अभी एक फ़िल्म आई जिसमे खलनायक त्रिपुण्ड (तिलक) लगाए हुए है। यह फ़िल्म सुपर फ्लॉप हो गई है। यह जागृति का शुभ संकेत है।
अधिकांश लोग मानते हैं कि परदे पर दिखाई देने वाला अभिनेता सच में भी इतना अधिक शक्तिशाली होगा जैसा वह फिल्म में दिखाया जाता है.उनका मानना है कि फिल्म के हीरो हीरोइन सच में उतने ही ईमानदार/ दयालु/ बुद्धिमान व चरित्रवान होते हैं जितने कि उन्हें परदे पर दिखाया गया है.
परन्तु सत्य इससे अलग है। फिल्मों के सितारे निजी जिन्दगी में हीरो नहीं होते. अमरीशपुरी, प्रेम चोपड़ा या शक्ति कपूर वास्तविक जीवन मे अपराधी नहीं होते। परन्तु सामान्य व्यक्ति यही मानता है। इसलिए कभी किसी खलनायक को विज्ञापन में नहीं लिया जाता।
पद्म श्री से सम्मानित फिल्मी हीरो यह बताने के 5 10-करोड़ रूपए लेता है कि आपके 10 रूपए के विमल पान मसाला मे 3 लाख रूपए किलो का केसर है। मैगी का सैम्पल फेल होने पर एक हीरोइन ने कहा कि हमारे घर में कोई लैब नही लगी है। सच यह है कि आपको उल्लू बना हैं। फेयर एंड लवली से कोई गोरा नहीं हुआ। गोरेपन की क्रीम में कभी काली हीरोइन नहीं ली जाती। होर्लिक्स और कोम्प्लान आदि से कोई लम्बा नहीं होता। थम्सअप (Thums UP) में कोई तूफ़ान नहीं होता जैसा सलमान खान बताता है. ड्यू पीने से डर नहीं भागता. स्प्राइट पीने से कोई स्मार्ट नहीं होता. मेन्टोस से दिमाग की बत्ती नहीं जलती.
सलीम जावेद लिखित फिल्म में शोले फिल्म में वृद्ध मुसलमान (ए के हंगल) को बेटे की मौत पर नमाज के लिए जाते दिखाते हैं तो नायक वीरू (धर्मेन्द्र) को शिव मन्दिर में लडकी छेड़ते हुए दिखाना.
बालीवुड और टीवी सीरियल के नजरिए से हिन्दू को कैसे देखा जाता है एक झलक:—-
ब्राह्मण – ढोंगी पंडित, लुटेरा,
राजपूत – अक्खड़, मुच्छड़, क्रूर, बलात्कारी
वैश्य या साहूकार – लोभी, कंजूस,
गरीब हिन्दू – कुछ पैसो या शराब की लालच में बेटी को बेच देने वाला चाचा या झूठी गवाही देने वाला
जबकि दूसरी तरफ मुस्लिम- अल्लाह का नेक बन्दा, नमाजी, साहसी, वचनबद्ध, हीरो-हीरोइन की मदद करने वाला टिपिकल रहीम चाचा या पठान।
ईसाई – जीसस जैसा प्रेम, अपनत्व, हर बात पर क्रॉस बना कर प्रार्थना करते रहना।
ये बॉलीवुड इंडस्ट्री, सिर्फ हमारे धर्म, समाज और संस्कृति पर घात करने का सुनियोजित षड्यंत्र है और वह भी हमारे ही धन से ।
सलीम – जावेद की जोड़ी की लिखी हुई फिल्मो को देखे, तो उसमे आपको अक्सर बहुत ही चालाकी से हिन्दू धर्म का मजाक तथा मुस्लिम / इसाई / साईं बाबा को महान दिखाया जाता मिलेगा.
इनकी लगभग हर फिल्म में एक महान मुस्लिम चरित्र अवश्य होता है और हिन्दू मंदिर का मजाक तथा संत के रूप में पाखंडी ठग देखने को मिलते है.
“दीवार”* का अमिताभ बच्चन नास्तिक है और वो भगवान का प्रसाद तक नहीं खाना चाहता है, लेकिन 786 लिखे हुए बिल्ले को हमेशा अपनी जेब में रखता है और वो बिल्ला भी बार बार अमिताभ बच्चन की जान बचाता है.
जंजीर”* में भी अमिताभ नास्तिक है और जया भगवान से नाराज होकर गाना गाती है लेकिन शेरखान एक सच्चा इंसान है.
फिल्म *”शान”* में अमिताभ बच्चन और शशि कपूर साधु के वेश में जनता को ठगते है लेकिन इसी फिल्म में “अब्दुल” जैसा सच्चा इंसान है जो सच्चाई के लिए जान दे देता है.
क्या आपको बॉलीवुड की वे फिल्मे याद हैं जिनमे फादर को दया और प्रेम का मूर्तिमान स्वरूप दिखाया जाता था तो हिन्दू सन्यासियों को अपराधी. जो मीडिया आसाराम पर पागल हो गया था वह आज चुप है. बॉलीवुड प्राय: सदा फिल्मों में हिन्दू पात्रों के नाम वाले कलाकारों को किसी इस्लामिक मज़ार या चर्च में प्रार्थना करते दिखाता हैं।
किसी मुसलिम या ईसाई पात्र को कभी किसी हिन्दू मंदिर में जाकर प्रार्थना करता दिखाना तो बहुत दूर की बात हैं। इसके विपरीत वह सदा हिन्दू मान्यताओं का परिहास जैसे पंडित को या भगवान की मूर्ति को रिश्वत देना, शादी के फेरे जल्दी जल्दी करवाना, मंदिर में लड़कियाँ छेड़ना, हनुमान जी अथवा श्री कृष्णा जैसे महान पात्रों के नाम पर चुटकुले छोड़ना आदि आदि दिखाता हैं। परिणाम यह निकलता है कि हिन्दुओं के लड़के लड़कियां हिन्दू धर्म को ही कभी गंभीरता से लेना बंद कर देते है।
यहाँ मैं सिनेमा विज्ञापन के इतिहास की एक रोचक जानकारी देता हूँ. सिनेमा हाल के शुरुआती दिनों में यूरोप के सिनेमा में सिगरेट का विज्ञापन दिखाया जाता. उस विज्ञापन में एक घुड़सवार घोड़े पर पर बैठा है. घोड़ा भी बहुत मन्द मन्द चल रहा है और सवार भी सुस्त दिखाई देता है. तभी घुड़सवार सिगरेट जलाता है. सिगरेट का कश लगाते ही घुड़सवार तन कर बैठ जाता है और घोड़ा तेजी से दौड़ने लगता है. इस विज्ञापन ने रातों रात सिगरेट की बिक्री कई गुना बढ़ गई.
25 साल पहले गुलशन कुमार सरे आम गोलियों से मार दिया गया क्योंकि इन्होंने दाऊद जैसे गुण्डो के आगे झुकने से मना कर दिया था। ये बॉलीवुड के इस्लामी करण में बहुत बड़ी बाधा थे। यह वह हिन्दू व्यापारी था जो अपना आयकर भरता था। कुछ वर्ष तक भारत का सबसे बड़ा आयकर देने वाला व्यक्ति रहा । क्योकि इसने दाऊद के आगे घुटने टेकने से इंकार कर दिया था इसलिए इसे जान से मार दिया गया। परंतु न तो भारत सरकार इसके कत्ल के आरोपी नदीम को भारत ला पाई और न ही इसके परिवार को न्याय मिला।
गुलशन कुमार की हत्या के ठीक 6 महीने बाद 1998 में साईं नाम के एक नए भगवान का अवतरण हुआ, इसके कुछ समय बाद 1999 में बीवी नंबर 1 फिल्म आई जिसमे साईं के साथ पहली बार राम को जोड़कर ॐ साईं राम गाना बनाया था, न किसी हिन्दू संगठन का इस पर ध्यान गया और न किसी ने इस पर आपत्ति की, पहला षड्यंत्र कामयाब
इस नए भगवान की एक खासियत थी, इसे लोग धर्मनिरपेक्ष अवतार कहते थे, जिसने हिन्दू मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया था, वो अलग बात है की उसी चिलम बाबा उर्फ़ साईं बाबा के समय में कई दंगे हुए, बंगाल विभाजन हुआ, मोपला दंगे हुए, मालाबार में हजारो हिन्दुओ को काटा और साईं के अल्लाह का भक्त बना दिया गया, अब इस नए भगवान की एक और खासियत थी, नाम हिन्दुओ का प्रयोग हो रहा था और जागरण में अल्लाह अल्लाह गाया जा रहा था
हिन्दुओं की संतानों की स्थिति अर्ध नास्तिक जैसी हो जाती है। जो केवल नाममात्र का हिन्दू बचता है। परन्तु उसका हिन्दू समाज की मान्यताओं एवं धर्मग्रंथों में कोई श्रद्धा नहीं रहती। ऐसी ही संतानें लव जिहाद और ईसाई धर्मान्तरण का शिकार बनती हैं।
क्या इसे हम बॉलीवुड जिहाद कहे तो कैसा रहेगा?