जगदगुरु परमहंस आचार्य को ताजमहल में जाने से स्थानीय प्रशासन ने रोक दिया। आचार्य के मुताबिक उन्होंने भगवा वस्त्र धारण किया था और ब्रह्मदंड लिया था इसके लिए उन्हें रोका गया। जगदगुरु परमहंस आचार्य सनातन धर्म के लिए एक बड़ा नाम हैं उन्हें रोकने का मतलब पूरे सनातन धर्म पर सवाल खड़ा हो रहा है। ताज महल एक ऐसा स्थान हैं जहां सभी को जाने की इजाजत है ऐसे में आचार्य को रोकना कहां तक ठीक है।
जगदगुरु परमहंस आचार्य ने भी इस पर कहा कि उन्हें उनके भगवा वस्त्र के लिए रोका गया और जिन लोगों ने उनका समर्थन किया उन्हें पुलिस ने शक्ति दिखाते हुए हटा दिया। आचार्य के शिष्यों के साथ भी धक्का मुक्की की गयी और उन्हें अंदर जाने से रोका गया। पुलिस प्रशासन की तरफ से कहा गया कि भगवा वस्त्र और ब्रह्मदंड के साथ अंदर जाने की अनुमति नहीं मिल सकती है यहां सिर्फ टोपी वालों को ही जाने की अनुमति हैं।
जगदगुरु परमहंस आचार्य इससे पहले भी कई बार अपने बयान को लेकर सुर्खियों में आ चुके हैं। इस बार भी रोके जाने के बाद उन्होंने कहा कि यह कोई ताजमहल नहीं है बल्कि तेजो महल नाम का शिवमंदिर है जिसके दर्शन के लिए वह अंदर जा रहे थे। प्रशासन इसी डर से शायद आचार्य को बाहर ही रोक दिया जिससे बाद में कोई तमाशा ना पैदा हो जाए। वहीं प्रशासन की तरफ से भी आचार्य से माफ़ी मांग ली गयी है और यह भी साफ कर दिया गया कि अंदर ना जाने की वजह भगवा वस्त्र नहीं बल्कि ब्रह्मदंड था।
सनातन धर्म में ब्रह्मदंड का विशेष महत्व माना जाता है। ब्रह्मदंड को धार्मिक प्रतीक के तौर देखा जाता है लेकिन पुराणों में इसका पूरा वर्णन किया गया है। आदिकाल में कड़ी तपस्या के बाद इसे प्राप्त किया जाता था जो ऋषि मुनि के पास होता था। इसका संबंध श्री ब्रह्मा जी से माना जाता है। किसी साधारण व्यक्ति द्वारा इसे नहीं धारण किया जा सकता है बल्कि इसके लिए कड़ी तपस्या और सिद्धि की जरूरत होती है। ऐसा माना जाता है कि इस ब्रह्मदंड में एक विशेष ऊर्जा होती है। विश्वामित्र ने ब्रह्मास्त्र को रोकने के लिए इसका ही इस्तेमाल किया था। पुराणों में ऐसा कहा गया है कि यह ब्रह्मदंड सिर्फ सप्त ऋषियों के पास होता था।