द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी की कमर तोड़ दी गयी थी और जर्मनी का रूसी सेना के द्वारा पराजित होने के पश्चात उसको दो भागों में चीर भी दिया गया था ।
पश्चिमी जर्मनी , नेटो का सदस्य बना और समझौते के आधार पर उसकी सैन्य क्षमता बहुत सीमित रखी गयी और नेटो ने उसकी सुरक्षा का दायित्व लिया । हालाँकि ब्रिटेन फ़्रांस इटली इत्यादि को सेना रखने की पूरी अनुमति थी ।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से ही तत्कालीन यूएसएसआर और आधुनिक रूस को पश्चिमी युरोप और अमेरिका एक शत्रु के रूप में स्थापित करते रहे । शीत युद्ध की पूरी जानकारी आप लोगों को है ही है ।
कल जर्मनी ने घोषणा करी की वह अपनी सेना में 100 बिलियन डॉलर्स लगाने जा रहा है, और उसे अब रूस युक्रेन युद्ध के कारण एक शत्रु स्पष्ट रूप से दिख रहा है । उसे अर्थात् वहाँ की जनता को जनता से ही देश बनता है । जैसी जनता चाहती है वैसा ही अंततः राजनैतिक शक्ति को करना पड़ता है । तो रूसी , जर्मनी के लिए अब स्पष्ट शत्रु बन चुके हैं ।
आपको पता ही होगा की पाकिस्तान हमें अपना शत्रु नम्बर एक समझता है और जब वे बच्चों को अपनी वर्णमाला सिखाते हैं तो “ द “ से दुश्मन और उसमें अधिकांश रूप से एक हिन्दु का चित्र होता है जिसमें हिन्दु प्रतीक धारण किया होता है। अर्थात् जब वे भारत को शत्रु बताते हैं तो अपने वाले 20% को उससे अलग करते हैं ।
यदि हमें एक राष्ट्र के रूप में जीवित बचे रहना है और किसी विकास फिकास के बात की कल्पना भी करनी है तो हमें अपने बाहरी शत्रु और आंतरिक शत्रु को एक करके देखना होगा । वह ड्राइवर बनकर हमारी सेना के जवानों को मारे या सीमा पार से गोली चलाए या कलावा बांधकर मुंबई पर आक्रमण करे या ज्ञानवापी पर कुल्ला करे या मदनी ओवेसी की भाषा बोले पर है वह हमारा आपका शत्रु ही और वह देश सभ्यता मिट जाती हैं जिन्हें अपने शत्रुओं की पहचान नहीं होती ध्यान दें मैं यहाँ राग द्वेष की बात नहीं कर रहा । सायनाइड से आप द्वेष नहीं करते पर आपको पता है चाटते ही मर जाएँगे ।
और जब एक बार हृदय से अपने शत्रु की पहचान कर लेंगे तब आपके लिए और सेना के लिए ( सेना हवा से नहीं उतरती हमारे आपके बच्चे ही सेना में हैं ) और अंततः राजनैतिक शक्ति को भी उनसे आंतरिक और बाह्य रूप से लड़ना सहज हो जाएगा ।