पिछले एक दशक से भी कम समय में भारत की वैश्विक नीति में आमूलचूल परिवर्तन हुए हैं। हर वैश्विक समस्या के समय विश्व के तथाकथित चौधरी भारत का मुंह ताकते हैं। रूस और यूक्रेन युद्ध के समय भी हम यह देख चुके हैं। अब समय आ गया है कि भारत को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता मिले ताकि विश्व शांति की राह प्रशस्त हो।
भारत ने जी-20 की अध्यक्षता संभाली है। जी-20 दुनिया के विकासशील और विकसित देशों के करीब 4.6 बिलियन नागरिकों की आवाज का प्रतिनिधित्व करता है। वैश्विक नीति को चलाने के मामले में यकीनन संयुक्त राष्ट्र की तुलना में यह महत्वपूर्ण मंच है। यह सम्मान ऐसे समय में आया है जब भारत महत्वपूर्ण एजेंडों का नेतृत्व करने और दुनिया के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान देने के लिए अच्छी तरह से तैयार है। भारत की जी-20 अध्यक्षता का कार्यकाल भारत के एक वैश्विक दृष्टिकोण का एजेंडा, अपनी खुद की रचनात्मक आवाज, वैश्विक विकास और प्रगति के चालक के रूप में उभरने का कार्यकाल होगा। निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि भारत राष्ट्रीय एवं वैश्विक हितों को प्राप्त करने का प्रयास करेगा, क्योंकि उभरते वैश्विक नेतृत्व के साथ भारत का वैश्विक क्षितिज पर एक उज्ज्वल स्थान निर्माण हो रहा है।
एक जमाने में ऐसी सोच थी कि विदेश नीति कहीं दूर की बात है, जो साउथ ब्लॉक में बैठकर तय की जाती है, उसे समझना देश के आम नागरिकों का काम नहीं है। लेकिन अब वह बीते जमाने की बात हो गई। आज देश का हर युवक विदेश नीति को सुनना चाहता है, पढ़ना चाहता है और उसे ठीक से समझना भी चाहता है। इस परिवर्तन का महत्वपूर्ण कारण है वैश्विक स्तर पर भारत देश की अपनी सटीक भूमिका और उसका सकारात्मक परिणाम।
विदेश नीति में भारत का परचम किस कारण लहरा रहा है? इस सवाल का जवाब गत आठ सालों से भारत देश से चलाए जा रहे अभिमानपूर्ण रवैये से हमें मिल सकते हैं। एक हाल ही का उदाहरण है। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर का एक इंटरव्यू यूरोप के साथ पूरे विश्व में वायरल हो चुका है, यूरोप प्रवास के दौरान उन्हें ऑस्ट्रिया देश में निमंत्रित किया गया था। वहां एक प्रसिद्ध चैनल पर इंटरव्यू के दौरान पत्रकार ज्यादातर सवाल प्रो पाकिस्तान, प्रो यूरोप पूछ रहा था। पत्रकार ने पहली बात तो यह पूछी थी कि आप हर बार पाकिस्तान को आतंकवाद का केंद्र क्यों कहते हैं? इस प्रकार के शब्द एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का पत्रकार किस प्रकार पूछ सकता है? ऐसा महसूस हो रहा था कि, वह पत्रकार पिछले 30 सालों से गहरी नींद में था। पत्रकार के इस सवाल का उत्तर देते हुए एस जयशंकर ने कहा कि, “डिप्लोमेट होने का यह अर्थ नहीं है कि मैं सही बात नहीं बोल सकता। मैं पाकिस्तान के संदर्भ में इससे भी बदतर शब्दों का इस्तेमाल कर सकता हूं, मगर मैं नहीं कर रहा हूं। लेकिन मैं अब यह बात फिर से दोहरा रहा हूं कि पाकिस्तान आतंकवाद का केंद्र है। दुनिया की आतंकवाद से जुड़ी समस्या हल करनी हो तो पाकिस्तान के इस रवैये को ठीक करना होगा।”
यहां पर पत्रकार ने फिर से एक बार पाकिस्तान को डिफेंड करने की कोशिश की, “माना कि आतंकवादी पाकिस्तान से आते हैं मगर पाकिस्तान एक देश के रूप में आतंकवादियों को भारत में खुद थोड़े ही भेजता है। पाकिस्तान के पीएम खुद थोड़े ही कहते हैं कि भारत पर हमला करो।” पत्रकार के इस सवाल का उत्तर देते हुए एस जयशंकर ने कहा कि, “पाकिस्तान ने दुनिया भर के आतंकवादियों को पनाह दी है। वहीं से प्रशिक्षित होकर आतंकवादी भारत के मुंबई तथा संसद भवन और अन्य स्थानों पर हमला करते हैं। जो आतंकवादी भारत पर हमला करते हैं, उनको वहां लश्कर की ट्रेनिंग मिलती है। लेकिन यूरोप का माइंड सेट इस प्रकार से है कि यूरोप की प्रॉब्लम दुनिया की प्रॉब्लम है, पर दुनिया की प्रॉब्लम यूरोप की प्रॉब्लम नहीं है। आपको पता नहीं कि 26/11 के मुंबई जैसे हमले के बाद भारत को किस प्रकार की पीड़ा हुई है। इस प्रकार की स्टेटमेंट वही दे सकते हैं जो पाकिस्तान से दूरी पर रहते हैं। पाकिस्तान के आतंकवाद का कोई भी असर उन पर नहीं पड़ता है। रूस यूरोप को आंखें दिखा रहा है तब पूरी दुनिया को रूस के विरोध में यूरोप के साथ खड़ा रहना चाहिए, ऐसी यूरोप की अपेक्षा रहती है लेकिन भारत या एशिया के संदर्भ में अलग तरह का व्यवहार यूरोप क्यों करता हैं?”
ऑस्ट्रिया के पत्रकार के खुलकर पूछे गए सवाल पर भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर की तरफ से भी उतना ही मुंहतोड़ जवाब दिया गया। उस पत्रकार की आड़े मेें यूरोप को सुनाया गया कि आप अपने नजरिए से दुनिया के इतिहास को मत समझो, जो असलियत है उसे समझ कर अपनी दृष्टि विशाल करो। यह आज का बदलता भारत है जो विश्व की नटखट और भारत विरोधी ताकतों को आईना दिखाने की ताकत रखता है। भारत इस दशक के खत्म होने तक बड़ी आर्थिक शक्ति होगा। सबसे बड़ा लोकतंत्र होना भी उसके हक में जाता है।
यूक्रेन युद्ध को लेकर अमेरिका सहित तमाम यूरोपीय देशों की रूस से नाराजगी जगजाहिर है। यूक्रेन युद्ध के जारी रहते हुए अगर कोई भी देश रूस के साथ व्यापार अथवा किसी सौदे में शामिल होता है तो अमेरिका के लिए चिंता की बात होगी। यह अमेरिका ने दुनिया को एक तरह से चेतावनी दी हुई थी। भारत ने हमेशा सबकी चिंताओं का सम्मान करते हुए अपने हितों के अनुरूप फैसले करने की नीति अपनायी है। यूक्रेन युद्ध के बाद की कठिन स्थितियों में भी उसने संतुलन बनाए रखा है। पीएम मोदी ने यूक्रेन युद्ध को लेकर पुतिन को कहा कि, “यह युद्ध का युग नहीं है।” इसे लेकर जानकारों की ओर से कहा गया कि जो बात पुतिन से अमेरिका या बड़े राष्ट्रों द्वारा कही जानी चाहिए थी, वह मोदी ने आखिरकार कह ही दी। रूस और यूक्रेन में शांति स्थापना को लेकर अपनी प्रतिबद्धता बनाए रखते हुए भी भारत ने रूस के साथ अपने सम्बंधों पर आंच नहीं आने दी। रूस से हुए हथियार सौदों पर तो उसने अमल किया ही, उससे तेल लेने के सवाल पर भी किसी तरह का दबाव स्वीकार नहीं किया। लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं कि उसने पश्चिम के अपने मित्र देशों की भावनाओं का खयाल नहीं रखा। भारत और रूस के करीबी रिश्तों की गरमाहट का अहसास बने रहना न केवल इन दोनों देशों के लिए बल्कि बाकी पूरी दुनिया के दीर्घकालिक हितों के लिए भी आवश्यक है।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दिल्ली के रायसीना डायलॉग के दौरान विभिन्न देशों के विदेश मंत्रियों की मौजूदगी में न केवल भारत के रुख को पूरी बेबाकी से सामने रखा बल्कि यूरोपीय देशों के ढुलमुल रवैये को भी सामने रखने से नहीं चूके। रायसीना डायलॉग के इंटरएक्टिव सेशन में जब कुछ यूरोपीय देशों के विदेश मंत्रियों ने अपने सवालों के जरिए भारत को घेरने की कोशिश की तो विदेश मंत्री जयशंकर ने अफगानिस्तान की घटनाओं का जिक्र करते हुए याद दिलाया कि वहां साल भर पहले एक तरह से पूरी सिविल सोसाइटी को तालिबान के हाथों मरने के लिए छोड़ दिया गया था। यूक्रेन युद्ध के बहाने भारत को जगाने की कोशिश कर रहे यूरोपीय देशों को यह बताना जरूरी था। कुछ महीने पहले अमेरिका और भारत के बीच टू प्लस टू डायलॉग हुआ है। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर से अमेरिका के पत्रकारों ने सवाल पूछा था। ये प्रश्न भारत की आलोचना करने के उद्देश्य से थे। भारत रूस से तेल कैसे आयात करता है? एस. जयशंकर ने कहा, यूरोपीय देश रूस से एक दिन में जितना कच्चा तेल आयात करते हैं, उतना भारत एक महीने में आयात करता है। इसलिए इस बारे में भारत से जवाब मांगने के बजाय यूरोपीय देशों को पहले खुद को जांचना जरूरी है।
पश्चिमी मीडिया की ओर से लगातार मांग की जा रही थी कि भारत को रूस विरोधी पक्ष लेना चाहिए। लेकिन भारत ने वही किया जो भारत के हितों के अनुकूल था। भारत की विदेश नीति में यह बदलता आत्म-विश्वास अचानक नहीं आया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले आठ सालों में विदेश मामलों के बारे में जोरदार और असरदार प्रयास किये हैं। पिछले आठ वर्षों में जिस विदेश नीति को प्राथमिकता दी गई है, नरेंद्र मोदी की 60 से अधिक देशों की यात्राओं, द्विपक्षीय और बहुपक्षीय स्तरों पर कई देशों के साथ बैठकों, साझेदारी विकसित करने के प्रयास में भारत की भूमिका के कारण बहुराष्ट्रीय संगठनों ने भारत की विदेश नीति में योगदान दिया है।
कुल मिलाकर, हम देख सकते हैं कि मोदी की विदेश नीति का विकास व्यवस्थित रूप से हुआ है। इससे पहले भारत के पड़ोसी देशों के साथ घनिष्ठ सम्बंध थे, उनके साथ अनबन कम करने की कोशिश की और पड़ोसी देशों से सम्पर्क बढ़ाया। दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ सम्बंध स्थापित करने के लिए ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ का नाम बदलकर ‘एक्ट ईस्ट’ कर दिया गया और इन देशों के साथ लम्बित परियोजनाओं को पूरा करने का प्रयास हो रहा है। इसी तरह इस्लामिक देशों के साथ भी निवेश किया। भारत ने इस्लामिक देश संयुक्त अरब अमीरात के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसीलिए रूस यूक्रेन संघर्ष के समय भी भारत को तेल की कमी महसूस नहीं हुई। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अमेरिका और रूस के बीच संतुलन बनाने वाला दुनिया का एकमात्र देश भारत है। भारत इजरायल-फिलिस्तीन के साथ-साथ शिया और सुन्नी बहुसंख्यक देशों के साथ भी सम्बंधों को संतुलित कर रहा है। इसलिए भारत को अब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाए जाने की मांग जोर पकड़ रही है। रूस यूक्रेन संघर्ष के दौरान भारत की यह प्रगति दुनिया को अचम्भित करने वाली है। भारत ने पूरे कोविड काल में दुनिया को टीके की आपूर्ति की और आज भारत एक स्वास्थ्य सेवा प्रदाता के रूप में आगे आया है। भारत का यह आर्थिक विकास विदेश नीति को मजबूत कर रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत जल्द ही एशिया में एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभरेगा।
भारत की विदेश नीति में 2014 के बाद क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं, जिसमें देश की विदेश नीति रक्षात्मक से आक्रामक हो रही है। अब यह स्पष्ट हो गया है कि भारत अपनी विदेश नीति की योजना अपने सामरिक हितों को ध्यान में रखकर बनाएगा। दिलचस्प बात यह है कि भारत अब सभी के साथ समान स्तर पर बातचीत कर रहा है। कुछ समय पहले पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारत की विदेश नीति की तारीफ की। आज चीन भारत के खिलाफ कितना भी संकट पैदा करने की कोशिश कर ले, भारत पर हमला करने की हिम्मत नहीं करता। ऐसा इसलिए, क्योंकि आज का भारत 1962 वाला भारत नहीं रहा, चीन को इस बात को समझाने में भारत की कूटनीति कामयाब हो रही है।
इससे पहले का भारत दुनिया के बड़े-बड़े देशों की नजर को देखकर अपनी विदेश नीति तय करता था, जबकि आज भारत की बात दुनिया सुन रही है। वर्तमान का भारत विश्व को वैश्विक दृष्टि देने की स्तर तक पहुंचा है। भारत अपनी स्वतंत्र पॉलिसी दुनिया के सामने प्रस्तुत कर रहा है। दुनिया उसे गौर से सुन रही है, समझ रही है। इन सारी बातों का परिणाम आने वाले समय में भारत और विश्व में और तीव्र गति से महसूस होगा। कहते हैं ना स्वतंत्रता को सार्थक करने की शक्ति का आधार चाहिए। यह शक्ति भारत के सनातन काल से चली आ रही विश्व कुटम्बकम् के दृष्टिकोण में ही है।