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एक परिवार दुर्दशा के लिए जिम्मेदार

एक परिवार दुर्दशा के लिए जिम्मेदार

by हिंदी विवेक
in देश-विदेश, मई-२०२२, विशेष
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श्रीलंका इस बात का जीता जागता उदाहरण है कि यदि राजनीति में परिवारवाद और जनता को मुफ्तखोरी की आदत लगाने जैसी दीमक लग जाए तो वह किस तरह एक राष्ट्र को कंगाली की हद तक खोखला कर सकती है। क्या भारतीय राजनीति इससे बच पाएगी?

श्रीलंका में विदेशी मुद्रा का भंडार खाली हो जाने की वजह से डीजल, दूध, दवाएं, अनाज आदि दैनिक उपभोग की आवश्यक वस्तुओं का आयात नहीं हो पा रहा है। भारी विदेशी कर्ज का ब्याज चुकाने में भी नाकाम हो जाने के बाद श्रीलंका में लोगों का गुस्सा फूट पडा है। अपनी जनता को जरूरी चीजें मुहैया नहीं करा पाने की व जह से देशभर में फैली त्राहि दुनिया की सभी सरकारों के लिये एक सबक है कि राजनीतिक नेतृत्व अपने निजी राजनीतिक हितों की परवाह किये बिना देश पर बिना भेदभाव की नीति अपना कर शासन चलाए। इसी का नतीजा है कि पूरे देश में बिजली, पेट्रोल, खानेपीने की चीजें आदि की भारी किल्लत होने से श्रीलंका के सवा दो करोड़ लोग मार्च महीने से ही अभूतपूर्व परेशानी के दौर से गुजर रहे हैं। रोजमर्रा की वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं। पेट्रोल पम्पों पर लम्बी कतारें, बिजली की भारी कटौती, उपभोक्ता सामानों के मार्केट बंद हो जाने से पूरे देश में अफरातफरी मची हुई है।

हजारों लोग राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को सत्ता छोड़ देने के लिये सडकों पर आन्दोलन और प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन प्रधानमंत्री महिन्द्रा राजपक्षे ने अपने दो भाई और इनके बेटे, जो कि मंत्री हैं, सहित पूरी कैबिनेट का इस्तीफा लेकर लोगों का गुस्सा शांत करने की कोशिश की है।

आखिर श्रीलंका को इन परिस्थितियों का सामना क्यों करना पड़ा? क्या इसके पीछे श्रीलंका के शासनतंत्र पर राजपक्षे परिवार का एकाधिकार होना कहा जा सकता है? दुनिया में ऐसा कम ही देखा जाता है कि किसी कथित जनतांत्रिक देश में एक ही परिवार के पांच सदस्य राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और अन्य विभागों की जिम्मेदारी सम्भाल रहे हों। ऐसा लगता है कि श्रीलंका में राजपक्षे परिवार ने पूरे देश को अपने अधीन कर लिया है। जनतंत्र का मतलब है कि आम जनता के बीच से चुने हुए जन देश का शासनतंत्र सम्भालें। एक ही परिवार का शासन और सरकार पर कब्जा हो जाने से वह परिवार घोर दम्भी हो गया औऱ अपने निहित राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति और रक्षा के लिये स्वार्थी विदेश और आर्थिक नीतियों को अपनाया जिसका   नतीजा हम इन दिनों श्रीलंका में देख रहे हैं।

राजपक्षे परिवार बहुसंख्यक सिंहली भावनाओं का दोहन कर सत्ता पर विराजमान हुआ है। इसका परिणाम है कि सरकार को अल्पसंख्यक तमिलों की भावनाओं औऱ जरुरतों को नजरअंदाज करना पड़ता है। राजपक्षे परिवार की तमिल विरोधी नीतियों की वजह से ही श्रीलंका को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से कर्ज नहीं मिलता है तो वे चीन जैसे देश की ओर मुंह करते हैं जिसका फायदा चीन ने बखूबी उठाया है। चीन के बेल्ट एंड रोड इनीशियेटिव (बीआऱआई) के तहत श्रीलंका में ढांचागत विकास के बहाने अरबों डालर के कर्ज श्रीलंका सरकार को दिये जिसका भुगतान नहीं कर पाने की वजह से चीन ने श्रीलंका के हमबनटोटा बंदरगाह के आसपास की हजारों एकड़ जमीन 99 साल के लीज पर लेकर हथिया ली। इस तरह श्रीलंका की सम्प्रभुता पर भारी आंच आई है लेकिन राजपक्षे परिवार चीन की मदद से श्रीलंका के लोगों को फायदा पहुंचाने और श्रीलंका को आधुनिक देश बनाने का सब्जबाग दिखाता रहा है। इसी का नतीजा है श्रीलंका पर चीन का भारी कर्ज चढ़ चुका है। श्रीलंका के कुल 51 अरब डालर के विदेशी कर्ज में चीन का हिस्सा दस प्रतिशत है जो काफी उंची व्याज दरों पर दिया जाता है। श्रीलंका का सकल घरेलू उत्पाद( जीडीपी) करीब 81 अरब डालर है, जिसमें से 51 अरब डालर का विदेशी कर्ज चढ़ जाना भुगतान की बड़ी समस्या पैदा कर रहा है।

एक अनुमान के मुताबिक श्रीलंका को विदेशी कर्ज की किस्तों के भुगतान के लिए इस साल करीब 7 अबर डालर चाहिए था जब कि देश के पास केवल 1.9 अरब डालर की ही विदेशी मुद्रा बची है। इसे बचाने के लिए ही सरकार ने कर्ज की किस्तों की अदायगी से हाथ खड़े कर दिए है। देश के वित्त मंत्री ने कर्जदाता एजेंसियों से साफ कह दिया है कि उनका देश अब कर्ज की किस्तें नहीं चुका सकता है।

विदेशी मुद्रा का संकट पैदा होने से श्रीलंका सरकार ने कृषि जगत के लिये जरूरी रासायनिक खाद का आयात यह कह कर रोक दिया कि श्रीलंका के लोग आर्गेनिक खेती करें। इस वजह से श्रीलंका में कृषि उत्पादन में अचानक भारी कमी पैदा हो गई। श्रीलंका के मौजूदा आर्थिक संकट के पीछे यह भी एक वजह बताई जा रही है।

वैसे देखा जाए तो श्रीलंका के लोगों की औसत प्रतिव्यक्ति घरेलू आय सालाना 41 सौ डालर है जबकि भारत की प्रतिव्यक्ति घरेलू सालाना आय 1750 डालर ही है। इस नाते श्रीलंका का औसत आदमी भारत से दोगुनी अच्छी स्थिति में है लेकिन श्रीलंका की एक परिवार वाली सरकार की अदूरदर्शी आर्थिक व विदेश नीतियों की वजह से श्रीलंका के लोगों को अचानक बदहाली के दिन देखने पड़ रहे हैं।

हालांकि श्रीलंका की सरकार खजाना खाली हो जाने के पीछे कोरोना महामारी बडी वजह बता कर अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रही है। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था कुछ हद तक विदेशी पर्यटकों से होने वाली आय पर टिकी थी जो कि कोरोना महामारी की वजह से पूरी तरह ठप हो गई। श्रीलंका की जीडीपी में पर्यटन से होने वाली आय का हिस्सा करीब 13 प्रतिशत है। लेकिन श्रीलंका की आर्थिक स्थिति कोरोना के फैलने के पहले से 2019 से ही खराब होनी शुरु हो गई थी जिस पर कोरोना काल में और बुरा असर पड़ा। ढांचागत विकास में चीन द्वारा किये गए अलाभकारी निवेश से कर्ज वापसी में समस्या पैदा हुई। रोजमर्रा की जरुरतों की कई आवश्यक वस्तुओं का श्रीलंका में आयात किया जाता है जो कि विदेशी मुद्रा के खत्म हो जाने से मुमकिन नहीं हो पा रहा है। यही वजह है कि श्रीलंका के बाजारों में दुकानों के पट बंद करने पड़े हैं।

इस कारण श्रीलंका के घरों में हाहाकार मचा हुआ है। बच्चों को दूध नहीं मिल रहा तो बुजुर्गों को जरूरी दवाइयां नहीं मिल रहीं। संकट के ऐसे वक्त भारत ने मदद का हाथ बढ़ाया है और श्रीलंका में चावल, गेहूं, दवाइयां, पेट्रोल आदि की सप्लाई करनी शुरु की है। इसके लिये भारत ने श्रीलंका सरकार को एक अरब डालर का वित्तीय अनुदान दिया है। इसके साथ ही श्रीलंका के ढांचागत विकास में कई तरह के निवेश के समझौते किये हैं जिससे आने वाले सालों में श्रीलंका को काफी फायदा होगा। भारत की इस सामयिक मदद को श्रीलंका के आम लोगों ने काफी सराहा है। एक पड़ोसी होने के नाते भारत ने अपना धर्म निभाकर अपनी विदेश नीति में पड़ोस पहले की नीति को और आगे बढ़ाया है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि श्रीलंका को अपनी आर्थिक बदहाली समाप्त करनी है तो पूरे देश में बिना भेदभाव के सभी समुदाय के लोगों के साथ समान न्याय करना होगा। भारत भी श्रीलंका सरकार से आग्रह करता रहा है कि अल्पसंख्यक तमिल समुदाय के लोगों के साथ समानता का रुख अपनाए और उन्हें देश के विकास में समान तौर पर भागीदारी का मौका दे।

भारत ने जब तमिल अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा की मांग की तो श्रीलंका के सिंहली लोगों को लगा कि भारत श्रीलंका का असल दोस्त नहीं है। इसका फायदा उठाते हुए चीन ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया और श्रीलंका में अरबों डालर के निवेश के सौदे हथिया लिये। चीन और श्रीलंका की गहराती दोस्ती भारत के लिये चिंताजनक बनने लगी, लेकिन आज जब श्रीलंका गहरे संकट में है, चीन सरकार की चुप्पी और श्रीलंका को मदद के नहीं करना श्रीलंका के लोगों के लिये एक सबक है।

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