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सामाजिक शक्ति केन्द्र बनें गोशाला

सामाजिक शक्ति केन्द्र बनें गोशाला

by अमोल पेडणेकर
in अप्रैल -२०२२, साक्षात्कार
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विगत 25 वर्षों से गोसेवा का कार्य नियमित रूप से करनेवाले गिरीश भाई शाह ने समस्त महाजन संस्था के माध्यम आदर्श गांव की संकल्पना को न केवल सबके सामने प्रस्तुत किया है वरन वे स्वावलंबी गोशाला और स्वावलंबी गांव बनाने के लिए रोड मैप भी तैयार कर चुके हैं। गोपालन और गोसंरक्षण के संदर्भ में उनके कुछ मौलिक विचार हैं जो उन्होंने इस साक्षात्कार के माध्यम से सभी के समक्ष प्रस्तुत किए हैं।

समस्त महाजन संस्था का मुख्य उद्देश्य क्या है?

मेरे परम पूज्य गुरु उपन्यास चंद्रशेखर विजय जी महाराज ने कहा कि मैने व्यापार में बहुत सफलता हासिल कर ली है इसलिए अब व्यापार के साथ साथ सेवा का भी काम शुरु करना चाहिए। वह 1996 का समय था, जब अकाल से पशुओं की स्थिति बुरी अवस्था से गुजर रही थी, इसलिए गुरुजी ने मुझे जीव दया का काम सौंप दिया। उस समय गुजरात में महाजन की परंपरा चल रही थी और इन सबके समूह को मिलाकर समस्त महाजन संस्था का नाम पड़ा। इस संस्था का उद्देश्य सभी गोशालाओं को आत्मनिर्भर बनाना है जिससे किसी भी गोशाला के महाजन को किसी के सामने पैसे के लिए हाथ न फैलाना पड़े।

समस्त महाजन संस्था के सेवा कार्यों की संक्षिप्त में जानकारी दीजिए?

समस्त महाजन संस्था के सेवा की कहानी 25 सालों की है तो इसे संक्षिप्त करना थोड़ा मुश्किल है लेकिन हम प्रयास करेंगे। संस्था की तरफ से सबसे पहले गुजरात की सभी गोशालाओं का सर्वे हुआ और उसी के आधार पर उन्हें पैसा देना आरंभ किया गया। इससे साथ ही गांव के तालाब, गोचर स्थान का फिर से पुनर्निर्माण शुरु किया। गांव में वृक्षारोपण करना और यह विचार करना कि गांव के लोगों को कैसे स्वावलंबी बनाया जाए। इस तरह से अभी तक करीब 700 गावों में यह कार्य संपन्न हो चुका है। मुंबई में करीब हर दिन 400-500 लोगों को भोजन कराया जाता है। देश में अगर कहीं भी प्राकृतिक आपदा होती है तो वहां भी मदद के लिए जाया जाता है। समस्त महाजन संस्था समाज में अलग-अलग आयाम के माध्यम से छोटी-बड़ी मदद के लिए तैयार रहती है।

गो संवर्धन एवं गोशाला यह आप के कार्य का मुख्य विषय क्यों रहे हैं?

यह देश का दुर्भाग्य रहा कि 1992 में नरसिम्हा राव की सरकार ने ’पशु मांस निकास’ कानून को लागू कर दिया। उस समय हमारे पास विदेशी मुद्रा कम थी तो उन्हें यह लगा कि इससे उन्हें लाभ होगा लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ बल्कि करोड़ों पशुओं का कत्ल कर दिया गया। पिछले साल के आंकड़े बताते हैं कि करीब 3 करोड़ 26 लाख से अधिक पशुओं की बलि सिर्फ विदेशियों के खाने के लिए हुई। 1992 से हम विदेशियों का पेट भरने के लिए अपने पशुओं की बलि दे रहे हैं, जबकि पशु ही गांव की अर्थवयवस्था का केंद्र होता है। समस्त महाजन संस्था की ऐसी सोच रही है कि वह पशुओं के माध्यम से गांव-गांव को मजबूत करेगा जिससे एक दिन देश के करीब 6.5 लाख गांव मजबूत होंगे और हमारा देश आत्मनिर्भर होगा।

देश के विकास में गोशालाओं का विशेष योगदान अपेक्षित है। गोशाला प्रबंधन का विषय महत्वपूर्ण है। आप इसे किस तरह से देखते हैं?

समाज के विभिन्न लोग मिलकर ही प्रबंधन की व्यवस्था करते है। प्रबंधन का सीधा अर्थ है पशुओं के चारे और पानी की व्यवस्था करना और इसके लिए जमीन की जरूरत होगी। सबसे पहले गोशालाओं के पास अपनी खुद की जमीन होनी चाहिए। देश की कुछ पुरानी गोशालाएं हैं जिनके पास आज भी 500 एकड़ तक जमीनें हैं। उस समय हमारे पूर्वजों को यह पता था कि अगर खुद की जमीन होगी तो चारा पैदा किया जा सकेगा। ऐसे में गोशाला पर भार कम होगा। पशु पालन में मुख्य खर्च चारा-पानी पर ही होता है। आज कल गोशाला की प्रबंधन समिति को भी प्रशिक्षण की जरूरत है क्योंकि एसी कमरे में बैठकर गोशालाएं नहीं चलाई जा सकतीं। ऐसे लोगों को गांव में ही तालाब व चारागाह का पुनर्निर्माण करना चाहिए। चारे के नाम पर करोड़ों खर्च हो जाते हैं जबकि उससे बहुत कम खर्च में आस-पास के गांव में चारागाह को तैयार किया जा सकता है। चारा जिहाद एक नया प्रचलन है क्योंकि चारे की कमी की वजह से हम कभी-कभी उन लोगों से चारा खरीद लेते हैं जो गाय को काटकर खाते हैं, अब अगर उनके पास से हम चारा खरीदते हैं तो फिर हम उनसे क्या अपेक्षा कर सकते हैं।
गोशाला प्रबंधन और गोशाला का स्वावलंबन इन विषयों को लेकर जो गोशाला यशस्वी रूप में चल रही है उसके कुछ उदाहरण दीजिए?

हम 25 सालों से इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं तो आप यह समझ सकते हैं कि सभी का काम एक बराबर नहीं रहा, लेकिन कई सारी गोशालाएं हैं जो इस तरफ तेजी से आगे बढ़ रही हैं। उदाहरण के लिए राजस्थान की कई गोशालाएं हैं जिन्होंने जमीन खरीद कर खुद का चारा उगाना शुरु कर दिया है। प्रबंधन को हमने विविध मार्ग में विभाजित कर दिया है। कम से कम 25 प्रतिशत चारा खुद से उगाना चाहिए और हो सके तो 100 प्रतिशत भी उगा सकते हैं। हमने निर्देश दिए कि 25 प्रतिशत में आस-पास के गांव के चारागाह को डेवलप करो, जेसीबी की मदद से बबूल के पेड़ हटवा दो तो चारागाह तैयार हो जाएगा और तालाब को भी तैयार किया जा सकेगा। भारतीय कानून में भी यह प्रावधान है कि किसी गांव की कुल भूमि का 5 प्रतिशत गोचर होना चाहिए। आस-पास के गांव के किसानों को किसान कार्ड के माध्यम से जोड़ो, किसान कार्ड में गोशाला का भी नाम होगा और किसान इस बात के लिए सहमत होगा कि वह सिर्फ गोबर की खाद का इस्तेमाल करेगा और खेत में उगने वाला चारा वह सिर्फ गोशाला को देगा।

गो संवर्धन की आवश्यकता को समझकर गठित किए गए राष्ट्रीय आयोग के माध्यम से जो कार्य हो रहा है क्या वह ठीक है?

राष्ट्रीय कामधेनु आयोग प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का सपना था। उसका पहला चेयरमैन डॉ. कथारिया को बनाया गया था, लेकिन दुर्भाग्यवश दो साल का कार्यकाल पूर्ण होते ही उन्हें बहुत ही बुरी तरह से हटा दिया गया। तब से लेकर आज तक यह आयोग बिना चेयरमैन के चल रहा है। जिस विचार को लेकर राष्ट्रीय कामधेनु आयोग का गठन किया गया था उसे उसके अनुरूप नहीं चलाया जा रहा है और इसके लिए अधिकारी वर्ग दोषी है। एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया जिसका मैं खुद मेंबर हूं, वह भी बिना चेयरमैन के पिछले 3 सालों से चल रहा है। अब चेयरमैन के नहीं होने के बाद सभी जिम्मेदारी अधिकारी की होती है जबकि अधिकारी के पास समय नहीं होता कि वह किसी आयोग पर ध्यान दे सके। एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया का काम है कि किसी फिल्म या शो में किसी पशु पर हिंसा ना हो, इसकी निगरानी हमें करनी होती है। किसी परफार्मिंग एनिमल को लेकर 72 घंटों के अंदर परमिशन देनी होती है इसके लिए काम अधिक होता है जबकि मेंबर की संख्या कम है।

एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया के कार्यप्रणाली में सुधार और तेजी लाने हेतु आपको कौन से ठोस कदम उठाए जाने चाहिए?

इसके लिए दृष्टिकोण होना बहुत जरूरी है अगर देश के प्रधानमंत्री और मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला के दिमाग में यह आ जाए कि यह करना है तो उन्हें करना ही पड़ेगा। एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया एक बहुत बड़ा बोर्ड है, जिसे 1960 एक्ट के तहत बनाया गया है लेकिन इसमें चेयरमैन के बाद मेंबर को कोई अधिकार नहीं दिया गया है। मेंबर्स को सिर्फ मिटिंग के लिए रखा गया है इसलिए इस देश के पशुओं का कल्याण नहीं हो रहा है।

गो शाला का समग्र प्रबंधन कैसे होना चाहिए?

साइंटिफ मॉडल ऑफ एनिमल शेल्टर, सबसे पहले शेल्टर्स बढ़ियां होने चाहिए। गोशाला सामाजिक ध्रुवीकरण का केंद्र है, यहां पर गाय जैन, हिन्दू, ब्राह्मण नहीं है बल्कि यह सिर्फ गाय है और सभी की आस्था का केंद्र है। गोशाला एक ऐसा मंदिर है जहां सभी हिन्दू एक साथ आ सकते हैं। हम उन लोगों से चारा क्यों खरीदें जो गाय को काटते हैं। हमें खुद से चारा उगाना चाहिए। गोशाला की डिजाइन पर विशेष ध्यान देना चाहिए यह इतनी सुंदर होनी चाहिए कि देखकर मन भर जाए। गायों से प्यार करें। लग्न भी गोशाला में होनी चाहिए, इससे ना सिर्फ समाज के सभी वर्ग गोशाला में आएंगे बल्कि गाय को लेकर समाज भी जागरुक होगा। गोशाला में खेल के लिए मैदान हो जिससे आस-पास के लोग भी खेलने के लिए गोशाला आए। सात्विक भोजन होना चाहिए ना कि तामसी भोजन। गोशाला के दूध और घी का सेवन करना चाहिए इससे शरीर तंदुरुस्त होगा। गाय के दूध और मूत्र से दवा या फिर साबुन बनाने के हम पक्षधर नहीं है, क्योंकि उससे आप बहुत कुछ नहीं कमा सकते। बल्कि गो मूत्र के द्वारा आस-पास के गांव में प्राकृतिक खेती को लेकर लोगों को जागरुक करना चाहिए। इससे प्रकृतिक खेती बढ़ेगी और लोगों को अच्छा अनाज मिलेगा।

आपने कहा कि गोशाला सामाजिक शक्ति केंद्र बनना चाहिए लेकिन गोशाला का आर्थिक नियोजन भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। गोशाला की समृद्धि के लिए आर्थिक नियोजन की व्यवस्था किस प्रकार से होनी चाहिए?

जब कोई गोशाला में शादी करने के लिए आएगा तो वह कुछ ना कुछ धन देकर ही जाएगा, शादी के लिए एक मंगल हाल और कुछ रुम तैयार करने होंगे। अगर हर गोशाला में शादी की व्यस्था बन जाए तो किसी के पास पैसे मांगने की जरुरत नहीं होगी। गोशाला की तरफ से सामूहिक शादी भी करवाई जा सकती है इससे तमाम गरीब परिवारों का कल्याण हो जाएगा। शादी के साथ ही यह फायदा होगा कि सामाजिक लोग गोशाला से जुड़ेंगे और खुद से दान भी देंगे।

आदर्श गोशाला के कुछ चुनिंदा उदाहरण बताएं?

आबू रोड के पास पिंडवाड़ा की गोशाला भी तैयार हो चुकी है और करीब 5 साल से चल भी रही है। गुजरात के सोडल में भी इसी मॉडल पर गोशाला तैयार हो रही है। बाडमेर के पास नाकोड़ा में भी एक गोशाला तैयार हो रही है जिसका 4 महीने में उद्घाटन होगा। महाराष्ट्र के जलगांव में बाफना जी की गोशाला बहुत सुंदर और सामाजिक एकता का प्रतीक है। यहां सप्ताह में करीब 5 हजार लोग घूमने आते हैं। वापी की दामोदर गोशाला को रिसॉर्ट के तौर पर तैयार किया गया है। मैंने करीब 5 हजार गोशालाओं में भ्रमण किया तो देखा कि सभी जगहों पर व्यवस्था बन रही है।

गो जागरण एवं गो संस्कार गांव-गांव तक पहुंचाने हेतु समस्त महाजन के द्वारा क्या प्रयास हो रहे हैं?

हम लोग हर महीने दो-तीन दिन का प्रवास करते हैं जिसमें करीब 500 तक की संख्या में लोग उपस्थित होते हैं। अलग-अलग गोशाला के 200 के करीब प्रतिनिधि आते हैं। इसके लिए रजिस्ट्रेशन होता है जिसका शुल्क 2000 रुपये होता है। अभी तक करीब 6000 लोगों को हमने प्रशिक्षित किया है और हमारी यह धारणा है कि इसे हम और आगे ले जाएंगे। प्रशिक्षण में हम यह बताते हैं कि गोशाला का कंस्ट्रक्शन पार्ट कैसा होगा, हर तरफ बिखरा गोबर, टूटे छपड़े, नीली काई वाला पानी का ड्रम और गंदगी से भरी पूरी गोशाला अब अगर यह दृश्य होगा तो कई भी गोशाला में प्रवेश नहीं करेगा। इसलिए हमने इसमें परिवर्तन करने का विचार किया और एक ऐसी गोशाला निर्माण के बारे में सभी को बताया कि वहां आने के बाद लोगों को यह लगे कि किसी अच्छी जगह पर आ गये है। प्रशिक्षण के लिए हम हर दिन अलग-अलग गोशालाओं में जाते हैं और वहां किस तरह से घायल गायों, दूध देने वाली गायों और बिमार गायों का पालन पोषण कैसे होता है उसके बारे में बताते हैं। इस तरह से अब तक राजस्थान के 6 हजार लोगों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है।

धर्मज गांव जिस तरह पूरे देश के लिए आदर्श गांव का मॉडल बना हुआ है। आप थोड़ा उनके प्रयासों के बारे में बताएं?

1970 में धर्मज के गांव वालों ने यह प्रयास किया कि गांव की 146 एकड़ जमीन को बबूल से मुक्त किया जाए। गांव से निकलने वाले करीब 10 हजार लीटर खराब पानी को गांव से करीब 4.5 किमी दूर ले जाकर गड्ढों के माध्यम से उसे फिल्टर करना शुरु किया गया और उससे चारा उगाना शुरु किया। ग्राम पंचायत के नियमानुसार हर गाय को 10 किलो हरा चारा खर्च के मूल्य पर मिलने लगा (6 पैसे प्रति किलो चारा) वर्तमान में यह 1 रुपये प्रतिकिलो है जबकि बाजार भाव 4 रुपये प्रति किलो चल रहा है। गांव वालों ने आम, इमली, चीकू और आंवले के करीब 17 हजार पेड़ लगाए जिससे सालाना 50 लाख की इनकम होने लगी। 6 एकड़ में एक रिसॉर्ट कॉमप्लेक्स भी तैयार कर दिया जो बच्चों को कम पैसे में रिसॉर्ट का मजा देता है। इस गांव में 14 राष्ट्रीय बैंक है, एक हजार करोड़ की एफडी है और गांव में एक दूसरे के लिए प्रेम भाव बना हुआ है और खास बात यह है कि यहां पुलिस चौकी नहीं है क्योंकि यहां क्राइम नहीं है। हम सभी को धर्मज गांव से सीखने की जरुरत है।

कोरोना संकट काल में गोशाला को किस तरह की चुनौती का सामना करना पड़ा था?

कोरोना के समय में काफी कड़ी चुनौतियों से निपटना पड़ा लेकिन राज्य सरकारों की तरफ से मदद मिली और बुरा समय भी कट गया। उत्तर प्रदेश सरकार की मदद सराहनीय रही लेकिन इन सब के बाद भी गोशालाओं को तमाम परेशानियों से गुजरना पड़ा था इसके बाद हम एक तर्क पर पहुंचते हैं कि सभी गोशालाओं को अच्छे बैल तैयार करने चाहिए और उसे मुफ्त में किसान को देना चाहिए। बैलगाड़ी का भी प्रबंध करना चाहिए और उसे आस-पास के लोगों को मुफ्त में देना चाहिए इससे लोगों का भी काम होगा और गोशाला समाज के नजदीक पहुंच जाएगी। गैस के बढ़ते दाम से जनता परेशान हो रही है सरकार किसी को कब तक मुफ्त गैस दे सकेगी ऐसे में गोबर का उपला भी लोगों के लिए फायदेमंद होगा।

कोरोना काल में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना रखी है। आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए गोशालाओं का योगदान किस प्रकार होगा?

सरकार को कुछ योजनाओं को बंद कर देना चाहिए और देश के सभी 6.5 लाख गांव को एक-एक करोड़ रुपया देकर उस गांव के चारागाह को तैयार करना चाहिए। गांव के नाले, तालाब और नदी को पूरी तरह से साफ करना चाहिए। हर गांव के लिए एक दानदाता होना चाहिए और पीएम मोदी के आदेश पर वह भी संभव है। देश के बड़े कारोबारी भी सीएसआर के माध्यम से मदद कर सकते हैं। इसके साथ ही गांव वालों से भी एक एकड़ भूमि पर 100 रूपये लिया जाना चाहिए ताकि उन्हें भी यह लगे कि उनका काम है वरना सरकारी काम की इज्जत लोग कम करते हैं।

गो शाला व गो सेवा को लेकर आपके विचार बिल्कुल स्पष्ट हैं लेकिन इसे प्रत्यक्ष रूप में लाने के लिए कौन सी बातें आवश्यक हैं?

देश की 130 करोड़ जनसंख्या में सभी को नौकरी नहीं मुहैया कराई जा सकती। देश की करीब 80 करोड़ की जनसंख्या अभी भी गावों में रहती है और उन्हें गांव में ही रहने देना ठीक है। हर कोई शहर आकर नौकरी करे यह ठीक नहीं है। गांव के लोगों को कृषि और गो पालन में निपुण बनाया जा सकता है शहर में 10 हजार की नौकरी करने से बेहतर है कि गांव में 5 गाय पालकर 50 हजार कमाया जाए। सभी को नौकरी का लालच देने से बेहतर है कि अपने अपने इलाके के गावों को आत्मनिर्भर करने का प्रयास करें।

देवलापार स्थित गोसेवा अनुसंधान केंद्र व गो के संवर्धन के लिए कार्य करने वाली संस्था है। इसके संदर्भ में आपके विचार क्या है ?

सुनील जी मानसिंहका का प्रयास बहुत ही अच्छा है। उन्होंने गोबर व गो मूत्र की दावईयों का पेटेंट लेकर जो सबसे पहले लोगों के मन में जो विश्वास जताया वह सराहनीय है। देवलापार को विकसित करने में हम लोग भी योगदान दे रहे हैं। हमने हाल ही में 5 लाख रुपए भेजे थे। हम सुनील जी मानसिंहका को शुभकामनाएं देते हैं कि वे हमेशा आगे बढ़ें।

आप पिछले 25 सालों से गो सेवा कार्य में लगे हुए है। आप में समर्पण भाव नजर आता है। गो सेवा के माध्यम से ग्राम एवं देश को आत्मनिर्भर बनाने का मॉडल भी आपके पास तैयार हो गया है। उस मॉडल को प्रत्यक्ष रूप में लाने हेतु भविष्य का कोई रोड मैप आपके पास तैयार है?

मेरा रोड मैप तो तैयार है लेकिन जब तक राज्य या केंद्र सरकार के एजेंडे में यह नहीं होगा, तब तक कुछ भी संभव नहीं होगा। सरकार पहले अनाज को बचाने के लिए करोड़ों की कीटनाशक दवा खरीदती है और फिर स्वास्थ्य खराब होने पर लाखों की दवा के पैसे देती है। इस मानसिकता से बाहर आने की जरुरत है। देश में जिस तरह से कैंसर और किडनी की बिमारी फैल रही है वह साफ दर्शाती है कि 70 सालों से चला आ रहा सरकार का विकास मॉडल फेल है। भगवान कृष्ण के समय से पशु पालन की व्यवस्था चली आ रही है। अगर सनातन धर्म के अनुसार फिर से सबकुछ शुरु हो जाए तो मात्र 5 सालों में भारत सोने की चिड़िया फिर से बन जाएगी, लेकिन सरकार को काम 6.5 लाख गांव को सोचकर करना होगा सिर्फ नदी के किनारे प्राकृतिक खेती करने से देश में प्राकृतिक खेती का विस्तार नहीं होगा। सिक्किम राज्य में यूरिया फर्टिलाइजर बेचने पर पाबंदी है और वहां पर सिर्फ प्राकृतिक खेती होती है, यह कानून पूरे देश में लागू करने में सरकार डरती है। सिक्किम की तरह ही पूरे भारत को ऑर्गेनिक घोषित किया जा सकता है सिर्फ किसानों को समझाना होगा कि प्राकृतिक खेती के फायदे क्या है। देश में जितने पशु हैं उसके आधार पर भारत को पूर्ण रुप से ऑर्गेनिक घोषित किया जा सकता है।

देश में करोड़ो संत हैं जो सिर्फ कुछ चुनिंदा स्थानों पर हैं। इन सभी संतों को देश के हर गांव में जाना चाहिए और धर्म का प्रचार प्रसार करना चाहिए तब जाकर यह गांव बचेंगे। जैन संत मुंबई, सूरत, अहमदाबाद, पालिकाणा में मिलेंगें, हिन्दू संत हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और वाराणसी जबकि इन लोगों की जिम्मेदारी सिर्फ एक शहर के लिए नहीं बल्कि पूरे देश के लिए है।

 

अमोल पेडणेकर

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