*युवा शक्ति का पर्व कांवड़ यात्रा डाक कावड़

उत्तराखण्ड से लेकर बिहार तक आपको अनेक रूप में भोले बाबा के भक्त दिखाई दे जाएंगे। बहुत लंबे समय से सोच रही थी इन कावड़ियों के बारे में कुछ लिखूंगी। आपने बहुत सारे लोगों को इन कावड़ यात्रा पर जाने वाले युवाओं के बारे में तरह तरह की बातें करते हुए सुना होगा कोई कहता होगा धर्म के नाम पर हो हल्ला मचा रखा है किसी को ट्रैफिक में परेशानी होती होगी तो कोई गंगाजल लाने की अति प्राचीन परंपरा को ही वैज्ञानिक चश्मा पहनाने की कोशिश कर रहा होगा। आपको ऐसे अनेक घनघोर विद्वान मिलेंगे जो कांवड़ यात्रा पर टिप्पणी कर रहे होंगे।

मेरे जीवन की पिछले 10 वर्ष ग्रेटर नोएडा के ग्रामीण समाज के आसपास बीते। इस दौरान मुझे गंगा जमुना के बीच स्थित इस उपजाऊ दुआबा क्षेत्र के लोग और उनकी परंपराओं को नजदीक से देखने समझने का अवसर मिला। ये पूरे भारत में पाया जाने वाला सबसे उपजाऊ क्षेत्र है। जहां धन-धान्य से लेकर पशुधन की भी बहुतायत में संख्या मिलती है। एक ऐसा क्षेत्र जिस की माटी सोना उगलती है और जिसके हर गांव से युवा फौज के लिए जांबाज सिपाही तैयार करते हैं। खाने को बढ़िया अनाज और दूध घी की फराहवानी यहां के युवाओं को बलशाली और ऊर्जा से भरपूर बनाती है। इतनी जबरदस्त ऊर्जा को संतुलित करने और सही दिशा में लगाने के लिए एक धर्म ही है जो बड़े काम आता है।

इन ग्रामीण क्षेत्रों का सामाजिक ताना-बाना बड़ा अद्भुत है यहां पुलिस का नियम नहीं बल्कि समाज की अपनी ग्रामीण व्यवस्था ही काम करती है। एक ऐसा समाज जहां पर महिलाएं बराबर से खेतों में काम करती हैं बुग्गी चलाती हैं। इन गांवों से गुजरते हुए कितनी दफा मैंने शाम के धुंधलके में भी महिलाओं को खेतों से वापस लौटते अकेले देखा है। कहीं दूर मढैया के पास कितनी बार मैंने अकेली महिलाओं को गोबर पात्ते हुए देखा है, पशुओं का चारा लाते हुए देखा है। ऐसे में कितना मुश्किल काम है कि जहां पुरुष पौरुष बल से भरपूर हो और उसके बावजूद गांव में महिला सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके वह भी बिना अतिरिक्त बल के प्रयोग के। ये केवल वहां रहने वाले ही समझ सकते हैं। आइए एक नज़र कांवड़ यात्रा की परतों पर डालते हैं।

कांवड़ यात्रा एक बेहतरीन मिसाल प्रस्तुत करती है टीम भावना और आपसी समन्वय की। जो भी युवा कावड़ लेने जाते हैं वह अपने पैसे से कावड़ यात्रा करते हैं। पिछले दिनों मेरी मुलाकात ऐसे ही एक कावड़ यात्रा पर गए युवा के पिताजी से हुई जिन्होंने मेरे बहुत सारे सवालों का जवाब दिया। उनके अनुसार एक डाक कावड़ लाने में लगभग 35 लड़के, आठ मोटरसाइकिल है, दो ट्रक, एक जनरेटर 2 ड्रम पानी के और खाने पीने का सामान लगता है जिसका अनुमानित वय लगभग एक से डेढ़ लाख रुपए होता है।

यह डाक कावड़ बिना रुके बिना थके हरिद्वार से गंगाजल लेकर अपने गांव की दूरी यह युवा दौड़ते हुए पूरी करते हैं। यह दौड़ देखने लायक है इस दौड़ में ऐसे युवा भाग लेते हैं जो स्वयं को भारतीय फौज के लिए तैयार कर रहे हैं। सही मायने में देखा जाए तो यह यात्रा भविष्य के होने वाले भारतीय फौज में भर्ती के लिए अपनी तैयारियों को जांचने परखने की यात्रा भी मानी जाती है।
जब यह जल लेकर निकलते हैं तो एक लड़का हाथ में जल लिए सबसे आगे दौड़ रहा होता है। उसके बराबर से दो मोटरसाइकिल में दौड़ रही होती है जिनके पीछे और लड़के बैठे होते हैं। जितनी दूरी तक यह पहला लड़का दौड़ सकता है दौड़ता है। जैसे ही वह थकता है तुरंत साथ चल रही मोटर सायकिल से दूसरा लड़का उसके हाथ से जल ले उसके स्थान पर दौड़ने लगता है। इस प्रकार यह एक के बाद एक अपनी पोजीशन बदलते जाते हैं और पूरा लगभग 150 से लेकर 200 तक की दूरी बिना रुके तय करते हैं।
इनके साथ चलने वाला तेज़ आवाज़ में डीजे us ऊर्जा पूर्ण वातावरण को टूटने नहीं देता।
बहुत बार कावड़ियों पर यह आरोप लगता रहा है कि वह नशा करते हैं या वह सड़क पर मारपीट करते हैं। वास्तव में ऐसा नहीं है कांवड़ लाने वाले को कुछ विशेष नियमों का पालन करना होता है जिसमें हिंसा की कोई गुंजाइश नहीं है।
यह लोग जो हल्ला करते हैं इसका सीधा उद्देश्य रास्ते को साफ करना होता है ताकि यह जो तेज रफ्तार से दौड़ने वाले कावड़िए हैं इनसे कोई टकरा ना जाए।

कावड़ लाने वाला व्यक्ति किसी को गाली नहीं दे सकता वह आपस में भी यदि एक दूसरे को पुकारेंगे तो उसके नाम से पहले वह भोले शब्द का प्रयोग करते हैं। कावड़ ले जाने वाला जो जत्था होता है उसका एक टीम लीडर होता है जो यह सुनिश्चित करता है कि पूरी टीम नियमों का पालन करें और कोई लापरवाही ना करें ऐसे में यदि किसी भोले से कोई चूक हो गई है किसी नियम की अनदेखी हो गई है तो उसे तुरंत दंड देना पड़ता है और वह दंड मंदिर में चढ़ावे के रूप में चढ़ाया जाता है।

जब गंगाजल भरकर यह कावड़िया चलते हैं तो उनके नियमों में एक नियम यह भी है कि यदि उनको शौचालय जाना पड़ेगा तो उन्हें तुरंत नहाना होगा ऐसे में यह जो 8 मोटरसाइकिल सवार हैं यह अलग-अलग जिम्मेदारियां निभाते हैं यदि कोई भोला लघुशंका के लिए जाता है तो उसे स्नान करवा कर पुनः दौड़ने वाले जत्थे में शामिल करने की जिम्मेदारी ये लोग उठाते हैं।
युवाओं का ऐसा अनोखा तालमेल और कहीं देखने को नहीं मिलता। हमारे देश का दुर्भाग्य यह है कि हम विदेशों के बहुत सारे रूरल स्पोर्ट्स तो सराहते हैं जैसे बुल रेस या फिर टमातिलिनो फेस्टिवल आदि लेकिन हम अपने परंपरागत उत्सवों में सिर्फ कमियां ही देखते हैं।

इन ऊर्जा से भरपूर युवाओं को भोलेनाथ के साथ जोड़कर कावड़ यात्रा की परंपरा सदियों से चली आ रही है। ये हमारे ग्राम्य जीवन का एक लोक उत्सव है। आप जब तक इस लोक उत्सव को नजदीक से नहीं दिखेंगे तब तक आपको यह लोग फ़ूहड़ और भगवान के नाम पर हो हल्ला मचाने वाले ही नजर आएंगे।
दक्षिण भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे अनेक पारंपरिक उत्सव मनाए जाते हैं जहां युवाओं के बाहुबल, पशुओं और समृद्धि का जोर शोर से प्रदर्शन गर्व के साथ किया जाता है।
अगली बार जब आप इन कांवड़ियों को देखें तो स्मरण करें शिव की बारात का। तब शायद आपको इनके प्रति दूसरी दृष्टि मिलेगी।

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