सामान्य कार्यकर्ता ही सच्चा योद्धा

किसी भी चुनाव को जीतने के लिए सभाओं में जुटने वाली भीड़ से ज्यादा संगठन का कार्यकर्ता मायने रखता है। भाजपा के लिए यह बड़ी अच्छी बात है कि उसके पास एक मजबूत संगठन और समर्पित कार्यकर्ताओं की फौज है, आवश्यकता है तो बस 2024 के लोकसभा चुनाव में उनके सटीक प्रयोग की।

लोकसभा के चुनाव 2024 में होंगे और उसी दौरान महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव भी होंगे। लोकसभा चुनाव में विरोधी दल मोदी के विरोध में उतरेंगे, मोदी का विकल्प देने की बात करेंगे। 10 वर्ष के मोदी के शासन में लोकतंत्र किस प्रकार खतरे में हैं, आर्थिक गति कैसे मंद हो गई है, धार्मिक तनाव कैसे बढ़ गया है, ऐसे विषयों पर विभिन्न कथानक तैयार किए जाएंगे। यह सब झूठ का पुलिंदा होने के कारण सामान्य जनता का मनोरंजन तो होगा ही और मोदी के विरुद्ध प्रचार करने वाले कितने धूर्त और मक्कार हैं, यह उनके ध्यान में आ ही जाएगा।

महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव भाजपा को केवल महा विकास आघाड़ी के विरुद्ध लड़ना है। देखा जाए तो भाजपा के लिए लोकसभा का चुनाव महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव से ज्यादा आसान है। शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस और कांग्रेस ऐसे एक दूसरे के घोर राजनीतिक विरोधी केवल सत्ता सुख भोगने के लिए एक साथ आए हैं। भाजपा को सत्ता न प्राप्त हो यह उनका एक सूत्रीय कार्यक्रम है। विधानसभा के चुनाव में भी उनकी यही व्यूह रचना होगी। भाजपा को इन तीनों के साथ अकेले लड़ना है।

लड़ाई की तैयारी करते समय हमारे शक्ति स्थान कौन से हैं और हमारी कमजोरियां क्या हैं, इसका विचार करना पड़ता है। इस विषय में छत्रपति शिवाजी महाराज का आदर्श सामने रखना होगा। महाराज के पास सेना कम थी, साधनसंपत्ति कम थी, पैसा कम था और शत्रु के पास यह सब बहुतायत में था। तब महाराज ने क्या किया? उन्होंने सहयाद्री पर्वत को ही अपना सेनापति बनाया। सहयाद्री पर्वत पर बनाए गए किले अति दुर्गम स्थान थे। वहां पहुंचना बीजापुर और मुगल दोनों सेनाओं के लिए अत्यधिक कठिन था। अपनी दुर्बलता को छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी चतुराई से ढंक दिया। भाजपा को भी यही करना होगा। इसका मूर्खतापूर्ण अर्थ कोई यह ना निकाले कि भाजपा किलों में जा कर बैठे।

भाजपा की शक्ति तीन विषयों में है। पहली विचार शक्ति, दूसरी नैतिक शक्ति तथा तीसरी संगठन शक्ति। विचार शक्ति और नैतिक शक्ति दो आदर्श नेशनल लेवल पर भाजपा के सामने हैं। वे यानी नरेंद्र मोदी और अमित शाह। इसका अर्थ यह नहीं है कि भाजपा के अन्य नेताओं का कोई आदर्श नहीं है। ये दो नेता भाजपा का चेहरा बन चुके हैं। वे विचार धारा के प्रति प्रतिबद्ध हैं, संगठन को सर्वोच्च मानने वाले वाले हैं तथा नैतिक मूल्यों का अक्षरश: पालन करने वाले हैं।

भाजपा का विचार यह मूलतः संघ विचार है। संघ विचार यानी राष्ट्र विचार। प्रथम राष्ट्र, बाद में संगठन और सबसे अंत में मैं। संघ यही सिखाता है। सब कुछ राष्ट्र के लिए, मेरा कुछ भी नहीं, इस भावना से काम करना। डॉ हेडगेवार, श्री गुरु जी, बाला साहब देवरस से लेकर वर्तमान सरसंघचालक तक सभी इसके प्रत्यक्ष आदर्श हैं। यह एक राष्ट्र है, यह हिंदू राष्ट्र है। हिंदू राष्ट्र यानी उपासना पद्धति पर आधारित, पौराणिक ग्रंथों पर आधारित राष्ट्र नहीं बल्कि यह एक सनातन राष्ट्र है। सनातन का अर्थ ’जो नित्य नया, वह सनातन’। कालानुरूप व्यवस्था स्वीकार कर जीवन जीने वाला यह राष्ट्र है। उसकी विचार परंपरा है, जीवन पद्धति है, मूल्य व्यवस्था है। इस राष्ट्र को परम वैभव के शिखर पर ले जाना ही संघ का उद्देश्य है।

संघ का यह विचार राजनीतिक क्षेत्र में सर्वप्रथम जनसंघ के माध्यम से व्यक्त हुआ। आगे चलकर भारतीय जनसंघ भारतीय जनता पार्टी में परिवर्तित हो गया। विचारों की अभिव्यक्ति उस क्षेत्र की परिभाषा में करनी होती है। भाजपा की राजनीतिक क्षेत्र की परिभाषा सनातन भारतीय राष्ट्र की है, भारतीय राष्ट्रवाद की है। हिंदुत्व और भारतीयत्व में कोई फर्क नहीं है। यह विचारधारा हमें सफल बनानी है इसलिए विचारधारा के लिए समर्पित कार्यकर्ता 1951 से लेकर आज तक अथक परिश्रम करते आ रहे हैं। पहले कुछ वर्षों में सफलता नहीं मिली परंतु कार्यकर्ता निराश नहीं हुए। चुनाव हार गए फिर भी ’अगली बारी, अटल बिहारी’ का नारा लगाते हुए पुनः काम में जुट गए। विचारों की शक्ति ऐसी ही होती है। विचार अमूर्त होते हैं, उन्हें व्यक्ति के माध्यम से प्रकट करना होता है। दीनदयाल उपाध्याय से लेकर नरेंद्र मोदी तक इसके चलते-फिरते जीवित उदाहरण हैं। लेख का विस्तार होने के भय के कारण अनेक नाम यहां नहीं दिए गए हैं। इन सब महान लोगों ने, विचारों को प्रत्यक्ष जीवन में कैसे उतारना चाहिए, इसका आदर्श प्रस्तुत किया है। राजनीतिक नैतिकता का मापदंड तैयार किया है। राजनीतिक जीवन में विरोधी का विरोध करना पड़ता है परंतु विरोधी भी हमारा ही है, यह भावना होनी चाहिए। राजनीतिक विचारों और कार्यक्रमों का विरोध करते समय व्यक्तिगत स्तर पर मधुर सम्बंध बनाए रखना होता है। आपस में विश्वसनीयता निर्मित करनी होती है। एक दूसरे पर वार करते समय नैतिक स्तर नहीं छोड़ा जाता। इन सब नैतिक मूल्यों का पालन जनसंघ- भाजपा के नेताओं ने करके दिखाया, उसी मार्ग पर आगे भाजपा को चलना है।

अमूर्त विचार व्यक्ति के माध्यम से प्रकट होने के बावजूद केवल इतने से ही राजनीतिक शक्ति निर्माण नहीं होती। उसके लिए संगठन की आवश्यकता होती है। अखिल भारतीय दलों का विचार करते समय यह ध्यान में आता है की भाजपा एक ऐसा दल है जो संगठन को अत्यधिक महत्व देता है। अन्य दल व्यक्तिवाद, परिवारवाद तथा जोरदार भाषण की कला पर खड़े हैं। भाजपा का स्वतः का राजनीतिक संगठन है। महाराष्ट्र में भी वह संगठन सम्पूर्ण महाराष्ट्र व्यापी है।

संगठन एक शास्त्र है। इस संगठन शास्त्र के महान आचार्य डॉ हेडगेवार थे। ध्येय निष्ठ संगठन कैसा होना चाहिए, यह उन्होंने संघ के माध्यम से संगठन खड़ा करके दिखाया। उन्होंने संगठन के कुछ महान सूत्र विकसित किए। संगठन अनुशासनबद्ध होना चाहिए, परंतु अनुशासन का अर्थ आंखों पर पट्टी बांधकर चलना नहीं है। संगठन का प्रत्येक सदस्य विचार करने वाला एवं निर्णय लेने वाला होना चाहिए। संगठन का सदस्य स्वयं प्रेरणा से काम करने वाला, संगठन के लिए समय देने वाला होना चाहिए। संगठन का अर्थ संपर्क और संपर्क यानी संवाद। संपर्क और संवाद यह संगठन के दो महत्वपूर्ण सूत्र हैं। संपर्क करने में आलस्य नहीं होना चाहिए। संपर्क के लिए जितना प्रवास करना पड़े करना चाहिए। संपर्क के माध्यम से व्यक्ति हमसे जुड़ना चाहिए। जुड़ने के लिए संवाद करना ही पड़ता है, इसलिए प्रत्येक कार्यकर्ता संवाद कुशल होना चाहिए। उसके लिए और संगठन की मजबूती के लिए कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण वर्ग सतत आयोजित करने पड़ते हैं। उसका कोई पर्याय नहीं है।

महाराष्ट्र में 3 दलों से भाजपा को लड़ना है। उन तीनों की शक्ति स्वतंत्र रूप से अलग अलग है। परंतु इन तीन शक्तियों के एकत्र होने से महाशक्ति का निर्माण होगा, ऐसा समझने का कोई कारण नहीं है। उससे डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। चुनावी राजनीति के गणित अलग होते हैं। वहां एक ही समय में प्लस, माइनस एवं डिवीजन होते रहते हैं। वन प्लस वन इज इक्वल टू टू यह पहली का गणित चुनावी गणित नहीं है, यह सब को ध्यान रखना चाहिए। उनसे मुकाबला करने के लिए प्रत्येक बूथ का विचार कर प्रत्येक बूथ पर कितने कार्यकर्ता रह सकते हैं या खड़े किए जा सकते हैं इसकी रूपरेखा बनानी पड़ेगी तथा उसके अनुसार उनका प्रशिक्षण करना पड़ेगा। सभा की भीड़ से मत पेटी नहीं भरी जा सकती। मत पेटी भरने के लिए संपर्क और संवाद यह दो शस्त्र ही उपयोगी होते हैं। और इस विषय में हमारी विचारधारा की बराबरी करने की ताकत अन्य किसी के पास नहीं है। कुछ दलों के पास बाहुबली हैं और कुछ के पास धनबली हैं, उसका वे भरपूर उपयोग करेंगे ही। यह एक प्रकार की आसुरी शक्ति है। आसुरी शक्ति से लड़ने का हमारा सनातन मार्ग सत्य धर्म का मार्ग है। पांडवों की अपेक्षा कौरवों की संख्या अधिक थी, उनके पास चाणक्य नीति करने वाले अनेक लोग थे, धन का सामर्थ्य तो बहुत अधिक था। वही बात रावण की थी। उसकी लंका सोने की लंका कहलाती थी। उसके विरुद्ध लड़ने वाला राम साधनों से अति दुर्बल था। परंतु दोनों युद्धों का परिणाम क्या हुआ यह बच्चा-बच्चा जानता है। हम भी ऐसे ही लड़ाई के मैदान में खड़े हैं, यह ध्यान में रखते हुए कार्यकर्ताओं को खड़ा करने का प्रयत्न करना होगा। श्री गुरु जी कहते थे की, ‘टेक केयर ऑफ पेनी, पाउंड्स विल टेक केयर आफ देमसेल्फ़ – पैसों की चिंता करें, रुपया अपने आप अपनी चिंता कर लेगा।’ इस लड़ाई में सामान्य कार्यकर्ता ही सच्चा योद्धा है।

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