वामपंथि क्यों करते राष्ट्रवाद का विरोध

वामपंथियों को जब किसी चीज को बर्बाद करना होता है तब वे उसका भला करने चलते हैं.

दुनिया भर में वामपंथियों को देश की सेनाएं अपनी सबसे बड़ी दुश्मन दिखाई देती हैं. वे डिफेन्स बजट का विरोध करते हैं, सेना पर हुए खर्च को विकास का, शिक्षा और स्वास्थ्य पर हुए खर्च का दुश्मन बताते हैं. भारत में भी वामपंथी सेना को विलेन बनाने, काश्मीर और नॉर्थ ईस्ट में सेना को हत्यारा और बलात्कारी सिद्ध करने में जुटे रहे हैं.

पर भारत में राष्ट्रवाद के उत्थान के साथ यह तकनीक बैकफायर कर गई. तो उन्होंने अपनी तरकीब बदल ली है. वे एकाएक सेना के सबसे बड़े हितैषी बनकर उतरे हैं. उन्होंने अब सेना का भला करने की ठान ली है जो जाहिर है उनकी किताब में किसी भी चीज को बर्बाद करने का सबसे कारगर तरीका है. आपको एकाएक फेसबुक पर ढेर सी आइडी दिखने लगेगी जिसमें आगे मेजर, कर्नल लिखा मिलेगा. जबकि आपकी आईडी में पहले से बहुत से पुराने और सेवारत फौजी मिलेंगे, लेकिन उनमें से कोई भी अपने नाम के आगे अपना रैंक लगाए नहीं मिलेगा. पर ये जितनी नई नई पैदा हुई आइडी मिलेगी जिनमें रैंक लगा हुआ है, ये टूलकिटिये हैं. इनका तरीका है कि फौज की खूब फिक्र दिखाओ और सिद्ध करो कि सरकार को फौज की फिक्र नहीं है, सरकार फौजियों का पेंशन खा जा रही है.

जबकि यह दुनिया भर का अजमाया परखा तरीका है. फौज में युवाओं की जरूरत अनुभवी बुजुर्गों से अधिक होती है. लोअर रैंक पर फौज को अधिक वर्क फोर्स की जरूरत होती है. और फौज देश को सुरक्षा देने के साथ साथ नागरिकों को सैन्य जीवन का अनुभव देने का काम भी करता है जिससे कि सामान्य जनता भी फौज के कंट्रीब्यूशन को एप्रिशिएट कर सके. पर भारत में वामपंथी इसे पेंशन का मुद्दा बनाकर सैनिकों को यह बताने के लिए उतर गए कि सरकार और भारतीय सेना उनकी परवाह नहीं करती, वे ही अधिक परवाह करते हैं.

ध्यान से देखें, वामपंथियों ने जब मजदूरों की परवाह करनी शुरू की तो इंडस्ट्री को बर्बाद किया. जब स्त्रियों और बच्चों की परवाह करनी शुरू की तो परिवार को तोड़ा. जब छात्रों की चिंता की तो शिक्षण संस्थाओं को बर्बाद किया. आज ये अपने सबसे खतरनाक खेल के साथ उतर रहे हैं…सैनिकों की फिक्र कर रहे हैं. उद्देश्य स्पष्ट है जो वामपंथियों की नीयत से बिल्कुल मेल खाता है…सैनिकों का मनोबल तोड़ना और सेना को कमजोर करना.

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