चंद्रयान – 2 की असफलता के बाद इसरो उसके अगले चरण की तैयारी में गम्भीर रूप से जुट गया है। चंद्रयान – 3 का प्रक्षेपण जून में किया जाएगा। यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा और वहां पर बर्फ की सम्भावनाएं तलाशने का प्रयास करेगा। यदि इसरो अपने मिशन में सफल हो जाता है तो दुनिया भर की अंतरीक्षीय खोजों में यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण कदम होगा।
हमारे प्रधान मंत्री का स्पष्ट मत है और यही सच है कि विज्ञान में केवल प्रयास होते हैं और ये प्रयास मानव कल्याण के दर्शन से अनुप्राणित होते हैं। साल 2019 में चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम से सम्पर्क टूट जाने की वजह से यह अभियान पूरी तरह कामयाब नहीं हो सका। चंद्रमा से सम्पर्क की अगली कड़ी के रूप में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के द्वारा साल 2023में ‘चंद्रयान 3’ और 2024 में ‘गगनयान’ मिशन के लिए तैयार है। भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में सशक्त बनाने की दिशा में ये मिशन महत्वपूर्ण होंगे। दुनिया के अनेक देश चंद्रमा की सतह पर पहुंचने की उम्मीद में अनुसंधानरत हैं। 2023 में भारत,रूस और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी चंद्रमा सहित गहन अंतरिक्ष में अपने अन्तरिक्ष मिशन लांच करेंगे। तो आइये, भारत के चंद्रयान 3 मिशन के बारे में जानते हैं- क्या है चंद्रयान3, यह चंद्रयान 2 से कैसे अलग है, इसकी उपयोगिता और अहम उद्देश्य क्या हैं?
क्या है चंद्रयान-3 मिशन?
चंद्रयान-3 मिशन, चंद्रयान-2 का उत्तराधिकारी या भावी मिशन है। चंद्रयान-2 का उद्देश्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर एक रोवर को लैंड करना था। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के वर्तमान अध्यक्ष एस. सोमनाथ के मुताबिक चंद्रयान-3 अधिक मजबूत चंद्र रोवर के साथ अपनी उड़ान भरेगा, जो भविष्य के अंतर-ग्रहीय खोज के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। चंद्रयान-3 की लांचिंग जियोसिंक्रोनस लांच वीकल मार्क-खखख (जीएसएलवी एमके-खखख) से की जाएगी।
चंद्रयान 2 से कितना अलग होगा चंद्रयान 3 मिशन?
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के प्रमुख का कहना है कि चंद्रयान 3 रोवर अपने पुराने चंद्रयान-2 की कॉपी नहीं है। इसमें रोवर है। इस बार की इंजीनियरिंग काफी कुछ अलग है। इसे पहले की अपेक्षा और अधिक मजबूत बनाया गया है, ताकि पिछली बार की तरह समस्या उत्पन्न न हो। इस बार इसमें कई बदलाव भी किए गए हैं। इम्पैक्ट लैग्स मजबूत हैं। इसमें बेहतर उपकरण होंगे। रोवर को विकसित किया जा रहा है ताकि यात्रा की ऊंचाई की गणना करने, खतरे से मुक्त स्थानों की पहचान करने के लिए अलग-अलग तरीकों का इस्तेमाल किया जा सके और इन्हें अंजाम देने के लिए इसमें बेहतर सॉफ्टवेयर प्रयोग किये गए हैं।
क्या है चंद्रयान-3 मिशन का उद्देश्य?
सितम्बर 2019 में चंद्रयान-2 मिशन के दौरान लैंडर ‘विक्रम’ चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त होकर विफल रह गया था। हालांकि, चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर अभी भी काम कर रहा है। चंद्रयान-3 मिशन के अंतर्गत भेजे जाने वाले लैंडर में करीब 4 थ्रोटल इंजन को शामिल किया गया है, जिसका इस्तेमाल लैंडर को सतह पर उतारने के लिए किया जाएगा। अब तक भारत ने किसी दूसरे ग्रह या उसके उपग्रह पर कोई रोवर लैंड नहीं करवाया है। चंद्रयान-3 चांद पर उतरने के हमारे इसी सपने को पूरा करेगा। ये मिशन इसरो के आने वाले कई दूसरे बड़े मिशन्स के लिए रास्तों को खोलेगा।
अभी तक अमेरिका, रूस और चीन को चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग में सफलता मिली है। सॉफ्ट लैंडिंग का अर्थ है कि आप किसी भी सैटेलाइट को किसी लैंडर से सुरक्षित उतारने के बाद वो अपना काम सुचारू तौर पर आरम्भ कर सके। चंद्रयान-2 को भी इसी तरह चन्द्रमा की सतह पर उतारना था, लेकिन आखिरी पलों में यह सम्भव नहीं हो पाया। सॉफ्ट लैंडिंग अपने आप में एक दुर्लभ प्रक्रिया होती है इसलिए दुनिया भर के 50 फीसदी से भी कम मिशन हैं जो सॉफ्ट लैंडिंग में कामयाब रहे हैं।
कब होगा लांच चंद्रयान-3?
शुरुआती योजना 2022 की तीसरी तिमाही में चंद्रयान-3 मिशन को लांच करने की थी। मगर अपरिहार्य कारणों से अब इसरो ने साल 2023 के जून में चंद्रयान-3 के प्रक्षेपण की योजना बनाई है।