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हौसलों की उड़ान

हौसलों की उड़ान

by सुनीता माहेश्वरी
in अक्टूबर-२०२२, कहानी, विशेष
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एक दिन अचानक पुल का एक हिस्सा ढह गया। वह दर्दनाक हादसा अनेक मजदूरों के संग गीतिका के बापू को भी निगल गया। गीतिका की आंखों में क्रोध उतर आया। वह सविता से कहने लगी, मां, ये इंजीनियर, ओवरसीयर, ठेकेदार घूस खाकर खराब माल लेते हैं। न इन्हें मजदूरों का खयाल है, न देश का। कितने मजदूर अपनी जान से हाथ धो बैठे, पर इन बेशर्मों को शर्म कहां है? इनकी तिजोरियां भर गईं। अब करेंगे मजदूरों की लाशों पर अय्याशी।

पिता दिनेश की मृत्यु को तीन महीन बीत चुके थे। अभी तक सरकार की तरफ से भी कोई सहायता नहीं मिली थी, हालांकि मृतक के परिवार को एक लाख रुपये देने की घोषणा की गई थी। रिसेशन के कारण गीतिका का ब्यूटीपार्लर का काम छूट गया था। मां-बेटी दोनों के मस्तिष्क में चिंता के बादल उमड़-घुमड़कर शोर मचा रहे थे।

कुछ देर बाद गीतिका रोते हुए बोली, मां तुमने और पापा ने इतनी गरीबी में भी मेहनत करके मुझे बी.ए. कराया, ब्यूटीशियन का कोर्स करवाया, पर देखो न मैं कुछ नहीं कर पा रही। कैसी बेबसी है मेरी। गीतिका की आंखों से आंसू की बूंद सविता के हाथ पर आ गिरी। सविता ने अपने आपको सम्भाला और बोली, सब ठीक हो जाएगा गीतू, परेशान मत हो। समय एक सा नहीं रहता।

सविता ने सोच लिया कि वह कॉलोनी में खाना बनाने का काम ढूंढ़ेगी। गीतिका एक महीना अखबार में जॉब खोजती रही, पर उसे निराशा ही हाथ लगी। एक दिन गीतिका ने रेडियो में आत्मनिर्भर भारत और स्वरोजगार योजना के विषय में सुना। वह यह समझ गई कि यदि व्यक्ति में कोई हुनर हो तो वह भूखा नहीं मरेगा। इस दिशा में उसके दिमाग के घोड़े दौड़ने लगे। उसने अपनी रुचि और विशेषताओं को समझा। वह स्वयं ब्यूटीपार्लर में नौकरी कर चुकी थी। हिंदी और अंग्रेजी भाषा पर उसका अच्छा कमांड था। उसने निर्णय कर लिया कि वह लोगों के घर जाकर ब्यूटीशियन का काम करेगी और इसमें वह सफल भी हुई। उसने अपनी लगन, ईमानदारी और मधुर व्यवहार से सबका दिल जीत लिया।

सविता ने भी शर्मा जी के घर खाना बनाने का काम शुरू किया और कुछ ही महीनों में उसने अपनी कुशलता से शर्मा जी व उनकी पत्नी कुसुम को खुश कर लिया। अक्सर गीतिका भी उनके घर जाती और कुसुम का भी फेशियल आदि कर देती। कुसुम उसके कौशल्य, सौम्य व्यवहार, उसके हिन्दी अंग्रेजी बोलने के अंदाज और ड्रेसिंग सेंस से बहुत अधिक प्रभावित थी।

एक दिन उन्होंने गीतिका से बातें करते हुए पूछा, तुम आगे क्या करना चाहती हो? गीतिका ने कहा, आंटी, मैंने बी. ए. के बाद ब्यूटीशियन का कोर्स किया है। मैं ब्यूटीपार्लर चलाना चाहती हूं।

गीतिका और सविता के घर जाने के बाद कुसुम ने शर्मा जी से कहा, सुनिए, अब हम लोग उम्र के आखिरी पड़ाव पर हैं। आदित्य भी अमेरिका में है। क्यों न हम सविता और गीतिका की सहायता कर दें, कुछ पुण्य का काम हो जाएगा। गीतिका बहुत समझदार और होशियार लड़की है।

शर्मा जी ने कहा, हां, भगवान ने हमें इस योग्य बनाया है कि हम किसी के काम आ सकें। समाज में एक दूसरे की सहायता करना सबका कर्तव्य होता है। मैं सोचता हूं कि यदि हम उसे अपना बाहर वाला कमरा ब्यूटी पार्लर के लिए बिना किराये के दे दें, तो उसकी बड़ी सहायता हो जायेगी।

कुसुम ने कहा, बहुत नेक विचार है।

जब कुसुम ने यह संदेश गीतिका को दिया, तब गीतिका पैर छूते हुए बोली, आंटी, आप और शर्मा अंकल तो बिलकुल भगवान हैं हमारे लिए।

गीतिका, जिनके हौसले बुलंद होते हैं, भगवान भी उन्हीं की सहायता करते हैं। कुसुम ने कहा।

गीतिका के हौसलों को पंख मिलना शुरू हो गये थे। शर्मा जी ने गीतिका के पार्लर का नामकरण किया और एक बोर्ड भी बनवा दिया, पर जरूरत का और सामान जैसे पार्लर चेयर, फुल साइज मिरर, हेयर ड्रायर, हेयर कलर, यूवी स्टेरिलाइजर, मेकअप ब्रश, वेक्स हीटर, पेडिक्योर, फुट स्पा, कॉस्मेटिक आदि भी चाहिए था। उसके लिए शर्मा जी ने लोन दिलवाने की व्यवस्था करवा दी थी । कुछ ही समय में गीतिका ने बेसिक चीजों का सेटअप बनाकर पार्लर चालू कर दिया था। अपने हौसलों की उड़ान से वह पार्लर को ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए वह बहुत मेहनत करती। उसने रेट्स भी बहुत रीजनेबिल रखे थे।

गरीबी के दिनों को पीछे छोड़ कड़ी मेहनत करते हुए दो वर्ष कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला। अपने हुनर, आशा, हौसलों, मधुर व्यवहार और शिक्षित होने के कारण गीतिका सफलता की नित नई सीढ़ियां चढ़ती जा रही थी। वह शर्मा परिवार में भी घुल मिल गई थी।

चार साल बाद शर्मा जी का बेटा आदित्य एक महीने के लिए अमेरिका से घर आया तो माता-पिता की खुशी आसमान छू रही थी। आदित्य भी सारे दिन माता-पिता से बात करता, घर की हर वस्तु को ध्यान से देखता।

एक दिन उसने पूछा, मम्मी घर तो इस बार आपने बहुत सुंदर सजाया है। किसी इंटीरियर डेकोरेटर को बुलाया था क्या?

अरे नहीं, यह सब कमाल तो गीतिका का है। कुसुम ने गीतिका और सविता की पूरी कहानी आदित्य को सुना दी।

आदित्य के आने पर सविता की जिम्मेदारी बहुत बढ़ गयी थी। वह नित नये पकवान बनाती। पार्लर के बाद गीतिका भी घर की व्यवस्था में बड़ी लगन से मां की सहायता करती। हम उम्र होने के कारण धीरे-धीरे गीतिका आदित्य के साथ घुल मिल गयी। आदित्य गीतिका से बहुत प्रभावित था। वह किसी न किसी बहाने से गीतिका के पास चला आता। गीतिका को भी उसका आना अच्छा लगता, पर मन ही मन वह दूरी बनाए रखने के लिए कटिबद्ध थी। वह जानती थी कि उसमें और आदित्य में जमीन और आसमान का अंतर है। गीतिका जितना अपने को रोकती, उतना ही उसकी ओर खिंची चली जाती। आदित्य का भी यही हाल था, पर इश्क पर किसका जोर चला है।

एक दिन गीतिका और आदित्य लॉन में खड़े बात कर रहे थे। गुलाब की महक से सारा वातावरण सुगंधित था। तभी आदित्य को शरारत सूझी, उसने लॉन में पड़ा पाइप उठाया और गीतिका को भिगो दिया। शर्म और गुस्से से गीतिका के गाल लाल हो गए थे। वह थोड़ा चिढ़ते हुए बोली, आदित्य जी, यह सब क्या है? आपको ऐसा नहीं करना चाहिए।

आदित्य ने मुस्कराते हुए कहा, अमेरिका में होली कहां खेलने को मिलेगी, मैंने सोचा तुम्हारे साथ यहीं होली खेल लूं। उसके शरारती अंदाज से गीतिका को भी जोश आ गया। उसने पाइप छीना और आदित्य को भिगो दिया। बिन होली के ही होली मन गई। दोनों का रंग एक दूसरे पर चढ़ चुका था। आंखों ने दिल का हाल बयान कर दिया था। गीतिका सम्भली और बोली, कोई आ जायेगा तो क्या कहेगा। उसने अपने दुपट्टे को खोलकर अपने गीले शरीर को ढका, फिर अपने पार्लर में चली गयी। आदित्य की आंखों में भी गीतिका की भीगी-भीगी छवि बसी हुई थी। वह अपने प्यार का इजहार करना चाहता था। पर उसके मन में प्रश्न था कि क्या मम्मी-पापा इस रिश्ते के लिए मान जाएंगे?

एक महीना कहां बीत गया पता ही नहीं चला। आदित्य अपनी यादें देकर फुर्र हो गया। गीतिका अपने मन को समझाती, जो हो नहीं सकता, उसकी चाह का क्या लाभ। गीतिका की मनोहारिणी छवियां आदित्य की आंखों के सामने आती रहतीं। कभी उसका प्यार, कभी गुस्सा, कभी शर्माना। उसे तो वह हर रूप में अच्छी लगती। कुछ दिन वह अपने आपको रोकता रहा। उसने अमेरिका जाकर गीतिका को फोन भी नहीं किया। लेकिन मन में यादों का बवंडर दोनों ओर छाया हुआ था। एक दिन अचानक आदित्य का फोन आया तो गीतिका में नया जोश भर गया, पर उसने अपनी भावनाओं को प्रकट नहीं होने दिया।

एक रात शर्मा जी को दिल का दौरा पड़ा। कुसुम के तो हाथ पैर फूल गए। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था, क्या करें? कैसे करें? वे रोने लगीं। उन्होंने गीतिका को फोन करके स्थिति बताई। गीतिका ने कहा, आंटी, आप परेशान न हों। मैं और मां अभी आपके पास पहुंच रहे हैं।

वह शर्मा जी को लेकर हॉस्पिटल गयी। तुरंत इलाज मिल जाने से शर्मा जी की जान बच गयी थी। डॉक्टर ने कहा था, अगर और थोड़ी देर हो जाती, तो हम शर्मा जी को नहीं बचा पाते। शर्मा जी की बाईपास सर्जरी करनी पड़ी थी। कुसुम ने गीतिका को हजारों आशीर्वाद दिए। गीतिका के कारण ही वह अपने पति को जीवित देख सकी। पिता की बाईपास सर्जरी के कारण आदित्य भी भारत आ गया। आदित्य और गीतिका दोनों शर्मा जी की खूब सेवा कर रहे थे।

इन दिनों कुसुम आदित्य और गीतिका के हावभाव में परिवर्तन महसूस कर रही थी। उसने शर्मा जी से कहा, मुझे लगता है कि आदित्य और गीतिका के बीच कुछ प्रेम व्रेम चल रहा है।

शर्मा जी ने कहा, तो इसमें बुराई क्या है। इतनी सुंदर, संस्कारी, पढ़ी लिखी, होशियार लड़की है। अगर हमारी बहू बन जाए तो अच्छा ही रहेगा। इतनी गरीबी में भी उसने अपने आपको निखारा है। वैसे भी जहां बच्चे खुश, वहां हम खुश। चलो आदित्य कहे, उससे पहले हम ही उसके सामने प्रस्ताव रख देते हैं।

कुसुम ने गीतिका का फोटो आदित्य की टेबल पर रख दिया और उस पर लिख दिया, क्या तुम्हें शादी के लिए यह लड़की पसंद है? फोटो देखकर आदित्य को विश्वास ही नहीं हो रहा था।

वह मां से जाकर लिपट गया। मां आपने मेरी पसंद कैसे जान ली?

कुसुम मुस्कराते हुए बोलीं, बेटा, मां-बाप से कब छुपती हैं, बच्चों की बातें।

शर्मा जी ने सविता और गीतिका को बुलाया और कहा, सविता, हम तुम्हारी बेटी को अपनी बहू बनाना चाहते हैं।

सविता और गीतिका को अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था।

इतनी बड़ी खुशी ऐसे मिल जाएगी, कभी उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था।

सविता कुसुम के पैरों में गिरने लगी। कुसुम ने उसे उठाया और गले लगाकर कहा, सविता अमीरी-गरीबी तो आती जाती रहती है। हमने तुम्हारे संस्कारों को देखा है।

गीतिका की आंखें खुशी से छलक पड़ीं। वह बोली, आज मैं जो कुछ भी हूं, आपके कारण ही हूं।

शर्मा जी ने बड़े स्नेह से कहा, बेटी तुम अपने हौसलों की उड़ान, अच्छे व्यवहार, लगन, निष्ठा और अपने हुनर के कारण जीवन में आगे बढ़ रही हो, हमने तो बस थोड़ा सा सहारा दिया है। असल बात यह है कि तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हें शिक्षित कर सबसे नेक काम किया है।

गीतिका अपनी मां से लिपट गयी और कहने लगी, मां यदि तूने और बापू ने मुझे पढ़ाया न होता तो मैं भी कहीं कचरा बीन रही होती या ईंट गारा ढो रही होती।

कुसुम ने प्यार से चेन पहनाते हुए कहा, तुम्हारा और आदित्य का जन्मों-जन्मों का साथ हो।

आदित्य गीतिका को देखकर मुस्करा रहा था और गीतिका खुशी से रो भी रही थी और हंस भी रही थी। उसे जमाने की सबसे बड़ी खुशी जो मिल गई थी।

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