प्रचारक परिवार के रत्न अरविन्द कृष्णराव चौथाइवाले

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य को देश-विदेश में फैलाने में प्रचारकों का बहुत बड़ा योगदान है। कई परिवार ऐसे हैं, जहां एक से अधिक भाई प्रचारक बने हैं। ऐसे ही प्रचारक परिवार के एक सुशोभित रत्न थे श्री अरविन्द कृष्णराव चौथाइवाले। ये छह भाई थे, जिसमें से तीन जीवनव्रती प्रचारक बने।

अरविन्द जी का जन्म सात सितम्बर, 1939 को एक अध्यापक श्री कृष्णराव चौथाइवाले के घर में नागपुर के पास कलमेश्वर नामक स्थान पर हुआ था। मूलतः यह परिवार महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के बारशी गांव का निवासी था। सबसे बड़े बाबूराव ने सर्वप्रथम शाखा जाना प्रारम्भ किया। इसके बाद क्रमशः सभी भाई स्वयंसेवक बने। तत्कालीन सरसंघचालक श्री गुरुजी और फिर श्री बालासाहब देवरस से सभी के बहुत मधुर संबंध थे।

सबसे बड़े भाई मुरलीधर कृष्णराव (बाबूराव) चौथाइवाले ने नागपुर में पढ़ाते हुए 1954 से 1994 तक केन्द्रीय कार्यालय पर सरसंघचालक श्री गुरुजी और फिर बालासाहब का पत्रव्यवहार संभाला। दूसरे मधुकर राव और तीसरे सुधाकर राव भी नौकरी करते हुए संघ में सक्रिय रहे। चौथे भाई शरदराव 1956 में और पांचवे शशिकांत चौथाइवाले 1961 में प्रचारक बने।

अरविन्द जी ने सिविल इंजीनियर का डिप्लोमा लेकर कुछ वर्ष नागपुर और अमरावती में पी.डब्ल्यू.डी. में नौकरी की। 1970 में जब वे प्रचारक बने, तो बालासाहब देवरस ने भी कहा कि तुम्हारे दो भाई पहले ही प्रचारक हैं, तो तुम क्यों जाते हो ? पर उनका निश्चय अटल था। अतः उन्हें सर्वप्रथम उड़ीसा में बालासोर जिले का कार्य दिया गया। शीघ्र ही वे वहां के जनजीवन में समरस हो गये। उन दिनों श्री बाबूराव पालधीकर वहां प्रांत प्रचारक थे। उनके साथ कार्य करते हुए अरविन्द जी विभाग और फिर प्रांत प्रचारक बने।

उड़ीसा वनवासी बहुल निर्धन प्रांत है। वहां काम करना आसान नहीं था; पर अरविन्द जी ने सघन प्रवास कर दूरस्थ क्षेत्रों में शाखा तथा सेवा केन्द्र प्रारम्भ किये। उन्होंने कई साधु-सन्तों को भी संघ, विश्व हिन्दू परिषद और वनवासी कल्याण आश्रम से जोड़ा। आपातकाल में कुछ समय भूमिगत रहकर वे पुलिस के हाथ आ गये और फिर उन्हें कटक की जेल में रहना पड़ा।

1998 में उन्हें विश्व हिन्दू परिषद में बंगाल और उड़ीसा का क्षेत्रीय संगठन मंत्री बनाया गया। कोलकाता केन्द्र बनाकर उन्होंने परिषद के कार्य का चहुंओर विस्तार किया। 2001 में उन्हें केन्द्रीय सहमंत्री तथा सेवा विभाग का सहप्रमुख बनाकर दिल्ली बुला लिया गया। पूरे देश में प्रवास कर उन्होंने सेवा कार्यों की एक विशाल मालिका निर्माण की तथा विभिन्न न्यासों के माध्यम से उनके स्थायित्व का प्रबन्ध किया। 2010 में तत्कालीन सेवा प्रमुख श्री सीताराम अग्रवाल के देहांत के बाद वे केन्द्रीय मंत्री तथा सेवा प्रमुख बने।

27 फरवरी को अरविन्द जी को दिल्ली में ही भीषण हृदयाघात हुआ। वे अपने कक्ष में अकेले थे, अतः इसका पता लोगों को काफी देर से लगा। उन्हें शीघ्र ही चिकित्सालय ले जाया गया। चिकित्सकों के अथक प्रयासों के बावजूद तीन मार्च, 2011 को प्रातः तीन बजे उनका निधन हो गया।

सादा जीवन, उच्च विचार के धनी, अध्ययनशील और शान्त स्वभाव वाले, प्रचारक परिवार के रत्न अरविन्द जी का जीवन न केवल प्रचारकों अपितु सब कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणास्पद है।

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