बांग्लादेशी घुसपैठ का भारत पर परिणाम

देश के विभिन्न भागों में बढ़ता बांग्लादेशी घुसपैठ न केवल जनसांख्यिकी के औसत के हिसाब से खतरनाक है अपितु घुुसपैठिए बांग्लादेशी नागरिक सामान्य लोगों के आवश्यकता की वस्तुओं की तस्करी  भी कर रहे हैं। इस मामले में व्यापक कार्रवाई किए जाने की आवश्यकता है।

देश में विभिन्न प्रकार के विवाद निर्माण कर सतत छोटे-मोटे संघर्ष शुरू रखने का प्रयत्न हो रहा है। सुधारित नागरिक कानून का विरोध, दिल्ली की सीमा पर बैठे हुए एवं 26 जनवरी को लाल किले पर हमला करने वाले तथा दंगा फैलाने वाले तथाकथित किसान, कर्नाटक का हिजाब विवाद, देशभर में धीरे-धीरे फैलाने का प्रयत्न एवं उसके बाद हिंदू नव वर्ष, श्री राम नवमी, हनुमान जयंती की शोभायात्राओं पर हमले कर देश के कई राज्यों में दंगे, इन सबके माध्यम से संपूर्ण देश में अशांति और संघर्ष निर्माण कर 2024 में होने वाले आम चुनाव के पहले पूरे देश के प्रमुख शहरों को दंगों में झोंकने का षड्यंत्र तो नहीं हो रहा?

यूरोप का प्रगतिशील राष्ट्र, जो शांति, धनी एवं मानवाधिकारों की चिंता करने वाला है, वह है स्वीडन। शरणार्थियों के लिए अपने देश के दरवाजे सदा खुला रखने वाला स्वीडन आज दंगों की आग में झुलस रहा है। साल भर पूर्व ‘ऐसे शरणार्थी लोगों को शरण देना मानवता का उदात्त प्रकार है’  ऐसा शोर मचाते हुए यूरोप के राष्ट्र घूम रहे थे, विश्व को उपदेश दे रहे थे। परंतु 1 वर्ष की अवधि में ही यूरोप के राष्ट्रों को यह समझ में आ गया कि  उन्होंने भस्मासुर को जन्म दिया है।

हिंदू नव वर्ष, श्री राम नवमी और हनुमान जयंती निमित्त आयोजित शोभायात्राओं पर हिंसक हमले किए गए। इसकी शुरुआत हुई राजस्थान के किरावली से। बाद में मध्यप्रदेश में खरगोन, कर्नाटक में हुबली, आंध्र प्रदेश में होलगुंडा, उत्तराखंड में भगवानपुर, गुजरात में आणंद और हिम्मतनगर, पश्चिम बंगाल में बांकुरा, दिल्ली में जेएनयू तथा जहांगीरपुरी इलाकों में मुसलमानों ने हिंदू नव वर्ष, श्री राम नवमी और श्री हनुमान जयंती की शोभायात्राओं पर हिंसक हमले किए।

दिल्ली में सन 2020 से प्रतिवर्ष दंगे कराने का एक पैटर्न तैयार हुआ है। सन् 2019 में सुधारित नागरिक कायदे के विरोध में किया गया शाहीन बाग का तमाशा और उसके बाद 2020 में किए गए दंगे। इसके कारण 3 वर्षों से लगातार देश की राजधानी हिंसाचार में जलती हुई दिखती है। 2020 और 2022 के दंगों में अनेक समानताएं हैं। इसमें योजनाबद्ध तरीके से हिंदुओं को घेर कर उन पर हमले किए गए। इन दंगों में हिंदू बहुल रहवासी क्षेत्रों में ठीक तरह से पहले से रेकी कर उन्हें लक्ष्य किया गया। इन दंगों के माध्यम से देश को यह संदेश देने की कोशिश की गई की यदि देश हित के कायदे लागू किए गए तो हम गृह युद्ध की स्थिति पैदा कर देंगे।

2020 से 2022 ‘वाया सी ब्लॉक’

जहांगीरपुरी में किए गए दंगों का प्रमुख ठिकाना था ‘सी ब्लॉक’, कुशल चौक। इस सी ब्लॉक का सम्बंध 2020 की हिंसा में भी रहा। यह उस समय की एफआईआर में भी दर्ज है। इस बार भी हमला वहीं से शुरू किया गया था। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन का भारत दौरा उसी समय हुआ। ठीक वैसे ही जैसे 2020 में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे के समय भारत की छवि को मलिन करने का प्रयास किया गया था, वैसा ही प्रयत्न इस बार भी किया गया। इसका एक उद्देश्य तो यह दिखाना है कि यहां अल्पसंख्यकों पर अत्याचार किए जाते हैं एवं उससे परेशान होकर अल्पसंख्यक उसका विरोध करते हैं।

बांग्लादेशी सरकार घुसपैठियों को असमी एवं अन्य भाषाएं सिखाती है। उन्हें राशन कार्ड व चुनाव पहचान पत्र मुहैया कराने का काम हमारे अधिकारी ही करते हैं। एक और अत्यंत घातक कार्रवाई आकार ले रही है, वह है मुगलिस्तान। जहांगीर नगर के मुगलिस्तान रिसर्च इंस्टीट्यूट ने उसका एक नक्शा भी प्रकाशित किया है। उसमें बांग्लादेश और पाकिस्तान को जोड़ने की योजना है। भारत के राज्य पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश का भूभाग अपने में मिलाने की योजना भी उसमें शामिल है। इसके लिए आवश्यक मानव संख्या बांग्लादेशी घुसपैठियों के रूप में भारत में भेजने में आईएसआई सफल रहा है। टी.वी. राजेश्वर ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहते हुए कहा था कि यहां एक और विभाजन होने की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

5000 का पैकेज- बांग्लादेश से उठाकर मुंबई में सेट

5000 का पैकेज लेकर एक व्यक्ति को बांग्लादेश से उठाकर मुंबई में सेट करने तक का सारा काम किया जाता है। गत डेढ़ वर्षो में मुंबई शहर में स्थाई होने के चक्कर में डेढ़ हजार बांग्लादेशी एवं रोहिंग्या मुसलमानों को मुंबई पुलिस ने गिरफ्तार किया है। उसमें से अंदाजन 500 घुसपैठियों को उनके देश वापिस भेज दिया गया परंतु अधिकारियों के मुंबई वापस आने के पूर्व यह घुसपैठिए मुंबई वापस आ जाते हैं। बांग्लादेशियों की भारत में घुसपैठ कराने में दलालों की बीएसएफ और बांग्लादेशी राइफल्स के साथ मिली भगत है। इसमें वह एजेंट रेलवे का टिकट भी निकालता है, सीमा पार ले जाता है और फिर से भारत में लाकर छोड़ता भी है।

जल मार्ग से भी घुसपैठ

घुसपैठ नदी के मार्ग से भी होती है। ब्रह्मपुत्र नदी से नौका के माध्यम से यह सब घुसपैठिये किनारे पर उतरते हैं और वहां से 4-5 मील दूर भारत के अंदर अतिक्रमण करते हैं। प्रतिदिन हजारों बांग्लादेशी भारत में घुसपैठ करते हैं, सरकार मात्र थोड़े से बांग्लादेशियों को बाहर निकालती है। इससे यह ध्यान में आता है कि कुल मिलाकर घुसपैठ की गति कितनी तीव्र है। धुबरी ब्रह्मपुत्र के किनारे बसा हुआ जिला है। इस जिले में ब्रह्मपुत्र नदी में बड़ी-बड़ी नावें घूमती रहती हैं। इन्हीं नावों से घुसपैठिए आते हैं एवं नदी किनारे उतरते हैं। नदी किनारे का अंदाजन 5-6 मील का परिसर इन घुसपैठियों ने करीब-करीब ब्लॉक ही कर दिया है। घुसपैठिए टोलियों में आते हैं तथा जमीन पर कब्जा कर वहां रहने लगते हैं। काम धंधा ढूंढ़ने के लिए बाहर निकलते हैं। स्थानीय मजदूर जो काम सौ रुपए में करते हैं वही काम यह घुसपैठिए बहुत सस्ते में पूरा करते हैं। 40-50 रुपए भी उनके लिए बहुत होते हैं। इसके कारण एक नई अर्थनीति तैयार हो रही है। स्थानीय लोगों का रोजगार मारा जा रहा है एवं घुसपैठिए रोजगार पा रहे हैं।

घुसपैठ के मार्ग एवं प्रकार

रोज चलने वाली यह बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों की घुसपैठ टोलियों में होती है। कभी यह टोलियां 50-60 की छोटी संख्या में होती हैं तो कभी 200 तक की बड़ी संख्या में भी होती हैं। बांग्लादेश एवं भारत दोनों तरफ घुसपैठ कराने वाले दलाल होते हैं। घुसपैठियों के भारत में घुसने से पूर्व वहां की सरकार एवं दलालों ने उन्हें उड़िया, बंगाली(शुद्ध), असमिया और हिंदी सिखाने की व्यवस्था भी सीमा पर की है। घुसपैठ की हुई टोलियां सर्वप्रथम परती भूमि पर एवं सरकारी जमीन पर अपना निवास स्थान बनाती हैं और पास के शहरों में सस्ते मजदूर के रूप में अपने को लोकप्रिय बनाती हैं। इन घुसपैठियों के कारण होने वाले आर्थिक लाभ देखते हुए शासकीय उपक्रमों में काम करने वाले ठेकेदार एवं व्यापारी सरकार को घूस देकर उन्हें वहां मजदूरी दिलाने में मदद करते हैं।

घुसपैठ के परिणाम

महिलाओं का बलात्कार, उन्हें भगाकर ले जाना तथा अवैध व्यापार करना इत्यादि घटनाएं अनेक बांग्लादेशी एवं रोहिंग्या बहुल गांवों में हो रही हैं। तिरंगा जलाना, राष्ट्रीय त्योहारों पर दहशत का वातावरण फैलाना, यह भी वहां हो रहा है। चोरी, डकैती इत्यादि की तो जैसे फसल ही लहलहा रही है। इसके परिणाम स्वरूप कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ रही है।

भारतीय विस्थापित और घुसपैठिए प्रस्थापित

उनमें से कुछ लोग धनवान भी हैं जिन्हें विदेशों से सहायता मिलती है। यह धनवान लोग जमीन खरीदने का धंधा करते हैं। वे एक कतार में घर नहीं खरीदते। वे एक कतार में खेत भी नहीं खरीदते। बाजू के 1-2 घर छोड़कर या 1-2 जमीन छोड़कर वे खेती या घर खरीदते हैं। जिससे दो घुसपैठियों के बीच में भारतीय फंस जाते हैं। वे हिंदू भी होते हैं और कुछ भारतीय मुसलमान भी। फिर ये घुसपैठिए अपना असली रूप दिखाना शुरू करते हैं, जिस से परेशान होकर भारतीय हिंदू या मुसलमान अपने घर या खेती को घुसपैठियों को बेचकर चले जाते हैं। भारतीय विस्थापित हो जाता है और घुसपैठिए वहां बस जाते हैं। इस प्रकार भारत पर जनसांख्यिकीय आक्रमण शुरू हो गया है जिसकी चिंता न तो राजनीतिक दलों को, न ही नौकरशाही को और ना ही सामान्य जनता को है।

बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिए

तथा आतंकवाद का बढ़ता खतरा

पश्चिम बंगाल में आतंकवादियों द्वारा की जा रही कारगुजारियों को वहां की सरकार चुपचाप देख रही है एवं सहन कर रही है। बांग्लादेश का आतंकवादी संगठन जमात-उल-मुजाहिदीन घुसपैठियों के माध्यम से भारत में अपने पैर पसार रहा है। पश्चिम बंगाल में उन्होंने करीब-करीब 58 आतंकवादी गुट तैयार किए हैं। अलकायदा ने बांग्लादेश में आंदोलन के माध्यम से आईसिस सरीखा राज्य स्थापित करने का निश्चय किया है। इसके लिए पश्चिम बंगाल, असम और उत्तर म्यांमार के मुस्लिमों की मदद लेना या आवश्यकता पड़े तो विद्रोह करना; इस प्रकार के पत्रक गुप्तचर विभाग के हाथ लगे हैं।

बांग्लादेशियों को मदद करने वाले

स्लीपर सेल्स को खोजना सबसे महत्वपूर्ण

यदि कोई आतंकवादी भारत में कार्रवाई करता है तो उसे यहां के पते, महत्वपूर्ण जगह, यातायात के साधन, पासपोर्ट, मोबाइल कार्ड, फोन, रहने की जगह इत्यादि चीजें अपने आप नहीं मिल जाती। कोई स्थानीय व्यक्ति या संगठन उसकी मदद कर रहा होता है, उसे जानकारी देता होता रहता है। इसी कारण आतंकवादी अपनी कार्यवाही में सफल होता है। ऐसी मदद करने वाले कार्यरत संगठनों के अड्डों को स्लीपर सेल कहा जाता है। स्लीपर सेल का सदस्य कभी प्रकट नहीं होता। ऐसे सेल की गुप्त गतिविधियों पर नजर रखने का काम बहुत बारीकी से करना पड़ता है। यह काम करते समय पुलिस को सतत जागरूक रहना पड़ता है। किसी बस्ती में आया हुआ नया आदमी कौन है, किसी बस्ती से बच्चे एकदम गुम हो गए हैं, बस्ती में रहने वाला कोई युवा एकदम गायब होकर पुनः बस्ती में आ गया है, तब वह कहां था, उसके बारे में लोग क्या कहते हैं, इस प्रकार की बातों पर सतत ध्यान रखना पड़ता है। इस दृष्टि से प्रत्येक पुलिस थाने में दो खास प्रशिक्षित सिपाहियों की नियुक्ति की जानी चाहिए। उनकी जवाबदारी केवल यही होनी चाहिए कि क्या उनके क्षेत्र में कोई स्लीपर सेल है? यदि है तो उनकी गतिविधियों पर ध्यान रखना।

नकली नोटों का चलन- नया आतंकवाद

शत्रु राष्ट्र में नकली नोट भेज कर उनकी अर्थव्यवस्था को नष्ट करना, युद्ध का ही एक भाग हो गया है। एक अंदाज के अनुसार करीब 12 लाख करोड़ रुपए की बनावटी मुद्रा इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था में है। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार अलग-अलग शाखाओं में 400000 बनावटी नोटों का पता लगाया गया है। 2000- 2001 में दस लाख नोटों में तीन नकली नोट मिलते थे, उनका प्रमाण अब 8 नोटों तक पहुंच गया है। चलन में आए नोटों की कीमत के एक से दो प्रतिशत मूल्य के नकली नोट इस समय चलन में है। नकली नोटों की यह भरमार आर्थिक आतंकवाद है। इस विषय में पाकिस्तान के पास बहुत कुशलता होने के कारण असली और नकली नोटों में फर्क करना बहुत मुश्किल है।

अन्य गलत काम

आज देश में पकड़े गए अधिकांश नकली नोट बांग्लादेशियों से जब्त किए गए हैं। इसके अतिरिक्त प्रत्येक राज्य की पुलिस ने 200 से 250 बांग्लादेशियों को जाली नोटों को चलाते हुए पकड़ा है। भारत से एक दो और पांच रुपयों के सिक्कों की तस्करी भी होती है। क्योंकि इन्हें पिघलाकर महंगी वस्तुएं बनाई जाती हैं। हथियारों की तस्करी तो बहुत बड़ी है। इसके अतिरिक्त मादक पदार्थों की तस्करी भी बड़े प्रमाण पर चल रही है। इसके कारण ईशान्य भारत के अनेक युवा नशे की गिरफ्त में है। इसके अतिरिक्त सीमा पर दैनिक उपयोग में आने वाले केरोसिन, नमक इत्यादि वस्तुओं की भी तस्करी की जाती है क्योंकि उनकी कीमत बांग्लादेश में भारत की अपेक्षा तिगुनी से चौगुनी है। मेघालय से कोयला, लकड़ी और अनेक प्रकार के धातु भी बांग्लादेश अवैध तरीके से भेजे जाते हैं। इसके अतिरिक्त सीमा पर एवं ईशान्य भारत में अनेक प्रकार के गलत कार्य बांग्लादेश के नागरिकों द्वारा किए जाते हैं।

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