सन 1857 के विद्रोह को जब फिरंगी हुक्मरानों ने कुचल दिया था तो भारत में राष्ट्रवाद का उदय ही न हो इसके लिए उन्होंने कई इन्तेज़ामत किये | भारत की शिक्षा व्यवस्था का विदेशीकरण कर डाला गया था | रोजगार से जुड़ी चीज़ें सिखाई ही नहीं जाती थी | मैकले मॉडल का मुख्य उद्देश्य ही यही था कि शिक्षा व्यवस्था से ऐसे भारतीय पैदा किये जाएँ जो दिखने में, रहन सहन के तरीकों में तो भले ही भारतीय हों मगर मानसिक तौर पर वो फिरंगी गुलाम ही रहें | मैकले ने खुद अपनी चिट्ठियों में ऐसी ही शिक्षा व्यवस्था के विकास की बातें की हैं |
हथियारों पर लाइसेंस की प्रक्रिया भी उसी दौर में आई थी | अखाड़ों पर पाबंदियां लगाई गई थी, हथियार रखने और चलाना सीखने की मनाही थी | इस से जातिवाद और छुआ-छूत को बढ़ावा देने में भी मदद मिलती थी | इस समय जब ऐसा प्रचार शुरू किया गया कि भाई युद्ध कला तो सिर्फ राजपूतों को सिखाई जाती थी, तो दो सौ सालों में लोगों को इस झूठ पर भरोसा भी होने लगा | वैसे जो लोग बनारस के मणिकर्णिका घाट तक गए हैं, उन्होंने शायद डोम राजा का अखाड़ा भी देखा होगा | मैकले के मानस पुत्रों को ये भी बताना चाहिए कि अगर युद्ध कला सिर्फ राजपूत / क्षत्रिय जाति के लोग सीखते थे तो ये ज्यादातर अखाड़े उन जाति के लोगों के क्यों हैं जिन्हें अछूत माना जाता है ? फिर सवाल ये भी है कि अगर इन लोगों को छूने पर पाबन्दी थी, तो भला इन जगहों पर बिना छुए कुश्ती सीखते कैसे होंगे “सवर्ण” ?
सन 57 का विद्रोह कुचल दिया गया था और भारत 50 साल में युद्ध के लायक भी नहीं रह गया | लेकिन फिर भी करीब 50 साल में राष्ट्रीयता की भावना फिर से जागने लगी | 1915-1920 के दौर में जब गाँधी जी भारत आ गए थे और कांग्रेस के झंडे तले होम रूल का आन्दोलन जोर पकड़ने लगा था, तो लोग फिर से सड़कों पर उतरने लगे थे | उस समय के कई तथाकथित बुद्धिजीवी मानते थे कि “हिन्दुओं की कौम” तो मिट चुकी है, इनका लड़ने भिड़ने का दम नहीं रह गया | ऐसे ही दौर में एक प्रमुख क्रन्तिकारी पार्टी के सरगना अपने फिरंगी आकाओं को चिट्ठी लिख कर, रिपोर्ट भेजकर ये बताते थे कि कैसे वो इस आन्दोलन को कुचलने में मदद करके अपने फिरंगी हुक्मरानों की मदद कर रहे हैं !
ये वो दौर था जब हिन्दुओं से कुछ नहीं हो पायेगा ये बताने के लिए एक विशेष राजनैतिक विचारधारा के बुद्धिपिशाचों ने “राम भरोसे हिन्दू होटल” का जुमला उछालना शुरु किया | अगर आप सोचते हैं कि ये अजीब सा जुमला आया कहाँ से ? तो जनाब ये तस्वीर 6 अप्रैल 1919 की है जिसमें फिरंगी शासन के विरोध में लोग बिना किसी स्थापित नेतृत्व के ही सड़कों पर उतरना शुरू हो चुके थे | इनसे कुछ नहीं हो पायेगा ये कहने के लिए इस तस्वीर में पीछे दिख रहे होटल का नाम जुमले की तरह उछाला गया था | क्या होगा ये पता नहीं, या कुछ भी नहीं हो पायेगा, सब फर्जी शोर है ये साबित करने के लिए एक आयातित विदेशी विचारधारा के बुद्धि-पिशाचों ने इस तरह “राम भरोसे हिन्दू होटल” का जुमला शुरू किया |
– आनन्द कुमार