उस समय देश में पानी की विषम समस्या थी, ऐसा ही एक जगह था महाराष्ट्र का रत्नागिरी जिले का एक गांव था “ठगेवाडी”।
यहां पानी की इतनी कमी हो गई थी कि लोग गांव छोड़कर जाने लगे थे। 300 वनवासी परिवारों की बस्ती थी और पानी का ऐसा संकट की इंसान तो इंसान जानवर तक त्राहिमाम करने लगे।
ऐसी स्थिति में वनवासी विकास के लिए समर्पित एक संस्था “सुयश चेरिटेबल ट्रस्ट’ सामने आई।
इस संस्था को वनवासी कल्याण आश्रम से जुड़े श्री यशवंत घैसास और उनकी श्रीमती स्मिता घैसास चलाते थे। उन्होंने गांव वालों के साथ श्री जुड़कर “पानी अटकाने’ की व्यवस्था की और कुछ ही वर्षों में इस उपाय से गांव में पानी की समस्या हल हो गई। और वनवासी कल्याण आश्रम का यह प्रयोग ग्रामीण स्वावलम्बन और सक्रियता का एक उत्कृष्ट उदाहरण बना और वहां वर्षो से बंजर पड़ी जमीन पर खेती होने लगी। केवल 8 वर्षों में उस इलाके के कायाकल्प हो गया और सारे वनवासी गरीबी रेखा से ऊपर उठ गए। वहां मुख्य रूप से टमाटर की खेती होती थी।
संघ के तत्कालीन सरसंघचालक के० सुदर्शन जी स्वयं उस गाँव के विकास पर नज़र रखे हुए थे, वनवासी कल्याण आश्रम के प्रयासों से वहां टमाटर की चटनी बनाने का एक संयंत्र लगाया गया।
अटल जी उस वक़्त देश में विकास के स्वदेशी और स्वावलंबी मॉडल की बजाये विदेशी नीतियों के अनुकरण में लगे थे तो उन्हें भी संदेश देना था कि स्वावलंबन का रास्ता और प्रयोग कैसा होता है।
अवसर बना अटल जी का 78वां जन्मदिन, के० सुदर्शन उन्हें बधाई देने पहुंचे तो साथ में उपहार रूप ने पता है क्या ले गए थे?
सुदर्शन जी ले गए थे “टमाटर की चटनी”, जो उस गांव “ठगेवाडी” के वनवासियों का बनाया हुआ था।
देश के प्रधानमंत्री का जन्मदिवस…….सोचिये उनके लिए कैसे-कैसे महंगे उपहार लेकर लोग आये होंगे लोग, पर सुदर्शन जी ले गए थे स्वावलंबी वनवासियों की उद्यमशीलता और स्वदेशी के प्रयोगों का सबूत। सुदर्शन जी ले गए थे स्वदेशी भारत की उद्यमशीलता।
जिस परिवार के मुखिया की ऐसी संवेदना वनवासी समाज के लिए हो, उसी विचार परिवार से आने वाले नरेंद्र मोदी जी की ओर से महामहिम पद के लिए ही ऐसा ही चयन अपेक्षित था।
“जय हो”
बड़े लोगों की दृष्टि ऐसे ही बड़ी होती है….
– अभिजीत