शक्ति सम्पन्न भारत

पिछले माह की 16 तारीख को भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन की शंघाई सहयोग संगठन की शिखर बैठक में हुई चर्चा में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति पुतिन से कहा था कि ‘यह समय युद्ध का नहीं है’ और पुतिन ने उत्तर में कहा था कि ‘हम आपकी चिंता को समझते हैं और इस दिशा में प्रयास करेंगे।’ इस खबर को कई विदेशी मीडिया ने अपने पहले पन्ने पर जगह दी थी। अमेरिकी मीडिया ने तो इसे भारत की रूस को फटकार तक बता दिया था, परंतु भारत के दृष्टिकोण से देखें तो यह विश्व में अपनी ताकत और आदर को सिद्ध करने का ठोस कदम है।

जब से रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शरू हुआ था तब से भारत इस युद्ध का विरोध कर रहा था। यहां यह गौर करनेवाली बात यह है कि भारत केवल युद्ध का विरोध कर रहा था, किसी देश का नहीं। भारत की तटस्थ भूमिका ने यूक्रेन और रूस दोनों को उसकी बात सुनने के लिए विवश कर दिया था। युद्ध स्थल पर जो भारतीय विद्यार्थी फंसे हुए थे, उन्हें रोकने या कोई हानि पहुंचाने की कोशिश न यूक्रेन ने की और न ही रूस ने। शिखर बैठक में प्रधान मंत्री ने राष्ट्रपति पुतिन को पहले इसके लिए धन्यवाद दिया और उसके बाद युद्ध रोकने की सलाह दी। इस पूरी घटना का मतितार्थ यह है कि आज भारत उस स्थान तक पहुंच चुका है जहां दुनिया के लिए उसका दृष्टिकोण, उसका मत, उसकी सलाह मायने रखती है। चाहे युद्ध से सम्बंधित हो या पर्यावरण से या वैकल्पिक ऊर्जा के निर्माण से, भारत की अपनी अलग सोच है, अपना मौलिक विचार है जो उसे बाकी के देशों से अलग करता है। इससे भी दो कदम आगे की बात यह कि इन विचारों और मतों को दृढ़तापूर्वक विश्व के सामने रखने की शक्ति भारत में पुन: आ रही है।

यह बात सर्वविदित है कि कोई भी राष्ट्र युद्ध न तो किसी के कहने से शुरू करता है और न ही किसी के कहने से समाप्त करता है। परंतु युद्ध के दौरान रूस का रवैया जिस प्रकार किसी अकड़ू पहलवान की तरह हो गया था, जो किसी की सुनने को तैयार नहीं था, उस समय भी राष्ट्रपति पुतिन और प्रधान मंत्री मोदी की फोन पर चर्चा होती थी और प्रधान मंत्री उन्हें युद्ध रोकने की सलाह देते थे।

विश्व भर के चिंतक, विचारक, थिंक टैंक्स जब यह कहते हैं कि इक्कसवीं सदी भारत की होगी तो मन में प्रश्न उठता है कि उनके ऐसा कहने का आधार क्या है? भारत न तो विकसित राष्ट्र है, न ही वैश्विक महाशक्तियों में उसकी गणना होती है और न ही आर्थिक महाशक्ति के रूप में दुनिया उसके इशारे पर नाचती है। फिर ऐसी क्या बात है कि इक्कीसवीं सदी भारत की होगी। वास्तव में विश्व जिस भौतिक संकल्पना पर चल रहा है, उसका मूल आधार है अंत:चेतना, अंत:प्रेरणा। यही वह प्रेरणा है जो अच्छे के साथ बहुत अच्छा करने की, बुरे के साथ भी अच्छा करने की और नीच को सबक सिखाने की शक्ति देती है। यही शक्ति भारत की अंतर्बाह्य शक्ति है। इसी शक्ति का पूर्ण उपयोग भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी करते हैं और उसके कारण उनके द्वारा कही गई बातें लोगों को न केवल अपील करती हैं बल्कि उन पर विश्वास करने को बाध्य भी करती हैं।

इस अंत:प्रेरणा से प्रेरित होकर जब स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में धर्म सभा को सम्बोधित किया था तो विश्व भर के संतों और आध्यात्मिक गुरुओं ने उनकी बात सुनी थी। इसी अंत:प्रेरणा से प्रेरित होकर जब स्वामी प्रभुपाद भारतीय अध्यात्म को विदेशों में प्रस्तुत करते थे तो हजारों लोग हरे रामा हरे कृष्णा का जाप करने लगते थे और आज तक कर रहे हैं। इसी अंत:प्रेरणा से प्रेरित होकर भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने विश्व भर की मीडिया के सामने डंके की चोट पर कहा था कि भारत अपनी शर्तों पर दुनिया से व्यवहार करेगा और रूस से तेल खरीदता रहेगा। यही भारत की अंत:प्रेरणा है, जिसका पुनर्जागरण काल आरम्भ हो चुका है। पुनर्जागरण इसलिए क्योंकि भारत में यह हमेशा ही रही है परंतु लगभग एक दशक पहले तक यह सुप्त अवस्था में थी और अब जब उसका पुनर्जागरण हो रहा है तो वैश्विक स्तर पर उसकी गूंज सुनाई दे रही है।

जब कोई राष्ट्र शक्ति सम्पन्न होता जाता है तो विश्व में उसके शत्रु राष्ट्रों की संख्या भी बढ़ती जाती है, इतिहास इसका साक्षी है। परंतु भारत जब शक्ति सम्पन्न हो रहा है तो इसके मित्र राष्ट्रों या उससे सहायता की अपेक्षा रखनेवाले राष्ट्रों की संख्या बढ़ रही है। आज की तारीख में पाकिस्तान और चीन को छोड़कर विश्व का ऐसा कोई राष्ट्र नहीं है जो भारत को अपना सीधा शत्रु मानता हो। कुछ बातों पर अस्वीकार्यता हो सकती है, परंतु शत्रुता नहीं है। यह भारत की शक्ति है। अन्य राष्ट्रों का भारत पर यह विश्वास बढ़ रहा है कि न आखें झुकाकर न आंखे दिखाकर बल्कि आंखें मिलाकर बात करने वाला भारत आवश्यकता पड़ने पर और उस राष्ट्र का पक्ष सही होने पर उसकी सहायता अवश्य करेगा। यह भारत की शक्ति है। अमेरिका जैसा देश रूस और यूक्रेन युद्ध के दौरान अपने दूषित पूर्वाग्रहों के कारण तुरंत एकतरफा निर्णय लेने पर उतारू हो गया था परंतु भारत अपनी सद्-सद्विवेक बुद्धि का आधार लेते हुए तटस्थ रहा और दोनों से युद्ध रोकने की चर्चा व अपील करता रहा। यह भारत की शक्ति है। श्रीलंका को कंगाली की कगार पर ला खड़ा करने के बाद चीन ने उसका साथ छोड़ दिया परंतु ऐसे कठिन समय में श्रीलंका के पहले के रवैये को भूलकर भारत ने उसकी सहायता की। यह भारत की शक्ति है। शक्ति सम्पन्न होने का अर्थ दादागिरी करना या कमजोर राष्ट्रों को दबाना कतई नहीं है। शक्ति सम्पन्न होने का अर्थ सबको साथ लेकर आगे बढ़ना है। यही भारत का मूल तत्व मूल विचार है, यही भारत की शक्ति है और इसी कारण आज विश्व में उसका आदर हो रहा है।

 

This Post Has One Comment

  1. घनश्यामदास गुप्ता

    शक्ति संपन्नता, शक्ति के प्रयोग में नहीं है,
    दिखाने में नहीं, बिना लडे़, युद्ध भी जीते जा सकते है. यह वाक्य विश्लेषण करता है.
    मेरी सोच में.
    (यहाँ यही संदेश विश्व गुरु ने दिया हो तो… )

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