हिन्दी साहित्य में अवदान

      ईशोपनिषद में ‘मनीषी’            शब्द का जिक्र है। कवि या साहित्यकार             ‘स्वयंभू’ होता है। मनीषी साहित्यकार को अन्त:स्फूर्ति से जो मिला है, उसे जगत के सामने प्रगट करने और लोगों के हृदय में उसे जगाने का मिशन भी उसी का होता है। भारत की साहित्यिक अभिवृद्धि में बनारस और पूर्वांचल का महान योगदान सर्वस्वीकृत है। आज भी जनमानस पर छाये हुए हिन्दी के प्रथम कवि संत कबीर बनारस के ही हैं। कबीर द्वारा निर्दिष्ट समाजोन्मुखी काव्य परम्परा आज भी हिन्दी के साहित्यकारों का मार्गदर्शन कर रही है। काशी की धरती ने उस रैदास को भी पैदा किया, जिसके संतत्व को कबीर ने भी स्वीकारा। इनकी दो प्रमुख शिष्याएं राजस्थान की राजमहिषी मीरा और झाला रानी थी। इसी क्रम में गोस्वामी तुलसीदास का नाम ससम्मान स्मरण आता है। काशी के तुलसीदास की समन्वयवादी दृष्टि आज भी साहित्य का मूलाधार है। हिन्दी कविता और साहित्य को आधुनिक जीवन बोध की दिशा में उन्मुक्त करने का काम काशी के यशस्वी कृतिकार भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र ने किया। ‘भारतेन्दु मण्डल’ ने हिन्दी साहित्य के संबर्धन में क्रांतिकारी योगदान किया। इसी काव्य परम्परा का श्लाध्य विकास काशी के युग निर्माता कवि जयशंकर प्रसाद के काव्य से हुआ। प्रसाद की अमर रचना ‘कामायनी’ आज भी रचना-धर्मिता का कीर्ति स्तम्भ है।

भारतेन्द्र के बाद स्व. जगन्नाथ दास ‘रत्नाकर’, अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔंध’ आदि ने पूर्वांचल को गौरवान्वित किया। प्रसाद के समकालीनों में प्रेमचन्द, बाबू श्याम सुन्दर दास और आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जैसे महापुरूषों ने हिन्दी साहित्य को विविध विधाओं का उन्नयन कर बनारस और पूर्वांचल को हिन्दी साहित्य का केन्द्र बनाने का स्तुत्य कार्य किया। अप्रतिम समालोचक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल सम्पादक, निबंधकार, अनुवादक, आलोचक, कवि और चित्रकार भी थे। हिन्दी साहित्य का इतिहास, रस मीमांसा, भ्रमरगीत सार आदि उनके अनेक सुविख्यात ग्रंथ हैं। ‘बाणभट्ट की आत्मकथा, कबीर, अशोक के फूल, पुनर्नवा आदि कृतियों के लेखक ‘पद्मभूषण’ व साहित्य अकादमी सम्मान से विभूषित आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी भी याद आते हैं। साहित्यकार त्रिलोचन शास्त्री का बनारस से ४५ वर्षों का सम्बंध रहा। समकालीन कविता में नागार्जुन, शमशेर बहादुर सिंह और त्रिलोचन शास्त्री की त्रयी विख्यात है। जौनपुर के गांव में जन्मे कविवर पं रामनरेश त्रिपाठी ने ऐतिहासिक और पौराणिक इतिवृत्तों से हट कर स्वच्छंद काव्यों की उद्भावना की। बाबू श्याम सुन्दर दास ने नागरी प्रचारिणी सभा की ओर से लगभग ५० वर्षों तक एक एक पैसा जुटा कर हिन्दी साहित्य का प्रकाश बिखेरा। आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र मध्ययुगीन हिन्दी काव्य के मर्मज्ञ, रीतिकालीन स्वच्छंद कविता के विशेषज्ञ और काव्य शास्त्र के पंडित थे। वहीं १ अप्रैल, १८९३ को आजमगढ़ के पन्दहा गांव में जन्मे महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने अनेक विषयों पर १५० ग्रंथ लिखे। वे विश्व की ३६ भाषाओं के ज्ञाता थे। हिन्दी गद्य साहित्य में मनोरंजन व घटना प्रधान उपन्यासों की नींव देवकीनन्दन खत्री ने डाली। उनका पहला उपन्यास ‘चन्द्रकांता’ १८८० में काशी में प्रकाशित हुआ। इनके तिलस्मी ऐयारी उपन्यास उच्च साहित्यिक स्तर के हैं। वहीं बाबू राय कृष्ण दास हिन्दी साहित्य में गद्य काव्य विद्या के प्रणेता माने जाते हैं।

आचार्य महाबीर प्रसाद द्विवेदी ने ‘सरस्वती’ के माध्यम से विविध विधाओं और साहित्यकारों के लेखन को भाषा तथा विषय की दृष्टि से संस्कारित किया। महाकवि जयशंकर प्रसाद छायावादी काव्य के जनक माने जाते हैं। तो वहीं अभिनव भरत आचार्य पं सीताराम चतुर्वेदी ने नारक, जीवन चरित, उपन्यास, कहानी, ललित निबंध, संस्मरण, धर्म, दर्शन, कर्मकाण्ड, इतिहास, आलोचना, संपादन जैसी विविध साहित्य की विधाओं में २१४ ग्रंथों की रचना की। नाट्य शास्त्र में इनके पांडित्य और लेखन की महत्ता विशेष उल्लेखनीय है। वनस्पति वैज्ञानिक प्रोफेसर याज्ञवल्क्य भारद्वाज और आगा हश्र कश्मीरी की इनके साथ त्रयी थी।

कथा साहित्य में प्रेमचंद भी इसी धरती की देन हैं। रोमान्टिक भाव प्रधान कहानीकार विनोद शंकर व्यास तथा मार्मिक और प्रतीकात्मक लधुकथाओं और गद्य गीतों के क्षेत्र में राय कृष्णदास को अच्छी ख्याति मिली। कुशवाहा कांत भी प्रतिभा सम्पन्न थे। इन्ही के स्कूल के गोविन्द सिंह ने सैकड़ों उपन्यास लिखे। वहीं ‘बहती गंगा’ के लेखक शिव प्रसाद मिश्र ‘रूद्रकाशिकेय’ अद्भुत कथाशिल्पी थे। चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ ने अपनी तीसरी कहानी ‘बुद्धू का कांटा’ बनारस में ही लिखी। पं केशव प्रसाद मिश्र भी अद्भुत साहित्यकार थे। डॉ. युगेश्वर ने भी अच्छे उपन्यास लिखे तो डॉॅ. काशीनाथ सिंह का ‘काशी का अस्सी’ खूब चर्चित रहा। इस पर फिल्म भी बनी है। राजा शिव प्रसाद ‘सितारे हिंद’ अम्बिका प्रसाद व्यास, पं लक्ष्मी नारायण मिश्र, चन्द्रबली पाण्डेय, नन्द दुलारे बाजपेयी, डॉ. जगन्नाथ प्रसाद शर्मा, डॉ. शिव प्रसाद सिंह (गली आगे मुड़ती है), डॉ. विश्वनाथ प्रसाद, डॉ. मोहन लाल तिवारी, डॉ. बच्चन सिंह ने निबंध शोध और आलोचना को समृद्ध किया। साहित्येत्तर विषयों पर भी हिन्दी वाङ्मय को पूर्वांचल ने बहुत कुछ दिया। इस क्षेत्र में डॉ. भगवान दास, रायकृष्ण दास, बाबू शिवप्रसाद गुप्त, श्री श्रीप्रकाश, वासुदेव शरण अग्रवाल, डॉ. परमेश्वरी लाल गुप्त, डॉ. मोती चन्द्र, डॉ. आनन्द कृष्ण और डॉ. प्रिय कुमार चौबे का नाम उल्लेखनीय है। हिन्दी साहित्य को उत्कृष्ट शोध प्रबंध देने वालों में पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल, डॉ. जगन्नाथ प्रसाद शर्मा, डॉ. त्रिभुवन सिंह, डॉ. केशव प्रसाद सिंह और निर्गुण संतों पर डॉ. शुकदेव सिंह का नाम अग्रणी है। पं. विष्णु कांत शास्त्री के पिता पं. गांगेय नरोत्तम काशी की ही देन है।

हिन्दी के अनन्य सेवक डॉ. सम्पूर्णानन्द ने शिक्षा, साहित्य, दर्शन, वेदांत आदि विषयों पर अनेक ग्रंथों की सर्जना की। उनके द्वारा रचित चिद्विलास, जीवन और दर्शन, अंतरिक्ष यात्रा, सम्राट हर्ष वर्धन ग्रंथ उल्लेखनीय है। साहित्य में योगदान के लिए इनको मंगला प्रसाद पुरस्कार और विद्यावाचस्पति पुरस्कार प्राप्त हुए। आप उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री व राजस्थान के राज्यपाल भी थे। डॉ. रघुनाथ सिंह ने गम्भीर लेखन को नया आयाम दिया। मैथिलीशरण गुप्त, अज्ञेय, जैनेन्द्र पंत, निराला आदि किसी न किसी प्रकार पूर्वांचल से जुड़े जिसका केन्द्र काशी ही था। आचार्य नरेन्द्र देव वैचारिक लेखकों में अग्रणी थे।

पकड़डीहा (गोरखपुर) में जन्मेे पद्मभूषण डॉ. विद्यानिवास मिश्र के निबंध साहित्यिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और धार्मिक कोटि के थे। उद्भट मनीषी डॉ. मिश्र नवभारत टाइम्स के सम्पादक व राज्य सभा के सदस्य भी रहे। पुरूषोत्तम दास मोदी गुणग्राही लेखक और सम्पादक थे। उनके भीतर विवेकशील चिंतक और साहित्यकार अपना घर बनाकर रहता था। वहीं कृपाशंकर शुक्ल हिन्दी के वरेण्य साधक थे। उनकी पुस्तक शब्दकर्म एक रचना यात्रा कृति है। वरिष्ठ आई.पी.एस. अधिकारी व उनके सुपुत्र साहित्य मर्मज्ञ सूर्य कुमार शुक्ल ने कृति की सम्पादकीय लिखी है। पुस्तक में अटल बिहारी वाजपेयी, डॉ. शुकदेव सिंह, श्री लाल शुक्ल आदि प्रभृति विद्वानों के विचार स्व. शुक्ल के रचना संसार से अवगत कराते हैं। पूर्व सांसद पं. सुधाकर पाण्डेय ने नागरी प्रचारिणी सभा और संसद के जरिए देश ही नहीं, विदेशों में भी हिन्दी साहित्य का प्रचार किया। ‘चेकोस्लाविया लूटा गया’ और ‘विश्व के वक्षस्थल पर’ के लेखक कृष्ण चन्द्र बेरी रचनाधर्मी साहित्यकार थे। कोश रचना में डॉ. बदरीनाथ कपूर विख्यात है।

साहित्यिक गतिविधियों के केन्द्र में रहने वालों में स्व.डॉ. भानुशंकर मेहता साहित्य भूषण पं. श्रीकृष्ण तिवारी, डॉ. विश्वनाथ प्रसाद, गणेश प्रसाद सिंह ‘मानव’ मोहनलाल गुप्त ‘भईया जी बनारसी’, कमला प्रसाद अवस्थी ‘अशोक’, देवनाथ पाण्डेय ‘रसाल’, अनुराग शंकर वर्मा, सुषमा पाल, सुधीन्द्र शुक्ल, डॉ. कपिल देव पाण्डेय, बलिया के डॉ. विजय नारायण सिंह, मुरारी लाल केडिया, सुरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव, डॉ. युगेश्वर, अभयनाथ तिवारी, डॉ. कमल गुप्त, पं चन्द्र शेखर शुक्ल, चन्द्रबली सिंह, चकाचक बनारसी, हिन्दी शब्द कोष के निर्माता रामचन्द्र वर्मा, पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’, छायावाद समीक्षक, शांतिप्रिय द्विवेदी, कथाकार द्विजेन्द्र नाथ मिश्र ‘निर्गुण’, डॉ. शिव प्रसाद सिंह, विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, डॉ. श्रीपाल सिंह ‘क्षेम’, रूप नारायण त्रिपाठी, मोती ‘बीए’ दानबहादुर सिंह ‘सूड़’, कैलाश गौतम, कांतानाथ पाण्डे, अन्नपूर्णानन्द, राहगीर पूर्वांचल साहित्य की गौरवमयी परम्परा में शामिल है। तो वहीं विश्वनाथ मुखर्जी, बेधड़क बनारसी, श्याम तिवारी, विश्वनाथ पाण्डे ‘बेखटक’, विसम्भर नाथ त्रिपाठी ‘बड़े गुरू’, माधव प्रसाद मिश्र (एस भारती), ना.वि.सप्रे बदरी नारायण चौधरी ‘प्रेमधन’, विजय बलियाटिक, बेढ़ब बनारसी, धूमिल, नजीर बनारसी, ठाकुर प्रसाद सिंह, श्यामलकांत वर्मा, डॉ. शम्भुनाथ सिंह, डॉ. मोहन लाल तिवारी में बैठा साहित्यकार पूर्वांचल को समृद्ध करता रहा। इसी क्रम में गीतकार अंजान, प्रकाशक साहित्यकार पुरूषोत्तम दास मोदी, व्याकरण और साहित्य के विद्वान डॉ. अमरनाथ पाण्डेय, बाल साहित्यकार डॉ. श्री प्रसाद, राम जियावन बाबला, रामेश्वर सिंह कश्यप भी कीर्ति स्तम्भ है।

आज भी पूर्वांचल के साहित्य जगत में पं.धर्मशील चतुर्वेदी, ‘सोच-विचार’ के प्रधान संपादक साहित्य भूषण डॉ. जितेन्द्रनाथ मिश्र, डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र, भाषा सम्मान प्राप्त पं हरिराम द्विवेदी, पद्म श्री मनु शर्मा, डॉ. नामवर सिंह, कथा लेखिका डॉ. मुक्ता, डॉ. नीरजा माधव, डॉ. विवेकी राय, ज्ञानेन्द्रपति, प्रतिमा वर्मा, सूर्यबाला, जवाहर लाल शास्त्री ‘चंचल’, डॉ. राम अवतार पाण्डेय, डॉ. सविता सौरभ, डॉ. मंजरी पाण्डेय, सुषमा सिन्हा, सुरेन्द्र वाजपेयी, डॉ. इन्दीवर, गीतकार समीर, डॉ. अर्जुन दास केसरी, ओमधीरज, डॉ. चन्द्रकला त्रिपाठी, एकलव्य,  रामानन्द तिवारी, वशिष्ठ मुनि ओझा, व्योमेश शुक्ल, श्री प्रकाश शुक्ल, पं शिव कुमार शास्त्री, चकाचौन्ध ज्ञानपुरी, महेन्द्र सिंह नीलम, नरेन्द्रनाथ मिश्र, गणेश गम्भीर, पूर्वांचल की रचनाधर्मिता को आगे बढ़ा रहे हैं। साहित्य की उज्ज्वल परम्परा पूर्वांचल में अब तक कायम है। परम्परा की विरासत वर्तमान में विकसित हो रही है।

 

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