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सोशल मीडिया का स्याह पक्ष

सोशल मीडिया का स्याह पक्ष

by पूनम नेगी
in अक्टूबर-२०२२, तकनीक, विशेष, सामाजिक
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यह सच है कि सोशल मीडिया ने दुनिया छोटी कर दी है और मित्रता तथा जान पहचान को एक अलग मुकाम दे दिया है लेकिन यह भी सच है कि इसकी वजह से लोग अपने आप से और अपनों से दूर होते जा रहे हैं। यह एकाकी जीवन उन्हें अवसाद की ओर ले जा रहा है तथा उनकी निजता बड़ी-बड़ी कम्पनियों के लिए बिजनेस बनती जा रही है।

वर्तमान युग सूचना का युग है। बीते कुछ वर्षों में सोशल मीडिया एक सशक्त संचार माध्यम साबित हुआ है। आज दुनिया के अरबों लोग लाखों वेबसाइटों, तथा फेसबुक, व्हॉट्सअप, इंस्टाग्राम जैसे प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल कर रहे हैं। इन अपरम्परागत मीडिया प्लेटफार्म्स ने लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को एक नया आयाम दिया है। देश में तकरीबन 350 मिलियन उपभोक्ता सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं और वर्ष 2023 तक यह संख्या लगभग 447 मिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है। आज हर व्यक्ति सोशल मीडिया के माध्यम से अपने विचारों को एक मिनट में हजारों-लाखों लोगों तक पहुंचा सकता है। इस मंच ने समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को भी समाज की मुख्यधारा से जुड़ने और खुलकर अपने विचारों को अभिव्यक्त करने का अवसर दिया है। बीते कुछ वर्षों में सोशल मीडिया के जरिए ऐसे कई सकरात्मक कार्य हुए हैं जिसने हमारे लोकतंत्र को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। इस मंच ने बच्चों और बड़ों दोनों को अपना ज्ञान और जानकारी बढ़ाने तथा प्रतिभा दिखाने का सस्ता व सर्वसुलभ मौका दिया है। कोविड महामारी के दौरान चिकित्सीय और शिक्षण व्यवस्था को सुचारु रूप से संचालित करने की दिशा में सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स ने प्रशंसनीय भूमिका निभायी थी। व्यापार के नजरिये से भी सोशल मीडिया साइट्स वरदान साबित हो रही हैं। लेकिन जिस तरह हर सिक्के का दूसरा पहलू भी होता है वैसे ही इन सोशल नेटवर्क्स समूहों के नकारात्मक पहलू को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

सोशल मीडिया के नकारात्मक प्रभावों में प्रमुख है डाटा सुरक्षा का सवाल। डाटा सुरक्षा का मसला उपभोक्ता की निजता से भी जुड़ा है। ऐसे में किसी का अकाउंट हैक हो जाना उसकी निजता पर भी हमला है। बीते दिनों डाटा चोरी की बड़ी घटना पकड़ में आने के बाद फेसबुक ने सुरक्षा के कड़े इंतजामों का वायदा किया था लेकिन सेंधमारों ने इसका तोड़ निकाल लिया और कम्पनी को चकमा दे डाला था। दरअसल ऐसी सेंधमारी तभी कामयाब हो पाती है जब कहीं कोई सुरक्षा सम्बंधी बड़ी खामी होती है। दरअसल आज का सोशल मीडिया इंसान के व्यवहार को बदलने वाले प्लेटफॉर्म के तौर पर तेजी से उभर रहा है। किसी के भी बारे में सही या गलत छवि बनाने में यह अहम भूमिका निभा रहा है। एक रिसर्च के मुताबिक ट्विटर पर फेक न्यूज़ की रफ्तार सच्ची ख़बरों से छह गुना ज्यादा तेज़ होती है और अगर ये फेक न्यूज़ राजनीति से जुड़ी हों तो इसकी रफ्तार और बढ़ जाती है। विशेषज्ञों की मानें तो सोशल मीडिया पर रोजाना बड़ी संख्या में टेक्स्ट डेटा जेनरेट होता है। साइबर कम्पनियां इस डेटा का इस्तेमाल उपभोक्ताओं के व्यवहार का अध्ययन करने के लिए करती हैं। इनका विश्लेषण किया जाता है और विश्लेषण की कई तकनीकों का इस्तेमाल करके यह कम्पनियां अपने लक्षित ग्राहक, उनके व्यवहार, उत्पाद आदि के बारे में जानकारी जुटाती हैं। सोशल मीडिया से जमा हुए डेटा का विश्लेषण करने वाली तकनीकों में भावनाओं का विश्लेषण, ग्राहकों पर प्रभाव तथा उपभोक्ता सेवा आदि प्रमुख हैं। सोशल  मीडिया प्लेटफार्म्स जन भावनाओं के विश्लेषण की तकनीक का उपयोग कर उपभोक्ताओं के व्यवहार के बारे में कीमती जानकारी जुटाकर उस हिसाब से अपनी आगे की रणनीति बनाते हैं।

गौरतलब हो कि सोशल साइट्स के प्रति लोगों की इसी दीवानगी तथा उपयोग में बरती गयी लापरवाही व जागरूकता के अभाव का फायदा उठा-उठाकर विपणन कम्पनियां जनभावनाओं का व्यापार कर मोटा मुनाफा कमा रही हैं। शायद आप यह सोचते होंगे कि इंटरनेट पर मौजूद तमाम सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स के लिए आप पैसे नहीं चुकाते हैं। यानी फेसबुक, व्हॉट्सअप, इंस्टाग्राम जैसी सर्विसेज आपके लिए फ्री हैं लेकिन सच्चाई पूरी तरह अलग  है। सच यह है कि अलग-अलग विज्ञापनदाता इन कम्पनियों को पैसा देते हैं और सोशल मीडिया के ये प्लेटफॉर्म आपकी भावनाओं की मार्केटिंग भी करते हैं क्योंकि इनके पास आपका पूरा डेटा है। जानकारों के अनुसार इन कम्पनियों में मौजूद सुपर कम्प्यूटर्स में आपसे जुड़ी इतनी जानकारी है जितना शायद आपको भी अपने बारे में पता न हो। हैरानी की बात है कि सिर्फ 60 सेकेंड में पूरी दुनिया में तीन लाख और भारत में करीब 30 हज़ार फेसबुक पोस्ट शेयर किए जाते हैं।  यही वजह है कि आज ऑनलाइन मार्केटिंग कम्पनियों के विज्ञापनों से लेकर फिल्मों के ट्रेलर, टीवी प्रोग्राम का प्रसारण भी फेसबुक, व्हॉट्सअप, इंस्टाग्राम जैसे प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स का उपयोग धड़ल्ले से किया जाने लगा है। वीडियो तथा ऑडियो चैट भी इन सोशल मीडिया मंचों के माध्यम से काफी सुगम हो गयी है।

साइबर एक्सपर्ट्स की मानें तो सोशल साइट्स के प्रति आवश्यकता से बढ़ता आकर्षण गहरी चिंता का विषय है। आजकल लोग अधिक से अधिक लाइक्स और कमेंट पाने के लिए सोशल साइट्स पर तरह-तरह के फोटो और अन्य चीजें पोस्ट करते रहते हैं जो कभी-कभी काफी आपत्तिजनक भी होती है।

हाल ही में हुए कई अध्ययन बताते हैं कि शारीरिक और मानसिक दोनों दृष्टि से सोशल मीडिया एक आम व्यक्ति की जिंदगी को प्रभावित कर रहा है। ’जर्नल ऑफ ग्लोबल इनफॉरमेशन मैनेजमेंट’ में प्रकाशित एक शोध से यह स्थापित हुआ है कि सोशल मीडिया न केवल मानसिक तनाव की वजह बन रहा है, बल्कि अब उसके शारीरिक दुष्प्रभाव भी सामने आ रहे हैं। शोध के अनुसार सोशल मीडिया के दुष्प्रभावों में निजता की चिंता, सुरक्षा सम्बंधी खतरे, प्रदर्शन में कमी, सामाजिक लेनदेन के नुकसान, परेशान करने वाला कंटेंट और साइबर बुलिंग जैसे जोखिम शामिल हैं। इन दुष्प्रभावों में चिंता, अवसाद, उत्पीड़न और आत्महत्या के लिए उकसाना भी समाहित है। इस दिशा में हुए अध्ययन बताते हैं कि सोशल मीडिया पर सक्रिय व्यक्ति अपने ही वर्ग के लोगों की तुलना करने में लगता है कि उनकी जिंदगी ’परफेक्ट’ नहीं है। इससे ऐसे लोगों में एक खास किस्म की मानसिक बीमारी ’सोशल मीडिया एंग्जायटी डिसऑर्डर’ पनपने लगती है जो जाने-अनजाने में उन्हें अवसाद की ओर ले जाती है। 30 फीसदी इंटरनेट यूजर्स मानते हैं कि वे चाहकर भी सोशल मीडिया पर बिताया जाने वाला अपना समय कम नहीं कर पाते। ऐसे लोगों के मस्तिष्क के सीटी स्कैन में उनके दिमाग के उस हिस्से में गड़बड़ देखी गयी है जो ड्रग्स लेने वालों के दिमाग में दिखती है। सोशल मीडिया इस्तेमाल करते समय लोगों को एक छद्म खुशी का एहसास होता है। यही कारण है कि दिमाग बार-बार और ज्यादा ऐसे सिग्नल चाहता है जिसके चलते आप बार-बार सोशल मीडिया पर पहुंचते हैं। मोबाइल फोन बैग में या जेब में रखा हो और आपको बार-बार लग रहा हो कि शायद फोन बजा या वाइब्रेट हुआ। अगर आपके साथ भी अक्सर ऐसा होता है तो जान लें कि इसे ‘फैंटम वाइब्रेशन सिंड्रोम’ कहते हैं और यह वाकई एक बड़ी समस्या है। सोशल मीडिया पर अपनी सबसे शानदार तस्वीरें लगाना, जो मन में आया उसे शेयर कर देना और एक दिन में कई-कई बार स्टेटस अपडेट करना इस बात का सबूत है कि आपको अपने जीवन को सार्थक समझने के लिए सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रिया की दरकार है। आपके दिमाग में खुशी वाले हॉर्मोन डोपामीन का स्राव दूसरों पर निर्भर है। यह वाकई बेहद चिंताजनक  स्थिति है। विश्व आर्थिक मंच की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में सोशल मीडिया के माध्यम से गलत सूचनाओं का प्रसार कुछ प्रमुख उभरते जोखिमों में से एक है। यकीनन यह न केवल देश की प्रगति में रुकावट है, बल्कि भविष्य में इसके खतरनाक परिणाम भी सामने आ सकते हैं ।

 

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