समस्याओं को सुलझाने के लिए शांतिपूर्ण तरीके से बातचीत करना ही सर्वोत्तम उपाय है। असम और मेघालय ने अपनी सीमा समस्या का समाधान शांतिपूर्ण तरीके से करके अन्य राज्यों के समक्ष एक उत्तम उदाहरण प्रस्तुत किया है।
असम और मेघालय के बीच जारी सीमा विवाद को सुलझाने की व्यवहारिक पहल पूरे देश के अंतराज्यीय सीमा विवाद सलुझाने का आधार बन सकता है। यह देखा गया है कि सीमा निर्धारण नक्शे की जगह आपसी बातचीत और विवादित इलाके के नागरिकों के साथ मिलकर सुलझाया जा सकता है। असम के मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्वा सरमा ने जो रास्ता दिखाया है, वह पूरे देश के सीमा विवाद को सुलझाने का एक नया मार्ग बन सकता है, बर्शेते कि संबंधित राज्य समस्या को सुलझाना चाहें।
पांच दशकों से लंबित असम मेघालय सीमा समस्या के समाधान के लिए 29 मार्च को असम और मेघालय के बीच ऐतिहासिक समझौता हुआ। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में असम के मुख्य मंत्री डॉ. हेमंत बिस्वा शर्मा तथा मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने छह स्थानों पर सीमा विवाद सुलझाने के लिए समझौता पर हस्ताक्षर किए। इन दो राज्यों के बीच कुल बारह स्थानों पर सीमा को लेकर विवाद है। इस पहल के लिए असम के मुख्य मंत्री को धन्यवाद दिया जाना चाहिए, जिन्होंने सीमा निर्धारण के लिए कानूनी सलाह की जगह व्यवहारिक प्रयास किया और स्थानीय लोगों की सलाह के अनुसार दोनों पक्षों के बीच सहमति बनाई। निश्चित रूप से मेघालय के मुख्य मंत्री ने इस बात को समझा कि व्यवहारिक पहल से सीमा क्षेत्र में बार-बार होने वाले तनाव को सुलझाया जा सकता है। यह समझौता इस बात का प्रमाण है कि दो राज्यों के बीच के सीमा विवाद को बातचीत और आपसी सहमति के आधार पर ही सुलझाया जा सकता है। अदालत में ऐसे फैसले बड़ी मुश्किल से सुलझ सकते हैं और इसमें लंबा समय लगता है। नगालैंड के साथ असम का सीमा विवाद लंबे समय से उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है। सीमा पर तनाव रहने की वजह से दो पड़ोसी राज्यों के बीच भी अक्सर तनाव हो जाता है। असम-मिजोरम सीमा पर घटी घटना इस बात का प्रमाण है। जिसमें असम पुलिस के छह जवान मारे गए थे। यदि असम ने अपनी तरफ से संयम नहीं बरता होता तो असम-मिजोरम सीमा पर भारत-पाकिस्तान वाली स्थिति पैदा हो जाती। जबकि पूर्वोत्तर की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि राज्यों के बीच मधुर संबंध रहना जरूरी है। पूर्वोत्तर के किसी भी राज्य में जमीन से जाने के लिए असम से गुजरना होता है। मुख्यमंत्री बनने के बाद से डा हिमंत विश्व शर्मा ने असम से सटे राज्यों के साथ आपसी बातचीत से सीमा समस्या का समाधान करने का प्रयास आरंभ किया है। उस दिशा में असम और मेघालय के बीच का प्रयास एक निश्चित मुकाम तक पहुंच गया है।
असम-मेघालय के बीच सीमा विवाद को सुलझाने के लिए एक साथ पूरे विवाद को सुलझाने की जगह कोशिश यह की गई कि एक-एक जगह का विवाद निपटाया जाए। पहले छह स्थानों के लिए आपसी सहमति बनी। फिर उस पर केंद्र सरकार की सहमति से समझौते का रूप दे दिया गया। अब भारतीय सर्वेक्षण ब्यूरो नए सिरे से सीमांकन करके उसे अमली रूप देगा। यानी अब छह स्थानों पर कोई सीमा विवाद नहीं होगा। केंद्र ने भी साफ कर दिया है कि यदि राज्यों के बीच आपसी सहमति से समाधान हो जाता है तो एक अच्छी बात है। यह तो साफ है कि सीमा विवाद को निपटाने के लिए ‘लेना और देना’ की नीति पर चलना होगा। कुछ हिस्से मेघालय को देना होगा और कुछ मेघालय को असम के लिए छोड़ना होगा। कई इलाके ऐसे हैं, जहां पर कोई आबादी नहीं है। कुछ एकड़ खाली जमीन हैं। कहीं पर मात्र एक मैदान को लेकर विवाद है।
सीमा विवाद सुमझाने के लिए जमीन हकीकत को जानना जरूरी है। इसके लिए दोनों राज्यों ने मंत्री स्तरीय तीन समितियों का गठन कर दिया था। उन समितियों ने विवादित इलाके में जाकर आमलोगों की राय जानी और स्थिति को समझा। प्रारंभिक स्तर पर उन स्थानों का चयन किया गया, जहां मामले अधिक जटिल नहीं हैं। आपसी समझ से उन्हें सुलझाया जा सकता है। समितियों की रिपोर्ट आने के बाद मुख्यमंत्री स्तर की वार्ता में आम सहमति बनाने का प्रयास हुआ। असम कैबिनेट ने पहले चरण में 36.79 वर्ग किलोमीटर विवादित क्षेत्र को सुलझाने का फैसला लिया है। जिसमें से असम को 18.51 वर्ग किलोमीटर और मेघालय को 18.28 किलोमीटर देने पर सहमति बनी है। असम से काटकर 1972 में मेघालय और मिजोरम का गठन किया गया था। तब से सीमा विवाद जारी है। कई बार हिंसक घटनाएं घट चुकी हैं। इस समझौते का स्वागत किया जाना चाहिए।
इसी तरह असम-मिजोरम के बीच सीमा विवाद को सुलझाने के लिए जरूरी है कि सीमावर्ती इलाके में स्थिति सामान्य हो। बिना संवाद के समस्या का समाधान नहीं हो सकता है, क्योंकि विवाद जटिल है। 26 जुलाई, 2021 की घटना में असम पुलिस के छह जवानों की मौत के बाद सीमा पर दो युद्धरत देशों जैसी स्थिति बन गई थी। असम और मिजोरम की सीमा 165 किमी लंबी है। विवाद सिर्फ एक इलाके में नहीं है। अंग्रेजों के शासनकाल में बंगाल ईस्टन फ्रंटियर रेगुलेशन एक्ट, 1873 के तहत 1875 में लुसाई पहाड़ी की सीमा का निर्धारण लोगों के खानपान, रहन-सहन और संस्कृति के आधार पर किया गया था। लेकिन 1933 में उसमें संशोधन कर दिया गया। मिजोरम का आरोप है कि आदिवासी मुखियाओं की सलाह के बिना सीमा का निर्धारण कर दिया गया, जो स्वीकार्य नहीं है। जबकि असम 1933 में संशोधित सीमा को मान रहा है। विवाद की असली वजह यही है। लालडेंगा के नेतृत्व में चले अलगाववादी आंदोलन के बाद भारत सरकार ने समझौता किया और 1972 में मिजोरम को केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया गया। जब 1987 में मिजोरम को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया, तब भी मिजो आदिवासी नेताओं ने आरोप लगाया था कि उनके राज्य का एक हिस्सा असम को दे दिया गया है। लेकिन भारत सरकार ने सीमा का निर्धारण किए बिना मिजोरम को राज्य बना दिया। यदि उस वक्त ही साफ कर दिया जाता कि सीमा का निर्धारण किए बगैर नए राज्य का गठन नहीं होगा तो स्थिति कुछ और होती।
असम को विभाजित करके भले ही अलग राज्य का गठन हो गया, लेकिन सीमा विवाद जारी रहा। उस वक्त दोनों तरफ आबादी का दबाव कम था, इसलिए स्थिति सामान्य रही। लेकिन जैसे ही आबादी का दबाव बढ़ा, खाली जगहों पर नई बसावट बसने लगी। जब मिजोरम ने 1875 के नक्शे के आधार पर अपने लोगों को विवादित क्षेत्र में बसाना आरंभ किया तो 1995 में सीमा के सवाल पर पहली हिंसा हुई। 2018 में जब मिजोरम की कुछ सिविल सोसायटी ने विवादित इलाके में झोपड़ियां बनानी चाही तो असम पुलिस की कार्रवाई से करीब 50 लोग घायल हो गए थे। अंग्रेजों ने लुसाई हिल्स का कुछ हिस्सा मणिपुर को और कुछ असम को दे दिया। उसी के बाद विवाद जारी है। मिजोरम 1875 के आधार पर सीमा का निर्धारण करना चाहता है। इसके उसका असम के साथ मणिपुर से भी सीमा विवाद जारी है। असम सरकार ने साफ कर दिया है कि सीमा पर स्थाई शांति के लिए वे समझौता करने को तैयार हैं, लेकिन असम की एक इंच जमीन देने को तैयार नहीं है।
असम-मेघालय सीमा विवाद के फार्मूले पर असम-मिजोरम, असम-नगालैंड और असम-अरुणाचल प्रदेश विवाद को भी सुलझाया जा सकता है। अच्छी बात है कि असम सरकार अपनी तरफ से पहल कर रही है। असम और मेघालय के बीच सीमा विवाद सुलाझाने के लिए दोनों राज्यों के बीच मंगलवार को ऐतिहासिक समझौता हुआ। ऐसे व्यावहारिक प्रयासों से ही अंतर्राज्यीय विवादों को सुलझाया जा सकता है।