भारतीय संस्कृति की महान परम्परा में समय- समय पर ईश्वरीय अवतारों, ऋषि – महर्षियों, ज्ञानी- ध्यानी सन्तों के प्राकट्य ने राष्ट्र जीवन को सञ्जीवनी प्रदान की। और कालचक्र की कुरीतियों से भारतीय जीवन पद्धति में घर कर गई, मूर्च्छा को दूर किया है। उसी परम्परा में महात्मा गौतम बुध्द का दर्शन – सतत् प्रकाश पुञ्ज बिखेर रहा है। उनका जन्म ऐसे कालखण्ड में हुआ जब – कुरीतियाँ, आडम्बर, पाखण्ड और ऊंच – नीच भेदभाव , वैमनस्य, राज्य प्राप्ति के लिए युद्ध जैसे दुर्गुण मानवता को ग्रस रहे थे। ऐसे कालखण्ड में महात्मा बुध्द का प्राकट्य ‘अप्प दीपो भव ‘ का सन्देश लेकर मानव जीवन को सत्मार्ग की राह दिखाने वाला सिद्ध हुआ। और उन्होंने भारत की आध्यात्मिक चेतना को पुनश्च जागृत किया।
महात्मा गौतम बुध्द का जन्म 563 ई.पू. को वैशाख पूर्णिमा के दिन इक्ष्वाकुवंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन एवं माता महामाया की संतान के रूप में तत्कालीन शाक्य गणराज्य की राजधानी लुम्बनी (वर्तमान नेपाल) में हुआ था। जन्म के कुछ समय पश्चात ही माता का निधन हो जाने के कारण उनका पालन महाप्रजापती गौतमी ने किया था।उनका नाम सिध्दार्थ रखा गया। सोलह वर्ष की आयु में उनका विवाह यशोधरा से हुआ , जिनसे उनकी संतान राहुल का जन्म हुआ। 29 वर्ष की अवस्था में वे गृहत्याग कर ज्ञान प्राप्ति की खोज में निकल गए। इसके पीछे — जरा, रोग, मृत्यु और सन्यासी कारण बने। तदुपरान्त उन्होंने कठोर साधना प्रारंभ कर दी । और 528 ईसा पूर्व को वैशाख पूर्णिमा के दिन ही बोधगया में एक पीपल वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए आत्म बोध – तत्वज्ञान प्राप्त किया। फिर यहीं से वे ‘तथागत’ बुध्द के नाम से जाने गए। उनके सहज- सरल पाली भाषा में दिए जाने वाले उपदेशों से लोग अत्यन्त प्रभावित होने लगे। और आध्यात्मिक चेतना से पोषित होने लगे।
महात्मा गौतम बुध्द ने चार आर्य सत्य बताए हैं — दु:ख, दु:ख की उत्पत्ति, दु:ख से मुक्ति और मुक्तिगामी आर्य-आष्टांगिक मार्ग। उन्होंने मनुष्य को दु:ख से मुक्ति के लिए आष्टांगिक मार्गों के माध्यम से पथ प्रशस्त किया। ये आष्टांगिक मार्ग हैं —सम्यक दृष्टि — (सम्यक शब्दार्थ है —सही, उचित, उपयुक्त, शुद्ध आदि)। सम्यक दृष्टि अर्थात् जीवन के दुःख और सुख का सही अर्थ में अवलोकन। चार आर्य सत्यों का ज्ञान।
सम्यक संकल्प यानि यदि दुःख से छुटकारा पाना के दृढ़ संकल्प । सम्यक वाक अर्थात् — यदि मनुष्य की वाणी में शुचिता और सत्यता का होना। सम्यक कर्म का अभिप्राय — कर्म की शुद्धि। सम्यक आजीविका यानि — किसी अन्यायपूर्ण उपाय के स्थान पर न्यायपूर्ण जीविकोपार्जन करना, जो उचित और शुभमय है। सम्यक प्रयास अर्थात्— जीवन में शुभ्रता व आत्मावलोकन के साथ जीवन निर्वाह का प्रयत्न करना। और सम्यक स्मृति यानि — चित्त में एकाग्रता के भाव से मानसिक योग्यता में वृद्धि। सम्यक समाधि का अभिप्राय — आष्टांगिक मार्गों का पालन करते हुए निर्वाण अथवा मुक्ति पथ का अनुगमन करना। पञ्चशील सिध्दांतों का उपदेश देते हुए उन्होंने मनुष्य के लिए सदाचारों की रीति – निर्धारित की थी। उनके अनुसार मनुष्य को — हिंसा , चोरी, व्याभिचार, नशा नहीं करना चाहिए। और न ही झूठ बोलना चाहिए।
महात्मा गौतम बुध्द ने मध्यम मार्ग ( मध्यमा प्रतिपद) का सिद्धांत दिया इसके अनुसार जीवन का संतुलित ढंग से निर्वाह करना चाहिए। और किसी भी प्रकार की अति से बचना चाहिए। महात्मा बुद्ध का दर्शन अनीश्वरवाद , अनात्मवाद व क्षणिकवाद की त्रयी का भी बोध कराता है। लेकिन मनुष्य को सत्कर्म करने और पुनर्जन्म की मान्यता पर भी बल देता है। गौतम बुध्द जब ‘अप्प दीपो भव’ कहा तो — उन्होंने मनुष्य को धर्मपथ पर – कर्मपथ पर चलने की प्रेरणा दी। उन्होंने मनुष्य को सत्य पर आधारित जीवन पर चलने की प्रेरणा दी। 483 ई.पू. को 80 वर्ष की अवस्था पूरी करने के बाद उन्हें वैशाख पूर्णिमा को कुशीनगर में निर्वाण की प्राप्ति हुई। महात्मा गौतम बुध्द के सम्पूर्ण जीवन में ‘ वैशाख पूर्णिमा ‘ का अपना एक विशिष्ट महत्व है। याकि यह कहा जाए कि – वैशाख पूर्णिमा ने ही उनके जीवन को पूर्ण किया, तो यह अतिशंयोक्ति नहीं होगी। उनका जन्म – वैशाख पूर्णिमा को, ज्ञान प्राप्ति वैशाख पूर्णिमा को और महापरिनिर्वाण भी वैशाख पूर्णिमा को ही हुआ। साथ ही उनके सम्पूर्ण जीवन दर्शन पर दृष्टिपात करने पर यह भी स्पष्ट होता है कि — महात्मा बुद्ध ने अपने जीवन काल में, कभी भी ‘बौध्द’ मत पंथ का अलग से किसी ‘पंथ’ या धर्म के रूप में प्रचार प्रसार नहीं किया। बल्कि उन्होंने मनुष्य को दु:खों से मुक्ति, सदाचरण व मोक्ष / निर्वाण प्राप्त करने का रास्ता दिखलाया। उनके निर्वाण के पश्चात ही उनके तत्कालीन अनुयायियों/ शिष्यों ने उनके दर्शन को पृथक ‘बौध्द’ मत पंथ के रूप में प्रस्तुत किया। और बौद्ध विहार, स्तूप, मठ इत्यादि बनाए।
गौतम बुध्द के निर्वाण प्राप्ति के बाद उनके शिष्यों ने राजगृह में एक परिषद का आह्वान किया। और उनकी शिक्षाओं को संहिताबद्ध किया गया। और इसके लिए चार बौद्ध संगीतियों का आयोजन हुआ। तत्पश्चात महात्मा बुद्ध के तीन मुख्य ‘पिटक’ पाली भाषा में बने— विनय पिटक (व्यवस्था के नियम), सुत्त पिटक ( उपदेश एवं सिद्धांत) तथा अभिधम्म पिटक (बौद्धदर्शन)। इन्हें ही त्रिपिटक के नाम से जाना जाता है। उन्होंने अस्तेय, अपरिग्रह, क्षमा , दया , करुणा, प्रेम, शान्ति, सद्भाव , अहिंसा, त्याग,के द्वारा मानव मुक्ति का मार्ग दिखलाया, और यह सिद्ध किया कि – संसार दु:खमय है, लेकिन उससे मुक्ति भी संभव है। अतएव मनुष्य को चाहिए कि उनके जीवन दर्शन से शिक्षा लेते हुए – सम्यक ढंग से जीवन के महत् उद्देश्यों के प्रति अपने कर्त्तव्यों को निभाएं। और लोकल्याण के प्रति कटिबद्ध हों। उनका दर्शन भारतवर्ष की अमूल्य थाती है, जो सम्पूर्ण विश्व को हमारे सांस्कृतिक उत्कर्ष के साथ जोड़ती है। और विश्वकल्याण की उदात्त भारतीय चेतना से झंकृत करती है।
– कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल