ऊर्जा के वैकल्पिक स्त्रोत

भारत के अधिकतर भाग में वर्षभर सूर्य दिखता है। साथ ही नदियों के जाल और लम्बे तटीय क्षेत्रों की वजह से हरित ऊर्जा के क्षेत्र में अपने यहां अपार सम्भावनाएं हैं। भारत सरकार ने इस दिशा में व्यापक कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। इससे भविष्य में खाड़ी देशों के तेल पर निर्भरता कम होने से विदेशी मुद्रा की बचत होगी तथा पर्यावरण के क्षेत्र में भी व्यापक सफलता मिलेगी।

भारत में नववर्ष 2023 के आगमन के साथ ही 4 जनवरी को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कुल 19 हजार 744 करोड़ रुपये के राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को मंजूरी दी है। 4 जनवरी को ही एनटीपीसी ने गुजरात में देश की पहली हरित हाइड्रोजन मिश्रण परियोजना का आरम्भ किया है। इसी साल के अंत तक देश में हाइड्रोजन ट्रेन चलाने की घोषणा भी की गई है। इस तरह देश हरित ऊर्जा के नए-नए विकल्पों को अपनाने की दिशा में संकल्पबद्ध है। राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन का उद्देश्य सन् 2030 तक देश में 50 लाख टन स्वच्छ हाइड्रोजन ईंधन का उत्पादन करना है। ऐसा माना जा रहा है कि हरित हाइड्रोजन की दिशा में बढ़ाए जा रहे भारत के कदमों से 2.7 बिलियन टन कार्बन उत्सर्जन को लगभग 55 मिलियन टन तक करने में सफलता मिलेगी। इस मिशन में हरित हाइड्रोजन के उत्पादन के साथ-साथ इसकी मांग को बढ़ाना और निर्यात भी शामिल है। इसके लिए एसआईजीएचटी अर्थात् स्ट्रैटेजिक इंटरवेंशंस फॉर ग्रीन हाइड्रोजन ट्रांजिशन कार्यक्रम तैयार किया गया है। इसके अंतर्गत देश में हरित हाइड्रोजन बनाने के लिए 60 से 100 गीगावाट क्षमता वाले इलेक्ट्रोलाइजर प्लांट को तैयार किया जाएगा। हरित हाइड्रोजन मिशन से सन् 2030 तक 8 लाख करोड़ रुपये से अधिक के निवेश और खाड़ी इस्लामिक देशों से तेल जैसे जीवाश्म ईंधन के आयात में कमी से एक लाख करोड़ रुपये बचाए जाने की सम्भावना है। इस तरह हरित हाइड्रोजन का उत्पादन भारत के नवीन ऊर्जा विकल्पों को अपनाने की रणनीतिक तैयारियों का बड़ा हिस्सा तो है ही, साथ ही अपनी लगातार बढ़ती जनसंख्या और ऊर्जा खपत का सार्थक समाधान भी है।

भारत की आबादी वर्ष  2022 में 1.412 अरब आंकी गई है, जिसके लगातार बढ़ने की सम्भावना है। देश की बढ़ती जनसंख्या के अनुरूप ही व्यापक स्तर पर ऊर्जा की आवश्यकता तथा मांग दोनों भी उतनी ही तेजी से बढ़ रही है। पिछली कई सदियों से भारत में ऊर्जा के पारम्परिक स्रोतों जैसे कोयला, प्राकृतिक गैस, पेट्रोलियम इत्यादि के उपयोग किए जा रहे हैं। लेकिन एक ओर जहां इन पारम्परिक ऊर्जा स्रोतों से प्रदूषण और वैश्विक तापन जैसी प्राकृतिक समस्याएं सामने आई हैं, वहीं इनके कारण मानव स्वास्थ्य भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है। अतः इनके समाधान के लिए ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों पर ध्यान दिया जाने लगा है। इन विकल्पों में सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा, बायोमास, जैव ईंधन और लैंडफिल गैस आदि शामिल हैं। इन सभी को समग्र रूप में हरित ऊर्जा कहा जाता है। हरित ऊर्जा ऐसा स्थायी स्रोत है जो वास्तव में प्राकृतिक अक्षय ऊर्जा स्रोतों जैसे सूर्य, पवन, जल, भूगर्भ और पादपों से उत्पन्न की जाती है। वर्तमान में भारत में हरित ऊर्जा के उपयोग को ध्यान में रखते हुए व्यापक स्तर पर कार्य किए जा रहे हैं। भारत की स्थापित हरित ऊर्जा क्षमताओं में 48.55 गीगावॉट सौरऊर्जा, 40.03 गीगावॉट पवनऊर्जा, 4.83 गीगावॉट लघु जलविद्युत ऊर्जा, 46.51 गीगावॉट वृहत् जलविद्युत ऊर्जा, 10.62 गीगावॉट जैवऊर्जा शामिल हैं। आइए, हम आगे विभिन्न हरित ऊर्जा स्त्रोतों के साथ-साथ दुनियाभर के विविध हरित ऊर्जा कार्यक्रमों के संदर्भ में भारत में ऊर्जा के वैकल्पिक स्त्रोतों की उपयोगिता पर विस्तार से चर्चा करते हैं।

सूर्य से सीधे प्राप्त हरित ऊर्जा का सबसे सरल रूप सौर ऊर्जा है। इसे नवीकरणीय, निःशुल्क, व्यापक स्तर पर उपलब्ध व स्वच्छ प्रकार ऊर्जा कहा जा सकता है। आजकल सौर उर्जा का प्रयोग विद्युत उत्पादन द्वारा प्रकाशस्त्रोत, सोलर गीजर और सोलर कुकर के रूप में काफी प्रचलन में हैं। सौर फोटोवोल्टिक एक ऐसी प्रौद्योगिकी है जो सौरऊर्जा को सीधे विद्युत में परिवर्तित करती है। नेलिस सौर ऊर्जा संयंत्र, गीरासोल सौर ऊर्जा विद्युत संयंत्र तथा वाल्डपोलेंज सौर उद्यान दुनिया के प्रमुख फोटोवोल्टिक पावर संयंत्रों में से एक हैं। भारत का ऊर्जा मंत्रालय सौर ऊर्जा हेतु विभिन्न कार्यक्रमों का संचालन करता है। पिछले साल ही भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड ने भारतीय रेल विभाग के पश्चिम मध्य रेलवे स्थित बीना में पहले सौर फोटोवोल्टिक संयंत्र को सफलतापूर्वक चालू किया है। इससे प्रति वर्ष 1.8 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन होगा और भारतीय रेलवे के ओवरहेड ट्रैक्शन सिस्टम को सीधे बिजली की आपूर्ति की जा सकेगी। भारत में टाटा सोलर, विक्रम सोलर, लूम सोलर, वारी सोलर, अदानी सोलर, रेन्यूसिस सोलर और चीनी सोलर कम्पनियों  कैनेडियन सोलर, आरईसी सोलर, जिंको सोलर एवं ट्रिना सोलर जैसी कुछ प्रमुख सौर कम्पनियों द्वारा बड़े पैमाने पर सौरऊर्जा आधारित काम किए जा रहे हैं। नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड द्वारा भारत का सबसे बड़ा 447 मेगावाट क्षमता का फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट तेलंगाना के पेद्दापल्ली जिले के रामागुंडम में विकसित किया जा रहा है। भारत में सौर ऊर्जा क्षमता वर्ष 2019 में 28,180 मेगावाट आंकी गई थी, जो  2021-22 के अंत में बढ़कर 53,996 मेगावाट हो गई। इस तरह पिछले तीन सालों में देश में सौर क्षमता में लगभग 91 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।

सौर ऊर्जा के बाद भारत में पवन चक्कियों द्वारा उत्पन्न पवन उर्जा भी हरित ऊर्जा का अच्छा विकल्प है। यह तटवर्ती और अपतटीय दो प्रकार की होती है। तटवर्ती पवन ऊर्जा भूमि पर स्थित पवन टर्बाइनों, जबकि अपतटीय पवन ऊर्जा जल निकायों में स्थापित संयंत्रों से उत्पन्न की जाती है। भारत में राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति 2018 तथा राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति 2015 पवन ऊर्जा सम्बंधी कुछ प्रमुख नीतियां हैं। इनके अंतर्गत पवन और सौर संसाधनों, ट्रांसमिशन बुनियादी अवसंरचना तथा भूमि के इष्टतम एवं कुशल उपयोग के लिये बड़े ग्रिड से जुड़े पवन-सौर फोटोवोल्टिक हाइब्रिड सिस्टम को बढ़ावा देने हेतु एक अवसंरचना के निर्माण और साथ ही भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र में 7600 किलोमीटर की भारतीय तटरेखा के साथ अपतटीय पवन ऊर्जा विकसित करने के लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं। यूरोपीय संघ की फोविंड परियोजना के तहत गुजरात और तमिलनाडु में आठ-आठ जोन की पहचान अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजना के विकास के लिए की गई है। चेन्नई में सन् 1998 में स्थापित एक स्वायत्त अनुसंधान और विकास संस्थान पवन ऊर्जा प्रौद्योगिकी केंद्र देश में पवन विद्युत के विकास, पवन ऊर्जा के उपयोग की गति को बढ़ावा देने और पवन विद्युत क्षेत्र में तकनीकी विकास के लिये कार्य कर रहा है। भारत की सम्पूर्ण तटरेखा के माध्यम से 127 गीगावाट अपतटीय पवन ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है। दुनिया में सकल पवन ऊर्जा के उपयोग में चीन, अमेरिका और जर्मनी के बाद भारत का चौथा स्थान है। भारत की पवन ऊर्जा के उत्पादन में कुल वैश्विक भागीदारी 5.8 प्रतिशत है। वर्ष 2019 से लेकर वर्ष 2021-22 तक भारत में पवन ऊर्जा की क्षमता में 4503 मेगावाट की वृद्धि हुई है।

देश में आमबोलचाल में जिसे पनबिजली कहा जाता है, वह वास्तव में ज्वार-भाटा, तरंगों, जलताप और जलविद्युत जैसे जल के विविध रूपों में उपस्थित जल ऊर्जा है। यह भी हरित ऊर्जा का एक अति महत्वपूर्ण स्वरूप है। भारत में जलविद्युत का शुभारम्भ ब्रिटिशकाल के दौरान 1897 ई. में दार्जलिंग के निकट सिद्रापोंग अथवा सिद्राबाद में हुआ था। भारत की जलविद्युत परियोजनाओं में उत्तराखंड की भागीरथी नदी की लगभग 2400 मेगावाट की टिहरी परियोजना, महाराष्ट्र की कोयना नदी की लगभग 1956 मेगावाट की कोयना परियोजना, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में कृष्णा नदी की लगभग 1670 मेगावाट की श्रीशैलम परियोजना और हिमाचल प्रदेश में सतलज नदी की लगभग 1500 मेगावाट की नाथपा झाकड़ी परियोजना, आदि काफी पुरानी परियोजनाएं हैं। भारत ने अजरबैजान, भूटान, मलेशिया, नेपाल, ताइवान एवं न्यूजीलैंड में भी जलविद्युत परियोजनाएं स्थापित करने में सहायता की है।

पृथ्वी के गर्भ में उपस्थित खनिजों के रेडियोधर्मी क्षय और भू सतह द्वारा अवशोषित सौर ऊर्जा के कारण भारी मात्रा में बनने वाली भू-तापीय ऊर्जा भी हरित ऊर्जा के अंतर्गत आती है। इस ऊर्जा का उपयोग उद्योगों व घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये बिजली उत्पादन में ही किया जाता है। वर्तमान में इटली, जापान, इंडोनेशिया, न्यूजीलैंड, मैक्सिको, फिलीपींस, चीन, रूस, तुर्की सहित दुनिया के 24 देश भू-तापीय विद्युत पैदा करके लगभग 78 देशों में आपूर्ति कर रहे हैं। भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के वैज्ञानिक भी भू-तापीय ऊर्जा के शोध व अध्ययन में लगे हुए हैं। उन्होंने 350 भू-तापीय ऊर्जा स्थानों की पहचान की है। देश की भू-तापीय ऊर्जा की अनुमानित क्षमता लगभग दस हजार मेगावाट है। हरित ऊर्जा के अन्य स्त्रोतों जैसे जैवभार, जैव ईंधन और लैंडफिल गैस का उपयोग भी अब ऊर्जा स्रोत की तरह किया जाने लगा है। हमारे यहां ऊर्जा का उपयोग आमतौर पर भोजन पकाने, प्रकाश की व्यवस्था करने और कृषि कार्य से लेकर सभी तरह के बड़े बड़े उद्योगों एवं अनुसंधान क्षेत्र में किया जाता है। अतः लेख में उपर्युक्त वर्णित ऊर्जा के सभी वैकल्पिक स्त्रोतों की रणनीतियां बनाने में भारत तत्पर है, जिससे इनका उपयोग अधिक से अधिक किया जा सके। निःसंदेह भविष्य में हम ऊर्जा के क्षेत्र में पूर्णतया आत्मनिर्भर बन सकते हैं।

– डॉ. शुभ्रता मिश्रा

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