स्वरभास्कर पंडित भीमसेन जोशी

1985 में दूरदर्शन पर अनेक कलाकारों को मिलाकर बना कार्यक्रम ‘देश-राग’ बहुत लोकप्रिय हुआ था। सुरेश माथुर द्वारा लिखित गीत के बोल थे,‘‘मिले सुर मेरा तुम्हारा, तो सुर बने हमारा।’’ उगते सूर्य की लालिमा, सागर के अनंत विस्तार और झरनों के कलकल निनाद के बीच जो धीर-गंभीर स्वर और चेहरा दूरदर्शन पर प्रकट होता था, वह था स्वरभास्कर पंडित भीमसेन जोशी का। राग भैरवी में निबद्ध इस गीत ने शास्त्रीय संगीत एवं भीमसेन जी को पूरे भारत में लोकप्रिय कर दिया।

भीमसेन जी का जन्म कर्नाटक के धारवाड़ जिले में स्थित एक छोटे नगर गडग में 4 फरवरी, 1922 को एक अध्यापक श्री गुरुराज जोशी के घर में हुआ था। अपनी माता जी के भजन और दादाजी के कीर्तन सुनकर इनकी रुचि भी गीत और संगीत की ओर हो गयी। एक बार गांव का एक दुकानदार ‘किराना घराने’ के संस्थापक अब्दुल करीम खां के कुछ रिकार्ड लाया। उन्हें सुनकर भीमसेन ने निश्चय कर लिया कि उन्हें ऐसा ही गायक बनना है।

1932 में गडग में अब्दुल करीम खां के शिष्य प्रसिद्ध गायक रामभाऊ कुंदगोलकर (सवाई गंधर्व) के कार्यक्रम से प्रभावित होकर बालक भीमसेन ने घर छोड़ दिया। कई महीने तक खाली जेब, बिना टिकट घूमते हुए उन्होंने जालंधर, लखनऊ, रामपुर, कोलकाता, बीजापुर, ग्वालियर आदि में संगीत सीखा। इसके बाद वे भाग्यवश सवाई गंधर्व के पास ही पहुंच गये। सवाई गंधर्व ने इन्हें शिष्य बनाकर पूरे मनोयोग से गायन सिखाया।

धीरे-धीरे गीत और संगीत भीमसेन जी के जीवन की साधना बन गयी। 1946 में अपने गुरु सवाई गंधर्व के 60वें जन्मदिन पर पुणे में हुए कार्यक्रम से ये प्रसिद्ध हुए। फिर तो देश भर में इन्हें बुलाया जाने लगा। अब लोग इन्हें अब्दुल करीम खां और सवाई गंधर्व से भी बड़ा गायक मानने लगे; पर भीमसेन जी सदा विनम्र बने रहे। किराना घराना भावना प्रधान माना जाता है; पर भीमसेन जी ने उसमें शक्ति का संचार कर नया रूप दे दिया।

बहुभाषी भीमसेन जी मुख्यतः खयाल और भजन गाते थे। अभंग गाते समय वे मराठी, जोगिया राग गाते समय पंजाबी, वचन गाते समय कन्नड़भाषी और मीरा या सूर के पद गाते समय हिन्दीभाषी लगते थे। उन्होंने श्री हरिप्रसाद चौरसिया, पंडित रविशंकर तथा डा0 बाल मुरलीकृष्ण जैसे श्रेष्ठ संगीतकारों के साथ जुगलबंदी की। शुद्ध कल्याण उनका सबसे प्रिय राग था। उन्होंने कई राग मिलाकर कलाश्री और ललित भटियार जैसे कुछ नये राग भी बनाये। उन्होंने कुछ फिल्मों में भी अपने गायन और संगीत विधा का प्रदर्शन किया।

वे पुणे में अपने गुरु की स्मृति में प्रतिवर्ष सवाई गंधर्व महोत्सव करते थे। इसमें विख्यात और नये दोनों ही तरह के कलाकारों को बुलाया जाता था। विश्व पटल पर स्थापित ऐसे कई कलाकार हैं, जो इस समारोह से ही प्रसिद्ध हुए। इसमें पूरे महाराष्ट्र से श्रोता आते हैं। कई बार तो गायक के साथ संगत करने वाले को हल्का पड़ते देख भीमसेन जी स्वयं तानपूरा लेकर बैठ जाते थे।

शास्त्रीय गायन के पर्याय पंडित भीमसेन जी को सैकड़ों पुरस्कार मिले। उन्हें पद्मश्री, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, पद्मभूषण, तानसेन सम्मान और 2008 ई. में ‘भारत रत्न’ से विभूषित किया गया। एक बार प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें राज्यसभा में भेजना चाहा, तो उन्होंने अपने दोनों तानपूरों की ओर संकेत कर कहा कि मेरे लिए ये दोनों ही लोकसभा और राज्यसभा हैं।

देश-राग का यह सर्वोत्तम स्वर 24 जनवरी, 2011 को सदा के लिए मौन हो गया; पर अपने गायन द्वारा वे सदा अमर रहेंगे ।

संकलन – विजय कुमार 

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