भारत का कोहिनूर बना ब्रिटेन के ‘विजय का प्रतीक’

कोहिनूर हीरा आंध्रप्रदेश के गोलकुंडा में रायलसीमा हीरे की खदान से खनन किया गया था, तब इस प्रदेश में काकतीय राजवंश का शासन था।

दिल्ली सल्तनत के दूसरे शासक अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल में, खिलजियों ने दक्षिणी भारत में कई आक्रमण किए। माना जाता है कि खिलजी 1310 में वारंगल में ऐसे ही एक अभियान में हीरा हासिल करने आए थें ।

इसके बाद 1526 में बाबर ने इब्राहिम लोदी को हराया, और हीरा ले लिया। बाबर ने अपनी आत्मकथा ‘बाबरनामा’ में भी कोहिनूर का उल्लेख किया है।  बाबर के बाद,हिरा शाहजहां के मयूर सिंहासन में जड़ा हुआ था।

फारस के सम्राट, नादिर शाह ने 1739 में मुगल साम्राज्य पर आक्रमण कर हीरा प्राप्त कर लिया था। ऐसा कहा जाता है कि यह नादिर शाह ने ही इस हिरे को ‘कोह-ए-नूर’ दिया था, जिसका फारसी में अर्थ “रोशनी का पहाड़” होता है ।

1747 में नादिर शाह की हत्या कर दी गई और उसका  साम्राज्य बिखर गया। उसकी मृत्यु के बाद, कोहिनूर उनके एक सेनापति, अहमद शाह दुर्रानी के अधिग्रहण में आ गया था। उनके वंशजों में से एक, शाह शुजा दुर्रानी ने पंजाब के रणजीत सिंह को हीरा दिया, जिसने बदले में दुर्रानी को अफगानिस्तान के सिंहासन को वापस जीतने में मदद की।

1849 में अंग्रेजों ने पंजाब पर विजय प्राप्त की और लाहौर संधि की घोषणा हुई। इसके बाद लॉर्ड डलहौजी ने रणजीत सिंह के उत्तराधिकारी दिलीप सिंह द्वारा महारानी विक्टोरिया को कोहिनूर भेंट करने की व्यवस्था की । हीरा 1850 -51 में महारानी विक्टोरिया को सौंप दिया गया था, जिसे शाही मुकुट में सजाया गया। तब से कोहिनूर हीरा इंग्लैंड में ही है।

रानी एलिज़ाबेथ द्वितीय के मृत्यु के पश्चात् अब ब्रिटिश राजघराने के वंशजो ने इसे ‘विजय का प्रतीक’ बना कर टावर ऑफ़ लन्दन के म्यूजियम में शाही रत्नों के कलेक्शन में रखने का फैसला किया है। जिसे आम नागरिकों के लिए मई के महीने में खुला किया जायेगा।

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