माओ जे दोंग हूनान प्रांत के शाओसन गाँव के एक किसान के घर में 1893 ईस्वी में 26 दिसम्बर को जन्मा। पिता माओ इचांग एक गरीब किसान थे जो मेहनत से आगे बढ़े। बचपन में पढ़ाई में माओ का मन बिल्कुल नहीं लगता था। 13 साल की उम्र में उसका विवाह 17 साल की एक लड़की लू ई शी से कर दिया गया। जिसे माओ ने कभी पसंद नहीं किया। उपेक्षित और पीड़ित जीवन जीते हुये तीन साल में वह लड़की मर मई।
खेती का काम करते हुये माओ ने राजनीति में रूचि लेनी शुरू कर दी। साथ ही उसने जार्ज वाशिंगटन और नेपोलिअन बोनापार्ट की जीवनी पढ़ी और उनसे प्रेरित हुआ। इस बीच चीन में अकाल पड़ा और आसपास के किसानों ने माओ के घर में रखा अनाज लूट लिया, जिसका माओ ने प्रचंड विरोध किया। कुछ समय बाद उसने माध्यमिक कक्षा की पढ़ाई शुरू की। तब तक प्रथम युद्ध शुरू हो चुका था। 26 वर्ष की उम्र में माओ स्नातक बना और कम्युनिस्ट विचारों की ओर झुकने लगा। इसके बाद वह बीजिंग में जाकर पुस्तकालय सहायक बन गया। उसके बॉस जो लाइब्रेरियन थे, वे विचारों से कम्युनिस्ट थे। उनकी संगत में वह लेनिन और स्तालिन का प्रशंसक बन गया। यह भारत में गाँधी जी द्वारा छेड़े गए असहयोग आंदोलन का समय था।
जब जापान ने चीन पर आक्रमण किया तो कम्युनिस्ट युवकों ने थियानमन चौक में सरकार के विरूद्ध यह आरोप लगाते हुये प्रदर्शन किया कि सरकार जापान से ठीक से नहीं लड़ रही है। इस बीच जापान ने चीन के शानदोंग इलाके पर कब्जा कर लिया। जिससे युवकों का असन्तोष और बढ़ गया। राष्ट्र पर संकट था और युवकों के ये समूह राष्ट्रीय सरकार के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे।
कुछ समय बाद माओ एक प्राइमरी स्कूल का टीचर हो गया। वह हुनान प्रांत के राज्यपाल के विरोध में चले आंदोलन में सक्रिय हो गया और एक पत्रिका का भी इन लोगों ने प्रकाशन शुरू किया। राज्यपाल ने आन्दोलन पर और पत्रिका पर प्रतिबंध लगा दिया। माओ की नौकरी खत्म कर दी गई। फिर वह कई तरह के काम करते हुये चीन में घूमने लगा। कभी धोबी का काम, कभी पत्रकारिता, कभी कुछ और। अंत में जब वह जूनियर हाईस्कूल का हेडमास्टर बना, तब उसने 1920 ईस्वी की सर्दियों में यांग काइहुई नामक युवती से विवाह किया। 8 वर्ष बाद माओ ने हे जिझेन नामक युवती से तीसरा विवाह किया। उसके दो वर्ष बाद दूसरी पत्नी मर गई।
इस बीच 1921 ईस्वी में चीन में कम्युनिस्टों ने एक अध्ययन समूह बनाया। जिसका माओ एक सामान्य सदस्य बन गया। फिर वह प्रथम कम्युनिस्ट अधिवेशन में शामिल हुआ। इस बीच चीन में यूरोपीय शक्तियों की प्रेरणा से अनेक चीनी समूहों ने किसान विद्रोह भड़का दिये थे। इन किसान विद्रोहों के प्रति माओ को सहानुभूति थी।
1921 ईस्वी में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का पहला अधिवेशन शुरू हुआ जिसमें कुल 13 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इनमें से एक माओ थे। मीटिंग चल रही थी तभी गुप्तचर पुलिस का एक सिपाही आता दिखा और तेरहों लोग भागकर पास की झील में एक नाव पर चढ़कर जियाझिंग जा पहुँचे। वहाँ प्रस्ताव पारित हुआ कि – ‘शहरों के प्रोलितेरिएत (सजग आवारा या औद्योगिक कामगार) ही सामाजिक क्रांति का नेतृत्व कर सकते हैं। इसका मुख्य कारण यह था कि ये तेरहों लोग स्वयं रोजगार की तलाश में भटक रहे आवारा राजनीतिकर्मी ही थे। इनका पोषण वस्तुतः सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी कर रही थी।
माओ इसी समय यंग मेन क्रिश्चियन एसोशिएसन का सदस्य बन गया। उससे उसे कुछ सहारा मिला। अगले वर्ष कम्युनिस्ट पार्टी का दूसरा अधिवेशन हुआ जिसमें माओ ने भाग नहीं लिया और जब स्पष्टीकरण मांगा गया कि क्यों अधिवेशन में नहीं आये, तो माओ ने कहा कि अधिवेशन स्थल का पता मुझसे खो गया था इसलिये नहीं आ पाया। इस अधिवेशन में लेनिन के संदेश के अनुसार यह प्रस्ताव पारित किया गया कि ‘राष्ट्रीय क्रांति में बोर्ज्युआ डेमोक्रेट लोगों का सहयोग लिया जाये। तद्नुसार कम्युनिस्ट पार्टी राष्ट्रवादी चांगकाईशेक की पार्टी से सहयोग करने लगी और आंदोलन में सहभागी हो गई।
इस बीच चीन के छोटे किसानों ने जगह-जगह बड़े किसानों से उनकी जमीन छीननी कम्युनिस्टों की प्रेरणा से शुरू कर दी। उधर कुओमितांग ने किसानों के प्रशिक्षण केन्द्र चलाये। उनमें से एक केन्द्र का प्रशिक्षक माओ बन गया और वहाँ उसने अपने प्रति निष्ठावान सैनिक तैयार किये। इस बीच किसान आंदोलनकारियों ने एक प्रस्ताव पारित किया कि जिस चीनी किसान के पास साढ़े चार एकड़ से अधिक कृषि भूमि है वह क्रांतिविरोधी है, उसकी अतिरिक्त जमीन छीनकर गरीब किसानों में बांट देनी चाहिये। अगर वह विरोध करता है तो उसकी हत्या कर देनी चाहिये। यह काम बड़े पैमाने पर कथित किसान आंदोलनकारी करने लगे। इस पर चीनी शासन ने उनका दमन किया जिसमें 15 हजार कम्युनिस्ट मारे गये। इस बीच कम्युनिस्ट पार्टी ने माओ पर गद्दारी का आरोप लगाकर उन्हें सारे पदों से हटा दिया। परंतु बाद में माओ ने माफी मांग ली और उसे पार्टी में शामिल कर लिया गया।
सम्पूर्ण चीन में गृहयुद्ध छिड़ गया। कम्युनिस्टों ने गुरिल्ला युद्ध छेड़ा और क्रांतिविरोधी किसानों को चिन्हित कर उनकी हत्या शुरू कर दी। (क्रमशः ….)
-प्रो. कुसुमलता केडिया