रूस के लिए यूक्रेन ठीक वैसा ही है जैसा भारत के लिए पाकिस्तान! भारत ने विभाजन के बाद, पाकिस्तान के अस्तित्व को स्वीकारा था; जबकि रूस, विभाजन के बाद यूक्रेन के अस्तित्व को स्वीकार करने को तैयार नहीं। दोनों देशों की मानसिकता में यही अंतर है।
1947 के पूर्व पाकिस्तान का संपूर्ण भू-भाग भारत का ही एक हिस्सा था। भारत के विभाजन के बाद, भारतीय संस्कृति के कई प्रतीक पाकिस्तान में चले गए। उदाहरणार्थ -हिंगलाज माता का मंदिर बलूचिस्तान में है। हिंगलाज माता, भारत के करोड़ों लोगों (इस लेख के लेखक की भी) की कुलदेवी हैं। अरब अथवा यूरोप के देवी- देवता, हमारे कुल देवी-देवता नहीं हो सकते। ‘तक्षशिला’, विश्व का सबसे प्राचीन एवं ज्ञान-संपन्न विश्वविद्यालय था जो अब उध्वस्त हो चुका है। भगवान बुद्ध से संबंधित 550 सौ से अधिक जातक कथाएँ हैं जिनमें, तक्षशिला का उल्लेख मिलता है। इन कहानियों का आरंभ इस तरह होता है कि काशी के राजा ब्रह्मदत्त के घर बोधिसत्व का जन्म हुआ और वह शिक्षण के लिए तक्षशिला गया। गुरु नानक का जन्मस्थल भी अब पाकिस्तान में स्थित है। मुस्लिम आक्रमणकारियों से लड़ने वाला राजा दाहिर भी सिंध का ही है। जिस पंजाब को पाँच नदियों का प्रदेश कहा जाता है, आज उस पंजाब का आधा हिस्सा, पाकिस्तान के अधीन है। जिस ’सिंधु’ के बिना ’हिंदू’ का अस्तित्व हो ही नहीं सकता, वही अब हमसे छीन ली गई है। ऐसे कई उदाहरण उपलब्ध हैं।
पाकिस्तान की अपनी कोई संस्कृति नहीं है। भारत यानी हिंदुओं के प्रति द्वेष रखने, जिहादी ,तालिबानी आदि को उनकी संस्कृति कहा जा सकता है। यही कारण है कि पाकिस्तान के बुद्धिजीवी बेचैन हैं। वे कौन हैं, इसका शोध करते हुए उनका कहना है कि” एक पाकिस्तानी के तौर पर मेरी उम्र 70-72 साल है पर एक हिंदुस्तानी के तौर पर, मेरी उम्र 5,000 साल है।” वे अपने को सिंधु संस्कृति से जुड़ा महसूस करते हैं। इस संदर्भ में एक प्राध्यापक का कथन प्रसिद्ध है, “बलूचिस्तान से लेकर बांग्लादेश तक, भारत एक है। मैं राजनीतिक दृष्टि से भले ही पाकिस्तानी होऊँ लेकिन सांस्कृतिक दृष्टि से मैं भारतीय हूँ।”
रूस के लिए यूक्रेन ठीक उसी तरह है, जिस तरह हमारे लिए पाकिस्तान है। रूस नामक राजनैतिक राज्य (रशियन स्टेट) का जन्म, यूक्रेन के कीव शहर से ही हुआ है। वर्तमान रूस, यूक्रेन, बेलारूस आदि में रह रहे सभी लोग, वे हैं जो एक ही धर्म, एक ही वंश के हैं एवं दीर्घकाल तक ही शासन के अंतर्गत रहते आए हैं। यूक्रेन की वर्तमान राजधानी कीव को, रूस की सभी प्रमुख शहरों की जननी कहा जाता है। इन सभी शहरों का इतिहास समान है। मंगोलों ने रूस पर आक्रमण कर कीव शहर तथा रूस के अन्य शहरों को जला दिया। मंगोलों के शासन को ‘गोल्डन होर्डे’ कहा जाता है। उन्होंने सराई को राजधानी बनाया और 400 वर्षों तक रूस पर राज्य किया। मॉस्को के ग्रैंड ड्यूक डिमिट्री इवेनोविच ने, कुलिकोवो नामक स्थान पर उनको पराजित किया। इस तरह डिमिट्री इवेनोविच को संपूर्ण रूस का राष्ट्र नायक माना जाता है।
जिस यूक्रेन से रूस का जन्म हुआ वही यूक्रेन, 1991 में रूस से अलग हो गया। बड़े देशों में इस तरह की फूट पड़ती ही रहती है। इसका कारण यह है कि जब केंद्र की सत्ता दुर्बल हो जाती है तो उसकी आर्थिक व्यवस्था बिगड़ जाती है और तब केंद्र-सत्ता से दूरवर्ती स्थित प्रदेश यानी सीमावर्ती भाग, स्वतंत्र होते जाते हैं। भारत में भी छोटे-छोटे राज्यों का निर्माण होने का कारण केंद्र की दुर्बल सत्ता ही थी। फिलहाल रूस, भारत के इतिहास का अनुभव कर रहा है।
केंद्र की सत्ता के दुर्बल होने पर वहाँ विदेशी संस्थाओं का हस्तक्षेप शुरू हो जाता है, जिनका प्रयास उस दुर्बल की सत्ता को और दुर्बल करना होता है। यूक्रेन के स्वतंत्र होने के बाद ’नाटो’ संगठन ने, यूक्रेन में हस्तक्षेप करने की शुरुआत कर दी। यूक्रेन को नाटो के सदस्य बनाने के प्रयास शुरू हो गए। यूक्रेन के प्रधानमंत्री एवं अध्यक्ष लियोनिद कुचमा ने 1993 से 2005 तक ये प्रयास जारी रखे।
’यूक्रेन अर्थात रूस नहीं’ नामक उनकी पुस्तक बहुत प्रसिद्ध हुई, जिसमें निम्नलिखित बातों का उल्लेख है-
* यूक्रेन रूस से पृथक है। यह पृथकता उसके इतिहास, भूगोल एवं ऑर्थोडॉक्स क्रिश्चियनिटी में है।
* यूक्रेनियन ऑर्थोडॉक्सी , ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च एवं पूर्व के आर्थोडॉक्स से स्वतंत्र हो गई है।
* रूस, यूक्रेन की स्वतंत्रता पचा नहीं पाया। उसने यूक्रेन के स्वतंत्रता दिवस को भी अनदेखा किया।
* यूक्रेन के राष्ट्रीय मूल्य, रूस के राष्ट्रीय मूल्यों से भिन्न हैं। यूक्रेन, यूरोप से अधिक घनिष्ठ है; रूस से नहीं। रूस और यूक्रेन की मानसिकताएँ परस्पर विरोधी हैं।
* रूस द्वारा यूक्रेन को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने पर ही दोनों देशों के बीच का तनाव दूर हो पाएगा।
* 1920 में कम्युनिस्ट पार्टी ने यूक्रेन को रूस से जोड़ने का कार्य किया था जो लोगों की इच्छा के विरुद्ध था।
* रूस के अनेक भाग यूक्रेनियन बहुल हैं। ये सभी प्रदेश यूक्रेन में शामिल होने चाहिए। बेलारूस ने, रूस के उन स्थानों को अपने साथ जोड़ लिया है जहाँ बेलारूस के लोग रहते थे।
* रूस ने यूक्रेन के क्रीमिया प्रांत को जीत लिया है जिसे, वापस यूक्रेन में शामिल किया जाना चाहिए। यूक्रेन की भाषा ऑर्थोडॉक्स रूसी भाषा नहीं है बल्कि मिश्र भाषा है। रूस अपने साहित्य द्वारा, अपनी भाषा यूक्रेन पर लाने का प्रयास करता है।
* रूस की दृष्टि में भले ही में मज़प्पा विश्वसघाती हो लेकिन यूक्रेन के लिए वह राष्ट्रपुरुष है।
पाकिस्तान भी लगभग इसी तरह के तर्क देता है। वह कहता है कि हमारी पहचान इस्लाम है। जिया ने इस्लाम की पहचान सशक्त करने का बहुत प्रयास किया। पकिस्तान के राष्ट्रपुरुष, भारत पर आक्रमण करने वाले लोगों में से हैं। हिंदी से जन्मी उर्दू भाषा, पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा है। क्रीमिया की तरह ही पाकिस्तान ने, कश्मीर का बड़ा भू-भाग हड़प लिया है और उसका दावा है कि संपूर्ण कश्मीर उसी का है। अमेरिका और ब्रिटेन ने, पाकिस्तान को सभी तरह के शस्त्रों से लैस करने का करने का कार्य किया है। भले ही पाकिस्तान नाटो का सदस्य न हो; हालांकि अमेरिका ने ’सिंटो’ एवं ’सिटो’ जैसे दो संगठनों की स्थापना कर , पाकिस्तान को शामिल कर लिया है। जिस तरह पाकिस्तान का स्वयं का कोई इतिहास नहीं है उसी तरह, यूक्रेन का भी एक राष्ट्र के रूप में कोई इतिहास नहीं है। लियोनिद कुचमा ने अपनी पुस्तक में रूसी साम्राज्य एवं सोवियत रूस के दीर्घकालीन संबंधों का उल्लेख किया है तथा यह भी कहा है कि इस कारण, यूक्रेनियन अस्मिता तय करना बहुत कठिन जान पड़ता है।
आज, यूक्रेन की सीमा पर रूस के 1,30,000 सैनिक खड़े हैं। इस प्रश्न पर चर्चा शुरू है कि क्या वह यूक्रेन में घुसपैठ करेंगे? भारत ने विभाजन के बाद, पाकिस्तान के अस्तित्व को स्वीकारा था; जबकि रूस, विभाजन के बाद यूक्रेन के अस्तित्व को स्वीकार करने को तैयार नहीं। दोनों देशों की मानसिकता में यही अंतर है। अमेरिका एवं नाटो संगठन के यूरोपीय देशों को, यूक्रेन स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में चाहिए। इस पर भी जरूरी नहीं की यदि युद्ध शुरू हुआ तो नाटो से संबंधित सभी देश उसमें शामिल होंगे ही। जर्मनी ने यूक्रेन को शस्त्र देने से मना कर दिया है। बेल्जियम, ग्रीस इत्यादि देशों के रूस के साथ व्यापारिक संबंध भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। कोई भी युद्ध नहीं करना चाहता लेकिन यूक्रेन की समस्या हल होनी ही चाहिए। रूस की प्रमुख माँग है कि यूक्रेन, यूरोपीय संघ एवं नाटो में शामिल न हो। इस माँग का परिणाम निकलने तक, यूक्रेन की समस्या हल होने वाली नहीं है।
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