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जब आप ठगा हुआ महसूस करते हैं

जब आप ठगा हुआ महसूस करते हैं

by हिंदी विवेक
in विशेष, सामाजिक
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देश में अचानक एक घटना हो जाती है और आप ठहर कर उस घटना की प्रतिक्रियाएं पढ़ते-देखते हैं। दो तीन दिनों तक उन प्रतिक्रियाओं को पढ़ने-देखने के बाद आप मूक हो जाते हैं। लगभग जड़। ठगा हुआ महसूस करते हैं। आप अनुभव करते हैं कि पिछले सौ वर्षों में कुछ नहीं बदला। मजहब के नाम पर देश बंट गया। स्थिति जस की तस रह गई।‌ आप लाख भाईचारा, गंगाजमनी तहजीब और सदियों से साथ रहने के तराने गाते सुनाते रहें। वह एक झटके में सिद्ध करते हैं कि तराने वराने सुनने सुनाने की चीज हैं। वास्तविक जीवन और उसकी कसौटियों पर उनका कोई अर्थ नहीं।‌ उनकी प्राथमिकताएं सर्वथा भिन्न हैं। उनके विचार स्पष्ट हैं। जो आपके लिए शैतान का प्रतिरूप है, वह उसका हीरो है। अनिवार्य रूप से है। वह शैतान आपके सामने नग्न विद्रूप खड़ा होता है लेकिन दूसरा पक्ष कहता है कि बड़ा अन्याय हुआ।‌ वह हमारा हीरो था।

यह एक अनुभूत सत्य है। जिसकी अनगिनत अनुभूतियां हमें हो चुकी हैं।कश्मीर से कन्याकुमारी तक यही पैटर्न है। पिछली कई सदियों का यही इतिहास है। वर्तमान भी यही है।कितना ही बड़ा अपराधी, माफिया, पाकिस्तानी एजेंट, मजहबी उन्मादी,हत्यारा लुटेरा क्यों न हो-अंतत: उनका नायक होता है। फिर आप कल्पना करते हैं कि वह औरंगजेब, खिलजी, तुगलक, और टीपू पर स्वस्थ आलोचनात्मक दृष्टि से विचार करेगा और कहेगा कि मैं मानता हूं -ये सभी मजहबी शैतान थे। जिन्होंने हिन्दू सभ्यता को बहुत घाव दिए। इतिहास में इन्हें गलत तरीके से उठाया गया है। नहीं! यह असम्भव है। असम्भव इसलिए है कि कोई अतीक और मुख्तार आज उसका नायक है। पहले औरंगजेब था।‌ उसके पहले बाबर था। बाबर से पहले तुगलक खिलजी थे। तैमूर लंग था। गोरी गजनी थे।‌ उसके पास कोई विवेक, कोई स्वस्थ आलोचनात्मक अवलोकनात्मक दृष्टि नहीं है। वह एक यांत्रिक भीड़ मात्र है। आप जिनके अत्याचारों से क्षुब्ध होकर कह उठते हैं कि इस दुर्दांत से मुक्ति दिलाओ। वह उनके लिए आदर से भरे होते हैं। सौ प्रतिशत न हो तो नब्बे प्रतिशत अवश्य होते हैं।

मैं कुछ पत्रकारों की प्रतिक्रियाएं भी देख रहा था। ये सब बड़े बड़े चैनल के संपादक हैं। जिनकी तनख्वाह लाखों करोड़ों में है। कुछ लोगों को उनके घर का तंदूरी चिकन याद आ रहा था तो कुछ लोग श्रद्धाभाव से भरे हुए थे–क्या जर्रानवाज नेता था। ये प्रतिक्रियाएं सामान्य हैं। मैंने न्यूज रूम में अविश्वसनीय निर्लज्जता के साथ महाभ्रष्ट, घोषित बदमाशों गुंडों और जिहादियों के लिए सहानुभूति देखी है। मैं इस मानसिकता को समझना चाहता हूं। मैंने पत्रकारिता इसीलिए छोड़ दी क्योंकि मैं वहां हर दिन घुटता था। वर्षों के अपने कार्यकाल में ऐसा कोई दिन मुझे ध्यान नहीं आता, जब मैंने बहुत संतोष और आत्मानंद के साथ कार्यालय में कदम रखे हों। कभी नहीं। मैंने 2018 में टीवी पत्रकारिता का त्याग कर दिया। मेरा वश रहा होता तो एक दशक पूर्व ही छोड़ चुका होता।

वह इतनी झूठी, उथली और नकली दुनिया है कि मुझ जैसा आदमी वहां टिक ही नहीं सकता था। आज मुझसे कोई कह दे कि दस लाख प्रतिमाह की तनख्वाह पर तुम्हें फलां चैनल का संपादक बनाता हूं। मैं उस प्रस्ताव पर क्षण भर भी विचार नहीं करूंगा। हंसते हुए धन्यवाद कहकर आगे बढ़ जाऊंगा। यह कोई शेखी बघारने का प्रयास नहीं। सौ फीसद सत्य है।कोदंड रामकथा का प्रकाशन होने के कुछ दिनों बाद एक बड़े चैनल के महान पत्रकार ने मुझे न्योता दिया था कि आइये, इस सप्ताह आपकी पुस्तक पर चर्चा करते हैं। मैंने बड़ी ही निष्ठुरता से उन्हें मना कर दिया था। मैं चैनल पर अपनी पुस्तक के बारे में बातें करता तो वह पुस्तक बहुत प्रचारित होती लेकिन मैंने अस्वीकार किया। मैंने तिलांजलि दे दी है। जहां संपादक यह पूछे कि अरे राहुल गांधी कहां से बोल रहे हैं और क्षण भर बाद ही फिर पूछे कि अरे मोदिया कहां से बकवास कर रहा, वहां मैं काम नहीं कर सकता। उनके अपने नायक हैं। अपनी चमकती दमकती दुनिया है। अपनी बुद्धिमत्ता है। अपना विश्वास और दर्प है।‌ मुझ जैसों की वहां जरूरत नहीं है।

भारत का संघर्ष साधारण नहीं है। ये प्रतिक्रियाएं आपको हताश करती हैं। लेकिन कुछ संतोष भी होता है कि प्रतिपक्ष तैयार हो रहा है। जो उसकी ही भाषा में बातें करना सीख गया है। लोकतंत्र को हत्यारों, माफियाओं, खानदानी शोहदों की लंगोट समझने वालों को समाप्त हो जाना चाहिए। जिसके मन में मनुष्यता न हो। जो भारतभूमि से स्वयं को जोड़ न पाता हो। जिसका उद्देश्य केवल सत्ता और उसकी हनक हो, जो खुद को इस देश का बाप, भाग्यविधाता समझते हों उनसे सहानुभूति रखने वाले लोग कौन हैं। और जो घोषित, सिद्ध भ्रष्टाचारी हों उन्हें आप समझा सकते हैं? कभी नहीं। वो नहीं समझेंगे।‌ उन्हें नष्ट करने का एक ही उपाय है-लोकतंत्र के हर छोटे बड़े प्रतिनिधित्व से उन्हें दूर कर दीजिए।‌शक्ति के बिना कुछ संभव नहीं है। शक्ति नहीं रहेगी तो वह स्वत: समाप्त हो जाएगा। इसीलिए मोदी और योगी आदित्यनाथ जैसे नेता बहुत महत्वपूर्ण हैं। और भाजपा एक परमावश्यक दल है। भाजपा में बहुत खराबियां हो सकती हैं। देशद्रोह और गद्दारी, हिन्दूघात नहीं है। वह मठाधीशी कर सकता है परन्तु किसी कांग्रेसी, सपाई, लालू डीएमके की तरह देश को खा नहीं सकता।

लोग तटस्थता की बात करते हैं। कैसी तटस्थता? यहां कुछ तटस्थ रहने जैसा भी है? सबकुछ नग्न है। पूर्णतः स्थूल। मोदी योगी और भाजपा के कुछ अन्य नेताओं के समक्ष किसी कांग्रेसी, सपाई, आरजेडी वाले, आपिये और तृणमूल को कैसे चुनें। कोई प्रश्न ही नहीं उठता। मेरे लिए तो दूरस्थ संभावना भी नहीं है। भाजपा की विचारधारा और उसकी संस्कृति महत्वपूर्ण है। अगर कोई नेता बहकेगा तो उसे उतारने वाला भी वहां होगा। और मुझे यह सब लिखते हुए पत्रकारिता का कोई नैतिक सिद्धांत नहीं डराता। मैं फालतू के आडम्बर में विश्वास नहीं करता।मेरा दृढ़ मत है कि किसी भी परिस्थिति में वर्तमान भाजपा इस देश के अन्य सभी दलों से सौ गुणा बेहतर है। उसे ही सत्ता में रहना चाहिए। उसके रहने में ही इस देश का भला है।

– देवांशु झा

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Tags: anti modi propagandajihadist mindsetmafia killed

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