इंदौर शहर अपने निर्माण के समय से ही विकास पथ पर गतिशील है। परंतु पिछले कुछ दशकों में इसने अत्यंत तेजी से अपने आपको भारत में एक औद्योगिक नगर के रूप में स्थापित किया है। पिछले छः वर्षों से यह शहर देश का सबसे स्वच्छ शहर भी बना हुआ है।
ऐसा कहते हैं कि किसी भी जगह पर आध्यात्मिक परिक्रमा करने से पहले वहां के शहर की परिक्रमा करनी चाहिए। इससे उस शहर की आत्मा का परिचय हमें मिल जाता है। मैंने भारत में जिन शहरों का प्रवास किया है, उनमें इंदौर शहर ने सबसे प्रभावशाली छाप मेरे मन पर छोड़ रखी है। इंदौर में प्रवास करते समय इस बात का प्रमाण मिलता है कि यह एक ऐतिहासिक, आस्था, विश्वास से परिपूर्ण, नवाचार को स्वीकार करने वाला जिंदादिल शहर है। स्वतंत्रता के बाद के विकास के नए-नए सोपानों को इस शहर ने तय किए और आज यह मध्य प्रदेश का सर्वप्रथम और देश के सम्पन्न शहरों में इसका नाम आता है। इस गौरवपूर्ण शहर का जिक्र आते ही लोग कहते हैं कि इंदौर की तो बात ही कुछ और है। इस नगरी ने ऐतिहासिक, औद्योगिक, व्यापारिक और सांस्कृतिक शहर के रूप में अपनी एक अलग पहचान बनायी। इंदौर की तुलना करते समय नए और पुराने इंदौर का जिक्र हर दम होता है। क्योंकि इंदौर का पुरानापन कहीं छूटता नहीं, और नयापन आने वाले भविष्य के साथ जुड़ जाता है।
सत्रहवी शताब्दी के प्रारम्भ में खान और सरस्वती नदी के संगम पर इंद्रेश्वर मंदिर के साथ शहर की नींव रखी गई। तब से आज तक इंदौर फैल रहा है। विस्तार का यह सिलसिला कहां थमेगा कोई नहीं जानता। उल्लेख है कि 1741 में इंद्रेश्वर मंदिर की स्थापना हुई। मराठा साम्राज्य में इसी मंदिर के आसपास की बस्ती जो इंद्रपुर थी, वह ही इंदूर हो गई। बाद में अंग्रेजों के उच्चारणों से यह इंदौर हो गई। 1732 में मल्हारराव होलकर को जागीर मिलने के साथ ही इंदौर की विकास यात्रा शुरू हुई। तभी सूबेदार मल्हारराव होलकर ने अपने राजस्व अधिकारी को पत्र लिखा कि वे बाहर के व्यापारियों और साहूकारों को इंदौर आने और बसने के लिये प्रोत्साहित करें।
इंदौर में प्रवास करते समय वहां की एक बात नजर को भाती है, वह है इंदौर का सभी कोने में हो रहा असीमित विकास। इंदौर में ट्रांसपोर्ट नगर और मंडी साथ ही एयरपोर्ट से उज्जैन मार्ग तक रिंग रोड, शहरों के रोड को जोड़ने के लिये रेलवे ओवर ब्रिज का निर्माण, शहर की आवश्यकता के अनुसार सिटी संकुल का निर्माण। यातायात सुधार की दृष्टि से किया गया विभिन्न चौराहों का विकास अपने आप में इंदौर के सौन्दर्यीकरण की अद्भुत मिसाल बन गया है। इंदौर की विकास यात्रा यहीं नहीं रुकती। जो आगे निरंतर बढ़ती ही रहनी है। वर्तमान इंदौर के विकास का श्रेय पूर्व महापौर और वरिष्ठ भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय, वहां के सांसद शंकर लालवानी और लोकसभा की पूर्व सभापति सुमित्रा महाजन को भी दिया जाता है। औद्योगिक विकास की शुरूआत 19 वीं सदी से ही इस शहर में शुरू हो गयी थी। आज भले ही मिलें बंद हो गईं और चिमनियां गिरा दी गयी हैं पर सच यह है कि कपड़ा उद्योग नगर के विकास की बुनियाद रहा है। होलकर की इस ऐतिहासिक शहर की तुलना इग्लैंड के वेस्टमिस्टर से की जाती थी। वहीं यह शहर औद्योगिक दृष्टि से मिनी मुंबई कहा जाता है। पर इंदौर का अपना इतिहास है-संस्कृति है-सभ्यता है। इसकी अपनी मिठास है-परम्पराएं हैं- आस्था है- विश्वास है। विगत वर्षों में नगर को सुंदर और सुव्यवस्थित बनाने, उसका चहुंमुखी विकास करने तथा इसकी समृद्धि और ख्याति को बढ़ाने के लिए अनेक प्रयास किए गए हैं। कला, साहित्य और सांस्कृतिक विरासत का केंद्र इंदौर प्रदेश के सूचना प्रौद्योगिक शहर के रूप में विकास के नए आयाम तलाश रहा है। देश का पहला विशेष आर्थिक प्रक्षेत्र भले ही धार जिले के पीथमपुर में स्थापित किया गया है लेकिन यह इंदौर के औद्योगिक विकास में मील का पत्थर साबित हो रहा है।
लोहा, इस्पात, रसायन, मशीनरी से लेकर नमकीन तक कितने ही व्यवसाय फले- फूल रहे हैं। देश के चौथे स्थान पर इंदौर का वस्त्रोद्योग है तो सराफा से शुरू हुआ स्वर्णाभूषण का व्यवसाय अब जेम्स एंड ज्वेलरी जैसी इकाईयों द्वारा स्वर्ण, चांदी और प्लेटिनम का कार्य नामांकित संस्थाओं द्वारा सम्पन्न हो रहा है। हर्बल से लेकर हैंडलूम तक आज इंदौर अकल्पनीय औद्योगिक और व्यावसायिक विकास पर गर्व कर सकता है। वह देश के सबसे बड़े मार्ग परिवहन केंद्रों में से एक है। अपने अनूठेपन से चमकते शहर में देवी अहिल्या विश्वविद्यालय है जो 1964 से लगातार शिक्षा की अलख जलाए हुए है।
इंदौर शहर की गलियों से लेकर महानगरों तक प्रवास करते वक्त एक बात नजर को आश्चर्यचकित करती है। वह है, वहां दिखने और महसूस होने वाला मराठी भाव। अहिल्याबाई होलकर विश्वविद्यालय, अहिल्यादेवी होलकर हवाई अड्डा, कुशाभाऊ ठाकरे मार्ग, सावरकर चौक, दत्त और विठ्ठल के मंदिर, पलशिकर कॉलोनी, होल्कर कॉलेज, सरवटे बस स्टैंड, जोशी वाडा, पागनीस पागा.. इंदौर की आबोहवा में मराठी एवं महाराष्ट्रीयन कल्चर यानी संस्कृति का समाहित होना वहां के गलियारों में घूमते हुए सहजता से महसूस होता है। सौ से अधिक मराठी गणेशोत्सव मंडल और महाराष्ट्र की सुपुत्री लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन का वहां पर लगातार आठ बार सांसद के रूप में चुनकर आना।
सामाजिक मेलजोल यहां संस्कार में है, तो खानपान उत्सव प्रियता के प्रमाण हैं। यहा के सुस्वाद व्यंजनों की गरमागरम सुंगध की तरह लोगों की जुबान पर भी जायका होता है। खानपान का ऐसा उतावलापन ही इंदौर की पहचान है। नमकीन सिटी कहलाने वाले इंदौर में नमकीन की न जाने कितनी लम्बी किस्में तैयार की जाती है। लता मंगेशकर की जन्म स्थली, उस्ताद अमीर खां का शहर भी है। राजवाड़ा जो इंदौर के स्वर्णिम अतीत को संजोए हुए हैं, दो सौ वर्षों से भी अधिक पुराना होलकर रियासत का प्रतिष्ठा चिह्न है। सात मंजिलों वाले इस विशाल भवन का निर्माण 1820 से 1833 के बीच सम्पन्न हुआ।
विकास की इस यात्रा में इंदौर के बाजार की तुलना अब सिंगापुर से भी होने लगी है। इस सतत जारी विकास को हम इंदौर उद्भव की दंत कथा से जोड़ सकते हैं। दंतकथा के अनुसार दो ज्योतिर्लिंगों के मध्य बसा होने की वजह से यह नगर बाधाओं से सुरक्षित है। इंदौर के एक ओर प्राचीन तीर्थ शिप्रा के तट पर उज्जैन स्थापत्य की दृष्टि से राजवाड़ा में महाकाल और नर्मदा के तट पर ओंकारेश्वर विराजमान हैं। इसीलिए महादेव की कृपा से यह नगर अंतराष्ट्रीय क्षितिज पर जगमगा रहा है। अध्यात्म, सत्संग और उद्योग का एक ऐसा मिला जुला माहौल कि सारा शहर उसमें रंग जाता है। गीता भवन, अन्नपूर्णा, विद्याधाम, गोम्मटगिरि, तिरुपति वेंकटेश देवस्थान, यशोदा मंदिर से लेकर गोपाल मंदिर तक धार्मिक वातावरण की गूंज है। यह शहर गरबों के साथ झूम उठता है, तो गणगौर पर थिरकने लगता है।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने शहरों को खूबसूरत बनाने के लिए स्वच्छ भारत अभियान प्रतियोगिता की शुरुआत की थी। इसमें देश के हजारों शहर हिस्सा ले रहे हैं। फिर भी इंदौर ने शुरुआत से अब तक देश में प्रथम स्थान प्राप्त कर अपना गौरव बनाए रखा है। स्वच्छता की नई प्रेरणा लेकर स्वच्छता में इंदौर के प्रभावी प्रदर्शन को देखने के लिए आज स्थानीय और विदेशी नगर पालिकाओं के प्रतिनिधि आ रहे हैं। आज कचरे की समस्या के सवाल का स्वरूप महानगरों में उग्र हो गया है। इस सवाल को लेकर छोटे गांवों से लेकर बड़े शहर तक परेशान हैं। इससे भी टकराव बढ़ता है। इन सवालों का जवाब इंदौर दे रहा है। यह स्वच्छता अभियान का मॉडल इंदौर की जनता और नगर निगम के इंजीनियरों ने अपने कौशल से तैयार करके उन्हें प्रोसेस करने वाले प्रोजेक्ट लगाए हैं। कोई आउटसोर्सिंग नहीं है, सब अपनी कल्पना पर, इंदौर में घूमते हुए इस बदलाव को आश्चर्यचकित भाव से महसूस कर सकते हैं।
शहर में सड़कें चौड़ी और आकार में साफ-सुथरी हैं, दिन में दो बार सड़कों की सफाई की जाती है। रात में भी मशीन से सफाई की जाती है। शहर में विभिन्न स्थानों पर रखे 3500 कचरे के डिब्बों को हटाया गया। जिन स्थानों पर कंटेनर रखे जाते हैं, उनका सौंदर्यीकरण किया गया। शहर की आबादी 36 लाख के आसपास है और कुल मिलाकर 6 हजार कर्मचारी सफाई के लिए काम कर रहे हैं। सभी वार्डों में प्रतिदिन उत्पन्न होने वाला कचरा लगभग 800 टन है। नगर निगम ने ऐसी परियोजनाओं को लागू किया है जो इस कचरे को अलग करती हैं और गीले कचरे को संशोधित करती हैं। नगर निगम के इंजीनियरों ने खुद तकनीक विकसित की। शहर के पास कूड़ा कलेक्शन सेंटर बनाया गया है। गीले कचरे को जमा कर वहां से डम्पिंग ग्राउंड में ले जाया जाता है। संग्रह केंद्र में एक बायोगैस उत्पादन संयंत्र स्थापित किया गया है और शहर से 50 किमी की दूरी पर एक नगरपालिका डम्पिंग ग्राउंड है। शहर में हरियाली सुखद है।
यहां सिर्फ नगर निगम की मंशा काम नहीं कर रही है। लोगों की मानसिकता महत्वपूर्ण है। शहर के सभी लोग इकट्ठा आए। बडी संख्या में नारे, जागरूकता फलक का उपयोग कर लोगों पर स्वच्छ सर्वेक्षण किया गया है। इसलिए, शहर 2017 से अब तक राष्ट्रीय स्वच्छता प्रतियोगिताओं में देश में पहले स्थान पर रहा।
किसी भी शहर के नींव का पहला पत्थर रखते समय यह अनुमान नहीं होता कि वह इतिहास का एक अंग बन जायगा। रचनाकार का परिश्रम, कालान्तर की घटनाएं और वर्तमान का रूप उसे विकास का पथ प्रदान करता है। ऐतिहासिक और वर्तमान इंदौर को देखते हुए यह बातें महसूस हो रही हैं कि आने वाले भविष्य में इंदौर विकास के सारे मापदंडों को लांघ कर भारत में श्रेष्ठतम शहर होगा।