साहित्य अकादमी में जो अव्यवस्था थी, या किन्हें बुलाया गया इस बहस से इतर एक बात बात मुझे समझ में आई कि बिना वामपंथियों के सोचे हम उनका मुकाबला नहीं कर पाएंगे।
मैं ऐसा इसलिए कह रही कि वहां समापन समारोह में महमूद फारुकी का दास्तानगोई था। फारूकी अच्छे कलाकार है और प्रतिभाशाली भी। समारोह में खास पेशकश के रूप में वे कर्ण की दास्तान यानी कथा लेकर आए थे। उन्होंने कहा कि कर्ण की कथा सुनने से सौ श्यामा कपिला गाय की बछड़े समेत सेवा करने जितना पुण्य मिलता है।
कर्ण का पात्र भी उन्होंने बहुत चालाकी से चुना था। क्योंकि कर्ण के बहाने, ऊंच-नीच, जात-पात, दलित सवर्ण की बात आसानी से की जा सकती है। उन्होंने भी अपनी कथा में कई बार कहा कि कुल का नीच होने के कारण कर्ण को द्रोपदी नहीं मिली, अर्जुन से मुकाबले का मौका नहीं मिला और कृष्ण की कृपा से अर्जुन ने जीत हासिल की।
वह बड़े अच्छे ढंग से राजसत्ता के बहाने, ‘बिटवीन द लाइंस’ आज की सत्ता को कटघरे में खड़ा करते रहे और वहां मौजूद हर व्यक्ति वाह-वाह करता रहा।
किसी ने बाहर निकल कर कहा, यह भारत की खूबसूरती है कि एक मुसलमान महाभारत के एक पात्र का इतना सुंदर वर्णन कर रहा है। क्या हम सोच सकते हैं कि कुरान का को हिंदू ऐसा पाठ करे। मैंने सिर्फ इतना ही कहा, फारूकी ने बीच में महामृत्युंज मंत्र का पाठ किया। क्या कोई मुसलमान यह सहन कर सकता है कि बिना सिर ढके, बिना जानमाज पर बैठे कोई हिंदू कुरान की किसी आयत का पाठ करे।
क्या किसी मुसलमान को यह सहन होगा कि कुरान की या मोहम्मद की किसी कमी को कोई हिंदू ऐसे किस्साबयानी से सुना दे।