रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर होता भारत

12वें डिफेंस एक्सपो ने संसार को दिखा दिया कि हम आयात करने वाले राष्ट्रों की श्रेणी से बाहर निकल कर प्रमुख निर्यातक राष्ट्रों के ग्रुप में पहुंच गए हैं। इससे हमारी रक्षा प्रणाली तो मजबूत होगी ही, वैश्विक स्तर पर साख में भी बढ़ोत्तरी होगी। प्रधान मंत्री के व्यक्तिगत दिलचस्पी की वजह से इस क्षेत्र में राष्ट्र के प्रगति की अपार सम्भावनाएं हैं।

वास्तव में आत्मनिर्भर संकल्प के फलस्वरूप ही अब हम दुनिया में अर्थव्यवस्था में पांचवी पायदान पर पहुंच गये हैं। ‘मेक इन इंडिया’ तथा ‘मेक फॉर वर्ल्ड‘ पॉलिसी का ही प्रतिफल है कि अब हम रक्षा के क्षेत्र में भी निर्यात वाले देश बन गये हैं। सात दशक के बाद रक्षा तैयारियों में सजगता दिखाई दी। वर्तमान सरकार न केवल रक्षा क्षेत्र का विस्तार कर रही है, बल्कि वह निजी क्षेत्र की साझेदारी में लड़ाकू जेट विमान, हेलीकॉप्टर विमान वाहक पोत, पनडुब्बियां, टैंक एवं अन्य आवश्यक सामरिक साधन देश में ही बनाने पर विशेष बल दे रही है। गुजरात के गांधीनगर में 12वें डिफेंस एक्सपो 2022 के अवसर पर आयोजित ‘इन्वेस्ट इन डिफेंस’ कार्यक्रम में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि देश में रक्षा उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। उन्होंने घरेलू रक्षा उद्योग में निर्यात को लम्बी दूरी का आधार स्तम्भ करार करते हुए कहा कि सरकार ने वर्ष 2025 तक रक्षा निर्यात के लिए 5 अरब डॉलर (लगभग 41 हजार करोड़ रुपये) का लक्ष्य रखा है। इसके साथ ही सरकार इसी अवधि में रक्षा उत्पाद बढ़ाकर 22 अरब डालर (लगभग 1.82 लाख करोड़ रुपये) करने का लक्ष्य लेकर चल रही है।

विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि यह पहला रक्षा एक्सपो है, जहां केवल भारतीय कम्पनियों ने भाग लिया और इसमें केवल ‘मेड इन इंडिया’ उपकरण शामिल किये गये हैं। ‘डिफेंस एक्सपो’ भी प्रतीक है- वास्तव में भारत के प्रति वैश्विक विश्वास का। दीसा में परिचालन के साथ हमारी सेना की उम्मीद इस डेफ-एक्सपो में हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एच.ए.एल.) द्वारा डिजायन किये गये एच.टी.टी.-40 स्वदेशी ट्रेनर विमान का अनावरण व दीसा एयर फील्ड की आधारशिला के साथ पूरी हुई। रक्षा के क्षेत्र में नया भारत मंशा, नवाचार और कार्यान्वयन के मंत्र के साथ आगे बढ़ रहा है। निःसन्देह भारत का रक्षा क्षेत्र इसे अवसरों के अनंत आकाश के रूप में देख रहा है। इस एक्सपो में 1300 से अधिक प्रदर्शक रहे, जिसमें भारत रक्षा उद्योग व भारत रक्षा उद्योग से जुड़े कुछ संयुक्त उद्यम, स्माल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज (एम.एस.एम.ई.) और 100 से अधिक स्टार्टअप शामिल हुए। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह एक ही फ्रेम में भारत की क्षमता और सम्भावनाओं की एक झलक प्रदान करता है और पहली बार 450 से अधिक समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर भी किये गये।

भारत जहां अपने सपनों को साकार करने का आकार दे रहा है, वहां इसके लिए अफ्रीका के 53 मित्र देश हमारा साथ दे रहे हैं। भारत व अफ्रीका के बीच यह सामरिक सम्बंध समय-परीक्षणित विश्वास पर आधारित है, जो समय बीतने के साथ और गहरे तथा नये आयामों को छू रहे हैं। कोरोना काल में जब सम्पूर्ण विश्व वैक्सीन को लेकर बेहद चिंतित व परेशान था, तब भारत ने अपने इन अफ्रीकी मित्र देशों को प्राथमिकता देते हुए वैक्सीन उपलब्ध करवायी थी। प्रधान मंत्री ने कहा कि, आज अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा से लेकर वैश्विक व्यापार तक, समुद्री सुरक्षा विशेष रूप से वैश्विक प्राथमिकता के रूप में उभरी है। वैश्वीकरण के युग में मर्चेंट नेवी की भूमिका का भी विस्तार हुआ है। इस समय दुनिया भर की भारत से आशायें एवं आकांक्षायें अधिक हैं और विश्व समुदाय को मैं विश्वास दिलाता हूं कि भारत उन्हें पूरा करेगा। इसलिए यह डिफेंस एक्सपो भारत के प्रति वैश्विक भरोसे का भी प्रतीक बन गया।

निश्चित रूप से स्वावलम्बन व स्वाभिमान की सोच के फलस्वरूप ही हमारी सुरक्षा सघन और सशक्त हुई है। डिफेंस एक्सपो 2022 के अवसर पर आयोजित ‘इनवेस्ट इन डिफेंस’ कार्यक्रम में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि, देश में रक्षा उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। इस अवसर पर उन्होंने निवेशकों से अपील की कि वे किसी भी मसले को हल करने के लिए सीधे उनसे या रक्षा मंत्रालय से बिना संकोच सम्पर्क कर सकते हैं। रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में न केवल बड़े कार्पोरेट बल्कि स्टार्टअप और माइक्रो, स्माल एण्ड मीडियम एण्टरप्राइजेज (एम.एस.एम.ई.) भी जुड़ रहे हैं। रक्षा क्षेत्र के लिए यह स्वर्णकाल कहा जा सकता है। भारतीय रक्षा उद्योग भारत के भविष्य का उभरता क्षेत्र है। स्थानीय स्तर पर रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाये गये हैं।

रक्षा मंत्री ने बताया कि पहले रक्षा मंत्रालय ने निजी निवेशकों के लिए दरवाजे बंद कर रखे थे। इसी कारण से रक्षा मंत्री व अधिकारी रक्षा के क्षेत्र के निवेशकों से इस आशंका के कारण बैठक नहीं करते थे कि उन पर कोई उंगली उठा देगा, लेकिन हमें अब उसकी चिंता नहीं है। हमारे द्वार आपके ‘निजी निवेशकों’ हेतु सदैव खुले हुए हैं। रक्षा व देश की आर्थिक सम्पन्नता एक दूसरे की पूरक हैं। यदि देश खतरों से सुरक्षित रहा तो और तेजी से प्रगति पथ पर आगे बढ़ेगा। वास्तव में यह आयोजन अपने मित्र देशों की आवश्यकताओं की आपूर्ति करते हुए घरेलू जरूरतों को पूरा करने के समग्र उद्देश्य से किया गया। इसमें भारतीय व वैश्विक ग्राहकों के साथ भारतीय एयरोस्पेस और रक्षा विनिर्माण क्षेत्रों के लिए समर्थन, प्रदर्शन और साझेदारी बनाने हेतु आयोजित किया गया। इसका प्रमुख लक्ष्य रक्षा उत्पादनों के प्रोत्साहन के साथ रक्षा क्षेत्र में शोध और नवीनतम तकनीकों का विकास करना है।

उल्लेखनीय है कि विगत 30 अक्टूबर 2022 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भारतीय वायु सेना के लिए सी-295 मध्यम दर्जे के परिवहन विमान की विनिर्माण सुविधा की आधारशिला रखने के बाद से ही भारत अब परिवहन विमानों का एक प्रमुख निर्माता बन जायेगा। उन्होंने कहा भारत विनिर्माण सहित अन्य क्षेत्रों में भी तेजी से आर्थिक विकास देख रहा है, क्योंकि मौजूदा सरकार की नीतियां स्थिर, अनुमानित और भविष्योन्मुखी हैं। आज भारत एक नई सोच और नई कार्य संस्कृति के साथ कार्य कर रहा है। देश में सी-295 विमान के विनिर्माण से न केवल सेना को शक्ति मिलेगी, बल्कि इससे एयरोस्पेस इको सिस्टम भी तैयार होगा। इस अवसर पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा यह आधारशिला रखना रक्षा के क्षेत्र में देश की आत्मनिर्भरता की यात्रा में मील का पत्थर है। देश में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम से लैस इन विमानों का निर्यात किया जायेगा। इन 56 परिवहन विमानों के लिए वायुसेना के साथ 21,900 करोड़ रुपये का एक समझौता भी हो गया है। नवनिर्मित सी-295 विमान वायु सेना के पुराने एवरो विमान की जगह लेगा।

दुनिया के सबसे हल्के लड़ाकू विमानों से गिने जाने वाले लाइट कॉम्बैट एयरक्रॉफ्ट तेजस (एल.सी.ए. मार्क-2) का उत्पादन अब हिंदुस्तान एयरो नॉटिक्स लिमिटेड (एच.ए.एल.) अपने दम पर शुरू करेगा, क्योंकि उच्च लागत के कारण सभी निजी कम्पनियां पीछे हट गयी हैं। एल.सी.ए. तेज मार्क-2 भारतीय वायु सेना में अब मध्यम मल्टीरोल विमानों की कमी को पूरा करेगा और पहले से ही सेवा में तैनात विमान मिराज-2000 का स्थान भी लेगा। इस संदर्भ में भारतीय वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल वी.आर. चौधरी ने बताया कि भारतीय वायुसेना एल.सी.ए. तेजस मार्क-2 की छह स्क्वाड्रन बनायेगी। प्रति स्क्वाड्रन में 18 विमानों के हिसाब से वायु सेना को 108 जेट विमानों की आवश्यकता है। भविष्य में स्थिति के आधार पर यह संख्या और अधिक बढ़ सकती है। निकट भविष्य में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए रक्षा और एयरोस्पेस क्षेत्र दो महत्वपूर्ण स्तम्भ होंगे। निःसंदेह नई सोच व कार्य संस्कृति के बल पर ही हम नया इतिहास रच सकने में सफल हो सकेंगे।

रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने और आगामी वर्ष 2025 तक 5 अरब डॉलर का निर्यात लक्ष्य प्राप्त करने के लिए यह डिफेंस एक्सपो 2022 इस बात का प्रतीक बन गया। एक उभरते रक्षा विनिर्माण केंद्र के रूप में स्वयं को सफलतपर्वूक भारत ने स्थापित किया है, जिसके फलस्वरूप ही हाल के वर्षों में भारतीय कम्पनियों को अनेक अन्तरराष्ट्रीय आर्डर मिले हैं। देश के पहले स्वदेश निर्मित हल्के लड़ाकू हेलीकाप्टर प्रचंड (एस.सी.एच.) का भारतीय वायु सेना का अंग बनना एक गौरवशाली उपलब्धि का प्रतीक है। वास्तव में रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ाया गया एक और महत्वपूर्ण कदम है। अनेक देशों ने तेजस को खरीदने में वैसी ही अपनी रुचि दिखायी है, जैसी स्वदेश निर्मित प्रक्षेपास्त्रों (मिसाइलों)को लेकर दिखायी थी। सितम्बर 2022 में स्वदेशी युद्धपोत ‘आई.एन.एस. विक्रांत’ भारतीय नौ सेना का विमान वाहक जलयान एक बड़ी शान बन गया है और इससे देश की सामुद्रिक सुरक्षा परिधि को एक मजबूती मिली है। उल्लेखनीय है कि स्वदेश निर्मित एल.सी.ए. तेजस की खरीददारी हेतु मलेशिया, अर्जेंटीना अमेरिका, आस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, मिस्र तथा फिलीपींस इच्छुक हैं। हथियार बेचने में भारत दुनियाभर में 24वें स्थान पर पहुंच चुका है। 2020-21 में 13 हजार करोड़ रुपये के हथियारों का निर्यात हुआ है।

भारत अपनी ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मना रहा है, इसी के तहत डेफएक्सपो-2022 प्रदर्शनी में अपनी थीम ‘पाथ टू प्राइड’ के रूप में राष्ट्रवादी गौरव का स्पष्ट संकेत दिया। रक्षा मंत्रालय ने हाल के वर्षों में अनेक नीतिगत सुधार किये हैं। जिसके तहत औद्योगिक लाइसेंसिंग प्रक्रिया का सरलीकरण, स्वचालित मार्ग से 74 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ.डी.आई.) की अनुमति, केवल भारतीय निर्माताओं से खरीदी जाने वाली वस्तुओं की सकारात्मक सूची जारी करना, सात नई कम्पनियों की शुरुआत, रक्षा उत्कृष्टता के लिए नवाचार (आई.-डोक्स), डिफेंस इनोवेशन स्टार्ट अप चैलेंज (डी.आई.एस.सी.), डेफ-कनेक्ट, रक्षा में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (ए.आर.डी.ई.एफ.) आदि प्रमुख रूप से हैं। रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण की प्रक्रिया के साथ सैन्य क्षेत्र में आधुनिकीकरण पर भी विशेष ध्यान दिया जाना निःसन्देह एक बड़ा सराहनीय, सकारात्मक, सामयिक व सामरिक कदम कहा जा सकता है।

यह सर्वविदित है कि भावी युद्धों में सैनिकों की संख्या से कहीं अधिक महत्वपूर्ण उनकी क्षमता, दक्षता, कार्यकुशलता, अतिआधुनिक शस्त्रास्त्र व उपकरण तथा सूचना एवं तकनीकी (आई.टी.) ढांचे पर आधारित होगी। आत्मनिर्भर संकल्प के साथ ‘मेक इन इंडिया’ एवं ‘मेक फार वर्ल्ड पॉलिसी’ का ही प्रतिफल है कि अब हम रक्षा क्षेत्र में सर्वाधिक आयात करने वाले देशों से हटकर निर्यात करने वाले देशों में शामिल हो गये हैं। जरूरत है कि हमारी पॉलिसी, प्रोसेस एवं प्रोडक्शन उत्तम से उत्तम होने वाली सोच हो। सार्थक सोच एवं व्यवहारिक कदम के बल पर देश सैन्य क्षेत्र में सही अर्थों में आत्मनिर्भर और सशक्त भारत बन रहा है। आज हमारा युद्ध सामग्री, एयरोनॉटिक्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, एवियोनेक्स, इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर, लैण्ड काम्बैट इंजीनियरिंग, सेन्सर, वायरलेस, उपग्रह संचार प्रणाली, जैवकीय सुरक्षा, प्रक्षेपास्त्र और नौ सेना प्रणाली जैसी प्रत्येक रक्षा तकनीकी क्षेत्र में शोध, विकास एवं उत्पादन कार्य निरंतर प्रगति की ओर बढ़ रहा है।

निःसन्देह रक्षा के क्षेत्र में अबाध गति से जारी आत्मनिर्भरता न केवल अपने सशस्त्र बलों को उपयुक्त आकार, आधार, उपकरण, कौशल व नवीनतम तकनीक से लैस करेगी, बल्कि उन्हें और अधिक सक्षम, सशक्त, पेशेवर तथा प्रहारक बनाने में सक्रिय भूमिका भी निभायेगी। इससे सैन्य क्षमता एवं कार्यकुशलता के साथ ही उनके उत्साह में भी स्वमेव वृद्धि हो जायेगी। स्वावलम्बन एवं स्वाभिमान के साथ हमारी सुरक्षा व्यवस्था न केवल सघन एवं सशक्त होगी, बल्कि आत्मनिर्भर भारत बनाने का संकल्प भी साकार हो सकेगा। भारत ने हाल ही में अत्याधुनिक व भारी रॉकेट एल.एम.वी.-एम-2 के माध्यम से एक साथ 36 सेटलाइटों को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में स्थापित करके आत्मनिर्भरता के साथ आधुनिकीकरण की ओर बढ़ाने का स्पष्ट संकेत दे दिया है।

                                                                                                                                                                                    डॉ . सुरेन्द्र कुमार मिश्र 

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