महान संत, भाषाविद्, लेखक और वक्ता के तौर पर विश्व भर में जाने जाने वाले आचार्य धर्मेन्द्र का जाना राष्ट्र की अपूरणीय क्षति है। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन सनातन संस्कृति के उत्थान में लगाया। उनके पूर्वज महात्मा गोपालदास ने जजिया कर के विरुद्ध औरंगजेब के दरबार में कटार से अपना पेट फाड़ लिया था। आपने रामजन्म भूमि के कार्य को सर्वोपरि माना सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए तमाम आंदोलनों और समाज सुधार के कार्यों में भाग भी लिया।
वह कवि थे। लेखक थे। प्रखर वक्ता थे। भाषाविद थे। संत थे। वास्तव में आधुनिक भारत में क्रांति ऋषि के रूप में थे जिनसे बहुत लोगों ने बोलना और व्याख्यान देना सीखा है। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के इस महानायक के महाप्रयाण की सूचना बहुत दुखद है। हिंदी, अरबी, फारसी, संस्कृत और अंग्रेजी भाषा पर समान रूप से नियंत्रण रखने वाले आचार्य धर्मेंद्र जब बोलते थे तो श्रोता उनमें ही बहता चला जाता था। गजब की ओजस्विता थी। अद्भुत अलंकृत भाषा और अदम्य साहस। जबकि उन दिनों प्रखर हिंदुत्व की शैली में बात करना किसी अपराध से कम नहीं था। श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के अध्यक्ष होने के कारण महंत अवेद्यनाथ जी के पास उन दिनों देश भर से संत आते रहते थे। श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति के लिए अक्सर बैठकें होती रहती थीं। इसलिए उनका गोरखपुर आगमन होता रहता था। बाद के दिनों में बढ़ती उम्र के कारण संभवतः उनकी यात्रा बाधित हो गयी।
आचार्य धर्मेन्द्र विश्व हिन्दू परिषद के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल में शामिल थे। आचार्य महाराज का पूरा जीवन हिंदी, हिंदुत्व और हिन्दुस्थान के उत्कर्ष के लिए समर्पित है। अपने पिता महात्मा रामचन्द्र वीर महाराज के समान उन्होंने भी अपना सम्पूर्ण जीवन भारतमाता और उसकी संतानों की सेवा में, अनशनों, सत्याग्रहों, जेल यात्राओं, आंदोलनों एवं प्रवासों में संघर्षरत रहकर समर्पित किया है। आचार्य धर्मेंद्र ने राम मंदिर आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई थी। साथ ही विश्व हिंदू परिषद से लंबे समय तक जुड़े रहने के दौरान हमेशा चर्चा में रहे। वे राममंदिर मुद्दे पर बड़ी ही बेबाकी से बोलते थे। बाबरी विध्वंस मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह और उमा भारती सहित आचार्य धर्मेंद्र को भी आरोपी माना गया था। बाबरी विध्वंस मामले में जब फैसला आने वाला था तब आचार्य धर्मेंद्र ने कहा था कि मैं आरोपी नंबर वन हूं। सजा से डरना क्या? जो किया सबके सामने किया।
आठ वर्ष की आयु से आज तक आचार्य श्री के जीवन का प्रत्येक क्षण राष्ट्र और मानवता के अभ्युत्थान के लिए सतत तपस्या में व्यतीत हुआ है। उनकी वाणी अमोघ, लेखनी अत्यंत प्रखर और कर्म अद्भुत हैं। आचार्य धर्मेन्द्र अपनी पैनी भाषण कला और हाजिर जवाबी के लिए जाने जाते रहे। वे एक ओजस्वी, पटु वक्ता एवं हिन्दी कवि भी थे।
आचार्य श्री का जन्म माघ कृष्ण सप्तमी को विक्रम संवत 1998 ( 9 जनवरी 1942) को गुजरात के मालवाडा में हुआ। मध्य रात्रि के बाद पाश्चात्य मान्यता के अनुसार 10वी तारीख प्रारंभ हो गयी थी। हिन्दू कुल श्रेष्ठ आचार्य श्री माघ कृष्ण सप्तमी को ही अपना प्रमाणिक जन्मदिवस मानते है। पिता के आदर्शों और व्यक्तित्व का इनपर ऐसा प्रभाव पड़ा कि इन्होंने 13 साल की उम्र में वज्रांग नाम से एक समाचार पत्र निकाला। गांधीवाद का विरोध करते हुए इन्होंने 16 वर्ष की उम्र में भारत के दो महात्मा नामक लेख लिखा। इन्होंने सन 1959 में हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला के जवाब में गौशाला (काव्य) नामक पुस्तक लिखी।
वंश परिचय और स्वामी कुल परम्परा
जयपुर राज्य के पूर्वोत्तर में ऐतिहासिक तीर्थ विराट नगर के पार्श्व में पवित्र बाणगंगा के तट पर मैड नामक छोटे से ग्राम में एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण संत, लश्करी सम्प्रदाय के अनुयायी थे। गृहस्थ होते हुए भी अपने सम्प्रदाय के साधु और जनता द्वारा उन्हें साधु संतों के सामान आदर और सम्मान प्राप्त था। भगवान नरसिंह देव के उपासक इन महात्मा का नाम स्वामी गोपालदास था। गौतम गौड़ ब्राह्मणों के इस परिवार को ’स्वामी’ का सम्मानीय संबोधन जो भारत में संतों और साधुओं को ही प्राप्त है, लश्करी संप्रदाय के द्वारा ही प्राप्त हुआ था, क्योंकि कठोर सांप्रदायिक अनुशासन के उस युग में चाहे जो उपाधि धारण कर लेना सरल नहीं था। मुग़ल बादशाह औरंगजेब द्वारा हिन्दुओं पर लगाये गए शमशान कर के विरोध में अपना बलिदान देने वाले महात्मा गोपाल दास जी इनके पूर्वज थे। जजिया कर की अपमानजनक वसूली और विधर्मी सैनिकों के अत्याचारों से क्षुब्ध स्वामी गोपाल दास धरम के लिए प्राणोत्सर्ग के संकल्प से प्रेरित होकर दिल्ली जा पहुंचे। उन तेजस्वी संत ने मुग़ल बादशाह के दरबार में किसी प्रकार से प्रवेश पा लिया और आततायी औरंगजेब को हिन्दुओं पर अत्याचार न करने की चेतावनी देते हुए, म्लेंच्छों द्वारा शरीर का स्पर्श करके बंदी बनाये जाने से पूर्व ही, कृपाण से अपना पेट चीर कर देखते – देखते दरबार में ही प्राण विसर्जित कर दिए।
गोरक्षा आन्दोलन में अनुपम योगदान
1966 में देश के सभी गोभक्त समुदायों, साधु -संतों और संस्थाओं ने मिलकर विराट सत्याग्रह आंदोलन छेड़ा। महात्मा रामचन्द्र वीर ने 1966 तक अनशन करके स्वयं को नरकंकाल जैसा बनाकर अनशनों के सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए। जगद्गुरु शंकराचार्य श्री निरंजन देव तीर्थ ने 72 दिन, संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने 65 दिन, आचार्य धर्मेन्द्र महाराज ने 52 दिन और जैन मुनि सुशील कुमार ने 4 दिन अनशन किया। आन्दोलन के पहले महिला सत्याग्रह का नेतृत्व श्रीमती प्रतिभा धर्मेन्द्र ने किया और अपने तीन शिशुओं के साथ जेल गयीं।
श्री राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता दाऊ दयाल खन्ना ने मार्च, 1983 में मुजफ्फरनगर में संपन्न एक हिन्दू सम्मेलन में अयोध्या, मथुरा और काशी के स्थलों को फिर से अपने अधिकार में लेने हेतु हिन्दू समाज का प्रखर आह्वान किया। दो बार देश के अंतरिम प्रधानमंत्री रहे श्री गुलजारीलाल नंदा भी मंच पर उपस्थित थे।
पहली धर्म संसद – अप्रैल, 1984 में विश्व हिन्दू परिषद द्वारा विज्ञान भवन (नई दिल्ली) में आयोजित पहली धर्म संसद ने जन्मभूमि के द्वार से ताला खुलवाने हेतु जनजागरण यात्राएं करने का प्रस्ताव पारित किया। राम जानकी रथ यात्रा – विश्व हिन्दू परिषद ने अक्टूबर, 1984 में जन जागरण हेतु सीतामढ़ी से दिल्ली तक राम-जानकी रथ यात्रा शुरू की।
आज आचार्य श्री की देहलीला समाप्त हो गयी। उनके शब्द और उनकी कीर्ति प्रत्येक सनातन हिन्दू अनुयायी के लिए प्रेरणा स्वरूप सदैव ऊर्जा देते रहेंगे।
संजय तिवारी