पूर्वांचल-एक नजर में

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उत्तर प्रदेश भारत वर्ष का क्षेत्रफल एवं जनसंख्या दृष्टि से एक   विशाल राज्य है। इसके पूर्वी छोर पर स्थित पांच मण्डल के सत्रह जिले पूर्वांचल के अंतर्गत आते हैं। यद्यपि अभी तक कोई प्रशासकीय एवं विधिक विभाजन नहीं हुआ है। फिर भी भौगोलिक, भाषायी एवं सामाजिक रचना को देखते हुए निश्चय ही यह एक विशिष्ट क्षेत्र है।

पूर्वांचल की जीवन-दृष्टि

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पूर्वांचल’ शब्द के उच्चारण मात्र से मन में एक पवित्र भाव भर जाता है। चारों दिशाओं में पूर्व सबसे पवित्र है। इसी दिशा में प्रकाश की पहली किरण फूटती है। यह इसलिए भी महनीय है कि यह अंधकार से ड़रता नहीं। अंधेरा देखकर यह हाय तौबा नहीं मचाता, बल्कि धीरज के साथ समय काट लेता है। वह जानता है कि अंधेरा सच नहीं है। सच है प्रकाश, जिसकी किरणें उसके आंचल में फूटेंगी, यह अटल सत्य है।

चार युगों की आध्यात्मिक भूमि

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पूर्वांचल अर्थात् पूर्वी उत्तर प्रदेश के नाम से प्रचलित क्षेत्र उत्तर   प्रदेश के चार क्षेत्रों में एक है। विकास की दृष्टि से उत्तर प्रदेश-पूर्वांचल, मध्यांचल, पश्चिमांचल और बुन्देलखण्ड में विभक्त है। पूर्वांचल लगभग ८,८४४ वर्ग किलोमीटर में फैला है। उत्तर प्रदेश के कुल ७५ जिलों में से अट्ठाइस(२८) जिले पूर्वांचल में आते है।

हिन्दी साहित्य में अवदान

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ईशोपनिषद में ‘मनीषी’ शब्द का जिक्र है। कवि या साहित्यकार ‘स्वयंभू’ होता है। मनीषी साहित्यकार को अन्त:स्फूर्ति से जो मिला है, उसे जगत के सामने प्रगट करने और लोगों के हृदय में उसे जगाने का मिशन भी उसी का होता है। भारत की साहित्यिक अभिवृद्धि में बनारस और पूर्वांचल का महान योगदान सर्वस्वीकृत है।

पूर्वांचल के आध्यात्मिक स्थल

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सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश आध्यात्मिक दृष्टि से समृद्ध क्षेत्र है, जहां राम   और कृष्ण ने जन्म लिया, बुद्ध और महावीर की तपोभूमि रही और बाबा विश्वनाथ, मां अन्नपूर्णा एवं मां विध्यवासिनी के आराध्य स्थल हैं। देवभूमि उत्तरांचल कभी उत्तर प्रदेश का ही अंग रहा, जहां केदारनाथ, बद्रीनाथ जैसे पवित्र धामों के अतिरिक्त गंगोत्री, जमुनोत्री जैसी पवित्र नदियों के रमणीक स्रोत हैं।

भारत की आजादी में योगदान

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नई पीढ़ी को यह बताने की आवश्यकता है कि ६६वर्षों की यह आज़ादी हमारे पूर्वजों की उस लड़ाई के कारण मिली है जिसे उन्होंने अपनी गरीबी, संसाधनों की कमी और अनेक लाचारी के बाद भी जाति, पंथ, भौगोलिकता, भाषा की सीमा से बाहर जाकर लड़ा था।

स्वतंत्रता संग्राम और पत्रकारिता

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हिंदी पत्रकारिता का प्रारंभ कोलकाता से हुआ, लेकिन उसके   शक्तिसंवर्धन का श्रेय धर्म-संस्कृति की पुरातन नगरी काशी और प्रयाग को ही है। यहां की पत्रकारिता ने समूचे देश में अपनी धाक ही नहीं जमाई, वरन स्वतंत्रता संग्राम में भी अग्रणी भूमिका निभाई।

गोरखपुर की शान और पहचान गीता प्रेस

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पूर्वांचल में यदि गोरखपुर की पहचान पूछी जाए तो इसके दो ही  प्रमुख उत्तर होंगे। पहला तो गोरखनाथ पीठ जिसे यहां के लोग गोरक्षपीठ के नाम से जानते हैं। ये पूर्वांचल के करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र है। दूसरा, गीता प्रेस जिसे आज भी गोरखपुर ही नहीं बल्कि पूर्वांचल का हर हिंदू बेहद सम्मान के साथ देखता है। गीता प्रेस की महत्ता गोरखपुर में इतनी है कि एक पूरा इलाका, एक पूरी सड़क और शहर का एक हिस्सा गीता प्रेस के नाम से ही जाना और पहचाना जाता है।

पूर्वांचल के विकास के लिए कदम उठाएं – अखिलेश चौबे

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इतिहास मे और स्वतंत्रता से पूर्व पूर्वांचल का अपना सांस्कृतिक और राजनैतिक वैभव था। स्वतंत्रता के बाद अब तक पूर्वांचल की स्थिति विकास की दृष्टि से अत्यंत दयनीय है। इस स्थिति का असर पूर्वांचल के विविध विकास कार्यों पर हो रहा है और इस क्षेत्र के विकास हेतु स्वतंत्र पूर्वांचल राज्य की मांग हो रही है। पूर्वांचल विशेषांक के अतिथि सम्पादक अधिवक्ता अखिलेश चौबे स्वयं मूलत: पूर्वांचल से हैं। वे मुंबई में सुपरिचित अधिवक्ता एवं गृह निर्माण व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। वे कार्य मुम्बई में करते हैं, परंतु उनका मन पूर्वांचल के विकास हेतु चिंतित रहता है। पूर्वांचल विशेषांक के माध्यम से उन्होंनेे पूर्वांचल के सम्बंध में अपने विचार अत्यंत बेबाकी से रखे।

आखिर गृह और कुटीर उद्योग कैसे विकसित हो?

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लघु और कुटीर उद्योगों पर विचार करना  हो तो हमारी आज की आवश्यकताएं, स्वभाव और वस्तुओं के उपयोग करने की पसंद, प्रमुख और निर्णायक बन जाएगी। हम आज से ५०     या १०० साल पहले की स्थिति के आधार पर अध्ययन करना चाहें तो निष्कर्ष यही निकलेगा कि हम तो उससे बहुत आगे निकल आए हैं;

पूर्वांचल के कुटीर उद्योग

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पूर्वांचल उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र में स्थित है। इस भौगोलिक क्षेत्र के विधान सभा में कुल ११७ विधायक हैं। पूर्वांचल में कुल २८ जिले, २३ लोकसभा एवं ११७ विधान सभा सीटें  सम्मिलित हैं। यह भारतीय-गंगा मैदान पर स्थित है। पूर्वांचल के आसपास के जिलों की तुलना में मिट्टी की समृद्ध गुणवत्ता और उच्च केंचुआ घनत्व के कारण कृषि के लिए अनुकूल है।

अविनाशी काशी

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विश्व की प्राचीनतम नगरी वाराणसी जीवन   रेखा की दृष्टि से एकमात्र अटूट नगरी है, जहां मानव जीवन लगभग ६ हजार वर्षों से प्रतिष्ठित  है, पल्लवित है। यूं तो सूर्योदय होने पर अंधकार दूर होता है, कोहरा छंट जाता है, रहस्य उन्मुक्त हो जाता है, परंतु वाराणसी सूर्योदय के लिए विख्यात होने के उपरान्त अनादिकाल से एक रहस्यमयी नगरी है।

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