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जाति नहीं, विकास होगा चुनावी आधार

जाति नहीं, विकास होगा चुनावी आधार

by pallavi anwekar
in फरवरी २०२२ हिमाचल प्रदेश विशेषांक, विशेष, संपादकीय
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उत्तरायण के साथ ही भारत के कुछ प्रांतों में गर्मी की अनुभूति होने लगी है और उत्तरप्रदेश, पंजाब और अन्य तीन राज्यों में चुनावों की सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं। आजकल किसी भी बड़े प्रदेश का चुनाव उस प्रदेश तक सीमित रहता ही नहीं है, उसकी परछाई और रणभेरी का नाद पूरे देश में सुनाई देता है। इस बार तो उत्तर प्रदेश और पंजाब के चुनावों की प्रतिध्वनि विदेशों से भी सुनाई दे रही है क्योंकि उत्तर प्रदेश में सत्तासीन संन्यासी को हटाने के लिए स्थानीय लोगों की एड़ी-चोटी का जोर कम दिखाई दे रहा है और पंजाब में जनता यह तय ही नहीं कर पा रही है कि इस बार किसको मौका दिया जाए, गोया जनता के ऊंट को अपने करवट बैठाने के लिए हर सम्भव प्रयास किए जा रहे हैं।

ये चुनाव इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण हैं कि इनके परिणाम आगे आने वाले अन्य विधान सभा चुनावों और 2024 में होने वाले चुनावों पर भी दिखाई देंगे। निश्चित रूप से सभी पार्टियां इन चुनावों को सेमीफाइनल के रूप में देख रही हैं। इसके साथ ही इस वर्ष राष्ट्रपति चुनाव भी होने वाले हैं। जितने अधिक राज्यों में जिस पार्टी की सरकार होगी उसका वजन इन चुनावों में उतना ही अधिक होगा।

जहां तक उत्तर प्रदेश की बात करें तो सीधी टक्कर भाजपा और सपा के बीच ही दिखाई देती है। पिछले विधान सभा चुनावों में भाजपा ने सपा राज की कमजोरियों को मुद्दा बनाकर चुनाव जीता था, परंतु इस बार वह विकास को मुख्य मुद्दा बनाकर चुनाव मैदान में उतर रही है। राज्य में जो विकास कार्य हुए हैं वे किसी भी तरह के जातिगत भेदभावों को परे रखते हुए किए गए हैं, परंतु चूंकि विपक्ष के पास इन विकास कार्यों का कोई तोड़ नहीं है और भारतीय चुनावों का अब तक का आधार भी जातिगत आधार पर मतदान रहा है, इसलिए अखिलेश यादव पूरी कोशिश कर रहे हैं कि मतदाताओं में जातिगत आधार पर ध्रुवीकरण किया जाए।

यहां एक बात और ध्यान देने लायक है कि इस बार अगर ध्रुवीकरण करने की कोशिश की गई तो ध्रुवीकरण हिंदुओं का भी हो सकता है क्योंकि मोदी-योगी राज में अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन इत्यादि वे कार्य हैं जिन्होंने भाजपा के ‘कोर’ मतदाताओं की आशाओं को पूरा किया है। उत्तर प्रदेश में कई चरणों में चुनाव होने वाले हैं। पहले चरण के मतदान का प्रतिशत भी अगले चरणों के चुनावों के ध्रुवीकरण को प्रभावित कर सकता है क्योंकि पहले चरण में मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में चुनाव होंगे।

भाजपा के लिए इन चुनावों में ध्यान रखने वाली एक बात अवश्य होगी कि उनके वे कार्यकर्ता और नेता जो कि ‘ग्राउंड जीरो’ पर काम करते हैं, उनमें आपसी मनमुटाव न हो और चुनावी कार्य करने का उत्साह बना रहे, क्योंकि भले ही भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश को अपने चुनावी कार्यक्षेत्र के अनुरूप बांट लिया हो, फिर भी सारा दारोमदार स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं पर होता है। चुनावों के पहले दल-बदल और नेताओं की आवाजाही लगी रहती है, परंतु बाहर से आए नेताओं पर दांव खेलना और पार्टी से निष्ठा रखने वाले कार्यकर्ताओं की अनदेखी करना भाजपा को भारी पड़ सकता है।

सपा नेता अखिलेश यादव की तुलना में मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ का पलड़ा इस मुद्दे पर भी भारी है कि 5 साल के कार्यकाल में उन पर भ्रष्टाचार का कोई दाग नहीं है और न ही उन्होंने किसी एक क्षेत्र का ही विकास किया हैं जैसे कि सपा राज में सैफई का किया गया था। योगी आदित्यनाथ ने अपने पूरे कार्यकाल में प्रदेश के इतने दौरे किए हैं कि शायद ही कोई क्षेत्र अछूता रहा हो, इसलिए वे सभी क्षेत्रों की समस्याएं जानने और उन्हें सुलझाने के प्रयासों में सफल रहे हैं। ये चुनाव योगी आदित्यनाथ सरकार के 5 वर्षों के कार्यों की परीक्षा होगें। उत्तर प्रदेश की जनता यह निर्णय लेने में सक्षम है कि उसे कमल के विकास की सुगंध चाहिए जो अगले 5 वर्षों तक रहेगी या सपा के इत्र की जो अभी से फीकी दिखाई देने लगी है।

पंजाब के चुनावी मैदान में उतरने वाली सभी पार्टियों की मुख्य समस्या यह है कि जिसके पास चुनावी चेहरा है उसके पास जनाधार नहीं है और जिसके पास जनाधार है उसके पास चुनावी चेहरा नहीं है। इनमें केवल कैप्टन अमरिंदर सिंह ही ऐसे हैं जिनका जनाधार भी है और चेहरा भी पर अब उनके साथ उनकी पार्टी ही नहीं है चूंकि भाजपा भी अभी तक बादलों के साए में ही रही थी इसलिए पंजाब में अकेले पनप नहीं पाई। वहां तो उसे उम्मीदवार मिलने के लाले हैं। ऐसे में पंजाब में सत्ता के समीकरण पूरी तरह से गठजोड़ पर ही निर्भर होंगे। किसान आंदोलन के दौरान अकाली दल के रवैये के कारण इस बार भाजपा का उनके साथ मिलकर चुनाव ़लडना संभव नहीं दिखता और कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी अभी तक अपना रुख तय नहीं किया है। वे अगर भाजपा को समर्थन देते भी हैं तो भी कुछ अधिक लाभ नहीं होगा। पंजाब में त्रिशंकू सरकार बनने के आसार ही अधिक हैं।

उत्तराखंड में भाजपा के विकास कार्यों का मुद्दा तो मतदाताओं को रिझाएगा परंतु बार-बार मुख्य मंत्री बदलने के कारण राज्य में जो अस्थिरता निर्माण होती है वह भी जनता की नजरों से छूटी नहीं है।

जिन राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं, उनमें से 4 में वर्तमान में भाजपा की सरकार है। चुनावों में भाजपा अपने गढ़ बचाने के लिए उतरेगी और विपक्षी दल भाजपा को सत्ताच्युत करने के लिए। ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि वर्तमान में भाजपा के विपक्ष में चाहे जो पार्टी हो वह अपनी विजय को निश्चित करने के प्रयासों पर कम और भाजपा को हराने के लिए अधिक मेहनत करती है, चाहे उसके लिए कोई मार्ग क्यों न अपनाना पड़े।

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