इसरो: प्रमुख उपलब्धियां और चुनौतियां

इसरो ने अपनी स्थापना के बाद से ही राष्ट्र की अंतरिक्ष के क्षेत्र में उन्नति के अनेकानेक कीर्तिमान बनाए हैं। कुछ साल पहले 104 उपग्रहों को एक साथ  अतंरिक्ष की कक्षा में स्थापित कर इसरो ने नासा जैसी संस्था सहित विश्व को भी आश्चर्यचकित कर दिया। बहुत शीघ्र ही मंगलयान 3 और मानवयुक्त गगनयान, आदित्य L1 भेजने तथा निसार मिशन की योजना है।

भारत की अंतरिक्ष कार्यक्रमों में भागीदारी का स्वप्न सर्वप्रथम वर्ष 1962 में तत्कालीन प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई ने देखा था। इसी के साथ ‘भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति’ (इंडियन नेशनल कमिटी फॉर स्पेस रिसर्च INCOSPAR) की स्थापना हुई। बाद में अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में व्यापक दृष्टिकोण के साथ इसका स्थान ‘इसरो’ (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ISRO) ने ले लिया। भारत में इसरो का अभ्युदय सन् 1969 में देश के विकास हेतु अंतरिक्ष अनुसंधान और अंतरिक्ष तकनीकी के दोहन के लिए हुआ था। भारत की इस अग्रदूत अंतरिक्ष अन्वेषक संस्था ने विगत आधी सदी में अविश्वसनीय ऊंचाइयों को छुआ है।

शुरुआत में इसका संचालन देश के परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) द्वारा किया गया। बाद में इसके संचालन हेतु सन् 1972 में स्वतंत्र अंतरिक्ष विभाग (DOS) का गठन हुआ। इसरो का मुख्यालय बेंगलुरु में है। अल्प समय में ही इसरो ने अपनी सस्ती स्वदेशी तकनीकी के साथ विश्व की अग्रणी अंतरिक्ष संस्थाओं से बराबरी की है। वास्तव में इसरो के अंतरिक्ष कार्यक्रमों का उद्देश्य विकसित राष्ट्रों से व्यर्थ की प्रतिस्पर्धा करना नहीं अपितु अंतरिक्ष तकनीकी का देश हित में प्रयोग करना है।

अंतरिक्ष में उड़ान

‘इसरो’ द्वारा निर्मित प्रथम उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ को सोवियत रॉकेट कॉसमॉस- 3M की सहायता से 19 अप्रैल 1975 को सोवियत रॉकेट लांच स्थल कपुश्टिन यार से लांच किया गया। लेकिन दुर्भाग्य से विद्युत आपूर्ति विफल हो जाने से 5 दिन बाद ही इससे संकेत मिलने बंद हो गये। इसके बाद का सफर भास्कर, रोहिणी, एप्पल, इनसैट (INSAT) श्रृंखला और आइआरएस (IRS) श्रृंखला (इंडियन रिमोट सेंसिंग प्रोग्राम) के उपग्रहों तक जारी रहा।

सन् 1980 में उपग्रह रोहिणी को स्वदेशी लांच वाहन SLV-3 द्वारा सफलतापूर्वक अपनी कक्षा में स्थापित किया गया। यह इसरो की एक उल्लेखनीय उपलब्धि थी। इसके बाद ‘एप्पल’ भारत का प्रथम संचार उपग्रह था जिसे 15 जून 1981 को लांच किया गया। इस उपलब्धि पर भारतीय डाक विभाग ने उपग्रह के चित्र वाला डाक टिकट जारी किया।

इनसैट श्रृंखला (इंडियन नेशनल सैटेलाइट सिस्टम) के दूरसंचार उपग्रह एशिया- प्रशांत क्षेत्र में सबसे बड़ा संचार तंत्र बनाते हैं। बाद में इनका नाम ‘जीसैट’ और वर्ष 2020 से सीएमएस कर दिया गया है। ये भारतीय उपमहाद्वीप के लिए दूरसंचार, इंटरनेट, और मौसम विज्ञान के लिए अपनी सेवाएं दे रहे हैं। CMS-01 को 17 दिसम्बर 2020 को प्रक्षेपित किया गया था। यह भी टेलीएजुकेशन, टेली-मेडिसिन, आपदा प्रबंधन सहायता और इंटरनेट सेवाओं के लिए समर्पित है।

आइआरएस श्रृंखला के उपग्रह पर्यवेक्षण उपग्रह हैं, जो पृथ्वी पर अनेक प्रकार की दूर संवेदन सेवाएं दे रहे हैं। जीसैट्स के अलावा ये सभी उपग्रह ध्रुवीय सूर्य तुल्यकालिक कक्षा (उत्तर से दक्षिण की ओर) में स्थापित किये गये हैं ताकि ये प्रत्येक चक्र में पृथ्वी के नए भाग का पर्यवेक्षण कर सकें। इनका नामकरण इनके कार्यों के आधार किया गया है, जैसे- ओशियनसैट, कार्टोसैट आदि।

आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदम

(गगन सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम)

उपग्रह आधारित संवर्धित प्रणाली को ही गगन  (GAGAN -जीपीएस एडेड जियो ऑगमेंटेड नेविगेशन) के रूप में लागू किया गया है। इसके माध्यम से भारतीय हवाई क्षेत्र में आधुनिक संचार, पथ प्रदर्शन और निगरानी/ हवाई यातायात का प्रबंधन किया जा रहा है। इसके कार्यान्वयन में भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण और इसरो की संयुक्त भूमिका थी। इसके अंतर्गत वर्ष 2007 में आठ भारतीय हवाई अड्डों पर संदर्भ स्टेशन और बैंगलुरु के पास मास्टर कंट्रोल सेंटर बनाये गये। गगन, अन्य देशों की वृद्धि प्रणालियों के साथ अंतर्संचालनीय है। 1 जुलाई 2021 के बाद भारत में पंजीकृत सभी विमानों को गगन उपकरणों से लैस करना अनिवार्य कर दिया गया है।

उड़ान प्रबंधन के अलावा गगन नेविगेशन प्रणाली का अनुप्रयोग मिसाइलों के पथ प्रदर्शन, आपदा के समय मछुआरों के पथ प्रदर्शन, चक्रवात के समय बचाव आदि में भी किया जा रहा है।

नेविगेशन विद इंडियन कांस्टेलेशन

भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह प्रणाली श्रृंखला के उपग्रहों के तारामंडल को नाविक नाम से परिचालित किया जा रहा है। वास्तव में यह जीपीएस प्रणाली का भारतीय संस्करण है। यह वास्तविक समय में स्थिति (5 फीट की सटीकता के साथ) और समय निर्धारण सेवाएं प्रदान करता है। यह सम्पूर्ण भारत और इसके चारों ओर के 1500 किमी के क्षेत्र को कवर करता है।

अभी इस तारामंडल में 7 सक्रिय उपग्रह हैं। इनमें तीन उपग्रहों को भूस्थैतिक कक्षा और चार उपग्रहों को केंद्र में रखा गया है। साथ ही, 21 भू- स्टेशनों का एक नेटवर्क इनसे नेविगेशन सिग्नल और आंकड़े ग्रहण करता है। नाविक का प्रथम प्रक्षेपण 1 जुलाई 2013 को और अंतिम प्रक्षेपण 12 अप्रैल 2018 को हुआ था। इस तारामंडल में भविष्य में NVS श्रृंखला के 5 उपग्रह और प्रक्षेपित करने की योजना है।

नाविक का परिवहन, स्थिति निर्धारण, संसाधन निगरानी, सर्वेक्षण, अनुसंधान और चेतावनी प्रसार आदि में अनुप्रयोग किया जा रहा है।

लांच वाहन

1980 में एसएलवी के निर्माण के साथ ही भारत उन राष्ट्रों की श्रेणी में आ गया जिनके पास अपना लांच वाहन था। 90 के दशक में विकसित पीएसएलवी (पोलर सैटेलाइट लांच व्हीकल) दो प्रारम्भिक असफलताओं के बाद अब तक 50 से अधिक सफल प्रक्षेपण कर चुका है। इसी तरह जीएसएलवी (जिओसिंक्रोनस सैटेलाइट लांच व्हीकल) के विकास में भी प्रारम्भिक अड़चनें आयीं लेकिन सन् 2000 तक भारत ने अपनी क्रायोजेनिक इंजन तकनीक विकसित करके इन अड़चनों को दूर कर दिया।

वर्ष 2010 में विकसित LVM2-3 इसरो का सबसे भारी रॉकेट है, जिसमें शक्तिशाली क्रायोजेनिक इंजन लगा है। भविष्य के भारी रॉकेटों के लिए विकसित उन्नत सेमी क्रायोजेनिक इंजन SCE-200 का परीक्षण भी इसी रॉकेट में किया जाएगा। ऐसा माना जा रहा है कि भारत के प्रथम मानव युक्त अंतरिक्ष मिशन में भी इसका उपयोग होगा।

इसरो ने एसएसएलवी (स्माल सेटेलाइट लांच व्हीकल) का विकास 500 किग्रा तक के भार को पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजने हेतु किया है।

उल्लेखनीय उपलब्धियां

भारत ने 14 फरवरी 2017 को पीएसएलवी के द्वारा अंतरिक्ष में एक साथ 104 उपग्रह भेज कर विश्व कीर्तिमान अपने नाम किया है। इसरो ने 27 मार्च 2019 को मिशन शक्ति का प्रदर्शन किया। इसमें एंटी सेटेलाइट मिसाइल द्वारा एक भारतीय उपग्रह को नष्ट किया गया। इसरो ने अपने शोध कार्यक्रमों में अंतरिक्ष में जीवाणुओं की तीन जातियों (बेसिलस इसरोनेंसिस, बे. आर्यभट और जेनीबेक्टर होयली) की खोज में भी अपना योगदान दिया है।

एस्ट्रोसैट

यह भारत की अंतरिक्ष में तैनात प्रथम बहु- तरंगदैर्ध्य दूरबीन है जो आकाशगंगा के वाइट ड्वार्फ्स, ब्लैक होल्स, द्वितारा प्रणाली और पल्सर तारों के बारे में नवीन जानकारियां दे रही है। इसे 28 सितम्बर 2015 को तैनात किया गया था।

चंद्रयान मिशन

चंद्रयान-1- भारत का प्रथम मानव रहित चंद्र मिशन है, जिसको परिवर्तित PSLV रॉकेट द्वारा 22 अक्टूबर 2008 को लांच किया गया। इसमें एक लूनर ऑर्बिटर और एक इम्पैक्टर था। इसने 8 नवम्बर को चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया। इसने अपनी 312 दिनों की अवधि में चंद्रमा की सतह का अध्ययन किया। इसने चंद्रमा के ध्रुवों पर बर्फ की सम्भावना भी जताई। इस मिशन ने अमेरिकन संस्थान का स्पेस-2009 अवार्ड सहित अन्य अनेक सम्मान अपने नाम किये।

चंद्रयान-2- यह भारत का दूसरा चंद्र मिशन है। इसे GSLV-MARK III द्वारा 22 जुलाई 2019 को लांच किया गया। इसमें एक ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर थे। दुर्भाग्य से सॉफ्ट लैंडिंग न हो पाने की वजह से रोवर सहित लैंडर खो गया। इसका ऑर्बिटर अपनी सेवाएं दे रहा है।

चंद्रयान -3- वर्ष 2023 में तीसरा चंद्र मिशन लांच करने की योजना है। इसमें ऑर्बिटर नहीं होगा केवल लैंडर-रोवर होंगे। इसके अलावा जापान के साथ एक संयुक्त मिशन LUPEX भी भविष्य की योजना में है।

मंगल मिशन

मार्स ऑर्बिटर मिशन- इसे मंगलयान-1 भी कहा जाता है। इसे 5 नवम्बर 2013 को लांच किया गया। इसने 24 सितम्बर 2014 को मंगल की कक्षा में प्रवेश किया। इसके साथ ही भारत मंगल की कक्षा में अंतरिक्ष प्रोब भेजने वाला प्रथम देश बन गया। वर्ष 2024 में मंगलयान-2 प्रस्तावित है इसमें ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर भेजे जाएंगे।

आदित्य-L1

इस मिशन की संकल्पना इसरो ने 2008 में आदित्य-1 के नाम से की थी। इसका उद्देश्य सौर कोरोना का अवलोकन करना था। इसमें उपग्रह को पृथ्वी की निचली 800 किमी की कक्षा में स्थापित करना शामिल था। बाद में उपग्रह को लग्रान्गियन पॉइंट L1 (बिंदु जहां सूर्य तथा पृथ्वी का गुरुत्व साम्य में होता है।) पर पृथ्वी से 1.5 मिलियन दूर कक्षा में स्थापित करने की योजना बनाई गयी। इसे आदित्य-L1 नाम दिया गया। यह मिशन जनवरी 2023 में प्रस्तावित है। इसका प्रमुख उद्देश्य सौर कोरोना से उत्सर्जित प्लाज्मा और उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र का अध्ययन करना है।

वाणिज्यिक क्षेत्र में प्रवेश

23 अक्टूबर 2022 को इसरो ने 36 वनवेब उपग्रह ङतच3 मैक2 से लांच कर के वाणिज्यिक क्षेत्र में भी प्रवेश कर लिया है।

भविष्य की अन्य योजनाएं

इसरो की आगामी महत्त्वाकांक्षी योजना ‘गगनयान’ है। यह मानव युक्त अंतरिक्ष मिशन होगा। इसकी पूर्व तैयारी के लिए मानव रहित परीक्षण उड़ान गगनयान-1 वर्ष 2023 के अंत तक भेजे जाने की सम्भावना है। इसे ङतच्-3 राकेट द्वारा भेजा जायेगा। गगनयान-2 भी परीक्षण उड़ान होगी जिसमें ह्युमेनोइड रोबोट साथ जाएगा। मानवयुक्त गगनयान 2024 तक भेजे जाने की सम्भावना है।

वर्ष 2023 में ही क्रू सहित अंतरिक्ष यान पृथ्वी की कक्षा में भेजा जाएगा। गगनयान कार्यक्रम के बाद भारत अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण की भी योजना बना रहा है। इसरो की आगामी योजनाओं में ऐसे शक्तिशाली रॉकेटों का विकास भी है जो विद्युत् और नाभिकीय ऊर्जा से संचालित होंगे। वर्तमान में मीथेन संचालित रॉकेट मेथालोक्स निर्माणाधीन है। इसके अलावा पुनः उपयोग में आने वाले लांच वाहन भी विकसित किये जा रहे हैं। भविष्य में शुक्र और बृहस्पति पर भी अंतरिक्ष अभियान भेजा जाना प्रस्तावित है।

निसार (नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर राडार) मिशन- यह 2019 में प्रस्तावित नासा और इसरो का संयुक्त मिशन है। इसमें दोहरी आवृत्ति वाले सिंथेटिक राडार उपग्रह को विकसित किया जा रहा है। इसे प्राकृतिक घटनाओं को समझने के लिए दूर संवेदन में इस्तेमाल किया जाएगा। वर्ष 2024 तक इसके लांच की सम्भावना है।

प्रमुख चुनौतियां

इसमें कोई संदेह नहीं कि विगत वर्षों में इसरो ने अनेक उपलब्धियां अपने नाम की हैं और अविश्वसनीय कीर्तिमान बनाए हैं। फिलहाल कुछ चुनौतियां भी सामने हैं, जैसे- लांच वाहनों को उन्नत तकनीक से युक्त करना, अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षण देने के लिए दक्ष ट्रेनिंग सेंटर्स का निर्माण, जीवन रक्षा प्रणालियों और उन्नत स्पेस सूट का विकास आदि। हमारे देश के समर्पित वैज्ञानिक इस दिशा में निरंतर कार्य कर रहे हैं।

– प्रज्ञा गौतम 

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