिंसा की है, उसकी तुलना केवल नाजी एवं फासीज्म से ही की जा सकती है। वैचारिक रूप से भी नाजी, फासीस्ट एवं कम्युनिस्ट एक दूसरे के चचेरे भाई ही हैं। इन्हीं लोगों ने केरल में अब तक २०० संघ कार्यकर्ताओं की हत्याएं कर दी हैं। बहुतों के हाथपैर तोड़ दिए गए। इन लोगों को अब कर्ण की तरह सहिष्णुता याद आ रही है। जनसामान्य के साथ तो ये लोग कभी रह नहीं सके, परन्तु पिछले ६७ वर्षों में इन लोगों ने बौध्दिक क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण स्थानों पर कब्जा कर रखा है। एफटीआय, जेएनयू, इतिहास परिषद को इन्होंने अपना अड्डा बना कर रखा हुआ है। उसी प्रकार सिने क्षेत्र में भी उनकी पोषित पालित टोली है। ये लोग कभी त्यागपत्र देने का तो कभी विरोध करने का काम करते रहते हैं।

पश्चिम बंगाल में इन्ही दुष्ट लोगों की ३५ वर्ष तक सत्ता रही। मेन स्ट्रीम वीकली के २०१४ के १४ अगस्त के अंक में पश्चिम बंगाल में वामपंथियों द्वारा की गई राजनीतिक हत्याओं पर  एक लेख प्रकाशित हुआ। उसके अनुसार १९९७ में विधान सभा में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ने सूचित किया कि १९७७ से १९९७ के बीच २८००० राजनीतिक हत्याएं हुईं। सीपीआइ (एम) ने जो अपराध किया है, उसकी विकरालता केवल इस वक्तव्य से महसूस नहीं की जा सकती। देखा जाए तो ‘‘एक महीने में १२५.७ हत्याएं हुईं’’, ऐसा इसका अर्थ है। दूसरा मतलब कि प्रति दिन ४ हत्याएं हुई, और तीसरा प्रति छह घंटे में एक राजनीतिक हत्या पश्चिम बंगाल में, वामपंथियों के उन्नीस वर्ष के शासन के दौरान होती रही। शांति के इस स्वर्ग में वामपंथ का कोई भी विरोधी क्यों खुद को सुरक्षित महसूस कर सकता था? मेन स्ट्रीम के इस लेख पर और कोई स्पष्टीकरण या टिप्पणी करने की जरूरत नहीं है। बेटा शाहरुख जरा उसको पढ़ो, असलियत जान लो और बाद में जुबान खोलो।

इन वामपंथियों ने दो लोगों को ‘महान इतिहासकार’ मान लिया। कोई भी अंग्रेजी समाचार पत्र खोलो तो उसमें इन दोनों का उल्लेख ‘एमिनंट हिस्टोरियन’ के रूप में मिलेगा। ये दो नाम यानी इरफान हबीब और रोमिला थापर। ये वामपंथी कभी राजवाड़े, त्र्यंबक शेजवलकर, ग. ह. खरे, एम. एस. लाल जैसे इतिहासाचार्य का नाम नहीं लेंगे। वास्तव में इरफान हबीब इतिहासकार न होकर वामपंथी विचारधारा के जादूगर हैं। उनका इतिहास शोध असीम है। यानी कितना, कि उन्होंने कहा है कि, ‘‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा इसीस एक जैसे ही संगठन हैं।’’ इस दो टके के इतिहासकार को अपना मत व्यक्त करने के पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गम्भीरतापूर्वक अध्ययन करना चाहिए था, उसकी उसे जरूरत महसूस नहीं हुई। इस देश में प्रति दिन संघ की ५०,००० शाखाएं लगती हैं। उस बस्ती के लिए यह शाखा बहुत बड़ा सम्बल होती है। इसीस के कारनामों का वीडियो यू ट्यूब में देखने को मिलता है। इस इसीस के कारण पूर्व के मुसलमानों की भीड़ की भीड़ यूरोप की ओर जा रही है। इस दो टके के इतिहासकार को इसकी भी जानकारी नहीं होगी, ऐसा उनका असीम ज्ञान है।

इस महान(!) इतिहासकार को डॉ. अर्नाल्ड टायन्बी का नाम ज्ञात ही होगा, ऐसा हम मान कर चलते हैं। टायन्बी दुनिया के एक महान इतिहासकार माने जाते हैं। वे भारत के सम्बंध में कहते हैं, ‘‘यदि मानव जाति को स्वयं का विनाश नहीं करना है तो एक बात बहुत साफ है कि जिस अध्याय की शुरुआत पश्चिम से हुई है उसका अंत भारत में होना चाहिए। इतिहास के भयानक तथा खतरनाक मोड़ पर खड़ी मानव जाति के मुक्ति का मार्ग भारतीय मार्ग है। अर्नाल्ड टायन्बी जब भारतीय मार्ग कहते हैं तो उस समय वे भारत के मुस्लिम मार्ग या मार्क्सवादी मार्ग की बात नहीं करते, यह बात ध्यान में रखनी होगी। वे सनातन, सहिष्णु तथा सर्व समावेशक भारतीय मानस की बात करते हैं। जिसमें शाहरुख का खान फिट नहीं होता और इफरान हबीब जैसे फिट नहीं होते।

सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति से मुलाकात कर वामपंथियों की दी हुई सूची उनके सामने प्रस्तुत की और बढ़ती हुई असहिष्णुता पर चर्चा की। सोनिया गांधी कांगे्रस की अध्यक्ष हैं तथा वे केथोलिक हैं। उनके पिताजी नाजी थे। दूसरे महायुध्द में वे रूस की कैद में थे। कहा जाता है कि उनका वहां ब्रेनवाशिंग हुआ और वे इटली आ गए। उन्होंने रूस की कृतज्ञता को बनाये रखने के लिए अपनी लड़की के मूल नाम को बदल कर उसका नाम सोनिया रखा। इटली यानी रोम, रोम यानी वैटिकन और वैटिकन यानी पोप। इस वैटिकन पोप संस्था ने याने केथोलिक सम्प्रदाय ने असहिष्णुता के चलते यूरोप में कितने लाख लोगों के प्राण लिए, कितने हजार लोगों को जिंदा जला डाला, और कितने लोग देश के बाहर कर दिए गए इस विषय पर बहुत लिखा गया है। जिनके रोम रोम में असहिष्णुता है, वे हमें सहिष्णुता का पाठ न पढ़ाएं। वसई, गोवा, केरल इन स्थानों पर पुर्तगालियों के धार्मिक अत्याचारों को हमारे लोगों ने कैसे सहन किया, उनकी कथा सुनकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। उनके वंशजों के द्वारा हमें सहिष्णुता सिखाई जाए यह तो अति हो गया। इसीलिए वह शीशे के घर वाला डायलाग बार-बार याद आता है।

कांग्रेस का सहिष्णुता का इतिहास तो काले पन्नों से भरा हुआ है। इसी कांग्रेस ने १९४८ में लगभग ६०-९० हजार स्वयंसेवकों को जेल में डाल दिया था। इसी कांग्रेस ने १९७५ में आपातकाल लगाकर लगभग ८०,००० लोगों को जेल में डाल दिया था, उसमें ६०,००० तो संघ के स्वयंसेवक थे। इसी कांग्रेस ने १९८४ इंदिरा गांधी की हत्या के बाद २५,००० सिखों की चुन चुन कर हत्या कर दी। इसी कंाग्रेस ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर को गांधी हत्या के लिए आरोपी बनाया। इसी कांग्रेस ने सरदार वल्लभ भाई पटेल के ऐतिहासिक योगदान को मिटा देने की कोशिश की। इसी कांगे्रस ने लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु कैसी हुई, इसकी जांच कराने की कोई कोशिश नहीं की। इसी कांग्रेस ने सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु के रहस्य पर परदा डाल कर रखा। इसी कांगे्रस ने देश को गफलत में रख कर देश का विभाजन किया जिसके कारण ६,७ लाख हिंदू मार दिए गए।

सोनियाजी! आपका सहिष्णुता का प्रवचन बहुत हो गया। हिन्दुओं को सहिष्णुता सिखाने की जरूरत नहीं है। मध्य पूर्व में जाकर सहिष्णुता सिखाओ। या वैटिकन सिटी में जाकर सहिष्णुता का पाठ पढ़ाओ। वहां उसकी ज्यादा जरूरत है। यहां हिन्दू, मुसलमान, पारसी, ईसाई, सहजतापूर्वक रह रहे हैं। मैं जिस कॉलोनी में रहता हूं, वहां मेरे पड़ोस में ईसाई रहता है। मेरे ऊपर मुसलमान रहता है। पर हमारे बीच कभी झगड़ा नहीं होता। हम प्रेम से एक साथ रहते हैं। तब कृपा करके हमें एकसाथ रहने दो। सहिष्णुता के नाम पर सामुदायिक तनाव मत ब़ढ़ाओ।

सहिष्णुता पर आंसू बहाने वाले वास्तव में सहिष्णुता का मजाक बना रहे हैं। इन सब सहिष्णुवादियों को नरेन्द्र मोदी का प्रधान मंत्री बनना फूटी आंख नहीं देखा जा रहा है। भाजपा का सत्ता में आना उनके लिए असहनीय है, पर बोल नहीं पा रहे हैं, ऐसी उनकी हालत है। इस मुखौटों के पीछे उन सब हत्यारों के चेहरे छिपे हुए हैं। उसकी थोड़ी सी झलक यहां दिखा दी।

सौभाग्य से इस देश के सभी राजनेता सोनिया तथा वामपंथियों के पीछेलग्गू नहीं बने हुए हैं। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद उनमें एक है। टाइम्स ऑफ इंडिया में उनका साक्षात्कार प्रकाशित हुआ। इसमें अपने इस विषय के संदर्भ में कुछ प्रश्नोत्तर इस प्रकार हैं- प्रश्नः कश्मीर पैकेज क्या है? मुफ्ती मोहम्मद सईद का जवाब है-अच्छी बात यह है कि प्रधान मंत्री आई.बी. की रिपोर्ट पर निर्भर नहीं रहते, वे संघ के साथ संवाद बनाकर रखते हैं। विशेषता ये जानकारी लेते हैं। उनके ध्यान में आता है कि मुफ्ती मोहम्मद सईद गंभीर हैं तथा उनकी सरकार बहुत मेहनत कर रही है। प्रश्नः गोमांस प्रतिबंध के कारण जम्मू-कश्मीर में सामाजिक विभाजन हो रहा है, क्या ऐसा नहीं लगता? उत्तरः हमारे यहां प्रतिबंध यह कभी सवाल ही नहीं था। कई दशकों से गोहत्या पर प्रतिबंध लगा हुआ है। सईद अली शाह गिलानी ने कहा है कि पशु हत्या करके किसी की भावना को दु:ख मत पहुंचाओ। सवालः दादरी घटना पर? उत्तरः दादरी, घटना दुर्भाग्यपूर्ण तथा भयानक है। यह काला धब्बा है। परन्तु मोदी की विषय सूची सब का साथ सब का विकास है। मोदी तूफान आदमी हैं। वे साम्प्रदायिक नहीं है। आने वाले समय में वे पार्टी के बड़बोले लोगों शांत कर देंगे, ऐसा मेरा विश्वास है। थोड़ा समय लगेगा। अभी संभ्रम काल चल रहा है। मेरे अपने अनुभव से तो मैं मोदी को अतिवादी नहीं मानता हूं, हमारे साथ गठबंधन करते समय उन्होंने अनेक प्रकार के लोगों के साथ सलाह मशविरा किया। हिन्दू मुसलमानों के बीच बढ़ती खाई पर उनका उत्तर- ऐसी कोई बात नहीं है। पहली बार भाजपा सत्ता में आई है। कांगे्रस की तरह उन्होंने लूट नहीं मचाई। संघ की पृष्ठभूमि होने के कारण अच्छा काम कर रहे हैं। लोगों के घर तक जाते हैं। प्रश्न-मोदी को हीं क्यो टारगेट किया जाता है? उत्तरः उनके पीछे जनमत है। वे नेता हैं। भ्रष्ट नहीं हैं। वे विश्वसनीय हैं। भूमि अधिग्रहण बिल की गलती हो सकती है, अब जीएसटी रुका हुआ है। परंतु दीर्घकालीन विचार करें तो वे सफल होंगे। जब आर्थिक विकास दिखाई देने लगेगा तो लोग अपने आप शांत होने लगेंगे। प्रश्नः पुरस्कार वापसी के विषय में, उत्तर-पुरस्कार वापस करने वालों का एक विशेष प्रकार का आदर्श हैं, यह उनका अधिकार है। भारत की विविधता को कोई बदल नहीं सकता। जिस प्रकार लेखकों ने तथा नागरी समाज के लोगों ने अपना पक्ष रखा है। उससे यही दिखाई देता है कि भारत की विविधता तथा मत भिन्नता ही उसकी ताकत है।

नरेन्द्र मोदी व भाजपा शासन को मुफ्ती मोहम्मद सईद असहिष्णु मानने का लिए तैयार नहीं हैं। संघ को भी वे वैसा नहीं मानते। इस प्रकार के प्रामाणिक विचार रखने के लिए मुफ्ती मोहम्मद सईद का आभार तथा धन्यवाद। जब असत्य का ढोल पीटा जा रहा हो, तब सत्य की बांसुरी के स्वर कर्णमधुर लगते हैं।

सहिष्णुता पर जिनका रुदन चल रहा है, उनकी ओर बहुत ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है। सहिष्णुता का जीवन जीने का हम सब का रोज का अनुभव है। सामान्य जन के स्तर तक इन बूढ़े लोगों के विषय पहुंच ही नहीं पाते। सत्ता के बाहर होने के कारण जिन्हें पैसा खाते नहीं बन रहा है, जो सत्ता के बिना रह नहीं सकते, जिनके लिए सत्ता प्राप्ति का मार्ग दिनोंदिन संकरा होता जा रहा है, ऐसे सब लोग आज रो रहे हैं। रोने से प्राप्त आंनद से उन लोगों को क्यों वंचित करें।

रमेश पतंगे

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