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पूर्वांचल के विकास के लिए कदम उठाएं – अखिलेश चौबे

पूर्वांचल के विकास के लिए कदम उठाएं – अखिलेश चौबे

by अमोल पेडणेकर
in जनवरी २०१६, साक्षात्कार
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इतिहास मे और स्वतंत्रता से पूर्व पूर्वांचल का अपना सांस्कृतिक और राजनैतिक वैभव था। स्वतंत्रता के बाद अब तक पूर्वांचल की स्थिति विकास की दृष्टि से अत्यंत दयनीय है। इस स्थिति का असर पूर्वांचल के विविध विकास कार्यों पर हो रहा है और इस क्षेत्र के विकास हेतु स्वतंत्र पूर्वांचल राज्य की मांग हो रही है। पूर्वांचल विशेषांक के अतिथि सम्पादक अधिवक्ता अखिलेश चौबे स्वयं मूलत: पूर्वांचल से हैं। वे मुंबई में सुपरिचित अधिवक्ता एवं गृह निर्माण व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। वे कार्य मुम्बई में करते हैं, परंतु उनका मन पूर्वांचल के विकास हेतु चिंतित रहता है। पूर्वांचल विशेषांक के माध्यम से उन्होंनेे पूर्वांचल के सम्बंध में अपने विचार अत्यंत बेबाकी से रखे।

आप मुबंई के प्रतिष्ठित वकील तथा बिल्डर हैं।परंतु आप मूलत: पूर्वांचल से हैं। आपके मन में पूर्वांचल की क्या प्रतिमा है?

पूर्वांचल की मूल पहचान वाराणसी है। वाराणसी प्राचीन और ऐतिहासिक स्थल हैं। गंगा के पठार के कारण वहां की सभ्यता बहुत प्राचीन है। जौनपुर, गाजीपुर जैसे अन्य शहरों का भी अपना इतिहास है। जौनपुर को तो शेरशाह सूरी ने अपनी राजधानी बनाया था।

धीरे धीरे यहां जनसंख्या बढती गई और इसका सम्पूर्ण भार वाराणसी पर आ गया। अन्य शहरों के लोग भी वाराणसी पर ही निर्भर रहने लगे। बीएचयू जैसी यूनिवर्सिटी और हास्पिटल होने के बावजूद भी यह क्षेत्र पिछडता चला गया।

साहित्य और आजादी की लडाई में पूर्वांचल के योगदान के संदर्भ में क्या कहना चाहेंगे?

पूर्वांचल की भूमि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक हर तरह से वैभव शाली रही है। लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेता पूर्वांचल की धरती से हुए है। पद्मभूषण काशीनाथ सिंह, शहनाई वादक बिस्मिल्ला खां भी पूर्वांचल की भूमि के रत्न हैं। साहित्य क्षेत्र में यह भूमि रत्नों की खदान है। संत कबीर, मुंशी प्रेमचंद, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र आदि सभी ने पूर्वाचल में ही साहित्य की रचना की। राजघरानों के बेटे बेटियां यहां शिक्षा प्राप्त करने आते थे। वाराणसी शिक्षा का केन्द्र रहा। बुद्ध को भी यहां आकर ज्ञान प्राप्त हुआ।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राजनैतिक आंदोलनों के माध्यम से पूर्वांचल का विकास दिखाई नहीं देता। क्यों?

पूर्वांचल ने हमेशा दूसरों को ही कुछ दिया है। देश की स्वतंत्रता के लिए आंदोलन किए। यहां के लोग अन्य लोगों के लिए आंदोलन करते हैं परंतु अपने लिए नहीं। शायद यही कारण है कि पूर्वांचल के हक के लिए यहां के लोग कभी कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं कर पाए। दूसरा कारण यह भी है कि यहां के लोग अल्पसंतुष्ट हैं। उन्हें जो मिलता है उसी में संतुष्ट रहने की आदत है, इसलिए पूर्वांचल के लिए कभी कोई बड़ा अंदोलन खड़ा ही नहीं हो सका।

यहां बिलजी की बहुत समस्या है। राज्य सरकार का ध्यान न होने के कारण दालों और अन्य फसलों को भी बहुत नुकसान हो रहा है। परंतु यहां के किसान अपने लिए कभी आगे ही नहीं आते।

पिछले कुछ दशकों से वहां ‘पूर्वांचल बनाओ‘ आंदोलन चल रहा है, परंतु उसमें धार नहीं है। आप इस संदर्भ में क्या कहना चाहेंगे?

मुझे तो ऐसा लगता ही नहीं कि वहां ‘पूर्वांचल बनाओ’ आंदोलन चल रहा है। जब विधानसभा अधिवेशन होता है तो वहां के एक दो नेता इस मुद्दे को उठाते हैं। परंतु उसका कोई परिणाम सामने नहीं आता।

पूर्वांचल की सर्वदलीय राजनीति पूर्वांचल के विकास के लिए लाभदायक है?

मूल बात किसी पार्टी या दल की नहीं है। दरअसल वहां कोई नेता ही दिखाई नहीं देता। राजनीति में वहां के जो नेता हैं, चाहे वे किसी भी पार्टी के हों उन नेताओंें में पूर्वांचल के लिए कुछ करने जज्बा ही दिखाई नहीं देता।

पूर्वांचल में इतने वर्षों में कोई औद्योगिक विकास भी दिखाई नहीं देता। इसका कारण क्या है? औद्योगिक विकास के लिए वहां क्या प्रयास आवश्यक हैं?

वहां औद्योगिक विकास क्या औद्योगिकीकरण भी नहीं हुआ है। यूपीएसआईडीसी में एक दो कारखाने ही चल रहे हैं। बाकी सभी बंद हैं। इसके दो कारण है। पहला यहां २४ घंटे बिजली की व्यवस्था नहीं है। जनरेटर पर कारखाने नहीं चलाए जा सकते। दूसरा माफिया राज अत्यधिक है। अगर राजनेता ताकतवर होंगे तो प्रशासन सही तरीके से चलता है।

मिर्जापुर में हिंडाल्को जैसे कुछ बडे कारखाने हैं। परंतु इन सभी की स्थापना नेहरू के समय में हुई थी। उसके बाद मुझे नहीं लगता २% कार्य भी हुआ होगा। वास्तव में जब तक हर जिले में विकास नहीं होगा, उद्योग शुरू नहीं होंगे तब तक पूरा पूर्वांचल विकसित नहीं हो सकता। उद्योग शुरू होने के बाद ही वहां से लोगों का अन्य प्रांतों में भी जाना रुकेगा और क्राइम भी कम होंगे।

पूर्वांचल कभी आजमगढ़ के कारण, कभी गुंडागर्दी की वारदातों के कारण तो कभी नक्सली कृत्यों के कारण मीडिया में हमेशा चर्चा का विषय रहा। इस बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?

पूर्वांचल कभी आतंकवाद का गढ़ नहीं नहीं रहा। वहां के एकाध भाग से अबू सालेम जैसे आतंकवादी निकले। वो भी पहले काम की तलाश में सामान्य युवक की तरह पूर्वांचल से बाहर निकला और कैरियर बनाने मुंबई आया। वह दाउद का ड्रायवर बन गया। कुछ समय बाद वह उसके गिरोह में शामिल हो गया।

पूर्वांचल से सबसे अधिक आई.ए.एस. अधिकारी निकले हैं। पूर्वांचल विकास की मांग को लेकर उनका क्या सहयोग रहा है?

आप अगर दस साल पूर्व तक की आई.ए.एस. की सूची देखेंगे तो उसमें आपको ७०% लोग इलाहबाद के दिखेंगे। ये सभी इलाहबाद के रहने वाले नहीं हैं। परंतु वे इलाहबाद विश्वविद्यालय से पढ़कर आई.ए.एस. बनते थे। यह बहुत गर्व का विषय है परंतु परेशानी यह थी कि आई.ए.एस. बनने के लिए उम्र के ३० वर्ष गुजर जाते हैं। वे लोग सोचते हैं कि आंदोलन इत्यादि झंझटों में हमें नहीं पड़ना है। क्योंकि जब कोई आंदोलन में उतरता है तो उसपर कई तरह के आरोप लगते हैं, एफआई आर होती है। वे लोग स्वत: की प्रतिमा स्वच्छ रखने के लिए किसी भी तरह का विरोध या आंदोलन नहीं करते।

 विस्थापन, बेरोजगारी आदि समस्याओं के हल के लिए पूर्वांचलवासी अलग पूर्वांचल राज्य की मांग कर रहे हैं। क्या यह मांग सही है?

जी हां! यह समय की मांग है। हम अन्य राज्यों की ओर देखें तो दिखाई देगा कि छत्तीसगढ़, झारखंड, तेलंगाना आदि के स्वतंत्र राज्य बनने के बाद उनका विकास हुआ है। पूर्वांचल की अपनी एक भाषा है, संस्कृति है। विकास की दृष्टि से देखें तो अगर इसे अलग राज्य बनाया जाता है तो पूर्वांचल का जो विकास ५०-५५ वर्षों से रुका हुआ था वह १०-१२ वर्षों में हो जाएगा।

नरेंद्र मोदी के द्वारा पूर्वांचल(वाराणसी) को अपना चुनाव क्षेत्र बनाने के बाद आज वहां की परिस्थिति क्या है?

वाराणसी में काम शुरू हो चुका है। अभी वह प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं देता परंतु काम हो रहा है। वाराणसी में लिंक रोड़ बनाया जा रहा है। इससे वाराणसी की एक तरह से ‘बाउन्ड्री‘ बन जाएगी और वाराणसी एक अलग रूप लोगों के सामने आएगा। अन्य क्षेत्रों में भी विकास कार्य जोरों से प्रारंभ हुआ है।

पिछले बीस सालों से उत्तर प्रदेश में मायावती, मुलायम सिंह यादव और अब अखिलेश यादव की सरकार है। पूर्वांचल को नजरअंदाज करने में इनकी क्या भूमिका है?

सच कहें तो सारी भूमिका इन्हीं की है। इन लोगों ने कभी पूर्वांचल की ओर ध्यान ही नहीं दिया। वे जानते थे कि वहां मत विकास के आधार पर नहीं वरन जाति के आधार पर मिलते हैं। क़िसी क्षेत्र विशेष में यदि कुर्मी अधिक हैं तो वहां से कुर्मी नेता जीतेगा, यादव है तो यादव और ब्राह्मणों की अधिकता है तो ब्राह्मण जीतेगा। अब जब मोदी जी ने पूर्वांचल को अपना चुनाव क्षेत्र बनाया है तो धीरे-धीरे इन्हें भी लगने लगा है कि पूर्वांचल के िए कुछ करना चाहिए।

पूर्वांचल के कई लोग मुंबई में आ कर बस गए हैं। आप इन लोगों का एकत्रीकरण कैसे करते हैं? मुंबई के द्वारा पूर्वांचल को किस तरह सहायता मिल रही है?

यहां पूर्वांचल के लोगों द्वारा चलाई जाने वाली कई संस्थाएं हैं। ब्राह्मण कल्याण परिषद है, राजपूतों की संस्थाएं है। वहां सभी का सहभाग होता है।

पूर्वांचल का जो थोडा बहुत विकास हुआ है उसमें मुंबई का बहुत बड़ा हाथ है। जो कार्य पूर्वांचल की सरकार नहीं कर पाई वह कार्य मुंबई के द्वारा किया गया है। हम जैसे यहां रहने वाले लोगों ने मुंबई में अपने घर नहीं खरीदे परंतु सभी ने गावों में घर बनाए हैं। गांव में अगर ५० घर है तो उनमें से ४५ घर मुंबई के पैसों से ही बने हैं।

सन २०१७ में उत्तर प्रदेश में चुनाव होने वाले हैं। क्या उस समय अलग पूर्वांचल की मांग जोर पकड़ेगी या फिर एक बार पूर्वांचलवासी ठगे जाएंगे?

मुझे नहीं लगता चुनाव में इसका अधिक परिणाम होगा। अगर राजनेताओं ने ऐसा प्रयत्न किया तो अन्य भागों पर उसका विपरीत परिणाम होगा।

पूर्वांचल के लिए अलग आंदोलन की ही आवश्यकता है। मुझे नहीं लगता कोई भी राजनैतिक पार्टी इसके खिलाफ है। जरूरत है इस क्षेत्र के लोगों द्वारा आंदोलन में तेजी लाने की।

आप हिंदी विवेक के पूर्वांचल विशेषांक के माध्यम से पूर्वांचलवासियों को क्या संदेश देना चाहेंगे?

जागो और संघर्ष करो! अब सचमुच समय आ गया है जब पूर्वांचलवासियों को अपने हक के लिए आवाज उठानी चाहिए। अब तक मायावती या मुलायम सिंह यादव ने पूर्वांचल की ओर ध्यान नहीं दिया था। परंतु अब मोदी जी साथ पूर्वांचलवासियों को मिलनेवाला है। इस समय में अगर आवाज उठाई गई तो वह दिल्ली तक पहुंचेगी। बिजली, खेती से जुड़ी समस्याएं और अलग पूर्वांचल की मांग इत्यादि सभी विषयों पर अब ध्यान दिया जा सकेगा। अत: मुझे लगता है कि यह समय अत्यंत उपयुक्त है कि पूर्वांचल के विकास के लिए कदम उठाए जाएं।

अमोल पेडणेकर

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