मौजूदा दौर में बचपन को घेरती समस्याएँ जमीनी जद्दोजहद से तो जुड़ी ही हैं, ग्लैमर की चमक-दमक और आभासी संसार में चर्चित होने के दिखावटी-बनावटी प्रस्तुतिकरण का भी नतीजा हैं | यही वजह है कि बीते दिनों राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा मनोरंजन उद्योग में बाल कलाकारों से संबंधित दिशानिर्देशों का एक मसौदा अधिसूचित होने के बाद उल्लंघन के मामले सामने आने पर सख्त कार्रवाई करने की हिदायत दी गई है | दिशा-निर्देशों के मसौदे में कहा गया है कि किसी भी बच्चे को लगातार 27 दिन से अधिक काम करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इसके अलावा एक दिन में उससे छह घंटे से अधिक काम नहीं कराया जा सकता। साथ ही बच्चे की आय का 20 प्रतिशत हिस्सा एक राष्ट्रीयकृत बैंक में सावधि जमा खाते में भी जमा कराना होगा। इन नियमों का उद्देश्य फिल्मों, टीवी, रियलिटी शो, सोशल मीडिया और ओटीटी मंचों पर काम करने वाले बाल कलाकारों को शारीरिक व मनोवैज्ञानिक तनाव से बचाना और उनके लिए स्वस्थ कार्य वातावरण सुनिश्चित करना है।
उल्लेखनीय है कि अब लोकप्रियता के संसार में बच्चों के लिए टेलीविजन और फिल्मों के अलावा कई दूसरे माध्यम भी जुड़ गए हैं | नतीजतन, बालमन की उलझनें और आपाधापी भी बढ़ गई है | इसीलिए यह सख्ती आवश्यक भी है | गौरतलब है कि 2011 में जारी दिशानिर्देशों के बाद से संबंधित कानूनों में कई संशोधन भी हुए हैं | इतना ही नहीं किशोर न्याय अधिनियम 2015, बाल श्रम संशोधन अधिनियम 2016, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम 2012, और सूचना प्रौद्योगिकी नियमावली 2021 के नियमों के मुताबिक अब बच्चों को अपराधों से बचाने के लिए बीते कुछ बरसों में कई नए कानून बने हैं | साथ ही राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को टेलीविज़न कार्यक्रमों और ओटीटी मंचों से जुड़े बच्चों को लेकर कई शिकायतें भी मिलने के कारण भी नए नियम जारी किए गए हैं | समग्र रूप से यह पहल चकाचौंध की दुनिया में बच्चों के काम के घंटों और काम करने के परिवेश को लेकर सतर्क रहने आवश्यकता पर बल देते हैं | साथ ही शिकायतों को गंभीरता से लेने और कठोर कार्रवाई करने की बात भी कही गई है | हाल के एक अध्ययन में सामने आया है कि बाल कलाकारों से औसतन प्रतिदिन 12 घंटे से ज्यादा का काम लिया जाता है। ऐसे में ये सभी बिन्दु बचपन को सहेजने के कई पहलुओं से जुड़े हैं |
असल में देखा जाए तो नाम और दाम कमाने की इस चमक-दमक के इस खेल में बच्चों के लिए शारीरिक- मानसिक प्रताड़ना कम नहीं है | दुखद है कि फिल्म और टीवी की दुनिया की व्यावसायिकता ही नहीं आम जीवन में भी बच्चों को एक अर्थहीन लोकप्रियता की ओर धकेला जा रहा है | आभासी मंचों ने लोगों की इस दीवानगी को समझते हुए इसे कमाई करने की होड़ से भी जोड़ दिया है | देखने में आ रहा है कि सोशल मीडिया पर नाचते-गाते, द्विअर्थी संवाद बोलते, किसी का उपहास उड़ाते बच्चों के वीडियो डालकर चर्चित होने का जुनून रखने वाले अभिभावक भी इस मामले में पीछे नहीं हैं | रील्स और वीडियो बनाने की सनक ने मासूमों के जीवन में तकलीफदेह स्थितियाँ पैदा कर दी हैं। जिसे ख़ुद उनके भी अभिभावक ही हवा दे रहे हैं | ऐसे में एक ओर ग्लैमर का बाज़ार बच्चों का बचपन छीन रहा है तो दूसरी ओर अपने भी उन्हें आभासी चमक दमक की दुनिया का हिस्सा बना रहे हैं |
आशा है कि इन दिशा-निर्देशों के चलते अब रियलिटी शोज और सोशल मीडिया के लिए बनने वाले वीडियो कंटेंट में भी बच्चों के शोषण और उनसे करवाए जाने वाले अजब-गजब कामों पर रोक लग सकेगी | ये नियम फिल्म, विज्ञापन, टीवी, ओटीटी मंचों, समाचार और सोशल मीडिया के लिए सामग्री तैयार करने जैसे सभी मोर्चों पर पर लागू होंगे। उल्लेखनीय है कि टेलीविज़न, फिल्मों और अन्य माध्यमों के कार्यक्रमों में भागीदार बनने वाले बच्चों की उम्र तो साल-दर-साल और कम ही हो रही है | बालमन की मासूमियत से दूर इन कार्यक्रमों में धड़ल्ले से द्विअर्थी संवाद बोलते, अजब-गज़ब गानों पर नाचते-गाते बच्चे, बचपन से बहुत दूर होते देखे जा सकते हैं | समझना मुश्किल नहीं कि ऐसे हालातों में केवल मासूमियत से ही नाता नहीं टूट रहा बल्कि उनके भविष्य और वर्तमान से जुड़े कई पक्षों पर चिंतनीय स्थितियाँ भी बन रही हैं | समग्र रूप से देखा जाए तो कार्यक्रमों के निर्माण के दौरान बाल कलाकारों की शिक्षा, स्वास्थ्य, सहज जीवनशैली और मनःस्थिति सब कुछ प्रभावित होता है |
यही वजह है कि हालिया निर्देशों में बच्चे से प्रतिदिन एक से ज्यादा पाली में काम नहीं करवाने और बाल कलाकारों के साथ कामकाज का कोई कठोर अनुबंध नहीं किए जाने तक की बात शामिल है | साथ ही निर्माताओं को बाल कलाकारों के हानिकारक प्रकाश और सौंदर्य प्रसाधनों के संपर्क में नहीं आने और पढ़ाई में बाधा ना पड़ने देने को भी सुनिश्चित करना होगा | हालिया दौर में अभद्र, अश्लील और हिंसक सामग्री वाले कार्यक्रम खूब बन रहे हैं | ऐसे में इन निर्देशों में बच्चों को शराब, धूम्रपान, किसी भी असामाजिक गतिविधि और आपराधिक व्यवहार में लिप्त नहीं दिखाए जाने की बात भी शामिल है | इतना ही नहीं मानदेय का तयशुदा हिस्सा बैंक में जमा करवाने की हिदायत भी बच्चों को शोषण और भावी जीवन में असुरक्षा से बचाने के लिए ही है |
दरअसल, ऐसी सामग्री केवल टीवी फिल्मों की चमक-दमक वाली दुनिया में काम कर रहे बच्चों या सोशल मीडिया में वायरल हो रहे मासूमों को ही नहीं, इन कार्यक्रमों, वीडियो, रील्स या रियलिटी शोज को देखने वाले बच्चों के मन-मस्तिष्क पर भी गहरा असर डालती है छोटे बच्चे खुद को इन अजब-गजब बाल किरदारों से जोड़कर देखने लगते हैं | एसोचैम का एक अध्ययन बताता है कि 76 फीसदी बच्चे घर में अकेले होने पर टेलीविजन पर रियलिटी शो देखते हैं। ऐसे में भद्दा डांस, घिनौने संवाद, द्विअर्थी गाने और निर्णायकों से अपनी उम्र से परे जाकर मजाक करने की बातें, बच्चों के पूरे व्यवहार और विचार को प्रभावित करती हैं | इतना ही नहीं जिस तरह मासूम बच्चे चमक-दमक भरे बाज़ार का हिस्सा बना दिए गए हैं, इसे बालश्रम का ही एक रूप कहा जा सकता है | कम उम्र में प्रतिस्पर्धा, पैसे और प्रसिद्धि पाने के मायने समझने की उलझनों ने मासूमों को ग्लैमर की दुनिया का मजदूर बना दिया है |
इसी तरह सोशल मीडिया में अनुसरणकर्ताओं की भीड़ बढ़ाने और तारीफें पाने के लिए भी हर हद पार की जा रही है | साझा की गई सामग्री को वायरल करने के जुनून ने सही गलत के फर्क की सुधबुध ही छीन ली है | बीते दिनों एक माँ और नाबालिग बच्चे के नृत्य और अदाकारी का आपत्तिजनक वीडियो का वायरल होना इसी की बानगी है | इंस्टाग्राम पर साझा किए गए असभ्य और अभद्र कंटेंट की सीमाएं पार वाले इस वीडियो में महिला खुद अपने 10-12 वर्ष के बेटे के साथ ही कुछ अजीबोगरीब दृश्यों में दिख रही थी | वीडियो वायरल होने के बाद दिल्ली महिला आयोग ने सख्त रवैया अपनाते हुए पुलिस को नोटिस भेज एक महिला के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने को कहा था | आयोग के मुताबिक छोटी उम्र में बच्चे को महिलाओं का वस्तुकरण करने की सीख दी जा रही थी, वो भी अपनी ही मां के द्वारा | चिंतनीय है कि सोशल मीडिया में अनुसरणकर्ताओं के आंकड़ों में इजाफा करने और प्रशंसा पाने के लिए आए दिन ऐसी सामग्री परोसी जाती है | जबकि आम जीवन का हिस्सा बन चुके वर्चुअल प्लेटफॉर्म्स पर परोसा गया कंटेंट पूरे परिवेश को प्रभावित करता है | महानगरों से लेकर गाँवों-कस्बों तक, क्लिक भर में पहुँच जाता है | ऐसे अभद्र कंटेंट का वायरल होना बच्चों की निजता, सुरक्षा और सम्मान से जुड़ी कई चिंताएँ लिए है |
निस्संदेह, बच्चों को अपने साथ लेकर बनाए जाते कई वीडियो सुरक्षा और बालमन को दिए जाने वाले मर्यादित परिवेश, दोनों ही मोर्चों पर चिंतनीय होते हैं | कई घटनाएं बताती हैं कि वर्चुअल दुनिया में बच्चों की दिशाहीन मौजूदगी वास्तविक संसार में भी उन्हें अपराध, कुत्सित मानसिकता और शोषण के दलदल में धकेलती है | दुर्भाग्यपूर्ण है कि लोकप्रियता के इस खेल में बचपन के रंग फीके पड़ रहे हैं | देश में पहले से ही मौजूद पोषण, पढ़ाई और बेहतर भविष्य की अनगिनत चिंताओं के बीच तकनीकी सुविधाएं भी बालमन को दिशाहीन करने के लिए इस्तेमाल हो रही हैं | जरूरी है कि परिवार और परिवेश दोनों बच्चों के जीवन को सार्थक दिशा देने का दायित्व निभाएँ |
– डॉ. मोनिका शर्मा