हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
कनार्टक में भाजपा के लौटने का अवसर

कनार्टक में भाजपा के लौटने का अवसर

by धर्मेन्द्र पाण्डेय
in राजनीति, हास्य विशेषांक-मई २०१८
0

१२ मई को कर्नाटक में विधान सभा चुनाव हो रहे हैं। देश के ज्यादातर हिस्सों में परचम फैला चुकी भाजपा अपने दक्षिण के गढ़ को वापस पाने की कोशिश में लगी है, वहीं मृतपाय हो चुकी कांग्रेस यहां होने वाली जीत के बल पर भारतीय राजनीति में अपनी उपस्थिति को दर्जाने की जुगत में है। भले ही सिद्धारमैया की सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगे हों पर मठों से संचालित होने वाले इस राज्य की सत्ता की डगर को दोनों ही दल चुनौतीपूर्ण मानकर चल रहे हैं। शायद यही कारण है कि दोनों दलों के शीर्ष नेता एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। 224 सीटों के लिए लगभग 4.90 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे जबकि 15 मई को मगतणना की प्रक्रिया की जाएगी।

सब से पहले कांग्रेस की बात करें। हालांकि राहुल गांधी ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को मुक्तहस्त छोड़ दिया है; पर जीत होने पर भी उनके मुख्यमंत्री बनने की संभावना कम ही नजर आती है। कारण कई हैं। उन पर लगे भ्रष्टाचार के तमाम आरोप भी आड़े आएंगे। राज्य में भाजपा के सब से बड़े चेहरे, लिंगायत नेता और राज्य के पूर्व सीएम बी एस येदियुरप्पा अप्रैल 2016 में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नियुक्त होने के लगभग एक महीने बाद दिल्ली में मीडियावालों से रूबरू हुए। उस समय किसी मीडिया कर्मी ने सवाल पूछा था कि, क्या राज्य में ऐसा कोई वास्तविक कांग्रेस नेता है, जो मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की जगह ले सके? इस सवाल के जवाब में येदियुरप्पा ने कहा था कि भाजपा के लिए बेहतर होगा कि सिद्धारमैया मुख्यमंत्री पद से न हटाए जाएं। अपनी बात को स्पष्ट करते हुए येदियुरप्पा ने कहा था, मुख्यमंत्री के तौर पर सिद्धारमैया लोकप्रिय नहीं हैं। खुद उनकी कांग्रेस पार्टी का मानना है कि अगर सिद्धारमैया 2018 के चुनाव तक बने रहते हैं, तो पार्टी के लिए कोई मौका नहीं होगा।

उस समय तक सिद्धारमैया ने आगे चलकर चुनाव न लड़ने की कसम भी खा ली थी। पर कुछ ही महीनों बाद जुलाई में  बेल्जियम में हुए एक हादसे में 38 साल के बेटे राकेश को खोने के बाद सारी चीजें बदल गईं। इस दुखद घटना के कुछ दिनों के बाद सिद्धारमैया ने अपने आपको पूरी तरह राजनीति में झोंक देने का मन बना लिया। लेकिन उनके लिए यह राह काफी कठिन दिख रही है। पर लिंगायत समुदाय की लम्बे समय से अलग धर्म के रूप में चिह्नित किए जाने के मुद्दे को हवा देकर राजनीति की गेंद को न केवल केंद्र के पाले में डाल दिया है बल्कि वर्तमान समय के सब से बड़े लिंगायत नेता येदियुरप्पा को भी दोराहे पर खड़ा कर दिया है। राज्य में करीब 20 प्रतिशत आबादी लिंगायत समुदाय की है और 100 सीटों पर इस समुदाय का प्रभाव माना जाता है। इस समुदाय को भाजपा का पारंपरिक वोट बैंक माना जाता है लेकिन सिद्धारमैया सरकार के लिंगायत कार्ड ने भाजपा के लिए चुनौती खड़ी कर दी है।

भाजपा के लिए दक्षिण के राज्यों में पैठ बनाने के लिए यह जीत काफी मायने रखती है। कर्नाटक की जीत दक्षिण के अन्य कुछ राज्यों को एक मजबूत विकल्प दे सकती है। केरल के वामपंथी शासन के खिलाफ भी लोगों को नए विकल्प की तलाश है। केरल में भाजपा के बढ़ते प्रभाव से डरी वामपंथी पार्टी माकपा ने कर्नाटक के आगामी विधान सभा चुनाव में भाजपा को शिकस्त देने में सक्षम सब से मजबूत उम्मीदवारों का समर्थन करने का फैसला किया है। साथ ही, पार्टी ने 18 से 19 सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारने का भी फैसला किया है। तमिलनाडु में जयललिता की असामयिक मृत्यु के बाद काफी पेचीदा स्थिति बन गई है। नए-नवेले राजनेता रजनीकांत काफी हद तक भाजपा समर्थक हैं। कमोबेश ऐसी ही स्थितियां तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी हैं।

राज्य की 224 विधान सभा सीटों में से 36 सीटें अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित हैं जबकि यह वर्ग 60 विधान सभा सीटों के नतीजे निर्धारित कर सकता है। भाजपा की पूरी कोशिश सिद्धारमैया के वोट बैंक कहे जाने वाले अहिंदा (पिछड़ा वर्ग, दलित समुदाय और अल्पसंख्यकों का कन्नड़ में शॉर्ट फॉर्म) को तोड़ने की है। साल 2013 के विधान सभा चुनाव में अहिंदा वोट बैंक ने कांग्रेस की जीत में प्रमुख भूमिका निभाई थी। वैसे भी 1985 से कोई भी सत्ताधारी पार्टी लगातार दूसरी बार सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो पाई है। ऐसे में दलितों के प्रभाव वाली 60 सीटों का महत्व खासा बढ़ जाता है। दलित वोट बैंक की इस सियासी ज़ोर आजमाइश के बीच बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी कूद पड़ी है। बसपा ने कर्नाटक में जेडीएस के साथ गठबंधन किया है और वह 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।

इस चुनाव में भाजपा की खास नजर दलितों की मदीगा जाति पर है।पारंपरिक रूप से मदीगा जाति के लोग चमड़े का काम करते रहे हैं। उन्हें अब भी अछूत माना जाता है। वहीं दलितों की एक और जाति चालावाडी के लोगों से अछूत होने का ठप्पा हट चुका है। परंपरागत रूप से चालावाडी जाति के लोग इंदिरा गांधी के जमाने से कांग्रेस के साथ जुड़े हुए हैं। मदीगा और चालावाडी जाति के बीच कई मुद्दों को लेकर गहरे मतभेद हैं। मदीगा जाति के लोगों की शिकायत है कि दलितों के लिए आवंटित बजट का एक बड़ा हिस्सा सिर्फ चालावाडी जाति के लोगों को दे दिया जाता है। यही वजह है कि कुछ समय पूर्व चित्रदुर्ग में दलित मठ के प्रमुख मधारा चेन्नैयाह के साथ अमित शाह की 45 मिनट लंबी बैठक बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है। बताया जा रहा है कि भाजपा ने दलित समुदाय के भीतर मदीगा जाति के लिए आंतरिक आरक्षण का वादा किया है। दरअसल कई सालों से मदीगा जाति के लोग अपने लिए वाजिब आरक्षण की मांग पर विरोध-प्रदर्शन करते आ रहे हैं। मदीगा जाति के लोगों का कहना है कि उन्हें कायदे से 8 से 10 फीसदी के बीच आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए, जबकि उनके हिस्से में बहुत ही कम आ रहा है।

कर्नाटक में हमेशा से ही मठों की राजनीति हावी रही और लोगों पर मठों का खासा प्रभाव रहा है। राज्य में लिंगायत समुदाय से जुड़े करीब 400 छोटे बड़े-मठ हैं जबकि वोकालिगा समुदाय से जुड़े करीब 150 मठ हैं। कुरबा समुदाय से 80 से अधिक मठ जुड़े हैं। इन समुदायों का कर्नाटक की राजनीति में खासा प्रभाव है। ऐसे में राजनीतिक दलों को इनका समर्थन प्राप्त करना भी जरूरी हो जाता है। यहां मठ सिर्फ आध्यात्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र ही नहीं हैं बल्कि प्रदेश के सामाजिक जीवन में भी इनका काफी प्रभाव माना जाता है। शिक्षा, स्वास्थ्य के क्षेत्र में नि:स्वार्थ सेवा के साथ कमजोर वर्ग के लोगों के सामाजिक एवं आर्थिक सशक्तिकरण में योगदान के कारण लोग इन मठों को श्रद्धा के भाव से देखते हैं। कुछ दिनों पूर्व अमित शाह ने चित्रदुर्ग में प्रभावशाली दलित मठ शरना मधरा गुरु पीठ के महंत मधरा चेन्नैयाह स्वामी से मुलाकात की थी। अमित शाह इस क्षेत्र में लिंगायत समुदाय के प्रमुख धार्मिक स्थल सुत्तूर मठ का भी दौरा कर चुके हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी इस क्षेत्र का दौरा किया था।

अगर राज्य में समुदायों के व्यापक प्रभाव पर ध्यान दें तो वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय से 14 मुख्यमंत्री (8 लिंगायत और 6 वोक्कालिगा) बन चुके हैं। 50% विधायक और सांसद अब तक इन्हीं दोनों समुदायों से आते रहे हैं। 224 मौजूदा विधायकों में 55 वोक्कालिगा और 52 लिंगायत हैं तथा 100 सीटों पर लिंगायत और 80 सीटों पर वोक्कालिगा समुदाय असर डालता है। वैसे 2014 लोकसभा चुनाव में 43.4% वोटों के साथ भाजपा 28 में से 17 सीटें झटक चुकी है। पर एक बात तो तय है कि सभी दलों का एकमेव लक्ष्य ‘येनकेन प्रकारेण‘ भाजपा को सत्ता से दूर रखना है। इसीलिए वामपंथी धड़ा भी खुलेआम भाजपा के खिलाफ ही बोल रहा है, न कि कांग्रेस या सिद्धारमैया के भ्रष्टाचार के। मीडियाकर्मियों के एक सवाल के जवाब में माकपा पोलित ब्यूरो सदस्य प्रकाश करात ने कहा, ‘हम जिन सीटों पर नहीं लड़ेंगे, वहां अपने प्रचार में किसी पार्टी का नाम नहीं लेंगे। कर्नाटक में भाजपा को हराने के लिए हम एक खुला आह्वान करेंगे।‘ ऐसे वातावरण में भाजपा के थिंक टैंक को बहुत सोच समझकर कदम उठाने की आवश्यकता है तथा इस बात का पूरा ध्यान रखे जाने की आवश्यकता है कि उनके राजनेता गलतबयानी से बचें तथा वर्तमान सरकार की ज्यादा से ज्यादा कमजोरियों को जनता के सामने ले जाएं।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: electionkarnatak election 2018कर्नाटक चुनाव 2018चुनाव

धर्मेन्द्र पाण्डेय

Next Post
बेटियों ने किया भारत का नाम रोशन

बेटियों ने किया भारत का नाम रोशन

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0