लौहपुरुष की स्वप्नपूर्ति

सरदार वल्लभभाई पटेल के बिना भारत का एकीकरण असम्भव था। उस समय पूरे विश्व को लगता था कि वह एक असम्भव कार्य था, परंतु उन्होंने उसे सम्भव कर दिखाया। हालांकि आखिरी समय तक सरदार पटेल को एक बात का मलाल रहा कि कश्मीर पूरी तरह भारत का हिस्सा नहीं बन पाया।

भारत के गुजरात राज्य के नाडियाड जिले के केवड़िया गांव में अब एकता की मूर्ति के नाम से विश्व की सबसे बड़ी मूर्ति की स्थापना 31 अक्टूबर 2018 को की गई। यह मूर्ति सरदार वल्लभभाई पटेल की मूर्ति है जो लौह पुरुष के नाम से विख्यात थे। सरदार पटेल ने स्वतंत्र भारत के पहले उप प्रधानमंत्री-गृहमंत्री रहते हुए भारत में फैली विभिन्न 565 रियासतों का भारत में विलीनीकरण का महत्वपूर्ण कार्य सम्पादित किया। इन रियासतों में प्रमुख रूप से जम्मू कश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ़ जैसी रियासतें भी भारत में शामिल करने का श्रेय उन्हें जाता है और इसलिए उनकी जन्मतिथि 31 अक्टूबर को भारत देश राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में प्रतिवर्ष मनाता है। सरदार वल्लभभाई पटेल प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कुशल प्रशासक एवं अच्छे संगठनकर्ता भी थे।

1947 में 562 राजाओं ने इनके आवाहन पर अपनी रियासतों का विलय कर दिया और प्रिवीपर्स लेने के लिए तैयार हो गए किंतु जूनागढ़ राज्य के राजा ने पाकिस्तान में विलय होने के लिए पाकिस्तान को स्वीकृति पत्र सौंप दिया जबकि वहां की 80% जनता हिंदू और 20% जनता मुस्लिम समुदाय की थी। इधर हैदराबाद और कश्मीर स्वतंत्र राष्ट्र बनना चाह रहे थे तब सरदार पटेल ने कड़े कदम उठाते हुए जूनागढ़ को भारत में विलीन कर लिया और जूनागढ़ की 99% जनता ने भारत में रहने के पक्ष में अपना जनमत दिया और वहां का नवाब भागकर परिवार सहित कराची चला गया।इसी तरह जोधपुर राजा हनवंत सिंह भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के साथ ढुलमुल नीति पर काम करते हुए कुछ नए समझौते करना चाह रहे थे। उन्हें भी भारत में विलय के लिए इन्होंने प्रेरित किया। हम अपने इस लेख में भारत रत्न सरदार पटेल के भारत के एकीकरण के महत्वपूर्ण अंश कश्मीर पर विशेष दृष्टिपात करेंगे।

1946 में जब भारत के प्रधानमंत्री चयन का मामला आया तो भारत की 12 राज्य कांगे्रस समितियों में से 09 ने सरदार पटेल को और 03 ने पंडित जवाहरलाल नेहरू को भारत का प्रधानमंत्री बनाने पर अपनी सहमति व्यक्त की। किंतु 1928 की तरह पुनः महात्मा गांधी जी ने सरदार पटेल को अपना नाम वापस लेने हेतु कहा और वह पुनः एक आज्ञाकारी शिष्य की तरह मान गए। इसी बात को याद करते हुए भारत के वर्तमान प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में लोकसभा के अपने 90 मिनट के भाषण में कहा, यदि सरदार पटेल भारत के प्रथम प्रधान मंत्री बन गए होते तो हमारे दुलारे कश्मीर का एक हिस्सा आज पाक अधिकृत कश्मीर नहीं कहलाता। भारतीय संसद ने 5 अगस्त 2019 को कश्मीर को दिए गए विशेष राज्य का दर्जा जो संविधान की धारा 370 के अंतर्गत दिया गया था, हटा दिया।

वर्तमान में भारत लगभग 55% क्षेत्र जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, सियाचिन ग्लेशियर तथा 70% जनसंख्या को नियंत्रित कर रहा है वहीं पाकिस्तान 30% क्षेत्र पाक अधिकृत कश्मीर, गिलगित, बाल्टिस्तान तथा चीन 15% अक्साईचिन वाले इलाके पर काबिज है। नासूर की शक्ल ले चुकी कश्मीर की यह समस्या 75 साल पहले ही खत्म हो जाती अगर उस समय देश के पहले गृहमंत्री रहे सरदार वल्लभ भाई पटेल की बातें मान ली गई होती। कश्मीर मुद्दे के हल के लिए पटेल के प्रयास अगर पूरी तरह सफल हो जाते तो आज इतिहास के साथ ही राज्य का भूगोल भी कुछ और ही होता। पी एन चोपड़ा अपनी पुस्तक ‘कश्मीर एवं हैदराबादः सरदार पटेल’ में लिखते हैं कि सरदार पटेल मानते थे कि कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में नहीं ले जाना चाहिए था। कई देशों से सीमाओं के जुड़ाव के कारण कश्मीर का विशेष सामरिक महत्व था इस बात को पटेल बखूबी समझते थे इसीलिए वह हैदराबाद की तर्ज पर बिना किसी शर्त कश्मीर को भारत में मिलाना चाहते थे।

इधर 24 अक्टूबर को ही भारत सरकार को सहायता करने के लिए महाराजा की अपील प्राप्त हुई और उसी दिन दोनों देशों के बंटवारे के लिए नियुक्त कमांडर इन चीफ फील्ड मार्शल रसेल का पत्र भी प्राप्त हुआ। 25 अक्टूबर को लॉर्ड माउंटबेटन ने एक रक्षा समिति की बैठक बुलाई तब भारत सरकार ने वी पी मेनन को श्रीनगर भेज कर स्थिति की जानकारी प्राप्त करने का निर्णय लिया। वीपी मेनन डी एन कचरू एवं सेना तथा एयर फोर्स के कुछ अधिकारी श्रीनगर गए। वहां प्रधानमंत्री तथा महाराज से मुलाकात की और पता चला कि आक्रमणकारी बारामूला तक आ गए हैं जो एक या दो दिन में श्रीनगर पर कब्जा कर लेंगे। फिर भारत सरकार को महाराजा ने जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय का पत्र सौंपा और डिफेंस कमेटी में प्रस्ताव स्वीकार किया गया। इस प्रस्ताव का समर्थन तब दिल्ली में उपस्थित शेख अब्दुल्ला ने भी किया और अगले दिन सेना भेजने का निर्णय लिया गया। दिल्ली में होनेवाली इस बैठक में, जिसमें कश्मीर में सेना भेजने पर निर्णय होना था, शेख अब्दुल्ला के प्रमुख सहायक रहे बख्शी गुलाम मोहम्मद भी उपस्थित थे। इस पर उन्होंने लिखा है- लॉर्ड माउंटबेटन ने बैठक की अध्यक्षता की। बैठक में सम्मिलित होने वालों में थे-पंडित जवाहलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, रक्षा मंत्री सरदार बलदेव सिंह, जनरल बुकर कमांडर-इन-चीफ जनरल रसेल, आर्मी कमांडर तथा मैं। हमारे राज्य में सैन्य स्थिति तथा सहायता को तुरंत पहुंचाने की सम्भावना पर ही विचार होना था। बैठक में जनरल बुकर ने जोर देकर कहा कि उनके पास संसाधन इतने कम हैं कि राज्य को सैनिक सहायता देना सम्भव नहीं। लॉर्ड माउंटबेटन ने निरुत्साहपूर्ण प्रतिक्रिया दी। पंडितजी ने तीव्र उत्सुकता एवं शंका प्रकट की। सरदार पटेल सब कुछ सुन रहे थे किंतु कुछ देर तक चुप रहे। अचानक सरदार पटेल खड़े हुए और तुरंत कठोर एवं दृढ़ स्वर से सबको अपनी ओर आकर्षित किया। उन्होंने अपना विचार व्यक्त किया-“जनरल हर कीमत पर हमें कश्मीर की रक्षा करनी होगी। आगे जो होगा, देखा जाएगा। संसाधन हैं या नहीं, आपको यह कार्य तुरंत करना चाहिए। सरकार आपकी हर प्रकार की सहायता करेगी। यह अवश्य होना चाहिए। कैसे और किसी भी प्रकार करो, किंतु इसे करो।” जनरल के चेहरे पर उत्तेजना के भाव दिखाई दिए। मुझमें आशा की कुछ किरण जगी। जनरल की इच्छा आशंका जताने की रही होगी किंतु सरदार उठे और बोले, “हवाई जहाज से सामान पहुंचाने की तैयारी सुबह तक कर ली जाएगी।” इस प्रकार कश्मीर की रक्षा सरदार पटेल के त्वरित निर्णय, दृढ़ इच्छाशक्ति और विषम-से-विषम परिस्थिति में भी निर्णय के कार्यान्वयन की दृढ़ इच्छा का ही परिणाम थी।

22 अक्टूबर 1947 से 1 जनवरी 1949 तक भारत सरकार पाकिस्तान समर्थित कबायली सेना को भगाने का प्रयास करती रही और इधर अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण नेहरू जी ने इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाना उचित समझा और 5 जनवरी 1949 को संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का आवेदन प्रस्तुत किया गया। इसके बाद कश्मीर समस्या हमारे देश के लिए एक समस्या बन कर रह गई, जिसका समाधान अर्थात तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य का सम्पूर्ण विलय आज तक भारत गणराज्य में नहीं हो पाया है। जबकि जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने भी अन्य 564 राज्यों की तरह ही समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। किंतु पूर्ण कश्मीर राज्य के विलय समझौते पर हस्ताक्षर आज तक नहीं हो पाया है और सरदार पटेल का वह सपना आज भी अधूरा है। इसके लिए भारत को स्वामी विवेकानंद तथा महर्षि अरविंद द्वारा बताए गए मार्ग अर्थात शक्ति संचय पर ध्यान देकर इस कार्य को पूर्ण करना अपेक्षित है। भारत के संविधान का अनुच्छेद एक कहता है कि, इंडिया जो कि भारत है वह राज्यों का एक संघ होगा और राज्यों का यह संघ भारत आज जिस स्वरूप में हमें दिखाई देता है उसके इस स्वरूप का श्रेय राष्ट्रीय एकता के नायक लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल को देना हम उचित समझते हैं।

 

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