पूर्वोत्तर भारत को विकसित करने की चुनौती

पूर्वोतर भारत अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा को कहा जाता है। ये 8 राज्यों का क्षेत्रफल देश के कुल क्षेत्रफल का 8 प्रतिशत है।सिक्किम पूर्वोतर भारत का हिस्सा है, लेकिन इसे “सात बहनों” की श्रेणी में नहीं रखा गया  है। भौगोलिक रूप से एक-दूसरे से निकट होने की वजह से अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा को “सात बहनों”के नाम से जाना जाता है। पूर्वोतर भारत, विविधतापूर्ण सभ्यता-संस्कृति, परंपरा, वेश-भूषा, पर्व-त्योहार आदि के कारण बेहद ही समृद्ध है।

इन राज्यों की सीमायेँ बांग्लादेश, भूटान, म्याँमार, नेपाल, चीन आदि देशों से जुड़ी हुई हैं। ये राज्य,भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच रणनीतिक, सामरिक एवं कारोबारी संबंध को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। ये राज्य एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस (आसियान) के साथ भारत के संबंध को बेहतर बनाने में भी कारगार भूमिका निभा रहे हैं।

पूर्वोतर भारत पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी के निकट लंबाई में लगभग 60 किलोमीटरऔर चौड़ाई में 22 किलोमीटर वाले क्षेत्र, जिसे “सिलीगुड़ी कॉरीडोर” या “चिकेन नेक” के नाम से जाना जाता है के जरिये देश के अन्य प्रदेशों से जुड़पाता है। ये राज्य आपस में भी ठीक से जुड़े नहीं हैं। इन राज्यों के पिछड़ेपन का इसे एक बड़ा कारण माना जा सकता है। आजादी से पहले पूर्वोतर राज्यों का सारा कारोबार चटगाँव बंदरगाह के जरिये किया जाता था, जो अब बांग्लादेश का हिस्सा है। आजादी के बाद अगरतला और कोलकाता के बीच की दूरी 550 किलोमीटर से बढ़कर लगभग 1600 किलोमीटर हो गई, जिसके कारण कोलकाता बंदरगाह के जरिये कारोबार करना अब व्यावहारिक नहीं रहा।

गंभीर समस्याओं के समाधान हेतु प्रयास

पूर्वोतर राज्यों के विकास के लिए वर्ष 1971 में नॉर्थ ईस्टर्न काउंसिल और वर्ष 1995 में नॉर्थ ईस्टर्न डेवलपमेंट फाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड और वर्ष 2001 में उत्तर पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय का गठन किया गया था। बावजूद इसके,इन राज्यों में अपेक्षित विकास नहीं हो सका,क्योंकि पूर्वोत्तर राज्यों की समस्याओं को कभी भी सही तरीके से समझने की कोशिश नहीं की गई। जरूरत थी कि विकास की दिशा में आगे बढ़ने से पहले पूर्वोत्तर राज्यों के मौजूदा समस्याओं जैसे,अंतर्राजीय सीमा विवाद, उग्रवाद,राजनैतिक अस्थिरता आदि को अच्छी तरह से समझकर उसका स्थायी निदान ढूंढा जाता।

हालांकि,सत्ता में आने के बाद से मोदी सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों की समस्याओं को न सिर्फ समझने की कोशिश की,बल्कि उनके समूल नाश के लिए शिद्दत से कार्य भी कर रही है।

इस क्रम में असम, नागालैंड और मणिपुर के कुछ क्षेत्रों से आर्म्ड़ फोरसेज स्पेशल अधिनियम को हाल में हटाया गया है, जिसे वर्ष 1958 में उत्तर-पूर्वी राज्यों के नागा क्षेत्र में विद्रोह होने की वजह से लगाया गया था। त्रिपुरा में तो इस अधिनियम को 2015 में ही हटा दिया गया था। अरुणाचल प्रदेश के 3 जिलों को छोड़कर अन्य जिलों से इस अधिनियम को हटा दिया गया है।

अंतरराजीय सीमा विवादों को सुलझाने के क्रम में असम और मेघालयतथा असम व अरुणाचल प्रदेश के बीच के सीमा विवाद को सुलझाने की कोशिश की जा रही है। जनवरी 2020 में बोड़ो समझौता किया गया, 4 सितंबर 2021 को कार्बी आलगोंग समझौता को मूर्त रूप दिया गया औरअगस्त 2019 में त्रिपुरा के एनएलएफटी के साथ सरकार ने समझौता किया। तेईस साल पुराने बुरियांग संकट का भी समाधान किया गया है। असम में 3 दशक से अधिक समय से आफसा लगी हुई थी, जिसे भी हटा दिया गया है।

नब्बे के दशक में भारत ने “लुक ईस्ट नीति” को अपनाकर पूर्वोतर भारत की समस्याओं को दूर करने का प्रयास किया था, लेकिन तात्कालिक सरकारों को मामले में कोई सफलता नहीं मिली। मोदी सरकार “लुक ईस्ट नीति”की जगह “ईस्ट-एक्ट नीति”की संकल्पना को लेकर आई है। “लुक ईस्ट नीति” का फोकस दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ आर्थिक एकीकरण को बढ़ाना था, जो सिर्फ दक्षिण पूर्व एशिया तक सीमित था, जबकि “ईस्ट-एक्ट नीति” का फोकस आर्थिक और सुरक्षा एकीकरण है, जिसका दायरा दक्षिण पूर्व एशिया के साथ-साथ पूर्वी एशिया तक फैला हुआ है। माना जा रहा है कि मोदी सरकार की इस पहल से पूर्वोतर राज्यों में आर्थिक खुशहाली के द्वार खुलेंगे।

अन्य समस्यायेँ

हिमालय की वादियों में बसे होने के कारण पूर्वोत्तर राज्यों में भूमि समतल नहीं है, जिसके कारण सड़क और रेल मार्ग से ये राज्य आपस में नहीं जुड़ सके हैं। यहाँ, बिजली, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा की भी समुचित व्यवस्था नहीं है। आधारभूत संरचना के विकसित नहीं होने के कारण इन प्रदेशों में उद्योग-धंधों का अभाव है। बाजार से ज्यादा दूरी होने की वजह से पूर्वोत्तर राज्यों के किसानों और उधमियों को अपने उत्पादों की या तो वाजिब कीमत नहीं मिल पा रही है या फिर समय पर उत्पादों के बाजार नहीं पहुँच पाने के कारण उन्हें भारी नुकसानउठाना पड़ रहा है।

लालफ़ीताशाही और राजनैतिक अस्थिरता की वजह से सरकारी परियोजनाओंके पूरा होने में देरी होती है और लागत में अकूत इजाफा हो जाता है, जिससे वे अधूरी रह जाती हैं। सीमित विकास के कारण इन प्रदेशों में उद्योगों को संचालित करना अव्यवहारिक और खर्चीला है। परिवहन एवं बिजली की अनुपलब्धता की वजह से यहाँ निजी निवेश करने से उद्योगपति बचते रहे हैं और सरकार ने भी इस ओर कभी गंभीरता से ध्यान नहीं दिया है। इसलिए, यहाँ बड़े उद्योगों का विकास नहीं हो पाया है, जिसके कारण यहाँ के युवा रोजगार के लिए देश के दूसरे प्रदेशों में पलायन करने के लिए मजबूर हैं।

भारत विविधताओं से परिपूर्ण देश है। यहाँ हर 12 कोस में भाषा और बोली दोनों बदल जाती है। पूर्वोतर राज्यों में बहुत सारे जन-जातीय समुदाय रहते हैं, जिनकी भाषा, बोली और संस्कृति अलग-अलग है और वे अपनी सभ्यता और संस्कृति को लेकर बहुत ज्यादा संवेदनशील हैं। इसी वजह से कई बार यहाँ के लोग किसी भी प्रकार के बदलाव का विरोध करते हैं। कई बार  विकास से जुड़े कार्यों को रोकने की भी वे कोशिश करते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी सभ्यता और संस्कृति के साथ छेड़-छाड़ किया जा रहा है।

विकास को सुनिश्चित करने के लिए सरकारी पहल

राष्ट्रीय बाँस मिशनके तहत पूर्वोतर राज्यों में बाँस की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि किसानों और कारीगरों को रोजगार मिल सके। कुटीर उद्योग के विकास पर भी बल दिया जा रहा है। वर्ष 2018 में असम के डिब्रूगढ़ को अरुणाचल प्रदेश से जोड़ने के लिये ब्रह्मपुत्र नदी पर 4.94 किलोमीटर लंबाई वाली बोगीबील पुल को वेल्डिंग करके बनाया गया है, ताकि संपर्क सूत्र मजबूत होने से कारोबार को प्रोत्साहन मिल सके। यह देश का सबसे लंबा रेल और सड़क पुल है।

सड़कों का जाल बिछाने के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत सड़कें बनाई जा रही हैं। पूर्वोत्तर राज्यों में वायु परिवहन को भी बेहतर बनाने की कोशिश की जा रही है। मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश को आपस में जोड़ने के लिए इम्फाल में दुनिया का सबसे ऊंचा पियर रेलवे पुल बनाया जा रहा है, जिसके वर्ष 2023 तक पूरा होने की संभावना है। इस पुल के बनने के बाद कारोबार और पर्यटन दोनों को पंख लगेंगे। इससे पड़ोसी देशों बर्मा, म्यांमार और भूटान से भी कारोबार बढ़ने की उम्मीद है। मणिपुर में नॉर्थ-ईस्ट की सबसे लंबी रेलवे टनल बनाई जा रही है, जिसके वर्ष 2023 में पूरा होने की संभावना है। वर्ष 2023 तक सिक्किम को भी रेल नेटवर्क से जोड़ने की योजना है।

पूर्वोत्तर राज्यों में 4000 किलोमीटर सड़कें,  2011 किलोमीटर की 20 रेलवे परियोजनाएंऔर 15 हवाई परियोजनाओं को विकसित किया जा रहा है। भारत-बांग्लादेश की प्रोटोकॉल मार्ग की संख्या को 8 से बढ़ाकर 10 कर दिया गया है। पूर्वोत्तर राज्यों के विकास हेतु एक मल्टीमॉडल हब विकसित किया जा रहा है, जिसके तहत पांडु में 1 जहाज़ मरम्मत बंदरगाह, 4 पर्यटक घाट और गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र नदी पर 11 फ्लोटिंग टर्मिनल का निर्माण किया जा रहा है। प्रधानमंत्री गति शक्ति  योजना के तहत उत्तर-पूर्व की ज़रूरतों पर आधारित सामाजिक विकास परियोजनाओं के लिये बुनियादी ढांचे को विकसित करने का भी प्रस्ताव है।

प्राकृतिक संसाधन

पूर्वोत्तर राज्यों में प्राकृतिक संसाधनों की कोई कमी नहीं है। यहाँ समृद्ध वन क्षेत्र,तेल और गैस के भंडारहैं। इन राज्यों में बांस की खेती-किसानी करने के व्यापक अवसर हैं। इसलिए,बाँस आधारित उद्योगों को यहाँ विकसित करना लाभदायक हो सकता है। इन प्रदेशों में नदियों का भी एक मज़बूत तंत्र है,जिसके समुचित प्रबंधन से ऊर्जा उत्पादन, मछली पालन, खेती-किसानी आदिकिया जा सकता है। भारत में उपलब्ध कुल जल संसाधनों में से 34 प्रतिशत इन्हीं राज्यों में उपलब्ध है।

विकास में महिलाओं की भागीदारी

पूर्वोतर राज्यों में महिलाओं की आर्थिक गतिविधियों में संलिप्तता देश के दूसरे राज्यों से बेहतर है। आर्थिक गतिविधियों में सिक्किम की महिलाओं की 15 से 59 आयुवर्ग में ग्रामीण क्षेत्र में 70 प्रतिशत की भागीदारी है, जबकि शहरी क्षेत्र में 39 प्रतिशत की। पूर्वोत्तर राज्यों में महिलाओं की आर्थिक गतिविधियों में भागीदारी के मामले में मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मणिपुर क्रमशः दूसरे, तीसरे, चौथे और पांचवें स्थान पर हैं। देश के अन्य राज्यों की तुलना में पूर्वोतर राज्यों की महिलाएं घरों में पुरुषों के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर काम कर रही हैं। मामले में नागालैंड की महिलाएं पहले स्थान पर हैं। साक्षरता के मामले में पूर्वोत्तर राज्यों की महिलायेँ,राष्ट्रीय औसत से बेहतर हैं। वर्ष2011 की जनगणना के अनुसार पूर्वोतर राज्यों में मिजोरम की महिलाएं सबसे अधिक साक्षर हैं। इस क्रम में दूसरे स्थान पर त्रिपुरा की महिलाएं हैं,जबकि तीसरे स्थान पर नागालैंड की महिलाएं हैं।

पड़ोसी देशों के बाजार का इस्तेमाल

पूर्वी भारत में घरेलू बाज़ार है, लेकिन सभी उत्पादित उत्पादों की खरीद-फरोख्त वहाँ नहीं की जा सकती है। देश के दूसरे राज्य के बाज़ारों तक जाने का रास्ता सिर्फ “चिकेन नेक” या सिलीगुड़ी कॉरीडोर से होकर जाता है। चूंकि, सिलीगुड़ी दूर है,विकसित नहीं है और वहाँ बंदरगाह भी नहीं है, इसलिए,वहाँ से पूर्वोतर राज्यों के उत्पादों को तुरत-फुरत में एक बड़े बाजार तक नहीं पहुंचाया जा सकता है। इस वजह से पूर्व में स्थित पड़ोसी देशों जैसे,बांग्लादेश और नेपाल जैसे सीमावर्ती देशों के बाज़ारों का इस्तेमाल पूर्वोतर राज्यों के उत्पादों की खपत के लिए किया जा सकता है।

युवाओं को रोजगार

किसी भी प्रदेश के विकास में वहाँ के युवाओं की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है। पूर्वोतर राज्यों के युवा शिक्षित हैं और वे अँग्रेजी बोल भी सकते हैं और समझ भी सकते हैं। युवाओं का कौशल विकास करके पूर्वोतर राज्यों में कुटीर उद्योगों को और भी सशक्त बनाया जा सकता है। अँग्रेजी भाषा में प्रवीणता होने की वजह से वे अपने उत्पादों की मार्केटिंग भी कर सकते हैं। कॉल सेंटर में भी यहाँ के युवा बेहतर तरीके से काम कर सकते हैं। इन राज्यों के युवाओं की रुचि खेलों में भी है। उन्हें प्रोत्साहित करके भारत अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में मेडलों की संख्या को बढ़ा सकता है।

पर्यटन की संभावना

पूर्वोत्तर भारत में कई वन्यजीव अभयारण्यजैसे,काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान,मानस राष्ट्रीय उद्यान,  असम में डिब्रू सैखोवा, अरुणाचल प्रदेश में नामदफा, मेघालय में बालपक्रम, मणिपुर में केबुल लामजाओ, नागालैंड में इटांकी, सिक्किम में कंचनजंगा आदि हैं। चूंकि,पूर्वोत्तर राज्यों की प्राकृतिक आबोहवा पर्यटन के अनुकूल है। इसलिए, अगर यहाँ पर्यटकों के लिए सुविधाएं विकसित की जायेंगी तो राज्य सरकारों को पर्यटन से काफी आय हो सकती है। लिहाजा,पूर्वोत्तर राज्यों में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पर्यटन मंत्रालय ने “स्वदेश दर्शन” योजना शुरू की है, जिसके तहत आगामी 5 सालों में इन राज्यों में पर्यटन को विकसित करने के लिए 140 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे।

महंगाई के कारक

नजदीक में बाजार नहीं होने के कारण पूर्वोतर राज्यों के उपभोक्ताओं को हर सामान की ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है, क्योंकि दूरी की वजह से सामानों की लागत बढ़ जाती है। पूर्वोतर राज्यों में आधारभूत संरचना का विकास नहीं होने,संपर्क सूत्र के मजबूत नहीं होने,पूर्वोत्तर राज्यों में मुद्रास्फीति के मापने के कारकों के भिन्न होने आदि के कारण भी यहाँ महंगाई अन्य राज्यों की तुलना में हमेशा अधिक रहती है।

निष्कर्ष

पूर्वोत्तर राज्यों के विकास को सुनिश्चित करने के लिये वहाँ की भौगोलिक बाधाओं को समझना जरूरी है। चूंकि, इन राज्यों की नजदीकी बाजार तक सीधी पहुँच नहीं है, इसलिए,अन्य निकटवर्ती राज्यों जैसे,उत्तरी बंगाल और उत्तरी बिहार के कुछ हिस्से के बाज़ारों के बीच संपर्क मार्ग को बेहतर बनाने की जरूरत है।

पूर्वोत्तर राज्यों की भौगोलिक स्थिति और जैव विविधता देश के अन्य राज्यों से भिन्न है। अस्तु, यहाँ प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित विकास की संभावनाओं को तलाशकर उस दिशा में आगे कदम बढ़ाया जाना चाहिए। पूर्वोतर राज्यों में बाँस की कई प्रजातियाँ बहुतायत मात्रा में पाई जाती हैं। देश की कुल बाँस उत्पादन का दो-तिहाई इन्हीं 8 राज्यों में उत्पादित किया जाता है।लिहाजा, यहाँ बांस आधारित उद्योगों को बढ़ावा दिया जा सकता है।

पूर्वोतर राज्यों के विकास के लिए जरूरत है,प्राकृतिक संसाधनों के समुचित प्रबंधन की और उनसे बने उत्पादों को एक निश्चित समय-सीमा के अंदर बाजार तक पहुंचाने की। यह भी जरूरी है कि पात्र युवाओं को विविध सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जाये और उन्हें कौशलयुक्त भी बनाया जाए। इन राज्यों को सीमा से लगे पड़ोसी देशों के बाजार का इस्तेमाल करने के लिए भी राज्य और केंद्र सरकारों को उपाय करनीचाहिए।

देखा जाये तो आजादी मिलने के बाद भी पूर्वोत्तर राज्यों की समस्याओं को दूर करने के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किए गए। हालांकि,मौजूदा दौर में मोदी सरकार सत्ता में आने के बाद से हीपूर्वोतर राज्यों की समस्याओं को दूर करने के साथ-साथ उनके सांस्कृतिक धरोहरों की रक्षा करने और समावेशी विकास को सुनिश्चित करने के लिए लगातार कोशिश कर रही है।

मोदी सरकार के प्रयासों की वजह से ही पूर्वोत्तर राज्यों में आज शांति कायम है और वहाँ पर्यटकों के आवक में इजाफा हुआ है। मौजूदा हालात में असम में हाफलोंग, अरुणाचल प्रदेश में तवांग,उत्तरी व दक्षिणी सिक्किम आदि जगहों में पर्यटकों के जाने का सिनसिला लगातार बढ़ रहा है।

-सतीश सिंह

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