गलत हाथों में न जाएं परमाणु हथियार

 

दिवालिया होने की राह पर खड़ा पाकिस्तान अपने परमाणु हथियार बेचने की स्थिति तक पहुंच गया है। पाकिस्तान जैसे आतंकवाद पोषक देश द्वारा इस तरह के कदम उठाना मानवता के लिए खतरनाक है। यदि कुछ बम आतंकवादी संगठनों के हाथ लग गए तो सम्पूर्ण विश्व को उसका खामियाजा उठाना पड़ेगा, इसलिए संयुक्त राष्ट्रसंघ को आवश्यक कदम उठाने चाहिए।

पाकिस्तान के निरंतर बढ़ते कर्ज, घटते विदेशी मुद्रा भंडार, अस्थिर राजनीति, वैश्विक मुद्रा स्फीति, बढ़ी हुई ऊर्जा आयात लागत और सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में अनवरत गिरावट के फलस्वरूप उसका आर्थिक संकट लगातार गहराता जा रहा है। अब स्थिति यह हो गयी है कि पाकिस्तान भी श्रीलंका की तरह आर्थिक संकट के दौर में प्रवेश करने को मजबूर है, जिसके परिणामस्वरूप स्वयं बर्बादी की दहलीज पर आकर खड़ा हो गया है। अब पाकिस्तान के लिए ‘जैसी करनी वैसी भरनी’ वाली कहावत पूरी तरह से चरितार्थ हो रही है तथा वह अपनी दुर्गति को भुगत रहा है। एक ओर जहां आर्थिक रूप से तंगहाली और कंगाली की राह पकड़ ली है, वहां दूसरी ओर अस्थिर, राजनीतिक नेतृत्व, सामाजिक उन्माद तथा आंतरिक समस्याओं ने पाकिस्तान की प्रतिष्ठा रहे परमाणु भंडार भी अब बेचने को मजबूर हो रहा है। आर्थिक संकट के दलदल में धंसता हुआ पाकिस्तान अब ऐसे आकाओं एवं मसीहों की तलाश में जुटा है, जो गर्त में गिरती जा रही अर्थव्यवस्था को न केवल बचा सकें, बल्कि उसको बाहर निकालने में भी अपनी सक्रिय सहभागिता निभा सके। चूंकि आर्थिक रूप से वेंटिलेटर पर आखिरी सांसें ले रहा है।

वास्तव में वैश्विक सुरक्षा व शांति के लिए संकट की बात यह है कि पाकिस्तान का परमाणु हथियार बेचने की न केवल बात कर रहा है, बल्कि सौदा करने के लिए भी उतावला हो रहा है। कंगाल पाकिस्तान में परमाणु हथियारों की बम्पर सेल लगी है, किसके हाथ क्या लगेगा, यह तो वक्त बतायेगा। न्यूक्लियर वार हेड़ बेचकर पाकिस्तान अपनी कर्ज के मकड़जाल में फंसी गर्दन भले ही बचा ले, किन्तु उसका यह घातक कदम विश्व को व्यापक संकट में अवश्य ही डाल देगा। ‘परमाणु बम की मंडी लगाओ और आर्थिक तंगी से मुल्क बचाओ’ का नारा देकर पाकिस्तान के रक्षा विशेषज्ञ व पूर्ण सैन्य अधिकारी सैयद हामिद खां की सलाह खतरनाक संकेत का स्पष्ट इशारा कर रही है। वह सरेआम स्वीकार कर रहे हैं कि हमने चोरी-छिपे व तस्करी के बल पर परमाणु शक्ति सम्पन्नता प्राप्त की। अनेक परेशानी और घास की रोटी खाकर कर परमाणु बम बनाने की बात करने वाला देश अब उसी रोटी के लिए परमाणु बम तक बेचने की बात पर उतर आया है।

अपनी आत्मघाती नीतियों के कारण ही पाकिस्तान आतंकिस्तान के साथ ही अब कंगालिस्तान की कतार में आकर खड़ा हो गया है। पाकिस्तान का परमाणु प्लान यह है कि हम परमाणु बम अपने मुस्लिम मित्र देशों सऊदी अरब, तुर्की व ईरान को बेचेंगे और उसकी हैसियत के अनुसार उस देश से उसकी कीमत वसूलने का प्रयास करेंगे। यदि पाकिस्तान अपने पांच परमाणु बम बेचता है तो सऊदी अरब से 206825 करोड़ रुपये तथा तुर्की से 165461 करोड़ रुपये मिल जायेंगे। आगे यह भी बताया कि सऊदी अरब अकेले ही 25 अरब डॉलर में 5 बम बेचने के बदले देने को तैयार हो जायेगा। पाकिस्तान के इस रक्षा विशेषज्ञ का कहना है कि परमाणु बम बेचने के लिए दुनिया की कोई ताकत उन्हें नहीं रोक सकती, न तो हमला कर सकती है और न ही धमकी दे सकती है। इसके साथ ही ईरान को यूरेनियम बेचने की भी पेशकश की तथा कानून को बाई पास करते हुए अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अभिकरण (आई.ए.ई.ए.) की परवाह करने की भी उपेक्षा करने की बात कही।

पाकिस्तान की आर्थिक दुर्दशा का उल्लेख करते हुए पाकिस्तानी प्रधान मंत्री शहबाज शरीफ तो अब सार्वजनिक रूप से कह रहे हैं कि पाकिस्तान के पास बेचने के लिए और अब कोई अन्य चीज नहीं है तथा पाकिस्तान के दोस्त देश भी अब हमसे मुंह चुराने लगे हैं। इधर देखो, उधर देखो, आगे देखो व पीछे देखो चारों ओर कर्जा नजर आता है। पाकिस्तान के प्रसिद्ध समाचार पत्र ‘डॉन’ ने अपने एक सम्पादकीय में लिखा है- देश निराशा की इतनी गहरी गर्त में पहुंच गयी है कि लोग बोरिया-बिस्तर समेटने और देश छोड़ने की वकालत कर रहे हैं। अब तो पाकिस्तान की जनता भी कहने लगी है कि – हमें आटा दो चाहे भले ही परमाणु बम बेच दो। एक पाकिस्तान नागरिक ने तो यहां तक कह दिया कि जब शासकों को बेचने में शर्म नहीं आती और अब शायद उनके पास परमाणु बम रखने की जगह भी महफूज नहीं है, तो बेच दो किसकी परवाह कर रहे हो?

दूसरी ओर तहरीक-ए-तालिबान-पाकिस्तान (टी.टी.पी.) आतंकी संगठन के द्वारा पाकिस्तान में आतंकी आक्रमणों को भी अंजाम दिया जा रहा है। इसके साथ ही इस टी.टी.पी. आतंकी संगठन के कमजोर होने के कोई संकेत भी नजर नहीं आ रहे हैं। पाकिस्तान के सुरक्षा बल भी अभी तक यह सुनिश्चित नहीं कर पा रहा हैं कि वे टी.टी.पी. आतंकवादी संगठन पर पूरी तरह से नियंत्रण कर चुके हैं। वास्तव में यह भी पाकिस्तान के लिए यह भी एक बड़ा चुनौतीपूर्ण काम बन चुका है। क्योंकि खैबर-पखतूनख्वा प्रांत में टी.टी.पी. आतंकवादी संगठन को व्यापक सहयोग व समर्थन प्राप्त है। संघीय शासित कबायली इलाका (एफ.ए.टी.ए./फाटा) में रहने वाले लोग तथा पाकिस्तान के अर्द्ध स्वायत्त प्राप्त कबायली क्षेत्र के तमाम लोग टी.टी.पी. के साथ सहानुभूति रखते हैं। टी.टी.पी. अनेक आतंकवादी संगठनों का सामूहिक मंच है, जिसकी स्थापना 2007 में की गयी थी। इस प्रकार पाकिस्तान चारों ओर से आर्थिक व सामयिक समस्याओं के चक्रव्यूह में बुरी तरह घिरा हुआ है।

उल्लेखनीय है कि रेटिंग एजेंसी फिच ने समायोजन जोखिम, वित्त पोषण, राजनीतिक विपदा और घटते भंडार सहित डाउनग्रेड के अनेक कारणों का हवाला देते हुए पाकिस्तान के दृष्टिकोण को ‘स्थिर’ से घटाकर ‘नकारात्मक’ श्रेणी में डाल दिया है। रिपोर्ट में कहा गया, ‘नई सरकार को संसद में केवल मामूली व कम बहुमत वाली पार्टियों के असमान गठबंधन का समर्थन प्राप्त है। अक्टूबर 2023 में नियमित चुनाव होने हैं, जिससे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई.एम.एफ.) कार्यक्रम के समापन के बाद नीतिगत चूक का जोखिम पैदा होता है।’ फिच ने यह भी कहा कि, ‘नवीनीकृत राजनीतिक अस्थिरता को बाहर नहीं किया जा सकता है और अधिकारियों के राजकोषीय और बाहरी समायोजन को कमजोर कर सकता है, जैसा कि 2022 और 2018 की शुरुआत में हुआ था, विशेष रूप से धीमी वृद्धि और उच्च मुद्रास्फीति के मौजूदा माहौल में। यह भी कहा गया कि इस डाउनग्रेड के पीछे एक अन्य कारक विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव है।

इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई.एम.एफ.) ने वित्तीय संकट में फंसे और अंतरराष्ट्रीय तंगी से जूझ रहे पाकिस्तान को आई.एम.एफ. प्रमुख क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने नसीहत देते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि, “पाकिस्तान को ऐसी खतरनाक स्थिति से बचने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए, जहां उसे कर्ज पुनर्गठित करने की जरूरत पड़े।” पाकिस्तान को यह अब सुनिश्चित करना चाहिए कि ज्यादा कमाई करने वाले लोग कर (टैक्स) का भुगतान करें और केवल गरीबों को ही सब्सिडी मिले। हम जो मांग कर रहे हैं, वो पाकिस्तान को एक देश के रूप में काम करने में सक्षम बनाने के लिए जरूरी है। दिवालिया होने की कगार पर खड़े पाकिस्तान को इन दिनों अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की कड़वी दवा पीनी पड़ रही है। पाकिस्तान के भारी आर्थिक संकट के लिए उसकी सेना व उसके शासक बहुत हद तक उत्तरदायी हैं। देश के राजस्व का एक बड़ा भाग इनके खाते में जाता है।

आखिर आर्थिक संकट झेल रहा पाकिस्तान सरकारी व्यय में 15 प्रतिशत कटौती करेगा। इसके फलस्वरूप एक वर्ष में लगभग 200 अरब रुपये बचाये जा सकेंगे। अब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने मंत्रियों के भत्ते और यात्रा व्यय में कटौती के साथ ही विदेशी मिशनों को भी कम करने का निर्णय लिया है। उन्होंने अपने मंत्रियों एवं सलाहकारों को वेतन, भत्ते के साथ ही लग्जरी कारें, विदेश यात्रायें और बिजनेस क्लास में यात्रा छोड़ने का निर्देश दिया है। पाकिस्तान की मदद हेतु उसका सदा बहार मित्र चीन आगे आया है और उसने 70 करोड़ डालर के ऋण को मंजूरी दे दी है। पाकिस्तान के वित्त मंत्री इसाक डार ने चीन के विकास बैंक बोर्ड द्वारा ऋण स्वीकृत किये जाने की सूचना दी। यह राशि मार्च 2023 के पहले सप्ताह में स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान को मिलने की उम्मीद व्यक्त की, जो उसके विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ा देगी। देखना होगा यह संजीवनी कितना साथ देगी।

अब अहम् प्रश्न यह है कि आर्थिक संकट से घिरे पाकिस्तान के हाथ से खिसकते परमाणु बम के कारण कितनी सुरक्षित रह पायेगी यह दुनिया? यदि परदे के पीछे से किसी विदेशी ताकतों और विशेषकर कट्टर इस्लामिक देशों व संगठनों के साथ परमाणु हथियारों का सौदा हो जाता है, तो दुनिया संकट में आ जायेगी। इस बात को कदापि नकारा नहीं जा सकता है कि मानव जाति के समक्ष एक अनिश्चित भविष्य अब अपना मुंह खोले हुए खड़ा है। जिसके बारे में हम सभी यदि समय रहते सचेत होकर एक ठोस एवं प्रभावी पहल करने में सफल नहीं होते हैं, तो विनाश के कगार में खड़ी मानवता को बचाना कठिन ही नहीं असम्भव भी हो जायेगा। अतः अब आवश्यकता है कि पाकिस्तान की पूंजी परमाणु शक्ति के संदर्भ में समय रहते हम सभी भी सजग हों। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि यदि परमाणु हथियारों का उपयोग किया जाता है, तो न केवल शामिल देशों के लिए, बल्कि विश्व भर के बाकी सभी भागों में भी इसके गम्भीर परिणाम होंगे। परमाणु हथियारों के प्रयोग का सीधा सम्बंध है कि मानवता का अस्तित्व प्रत्यक्ष रूप से दांव में लगा हुआ है। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि इस समय पूरी दुनिया की नजर में पाकिस्तान बारूद के ढेर में बैठा हुआ है और एक नन्हीं सी चिंगारी उसे और सम्पूर्ण विश्व को बर्बाद कर सकती है। अतः हम सभी देशों तथा अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का दायित्व है कि स्वहित व राष्ट्रीय हितों से बढ़कर मानवीय मूल्यों की सुरक्षा के प्रति सहयोग, सम्पर्क, समर्पण, सहानुभूति एवं सत्यता के साथ साहसिक कदम शीघ्रता से उठायें और पाकिस्तानी परमाणु हथियारों पर अपनी निगाहें रखें।

– डॉ. सुरेन्द्र कुमार मिश्र

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