क्या है नेहरू-गांधी परिवार के सरनेम का इतिहास ?

इंदिरा गांधी की सबसे लोकप्रिय जीवनी लिखने वाली कैथरीन फ्रेंक अपनी पुस्तक ‘इंदिरा – द लाइफ ऑफ इंडिया नेहरू गांधी’ में लिखती है, “यह एक सच्चाई है कि फिरोज गांधी का कोई जन्म प्रमाण पत्र नहीं है। इसके अलावा दूसरी एक सच्चाई यह है कि बंबई के पारसी मैटरनिटी हॉस्पिटल में 12 सितम्बर 1912 को रत्तीमई ने किसी लड़के को जन्म नहीं दिया था। इसलिए उनकी सगी मां शिरीन कमिस्सेरियट हो सकती है।

दरअसल, फिरोज का जन्म तो बंबई में ही हुआ था और अधिकतर पुस्तकों में रत्तीमई को इनकी मां बताया गया है। मगर कैथरीन इस तथ्य को नकारती है। वहीं, ‘फिरोज- द फॉरगॉटेन गांधी’ के लेखक बर्टिल फाल्क लिखते हैं कि जब फिरोज सात महीने के थे तो उनको उनकी मां की बहन यानी मौसी डॉ. शिरीन कमिस्सेरियट ने गोद ले लिया था। बर्टिल ने यह दावा फिरोज की चचेरी बहन माकी डी. कमिस्सेरियट से एक इंटरव्यू लेने के बाद किया था।

बर्टिल ने अपनी पुस्तक लिखने से पहले फिरोज से जुड़े कई लोगों से मुलाकात की थी। दरअसल, वे फिरोज को गोद लेने वाले तथ्य से संतुष्ट नहीं थे। अपनी पुस्तक में वे लिखते हैं कि डॉ. शिरीन कमिस्सेरियट वैसे तो अविवाहित थी लेकिन उनकी इलाहाबाद के एक वकील, राज बहादुर कमला प्रसाद से बहुत गहरी दोस्ती थी। बर्टिल को मिली जानकारी के अनुसार डॉ. शिरीन का विवाह नहीं हुआ था फिर भी उन्होंने गर्भ धारण किया और वे पूरे एक साल तक इलाहाबाद से बाहर रही।

बर्टिल ने अपनी पुस्तक में फिरोज गांधी के जन्मप्रमाण पत्र को भी प्रकाशित किया है। इसमें पिता का नाम जहांगीर फरेदून घांडी और मां रत्तीमई (रतनबाई) लिखा है। इसके बावजूद भी बर्टिल लिखते है, “यह प्रमाण पत्र प्रमाणिक तो नजर आता है लेकिन यह मामलें पर पर्दा डालने की कोशिश भी हो सकती है। जो भी हो यह इस समस्या अभी भी अनसुलझी हुई है। अब बस डीएनए के माध्यम से ही इस गुत्थी को सुलझाया जा सकता है।”

अब हमारे सामने दो बिंदु है, फिरोज के माता-पिता का नाम रत्तीमई और जहांगीर फरेदून घांडी था। उन्होंने फिरोज को शिरीन कमिस्सेरियट को गोद दिया था। दूसरा, फिरोज की मां शिरीन कमिस्सेरियट ही थी लेकिन वे अविवाहित थी और सामाजिक बदनामी के चलते उन्होंने फिरोज के दस्तावेजों में माता-पिता का नाम रत्तीमई और जहांगीर लिखवा दिया। अब यह तो पक्का है कि फिरोज पारसी ही थे और उनका बचपन इसी धर्म के अनुसरण के साथ बिता। उनके रिश्तेदार और भाई-बहन सभी पारसी ही थे। एक बात और, फिरोज की पढ़ाई-लिखाई और विवाह संबंधी सभी निर्णय डॉ. शिरीन कमिस्सेरियट ही लिया करती थी।

जवाहरलाल नेहरू की बहन और इंदिरा की बुआ, कृष्णा नेहरू की शादी एक जैन से हुई थी। हालांकि, जैन और हिन्दू वैवाहिक रिवाजों में तो कोई भिन्नता ही नहीं हैं फिर भी इस शादी को कानूनी रूप से मान्यता दिलवाई गयी थी। जबकि कृष्णा की मां इसके खिलाफ थी। खुद कृष्णा नेहरू अपनी पुस्तक ‘डिअर टू बिहोल्ड -एन इंटिमेट पोर्ट्रेट ऑफ इंदिरा गांधी’ में लिखती है कि मेरे पति ने कोर्ट मैरिज वाले दिन मुझसे कहा था कि ऐसा लग ही नहीं रहा कि मेरी शादी हो रही है।

कृष्णा नेहरू ने इंदिरा गांधी पर लिखी पुस्तक में इस वाकये का जिक्र उस पन्ने पर किया है जहां उन्होंने इंदिरा गांधी की शादी का उल्लेख किया है। दरअसल, उनका कहने का मतलब है कि मेरी शादी तो कोर्ट के माध्यम से हुई लेकिन इंदिरा के साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।

ऐसा बाद में हुआ हो उसकी भी संभावना कम है क्योंकि यह किताब 1969 में आई थी। कोर्ट मैरिज या धर्म परिवर्तन जैसा कुछ हुआ होता तो कृष्णा नेहरू इसका उल्लेख जरुर करती क्योंकि उनके मन में अपनी कोर्ट मैरिज को लेकर एक टीस थी। इन तथ्यों के आधार पर फिरोज जीवनभर पारसी ही रहे और उन्होंने कभी हिन्दू धर्मं नहीं अपनाया। साल 1970 में प्रकाशित आनंद मोहन की पुस्तक, ‘इंदिरा गांधी – ए पर्सनल एंड पॉलिटिकल बायोग्राफी’ के अनुसार फिरोज ने अपनी वसीयत में खुद को पारसी जोराष्ट्रीयन कहकर संबोधित किया है। इसलिए फिरोज के परिवार ने उनकी शरीर की बची हुई राख को इलाहाबाद स्थित पारसी कब्रिस्तान में पारसी परंपरा के अनुसार दफनाया था। यह कब्र आज भी वहां मौजूद है।

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