“सब कुछ सत्ता के लिए”

भारत जोड़ो यात्रा जो राहुल गांधी के नेतृत्व में केरल से निकली है वह महाराष्ट्र से निकलती हुई आगे बढ़ रही है। यात्रा जैसे-जैसे आगे बढ़ी वैसे -वैसे स्वातंत्र्यवीर सावरकर पर उन्होंने जो आरोप किए, वे आरोप सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित हो चुके हैं, अतः उसके दो-तीन वाक्य ही हम यहां संदर्भ के लिए ले रहे हैं। “स्वातंत्र्य वीर सावरकर को अंडमान में काले पानी की सजा मिलने  के बाद उन्होंने अंग्रेजों को माफीनामा  लिखने की शुरुआत की थी”।  देश विरोधी कृत्य करने के लिए अंग्रेजों ने सावरकर जी को साथ देने के लिए कहा और उसके अनुसार सावरकर जी ने अंग्रेजों की मदद भी की”।

राहुल गांधी ने बालासाहेब की शिवसेना, भारतीय जनता पार्टी और उद्धव सेना को एक समान कार्यक्रम दिया, इस बाबत उनके जितने आभार माने जाए उतने ही कम है। गत जून से महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे, एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस इनके चारों ओर ही महाराष्ट्र की राजनीति घूम रही है। शिवसेना दो फाड़ हो गई और दोनों शिवसेनाओं का राहुल गांधी ने विरोध किया है। आगे क्या होता है यह देखा जाएगा।

सावरकर पर राहुल गांधी के आरोप नए नहीं हैं। गत आठ, दस वर्षों से वे यह आरोप कर रहे हैं। आरोप लगते ही उसका खंडन सावरकर भक्त करते हैं। राहुल गांधी को खंडन की जरूरत नहीं है। सावरकर का माफीनामा गलत या सही यह विषय भी नहीं। सावरकर कैसे सही थे यह समझाने की जरूरत नहीं। यह राजनीति है और उसे ही समझना होगा।

राहुल गांधी के ऐसे वक्तव्य पढ़ने के बाद अनेक मनों में ऐसा प्रश्न उठता है कि राहुल गांधी पगला गए हैं क्या ? मूर्ख है क्या ? उन्हें सावरकर समझे नहीं क्या ? ऐसे सारे प्रश्न निरर्थक हैं। राहुल गांधी मूर्ख नहीं, पगलाए भी नहीं हैं। बहुत विचार पूर्वक सावरकर का विषय उन्होंने उठाया है। उसके पीछे सत्ता की राजनीति है। 2014 में कांग्रेस की सत्ता गई। राहुल गांधी का प्रधानमंत्री बनने का सपना मिट्टी में मिल गया। 2019 में उसकी पुनरावृत्ति हुई और 2024 में भी वही घटित होने वाला है। यह अटल सत्य है। उसे रोकने के लिए राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा चालू है।

वे दो भूमिकाओं में चल रहे हैं एक नैतिक और दूसरी वैचारिक। सबको प्रेम से जोड़ना है यह नैतिक भूमिका है। संघ, भाजपा और सावरकर का विरोध यह वैचारिक भूमिका है। स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस की वैचारिक भूमिका मुख्यत: हिंदु विरोधी रही है। तुष्टीकरण, जातिवाद यह दो अंग हैं। तुष्टीकरण के लिए ही कश्मीर को अलग दर्जा देने वाली धारा 370 संविधान में जोड़ी गई। समान नागरिक कानून नकार दिया गया। जातिवाद के कारण अलग-अलग जातियों की अस्मिता की राजनीति शुरू हो गई। विदेशी व्यवहारों के हाथ में भीख के कटोरे लेकर विश्व को नैतिक उपदेश देना  शुरू किया गया। कांग्रेसी समाजवाद के कारण सरकारीकरण, प्रशासकीय भ्रष्टाचार और विकास दर 3:30 प्रतिशत हो गई। औद्योगिक ऊर्जा में कमी आई। भाजपा और नरेंद्र मोदी ने विकास की दर बढ़ाना प्रारंभ किया। उन्होंने देश को 180 अंश घुमा दिया, अब विकास की दर सात से आठ प्रतिशत हो गई। तुष्टिकरण को गड्ढे में फेंक दिया गया। काशी का कॉरीडोर और अयोध्या का राम मंदिर ये उसके ज्वलंत उदाहरण हैं। धारा 370 को हटाया और तीन तलाक बंद कर दिया गया।

सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार जल्द ही धर्मांतरण विरोधी कानून बनेगा। इसका अर्थ यह है कि नेहरु की विचारधारा को कचरे के डब्बे में डाल दिया गया। अब देश की  सनातन विचारधारा आगे-आगे नेतृत्व करते हुए अग्रक्रम पर चल रही है। इस विचारधारा का वैचारिक प्रतिनिधित्व सावरकर जी ने किया। आरएसएस ने यह विचारधारा देश के घर-घर तक पहुंचाई। भारतीय जनता पार्टी ने इस विचारधारा को कार्यक्रमों में परिवर्तित कर दिया। राहुल गांधी को यह विचारधारा पसंद नहीं।वे पुन: कांग्रेस युग की परिस्थिति लाना चाहते हैं और उसके लिए वे आंदोलन व संघर्ष, भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से कर रहे हैं।

 

 

 

 

 

 

 

राहुल गांधी अपने तरीके से संघर्ष कर रहे हैं। मेरा राज्य गया, गद्दारी हुई, ऐसी डींगे वे नहीं मार रहे हैं। लढ़ने वाले योद्धा का आदर किया जाना चाहिए। भले ही उसने गलत युध्द क्षेत्र और गलत नीतियां बनाई हो फिर भी। रोते से लड़ना हमेशा ही अच्छा। सावरकर की राहुल गांधी ने बदनामी की इसके लिए उनकी प्रतिमा को जूते चप्पलों से मारना योग्य नहीं है। वे जो कष्ट सह रहे हैं उसके लिए “बेटा तू गलत मार्ग पर निकल पड़ा है” कहकर सहानुभूति व्यक्ति की जानी चाहिए। सावरकर को बदनाम कर सावरकर की विचारधारा बदनाम नहीं की जा सकती। हिंदुत्व के अश्वमेध को अब कोई भी रोक नहीं सकता।

यात्रा हमारे लिए नवीन विषय नहीं है और इसीलिए यात्रा देखने तथा राहुल गांधी को देखने के लिए भीड़ होना स्वाभाविक ही है परंतु यह भीड़ स्वीकारोक्त नहीं है। परिपक्व राजनेता को यह समझ में आता है। राहुल गांधी को यह बात कितनी समझ में आती है यह वे स्वत: ही जानते हैं। अपना देश सनातन है। उसकी एक प्राचीन विचार परंपरा है, इस देश का एक जीवन दर्शन है। पंडित नेहरू इन सब का प्रतिनिधित्व नहीं करते थे, कांग्रेस में इसका प्रतिनिधित्व महात्मा गांधी कर रहे थे। वे अपने तरीके से हिंदू जीवन पद्धति के माध्यम से अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। राजनीतिक अर्थों में वे नेहरू के समान कांग्रेसी नहीं थे। वे सनातनी राष्ट्रीय थे। कांग्रेस अपने आप को महात्मा गांधी का उत्तराधिकारी बताती है परंतु गांधी जी की हिंदू विचारधारा को लात मारती है। इसलिए यदि कांग्रेस का मुखौटा फाड़ना है तो महात्मा गांधी का हिंदुत्व क्या था, इसका अध्ययन करना होगा।

लोक भाषा में उसका विचार भी करना होगा। गांधीजी राम भक्त थे और नेहरू – सोनिया की कांग्रेस राम विरोधी हैं। अयोध्या में राम मंदिर बनने से रोकने में कांग्रेस ने अपनी पूरी शक्ति लगा दी, ऐसी कांग्रेस हिंदू प्रिय हो यह संभव नहीं है। राहुल गांधी के सलाहकार उन्हें योग्य सलाह नहीं देते, ऐसा इसका अर्थ नहीं होता। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ए. के. एंटोनी ने कांग्रेस पराजित क्यों होती है इसका एक प्रतिवेदन दिया था। उसमें उन्होंने कहा था कि कांग्रेस हिंदू विरोधी है, हिंदू जनता को लगता है राहुल गांधी को वह प्रतिवेदन पढ़ना चाहिए, मनन-चिंतन करना चाहिए। स्वातंत्र्य वीर सावरकर पर कीचड़ उछालना घाटे का राजकीय सौदा है, यह उनको चुनावी झटके खाने के बाद ध्यान में आएगा।

नेहरू जी की विचारधारा, स्वातंत्र्य वीर सावरकर सहित सभी हिंदुत्ववादी प्रवक्ताओं से नहीं लड़ सकती। स्वतंत्रता के बाद वह एक अवस्था थी। इस अवस्था में उन्हें यश मिला। मुसलमान, ईसाई ,दलित की वोट बैंक उन्होंने तैयार की। यह अप्राकृतिक होने के कारण ज्यादा समय नहीं टिकी। कैथोलिक सोनिया के कारण केरल और अन्य राज्यों  में कैथोलिक, सोनिया कांग्रेस के पीछे हैं। वे राहुल गांधी को चुन कर भेज सकते हैं परंतु प्रधानमंत्री नहीं बना सकते। हिंदू जनता ने अपना प्रधानमंत्री चुन लिया है और उसका नाम है नरेंद्र मोदी।

नरेंद्र मोदी और पंडित नेहरू इनमें दो ध्रुवों का अंतर है। नेहरू कभी मंदिर में नहीं गए, किसी भी मंदिर का जीर्णोद्धार उन्होंने नहीं किया। प्रधानमंत्री मोदी गंगा की आरती करते हैं और राम मंदिर का भूमि पूजन करते हैं, फिर भी वे सेकुलर हैं। सेक्युलरिज्म याने हिंदू विरोध, यह नेहरू जी की नीति थी और सेक्युलरिज्म सभी धर्म मतों का आदर- सम्मान यह मोदी जी की नीति है। मोदी जी का हिंदुत्व, विकास के असंख्य कार्यक्रमों से प्रकट होता है और अंतरराष्ट्रीय नीतियों में भी प्रकट होता है। पंडित नेहरू के विषय में ऐसा कहा जाता है कि वे आखरी ब्रिटिश शासक थे और नरेंद्र मोदी के विषय में कहा जाता है कि वे सनातन भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं। कालचक्र कोई भी व्यक्ति विपरीत दिशा में नहीं घुमा सकता। राहुल गांधी वैसा प्रयत्न कर रहे हैं इन प्रयत्नों को कौन से विशेषण लगाना यह मैं पाठकों पर छोड़ देता हूं।

This Post Has 3 Comments

  1. Anonymous

    Very poor translation of original Marathi. Many sentences are contradictory and away from Marathi article

  2. Vidya rane

    Nice explained 👍🏻👌🏻

  3. Anonymous

    Nice explained 👍🏻👌🏻

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