हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
जम्मू-कश्मीर में टूटी असमानता की दीवार

जम्मू-कश्मीर में टूटी असमानता की दीवार

by हिंदी विवेक
in देश-विदेश, मई-२०२२, विशेष
0

आर्टिकल 370 का हटना जम्मू-कश्मीर के दलित वर्ग के लिए वरदान साबित हुआ है। यहां के वनवासी समुदायों को 2006 में पारित वन अधिकार अधिनियम का लाभ मिलना शुरू हो गया है तथा राज्य से बाहर विवाह करने वाली बेटियां भी पैतृक सम्पत्ति की हकदार तथा राज्य में बसने और सम्मान पाने वाली स्थिति में आ चुकी हैं।

मां भारती का मुकुट कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर में अब बदलाव साफ दिखते हैं। दिल्ली से चली सामाजिक सुधार की नीतियां हों या फिर आर्थिक विकास के लिए पूंजी, उसका समान वितरण अनुच्छेद 370 में व्यापक संशोधन के बाद हो पा रहा है। देश भर में जिस आरक्षण के चलते पिछड़े और अनुसूचित समाज के लोगों में जो विकास पहुंचा है, वह अनुच्छेद 370 के चलते सीमा पर ही रुक जाता था। सभी समुदायों के समान विकास में बाधक बने इन बैरिकेड्स को 5 अगस्त 2019 को संसद में लाए गए संशोधन प्रस्ताव के जरिए हटा दिया गया। जम्मू-कश्मीर के सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के मुताबिक राज्य में अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों की 12 फीसदी आबादी है, जिन्हें राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता था। इनमें बड़ी संख्या गुज्जर बकरवालों की है। भले ही ये समुदाय संख्या में कम नहीं थे, लेकिन विधानसभा में इनका प्रतिनिधित्व न के समान ही रहा है।

अब आर्टिकल 370 हटने के बाद इन समुदायों का विधानसभा में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सकेगा। यही नहीं, वनवासी समाज के उन लोगों को अधिकार मिल रहे हैं, जो परंपरागत रूप से वनों में रहते रहे हैं। वर्ष 2006 में पारित हुआ वन अधिकार अधिनियम वन में निवास करने वाले आदिवासी समुदायों और अन्य पारम्परिक वनवासियों के वन संसाधनों के अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है। जिन पर ये समुदाय आजीविका, निवास तथा अन्य सामाजिक-सांस्कृतिक जरूरतों सहित विभिन्न आवश्यकताओं के लिए निर्भर थे, लेकिन यह नियम जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं था और सदियों से रहने के बाद भी वनवासी अपनी ही सम्पदा के मालिकाना हक से वंचित थे, वजह सिर्फ एक थी कि आर्टिकल 370 के चलते वन अधिकार अधिनियम यहां लागू ही नहीं था। अब यह नियम लागू हुआ है तो एक ही झटके में वनवासी भी अब अपनी सम्पदा के अधिकारी हो गए हैं।

कश्मीर से कन्याकुमारी तक ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की बात करने वाले इस देश में अधिकारों का दोहरापन इस कदर था कि अन्य सभी राज्यों में अनुसूचित जाति के लोगों को जो अधिकार मिलते थे, उनसे वे यहां पूरी तरह वंचित रहेे। इसे हम 1957 में पंजाब के गुरदासपुर से लाए गए सफाई कर्मचारियों पर हुई ज्यादतियों से समझ सकते हैं। इन लोगों को 1957 में लाया गया था, लेकिन उन्हें अधिकार नहीं था कि वे इस पेशे को छोड़कर कोई और काम कर सकें। उनकी पीढ़ियां अनवरत सफाई कर्मचारी ही बनी रहीं, जबकि देश भर में अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों का उत्तरोत्तर विकास हुआ।

क्यों डउ समुदाय ने मनाया 370 हटनेे का जश्न

किंतु अनुच्छेद 370 समाप्त होने के बाद एक ही झटके में ऐसे सैकड़ों परिवारों को 62 साल बाद न्याय मिल सका। जब 1957 में पंजाब से सफाई कर्मचारियों को जम्मू-कश्मीर लाया गया था। इस दौरान इनकी तैनाती अलग-अलग नगर निगम में हुई थी। सफाई कर्मचारी सेवारत पद से ही सेवानिवृत्त हो गए। इनके बच्चे भी बतौर सफाई कर्मचारी सेवाएं देते रहे हैं। जो बच्चे पढ़-लिखकर नौकरी की चाह रख रहे थे। स्टेट सब्जेक्ट के कारण इन्हें नौकरी नहीं मिल पा रही थी। मजबूरन बच्चों को पैतृक व्यवसाय करना पड़ रहा था। अब सफाई कर्मचारियों के बच्चे भी राज्य में अलग-अलग विभागों में भरे जाने वाले पदों के लिए आवेदन कर सकते हैं। साथ ही प्रशासनिक सेवाओं में भी भाग ले सकेंगे। अनुच्छेद 370 के हटने से इन्हें कितनी खुशी मिली, इसे हम इस बात से भी समझ सकते हैं कि इन सफाई कर्मचारियों की कॉलोनियों में 5 अगस्त, 2019 को मिठाइयां बाटी गईं और जश्न मनाया गया।

अब जम्मू-कश्मीर की बेटियां नहीं होंगी पराई

लैंगिक समानता के दौर में यदि किसी बेटी का विवाह हो जाए और उसका अपने परिवार की जायदाद पर हक न रहे या फिर वह अपने राज्य से ही बेदखल हो जाए तो समझिए यह कितनी बड़ी विसंगति है। ऐसी विसंगति जम्मू-कश्मीर में कई दशकों से विद्यमान थी। जम्मू-कश्मीर की कोई बेटी यदि पंजाब, हिमाचल जैसे पड़ोसी राज्यों समेत देश के किसी भी हिस्से के युवक से विवाह कर लेती थी तो उसे अपने परिवार की विरासत पर हक नहीं था। इसके अलावा वह राज्य की नागरिकता भी खो देती थी। अब आर्टिकल 370 में संशोधन के बाद यह स्थिति खत्म हो गई है। अब जम्मू-कश्मीर की बेटियों का जमीन पर पूरा हक है, वे राज्य में बस सकती हैं और नागरिक के तौर पर सभी अधिकारों का लाभ उठा रही हैं।

जम्मू-कश्मीर में लागू हुए महिला एवं बाल अधिकार

भारत में घरेलू हिंसा और बाल विवाह पर रोकथाम के लिए कानून लम्बे समय से बने हुए हैं, लेकिन अन्य तमाम नियमों की तरह ये सभी जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं थे। अनुच्छेद 370 में संशोधन के बाद से इन पर भी रोक हटी है। यही नहीं बाल अधिकार अधिनियम भी जम्मू-कश्मीर में अब बच्चों को उनके अधिकार दिला रहा है। ऐसे तमाम नियमों के अलावा समानता का सबसे बड़ा उपकरण कहे जाने वाले मुफ्त शिक्षा के अधिकार को भी जम्मू-कश्मीर में लागू कर दिया गया है। वहीं पश्चिमी जम्मू-कश्मीर से आकर जम्मू क्षेत्र में बसे करीब 20,000 लोग भी अब समान अधिकारों के हकदार हो गए हैं। इस प्रकार एक आर्टिकल 370 ने असमानता के कई बैरिकेड्स को एक झटके में हटा दिया है, जो सुधार और बदलाव की बयार को सूबे में दाखिल होने से रोकते थे।

कश्मीर पंडितों की वापसी जरूरी, तभी खत्म होगी भारतीयता और कश्मीरियत की दूरी

हालांकि यहां यह ध्यान देने योग्य है कि कानून भले ही अधिकार सुरक्षित करते हैं, लेकिन सामंजस्य और वैमनस्य के बीच की दूरी संवाद और सामाजिक एकीकरण से ही सम्भव है। इस दिशा में प्रयासों की बेहद जरूरत है और अपनी ही धरती पर नरसंहार का शिकार होकर पूरे भारत और दुनिया में पलायन कर गए कश्मीरी पंडितों को वापस घाटी में बसाना अहम है। यही वह कड़ी है, जो कश्मीरियत में आई भारतीयता की कमी को दूर कर सकती है।

 

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp

हिंदी विवेक

Next Post
धर्म परंपरा : जैसा बोएंगे, वैसा ही पाएंगे

धर्म परंपरा : जैसा बोएंगे, वैसा ही पाएंगे

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0