संगीत एक ऐसी लत है जो कभी छूटती नहीं है, संगीत वह प्रेम है जो कभी कम नहीं होता है बल्कि समय के साथ साथ यह निरंतर बढ़ता जाता है। संगीत वह प्रेम है जिसके लिए गायक सरहदों को पार कर जाता है और अपनी आवाज पूरी दुनिया में पहुंचाना चाहता है। लाखो संगीत प्रेमी आज भी एक मंच की तलाश में घूम रहे हैं और तमाम विफलताओ के बाद भी उनका प्रयास निरंतर जारी है। संगीत की दुनिया में तेजी से बढ़ते पश्चिमीकरण के बीच आज भी शास्त्रीय संगीत कहीं ना कहीं जिंदा है और आज हम एक ऐसे ही शास्त्रीय संगीत गायक का जिक्र यहां करने जा रहे हैं देश आज इस भारतरत्न गायक 100वीं जयंती मना रहा है।
शास्त्रीय गायक भीमसेन जोशी का जन्म 4 फरवरी 1922 को कर्नाटक के गड़ग स्थान पर हुआ था वह एक गायकी वाले परिवार से आते थे जहां सभी की संगीत में रुचि थी। बहुत ही कम उम्र से गायकी की दुनिया में कदम रखने वाले भीमसेन जोशी ने पूरी दुनिया में नाम कमाया और भारत का नाम भी उंचा किया। भीमसेन के पिता गुरुराज जोशी एक अध्यापक थे जो कन्नड़, अंग्रेजी और संस्कृत के विद्वान माने जाते थे। बचपन से ही गायकी का शौक रखने वाले भीमसेन जोशी ने करीब 19 साल की उम्र से ही गायन शुरु कर दिया था वह किराना घराने के शास्त्रीय गायक थे और करीब 7 दशकों तक संगीत से नाता लगाए रखा। करीब 1932 के आस पास उन्होंने एक उस्ताद की तलाश में घर छोड़ दिया, कई वर्षों तक वह भटकते रहे और अंत में ग्वालियर में उनकी मुलाकात हाफिज अली खान से हुई जहां उन्होंने संगीत की शिक्षा ग्रहण की। इसके साथ ही पंडित रामभाऊ कुडालकर से उन्होंने शास्त्रीय संगीत की शुरुआती शिक्षा ली और यही से उनकी शास्त्रीय संगीत का सफर शुरु हुआ।
करीब 5 सालों के लम्बे सफर के बाद सन 1936 तक भीमसेन जोशी एक जाने-माने खयाल गायक बन चुके थे लेकिन उनकी पकड़ ठुमरी और भजन पर भी काफी अच्छी थी। सन 1941 में भीमसेन जोशी ने पहली बार किसी गाने के बोल दिए थे उनका पहला एलबम 20 साल की उम्र में निकला था जिसमें कन्नड़ और हिन्दी के कुछ धार्मिक गीत थे। शास्त्रीय संगीतकार भीमसेन जोशी ने हिन्दी सहित कई फिल्मों को अपनी आवाज दी थी जिसमें तानसेन, सुरसंगम, मिले सुर मेरा तुम्हारा और राग प्रयाग जैसी सैकड़ो फिल्में शामिल हैं। भीमसेन जोशी की गायकी इतनी मधुर और रोचक थी कि उनकी गिनती भारत के लोकप्रिय गायकों में से की जाती थी शायद यही वजह रही कि 4 नवंबर 2008 को इन्हें देश के सबसे सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया इससे पहले 1999 में पद्म विभूषण, सन 1985 में पद्म भूषण और 1972 में पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका था। इसके अलावा संगीत नाटक अकेडमी, फेलोशिप सहित और कई सम्मान से नवाजे जा चुके है। इनके सम्मान को देख कर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि इनकी गायकी की पूरी दुनिया कितनी कायल थी।
ऐसा कहा जाता है कि गुरुराज जोशी की कुल 16 संतानें थी जिसमें भीमसेना जोशी सभी भाई बहनों में सबसे बड़े थे उनकी माता जी का बहुत की कम समय में निधन हो गया था जिससे उनकी परवरिश उनकी सौतेली माता ने किया था। भीमसेन जोशी ने दो शादियां की थी। सन 1944 में पहली शादी सुनंदा कट्टी से किया था जिससे उनके 4 बच्चे हुए। सन 1951 में अपनी सह कलाकार वत्सला मुधोलकर से शादी कर ली जिससे उन्हें तीन बच्चे हुए। हालाकि दूसरी शादी के बाद भी उन्होंने पहली पत्नी को तलाक नहीं दिया था और कुछ समय तक दोनों पत्नियां एक साथ रहती थी लेकिन बाद में पहली पत्नी सुनंदा अलग हो गयी और एक किराये के मकान में रहने लगी। भीमसेन जोशी का 24 जनवरी 2011 को निधन हो गया।