कुछ पुस्तकें पढ़ना कष्टकर होता है। डॉ. रिचर्ड बेंकिन की ‘ए क्वाइट केस ऑफ एथनिक क्लिन्सिंग: द मर्डर ऑफ बंगलादेश’ज हिन्दूज’ (अक्षय प्रकाशन, नई दिल्ली) इतनी पीड़ादायक है कि इसे पढ़ने में कई बार प्रयास करना पड़ा। हर बार दो-चार पृष्ठ पढ़ते ही मन त्रस्त हो जाता। पुस्तक रख दी जाती। यह त्रास बाँट लेना ठीक है। संभवतः विवेकी वीर कुछ विचार/कर सकें!
इस पुस्तक के लेखक एक सामान्य अमेरिकी हैं, जो इस पर दुनिया का ध्यान आकृष्ट करने के लिए बीस वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं। अपनी जान भी खतरे में डाली। वे बंगलादेश सरकार, अमेरिकी प्रशासन, सीनेट, आदि में भी इस पर सुनवाई कराने, आदि प्रयत्न करते रहे हैं। उन की पुस्तक प्रमाणिक शोध, विवरण और प्रत्यक्ष अनुभवों पर आधारित है। इसी क्रम में भारतीय बंगाल में भी हिन्दुओं की हालत बताती है।
बहुतों को जानकर हैरत होगी कि गत सौ सालों में पाकिस्तान-बांग्लादेश में हिन्दू-विनाश दुनिया में सबसे बड़ा है। यह अंतर्राष्ट्रीय जिहाद का अंग है, पर निःशब्द हो रहा है। हिन्दू आबादी में नाटकीय गिरावट इस का प्रत्यक्ष प्रमाण है। 1951 में पूर्वी बंगाल की आबादी में लगभग 33 % हिन्दू थे। जो 1971 तक 20 % रह गए। 2001 में वे 10 % बचे। आज उन की संख्या 8 % रह गई मानी जाती है। इस लुप्त आबादी का एक-दो प्रतिशत ही बाहर गया। शेष मारे गए या जबरन मुसलमान बनाए गए। बांग्लादेश में हिन्दू-विनाश इस्लामी संगठनों, मुस्लिम पड़ोसियों, राजनीतिक दलों, और सरकारी नीतियों द्वारा भी हो रहा है।
वैश्विक स्तर पर इतनी बड़ी आबादी कहीं और साफ नहीं हुई! हिटलरी नाजीवाद ने लगभग 60 लाख यहूदियों का सफाया किया, जबकि पूर्वी बंगाल/ बांग्लादेश में 1951-2008 के बीच लगभग 4.9 करोड़ हिन्दू ‘लुप्त हो गए’। न्यूयॉर्क स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रो. सची दस्तीदार ने यह संख्या दी है। पर दुनिया इस पर संवेदनहीन-सी रही। इस का मुख्य कारण भारत की चुप्पी है, जो सबसे निकट प्रभावित देश है। वरना बोस्निया, रवांडा, या डारफूर में इस से सैकड़ों गुना कम लोगों के संहार पर पूरी दुनिया के मीडिया, संयुक्त राष्ट्र, और बड़ी-बड़ी हस्तियों की चिंता वर्षों तक व्यापक बनी रही।
कितना लज्जानक कि भारतीय नेता, दल, मीडिया, अकादमिक जगत, सभी इस पर चुप रहते हैं! बांग्लादेश में निरंतर और बीच-बीच में हिन्दू-संहार के बड़े दौर (1971, 1989, 1993) चलने पर भी यहाँ राजनीतिक-बौद्धिक वर्ग ठस बना रहा। न्यूयॉर्क टाइम्स के प्रसिद्ध पत्रकार सिडनी शॉनबर्ग की प्रत्यक्ष रिपोर्टिंग के अनुसार केवल 1971 में 20 लाख से अधिक हिन्दुओं के मारे जाने का अनुमान है। पाकिस्तानी दमन से मुक्त होकर बांग्लादेश बनने के बाद भी हिन्दुओं की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए कुछ नहीं किया गया। नये शासकों ने भी इस्लामी एकाधिकार बनाकर हिन्दुओं को पीड़ित, वंचित किया।
वहाँ 1974 में ‘भेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट’ बना। इस के अनुसार, जो हिन्दू बांग्लादेश से चले गए या जिन्हें सरकार ने शत्रु घोषित कर दिया, उन की जमीन सरकार लेकर मुसलमानों को दे देगी। इस का व्यवहार यह भी हुआ कि किसी हिन्दू को मार-भगा, या शत्रुवत कहकर, उस के परिवार की संपत्ति छीन कर किसी मुसलमान को दे दी गई। (पृ. 66-68)। ढाका विश्वविद्यालय के प्रो. अब्दुल बरकत की पुस्तक इन्क्वायरी इन्टू कॉजेज एंड कन्सीक्वेन्सेज ऑफ डिप्राइवेशन ऑफ हिन्दू माइनॉरिटीज इन बांग्लादेश थ्रू द भेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट में भी इस के विवरण हैं। इस कानून से तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं, कार्यकर्ताओं ने हिंदुओं की संपत्ति हड़पी। गत चार दशकों में यह हड़पी गई संपत्ति लाखों एकड़ में है!
1988 में संविधान संशोधन द्वारा इस्लाम बांग्लादेश का ‘राजकीय मजहब’ बन गया। तब से हिन्दुओं की स्थिति कानूनन भी नीची हो गई। उन के विरुद्ध हिंसा, बलात्कार, जबरन धर्मांतरण, संपत्ति छीनने, आदि घटनाएं और तेज हुई। हिन्दू लड़कियों, स्त्रियों को निशाना बना कर, आतंक द्वारा हिन्दुओं की संपत्ति पर कब्जा या धर्मांतरित कराना एक विशेष टेकनीक की तरह जम कर इस्तेमाल हुआ। तसलीमा नसरीन ने अपनी पुस्तक ‘लज्जा’ में इसी का प्रमाणिक चित्रण किया, जिस से उन पर मौत का फतवा भी आया।
निःशब्द और क्रमशः होने के कारण भी यह हिन्दू-विनाश दुनिया के लिए अनजान सा रहा है। जबकि वह बांग्लादेश से छिलक कर भारत में घुस चुका। वहाँ से जो हिन्दू भाग आए, वे पश्चिम बंगाल में भी 1977 ई. से ही उत्पीड़न का शिकार होते रहे हैं। डॉ. बेंकिन ने कई जगह जाकर यह देखा। इस्लामियों-कम्युनिस्टों की साँठ-गाँठ से हिन्दू शरणार्थियों की पुरानी बस्ती पर कब्जा कर, उन्हें पुनः भगा दिया जाता। मनचाही चीज छीनने के लिए बच्चों, लड़कियों के अपहरण की तकनीक यहाँ भी चालू है। सम्मिलित हिन्दू-मुस्लिम आबादी वाले कई गाँव धीरे-धीरे पूरी तरह मुस्लिम में बदल गए। वहाँ के लावारिस मंदिर इस का संकेत करते हैं। डॉ. बेंकिन के हिन्दू शरणार्थियों से कहीं मिलने जाने पर (2008 ई.) माकपा कार्यकर्ता वहाँ पहुँच कर लोगों को धमकाते कि कुछ न कहें। फिर भी यदि कोई बोलता तो वे बाधा देते या विवाद करने लगते।
डॉ, बेंकिन ने इस की कल्पना भी नहीं की थी! उन्होंने समझा था कि बंगलादेशी हिन्दू शरणार्थियों की दुर्दशा जानने, उसे दुनिया तक पहुँचाने में उन्हें भारत से सहयोग मिलेगा। आखिर भारत दुनिया का अकेला प्रमुख हिन्दू देश है। अतः पड़ोस में हिन्दू-संहार रोकने और शरणार्थियों का आना बंद करने की उसे चिंता होगी। किन्तु उन्हें उलटा अनुभव हुआ। पश्चिम बंगाल के कम्युनिस्ट सत्ताधारियों से कार्यकर्ताओं को निर्देश मिला हुआ था कि वे डॉ. बेंकिन को शरणार्थियों की आप-बीतियाँ न जानने दें। वे क्या छिपाना चाहते थे?
भारत के गैर-कम्युनिस्ट दल और प्रभावशाली लोग भी बंगलादेशी हिन्दुओं के प्रति उदासीन हैं। जबकि उन्हें मालूम है कि वहाँ हिन्दुओं का अस्तित्व खतरे में है। भारत की उदासीनता से ही यूरोपीय, अमेरिकी सरकारें, अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियां भी इसे महत्व नहीं देतीं।
हालांकि, यह भी ऐतिहासिक अनुभव है कि अत्यंत भयावह नरसंहारों की खबरों पर शुरू में विश्वास ही नहीं किया जाता! रूस में स्टालिन और जर्मनी में हिटलर द्वारा नरसंहारों पर वर्षों यही स्थिति रही थी। तब तक समूह-हत्यारे काफी कुछ कर गुजरते हैं। इस बीच, वामपंथी, सेकुलर, मल्टीकल्चरल बुद्धिजीवी भ्रामक प्रचार भी करते हैं। बांग्लादेश में हिन्दू-संहार पर यह दोनों बातें दशकों बाद भी जारी हैं, जो एक विश्व-रिकॉर्ड है! ऐसी स्थिति में डॉ. बेंकिन का संघर्ष अत्यंत मूल्यवान है।
कुछ लोग नाजीवाद के हाथों यहूदियों और जिहाद के हाथों हिन्दुओं के संहार की तुलना को बढ़ाना-चढ़ाना मानते हैं। पर डॉ. बेंकिन के शब्दों में, “1930 के दशक के यहूदियों और 1950 के दशक से बांग्लादेश [और कश्मीर भी] के हिंदुओं की तुलना करने पर सारे संकेत, प्रमाण पहचानना सत्यनिष्ठा की माँग करता है। साहस की भी, क्योंकि सचाई समझ लेने पर कुछ करने का कर्तव्य बनता है। चाहे वह नेता हो, या बौद्धिक, या मीडिया।”
वस्तुतः बंगाल के दोनों भाग में हिन्दू क्रमशः मरते, घटते जा रहे हैं। इस का कारण बहुमुखी जिहाद है। बांग्लादेश में हिन्दुओं की समाप्ति के बाद यहां बंगाल में वही होगा, जो कश्मीर में हो चुका। उसी प्रक्रिया से, जिसे नेता, मीडिया और बुद्धिजीवी देखना नहीं चाहते या अनदेखा करते हैं। बंगलादेशी हिन्दुओं पर उन की चुप्पी ने ही इस संहार को जारी रखा। किन्तु वहाँ पूरा हो जाने पर सब की बारी आएगी। स्टालिन, हिटलर, और जिहाद – तीनों की खुली घोषणाएं और वैश्विक लक्ष्य तुलनीय हैं।
डॉ. बेंकिन के अनुसार, बांग्लादेश में इस्लामी और सरकारी लोग इस विश्वास से चलाते हैं कि उन्हें कोई रोकने-टोकने वाला नहीं। क्योंकि किसी भी हस्तक्षेप से वे रक्षात्मक हो जाते हैं। अर्थात यदि दुनिया चिंता करती, या अभी भी करे, तो स्थिति सुधर सकती है। बंगलादेश कई मामलों में बाहरी सहायता पर निर्भर है। अतः वह एक न्यायोचित मुद्दे पर वैश्विक दबाव झेलने की स्थिति में नहीं है। इस के बावजूद बांग्लादेश के हिंदुओं का क्रमशः संहार जारी रहना अत्यंत शोचनीय है।