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भारत में वैचारिक धुंधकाल

भारत में वैचारिक धुंधकाल

by प्रवीण गुगनानी
in अक्टूबर-२०२२, विशेष, सामाजिक
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राजनीतिक स्तर पर वामपंथ फलक से गायब होता जा रहा है लेकिन वह अलग-अलग तथा ज्यादा खतरनाक और विध्वंसक तरीके से सामने आ रहा है। समाज को तोड़ने के लिए चलाए जा रहे इनके अभियान इतने सूक्ष्म तरीके से चलाए जा रहे हैं कि आम जन को पता ही नहीं चल पाता कि यह एक वामपंथी नैरेटिव है। इन देश विरोधी गतिविधियों पर रोक लगाया जाना आवश्यक है।

विमर्श या नैरेटिव के नाम पर भारत में एक अघोषित युद्ध चला हुआ है। यह विमर्श शुद्ध राजनीतिक है और भारत में राजनीति की चार धाराएं हैं। भाजपा, कांग्रेस, वामपंथ और समाजवाद। भाजपा स्वयं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार से उपजी एक राजनैतिक धारा है। इसने अपने कोई डमी या छद्म रूप उत्पन्न नहीं किए। शेष तीन राजनीतिक विचारों ने कुछ अच्छे उपविचार या उपधाराएं उत्पन्न भी की है किंतु दुर्भाग्य से उनकी संख्या, प्रभाव, आकार, अत्यंत क्षीण हीन रही है। कांग्रेस, वामपंथ व समाजवाद ने सकारात्मक विमर्श तो कम उपजाए किंतु नकारात्मक विमर्शों में जैसे ये लोग मास्टर ऑफ मास्टर्स हो गए हैं। जनजातीय को हिंदुओं से अलग बताना, जैन और लिंगायत जैसे कुछ अन्य समुदायों को अलग धर्म या अल्पसंख्यक कराना, शाहबानो प्रकरण में न्यायालय के निर्णय को बदलना, एक देश दो विधान, आर्य अनार्य का वितंडा उपजाना, राममंदिर को संघ भाजपा का कार्यालय बताना, अयोध्या निर्माण में बाधाएं उत्पन्न करना, रामेश्वर रामसेतु के विध्वंस हेतु मशीनों का बेड़ा भेजना, श्रीराम को काल्पनिक बताना, ऐन दीवाली की रात्रि को पूज्य शंकराचार्य की गिरफ्तारी, देश में कोविड वैक्सीन को भाजपा की वैक्सीन कहना, विरोध, विदेशों में वैक्सीन डिप्लोमैसी का विरोध, नक्सलवाद, खालिस्तान, बोडो, माओइज्म, अनुच्छेद 370, पंडित विहीन कश्मीर, दक्षिण राज्यों में हिंदी विरोध के आधार पर राजनीति, भाषायी विभाजन, भीम मीम गठजोड़, मंडल-कमंडल, पूर्वोत्तर राज्यों में अलगाव, गुरमेहर कौर विवाद, चीन के साथ भारत के विवाद या संघर्ष में चीन की ओर झुकाव बताना जैसे कई कई मुद्दे हैं। ये और इन जैसे अनेक अन्य मुद्दों पर भारत के तथाकथित बुद्धिजीवी व प्रगतिशील तत्वों ने सदैव ही राष्ट्र की मूलभावना के विपरीत आचरण प्रस्तुत किया है। भारत की परिवार परम्परा और विवाह परम्परा के विरुद्ध इनके षड़यंत्र आए दिन नए नए रूप में देश के प्रत्येक भाग में उभरते रहते हैं। सीआरपीएफ के 75 सैनिकों के नक्सलियों से संघर्ष करते हुए बलिदान होने पर उत्सव मनाने जैसी घटनाएं ये लोग आए दिन करते रहते हैं।

ऐसा माना जाता है कि वामपंथी नास्तिक होते हैं। ये धर्म के प्रति दुराग्रही रहते हैं। हिंदू व्यक्ति धर्म में कट्टर कतई नहीं होता किंतु उसके जन्म से लेकर मृत्यु तक के प्रत्येक दिन में श्रीराम के प्रति आराध्य का भाव, राष्ट्र के प्रति भारतमाता का भाव, प्रकृति के प्रति पूजन का भाव, प्राणी मात्र के प्रति दयालुता का भाव, सर्वे भवन्तु सुखिनः का भाव; प्रत्येक हिंदू को धार्मिकता में डुबोए रखता है। कम्युनिस्ट धर्म को अफीम मानते हैं किंतु गीत गाते हैं-

सब ताज उछाले जाएंगे,सब तख्त गिराए जाएंगे

अर्ज ए खुदा के काबे से सब बूत उठाए जाएंगे।

अहल ए सफा

सफा यानी आसमानी किताब को मानने वाले मसनद पर बिठाए जाएंगे और बस नाम रहेगा अल्लाह का तो क्या कम्युनिस्ट इस्लामिक हो गया है? भारत के संदर्भ में देखें तो यह स्पष्ट लगता है कि कम्युनिस्टों  को भारत तोड़ना है और इसके लिए वह फैज अहमद फैज की अहले सफा अर्थात आसमानी किताब को मानने वालों मात्र को मसनद पर, सत्ता पर काबिज कराने हेतु तत्पर बैठा है। इस कविता के लेखक फैज अहमद कट्टर कम्युनिस्ट थे। भारत से पाकिस्तान गए तो वहां सत्ता पलटने के आरोप में जेल गए। उनकी पत्नी भी आकंठ कम्युनिस्ट थी किंतु इस्लाम के प्रति उनकी कट्टरता को इस कविता में पढ़िए!! यहां वामपंथियों को धर्म से चिढ़ नहीं है। बुक्का फाड़ फाड़कर चिल्लाते हैं – सब बुत उठवाए जाएंगे, तोड़े जाएंगे। तो लक्ष्य एक है – भारत तोड़ो। सो नारा भी दिया इन्होंने – भारत तेरे टुकड़े होंगे। यही इनका लक्ष्य है।

कम्युनिस्टों के पास संगठन न रहा न है तो वे अपने विचार लेकर कांग्रेस के मन मानस पर वेताल बनकर बैठ गए हैं। कांग्रेस का विचारतंत्र वामपंथियों से रिमोट आपरेटेड और कहीं कहीं डायरेक्ट आपरेटेड हो गया है। और, अब तो भारत तेरे टुकड़े होंगे वाले कन्हैया कुमार दिन उजियारे कांग्रेस के मंचों पर राहुल गांधी के बगल में खड़े दिखलाई देते हैं। दूसरी ओर जमीन पर संख्याबल के लिए वामपंथी इस्लाम का उपयोग करने लगे हैं। इस्लाम वामपंथ का स्ट्राइक आर्म बन गया है। धर्म को अफीम मानने वाले वामपंथी भारत में इस्लाम की तलवार से लड़ रहे हैं। भीम मीम का गठजोड़ कुछ और नहीं बल्कि भारत तोड़ो का नया औजार है। वे समाज में संघर्ष उत्पन्न कराना चाहते हैं और फिर इन संघर्षों का नेतृत्व करके या इन संघर्षों पर नियंत्रण की क्षमता प्राप्त करके शासन से और इस देश के बहुसंख्यक हिंदू समाज से सौदेबाजी की स्थिति में आना चाहते हैं। इनके उपजाए प्रत्येक नए नरैटिव का यही एकमात्र उद्देश्य होता है।

वामपंथियों के चलाए प्रत्येक नरैटिव को देखिए उसका एक ही उद्देश्य होगा। परम्पराओं को तोड़ो, आस्थाओं पर चोट करो, पारिवारिक सम्बंधों की बुराई करो। पति-पत्नी, पिता-पुत्र, भाई-बहन, प्रेमी-प्रेमिका आदि आदि प्रत्येक सम्बन्ध में समर्पण के भाव को गुलामी बताओ और असंतुष्टि, स्वार्थ, अपवित्रता के भाव को स्थापित करो। नशे को व्यक्तिगत स्वतंत्रता का प्रतीक बताते हैं। सत्य, निष्ठा को गुलामी बताते हैं। इस क्रम में ये लोग ब्रा लेस और सार्वजनिक चुम्बन की स्वतंत्रता, समलैंगिकता जैसे  विचित्र विचित्र अभियान चलाते रहते हैं। हर स्तर पर विभाजन उत्पन्न करना इनका लक्ष्य होता है। निराशा वामपंथ का प्रिय शस्त्र है और शास्त्र भी। समूचा वामपंथी साहित्य नैराश्य से प्रारम्भ होकर घोर नैराश्य पर समाप्त होता है। समाज को निराशा में डुबोना और फिर उनसे हिंसा कराना यही इनके प्रत्येक नरैटिव का लक्ष्य होता है।

समाज में ऐसे ऐसे उदाहरण हैं, इन नरैटिव उपजाने वालों के कि, कभी कभी देखकर भयमिश्रित आश्चर्य उपजता है। 1990 में कोलकाता में 15 साल की एक लड़की हेतल पारेख के साथ एक वामपंथी धनंजय चटर्जी ने बड़ा ही वीभत्स बलात्कार व हत्या की। उस वामपंथी पर अपराध सिद्ध हुआ और 2004 में उसे फांसी दी गई तो इन्हीं वामियों ने उस धनंजय चटर्जी की फांसी का विरोध किया। इनके लिए हर अपराध, हर अत्याचार एक अवसर है। अत्याचार हो तो विरोध करो और अत्याचारी को सजा मिले तो और अधिक बड़ा विरोध करो। निर्भया के लिए कैंडल जलाते हैं और उसी का बलात्कार करने वाले अफरोज को छुड़वाने और बचाने हेतु आंदोलन करते हैं।

कुल मिलाकर वर्तमान भारतीय समाज में और विशेषतः बड़े नगरों व विश्व विद्यालयों में सारे कर्मकांड और वितंडे इस प्रकार के फैलाए जा रहे हैं जिनसे देश को सावधान रहना आवश्यक है। यदि लोग समझते हैं की वामपंथ देश से समाप्त हो रहा है तो वे गलत समझ रहें हैं। इसे समाप्त मानना भयंकर भूल सिद्ध होगी। वामपंथ ने अपना रूप बदल लिया है। आवरण बदल लिया है। वामपंथ कांग्रेस के रास्ते से भी आ सकता है और आम आदमी पार्टी के रास्ते से भी। सावधान देश और समाज को रहना है। सावधान परिवार को और माता-पिता को रहना है। देश, समाज, परिवार टूटेगा तो वामपंथ आगे बढ़ेगा इस सत्य को देश को समझना होगा। और, अब वामपंथ, वामपंथ के नाम से नहीं बल्कि कथित प्रगतिशीलता, बौद्धिकता, फैशन, पारिवारिक अवज्ञा, सामाजिक अवज्ञा, राष्ट्र अवज्ञा जैसे रूप में आएगा। सार्वजनिक चुंबन, ब्रा लेस अभियान, लिव इन रिलेशन, समलैंगिकता, सेक्सुअल स्वच्छंदता, नो किड्स कपल आदि-आदि जैसे वीभत्स शब्द और अभियान इनके प्लेटफार्म होंगे। इसलिए, जहां इस प्रकार के अभियान दिख जाएं वहां समझ जाना भीतर वामपंथी बैठा है।

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