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इंदौर का राजनीतिक परिदृश्य

इंदौर का राजनीतिक परिदृश्य

by हिंदी विवेक
in मई - इंदौर विशेषांक २०२३, राजनीति, विशेष, सामाजिक
1

स्वतंत्रता के बाद ज्यादातर समय इंदौर की संसदीय सीट कांग्रेस के खाते में जाती रही। परंतु 1989 में युवा नेत्री सुमित्रा महाजन ने कांग्रेस के वरिष्ठ राजनेता को हराकर भाजपा को सीट दिलवाई। वर्तमान में समूचा इंदौर भाजपामय है और उनके अथक प्रयासों से देश का सबसे स्वच्छ शहर भी।

इंदौर मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा शहर और औद्योगिक राजधानी है। स्वतंत्रता के पूर्व यह होलकर रियासत की राजधानी हुआ करती थी। इसलिये यहां ब्रिटिश भारत की भांति राजनीतिक गतिविधियों की व्यापकता नहीं थी। यहां भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का भी अस्तित्व नहीं था। नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने तथा महाराजा के समक्ष प्रजा की मांगें रखने के लिए यहा ‘प्रजा मंडल’ नामक एक संगठन था। इसके अधिकांश नेता गांधीवादी विचारों के थे इसलिये स्वतंत्रता के बाद होलकर रियासत के भारतीय संघ में विलीन होने के उपरांत यह प्रजा मंडल ही कांग्रेस के रूप में परिवर्तित हो गया। इस कारण आजादी के बाद अनेक वर्षों तक इंदौर तथा आसपास के क्षेत्रो में व्यापक रूप से कांग्रेस का ही प्रभाव बना रहा।

वैसे इस क्षेत्र में हिंदू महासभा तथा रामराज्य परिषद का भी सीमित प्रभाव था। मगर 1952 में भारतीय जनसंघ की स्थापना के बाद उनके अधिकांश नेता जनसंघ में शामिल हो गए। स्वतंत्रता के पूर्व से ही कांग्रेस में एक समाजवादी धारा चल रही थी। स्वतंत्रता के उपरांत डॉ.राममनोहर लोहिया तथा आचार्य नरेंद्रदेव के नेतृत्व में इन लोगों ने कांग्रेस से बाहर निकलकर समाजवादी दलों की स्थापना की। परिणामस्वरूप इंदौर में भी समाजवादी पार्टियों का जन्म हुआ।

श्रमसंघीय अधिकारों के लिये संगठित करने के लिये यहां वी.वी. द्रविड़ के नेतृत्व में इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस ‘इंटक’ की स्थापना हुई। प्रारम्भिक वर्षो में कांग्रेस का यह श्रम संगठन इंदौर में उसका मजबूत राजनीतिक आधार भी बना।

कांग्रेस के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने भी अपने श्रमिक संगठन ऑल इंडिया ट्रेड युनियन कांग्रेस ‘ऐटक’ की यहां स्थापना की। श्रमिक तथा साम्यवादी नेता होमी दाजी के राजनीतिक प्रभाव को बनाने में इस संगठन की प्रमुख भूमिका रही।

1952 में नंदलाल जोशी तथा 1957 में कन्हैयालाल खादीवाला ने लोकसभा में इंदौर का प्रतिनिधित्व किया। मगर 1962 के लोकसभा निर्वाचन में परिस्थिति बदल गयी। उस समय तक श्रमिक नेता होमी दाजी की वक्तृत्व कला का करिश्मा इंदौर के श्रमिकों तथा युवको के सिर चढ़कर बोलने लगा था। इंदौर के सभी विपक्षी दलों के सहयोग से उन्होंने नागरिक समिति का गठन कर न केवल नगर पालिका निगम से कांग्रेस को बेदखल किया, वरन निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पहली बार इंदौर से किसी गैर कांग्रेसी सांसद के रूप में संसद में प्रवेश किया।

1962 में जब लोकसभा में विपक्ष बहुत ही कमजोर था, इंदौर के इस सांसद ने अपनी धमाकेदार उपस्थिति से वहां के माहौल को गरमाया था। 1967 के लोकसभा चुनावों मे इंदौर सीट को पुनः हासिल करने के लिये कांग्रेस ने रणनीति बदली। श्रमिक वोटों के मुकाबले व्यापारी तथा जैन वोटों को आकर्षित करने के लिए उसने केंद्रीय मंत्री परिषद के सदस्य तथा राज्यसभा सांसद उज्जैन के प्रकाशचंद्र सेठी को यहां से लोकसभा प्रत्याशी बनाया। कांग्रेस की यह रणनीति कामयाब रही। प्रकाशचंद्र सेठी होमी दाजी को पराजित कर इंदौर सीट को पुनः कांग्रेस के लिये जिताने मे सफल रहे। इंदौर का सांसद रहते हुए उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल तथा कांग्रेस पार्टी में लगभग सभी प्रमुख पदों को विभूषित किया। यहां तक कि, 1972 से 1976 तक मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री भी रहे।

1967 में देशभर में कांग्रेस के विरुद्ध वातावरण था। मध्य भारत में भी उसके विरुद्ध हवा थी। परिणामस्वरूप सम्पूर्ण मालवा तथा निमाड़ में जनसंघ की जो आंधी चली, उसमें कांग्रेस के सारे गढ़ ढह गये। परंतु इस आंधी में भी इंदौर कांग्रेस का अभेद्य दुर्ग बना रहा।

भारतीय जनसंघ अपनी स्थापना से ही इंदौर में अपने पैर जमाने के लिये प्रयत्नशील था। राजेंद्र धारकर, सत्यभान सिंघल तथा वल्लभ शर्मा जैसे अनेक नेता तथा असंख्य कार्यकर्ता निरंतर जमीन तैयार कर रहे थे। उनके प्रयासों को 20 वर्षों की मेहनत के बाद फल मिला जब 1971 के लोकसभा तथा 1972 के विधानसभा चुनावों में पहली बार जनसंघ इंदौर में कांग्रेस के बाद दूसरे सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर सामने आया। हालाकि विधानसभा सीट जीतने के लिये उसे 1977 तक प्रतीक्षा करनी पड़ी। 1971 के मध्यावधि लोकसभा चुनावों में जनसंघ प्रत्याशी सत्यभान सिंघल की कड़ी टक्कर के बाद भी प्रकाशचंद्र सेठी दूसरी बार इंदौर से चुनाव जीतने में सफल रहे थे।

1972 में इंदिरा गांधी द्वारा प्रकाशचंद्र सेठी को मुख्य मंत्री बनाकर मध्यप्रदेश भेजा गया। तब उनके द्वारा रिक्त लोकसभा सीट पर पुनः उपचुनाव हुआ जिसमें कांग्रेस के ही उम्मीदवार श्रमिक नेता रामसिंह वर्मा निर्वाचित हुए।

जून 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के बाद देश के साथ ही इंदौर की राजनीति में भी भारी बदलाव आया। सारी विपक्षी पार्टियों के विलय से बनी जनता पार्टी को 1977 में केंद्र तथा प्रदेश में सत्ता मिली। समाजवादी घटक के कल्याण जैन इंदौर से लोकसभा के लिये निर्वाचित हुए। वहीं विधानसभा के लिये पहली बार जनसंघ घटक के राजेंद्र धारकर तथा वल्लभ शर्मा विधायक बने। राजेंद्र धारकर प्रदेश के मंत्री भी बने। परंतु जनता पार्टी का प्रयोग शीघ्र ही समाप्त हो गया। जनसंघ घटक भारतीय जनता पार्टी के रूप में नये स्वरूप में सामने आया। दूसरे घटकों के भी कई लोग उसमें शामिल हो गये। शनैः शनैः दूसरे सभी दलों का लोप होता गया, और इंदौर की राजनीति में कांग्रेस तथा भाजपा ही दो प्रमुख प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दल रह गए।

1980 में इंदिरा गांधी तथा 1984 में राजीव गांधी की लहर में पुनः इंदौर लोकसभा सीट पर कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रकाशचंद्र सेठी ने कांग्रेस का परचम फहराया था।

1982 में इंदौर नगर पालिक निगम चुनावों में भाजपा ने नई रणनीति बनाई। कांग्रेस के पुराने प्रत्याशियों के सामने उसने युवा उम्मीदवार मैदान में उतारे और भारी बहुमत से जीत कर नगर निगम में अपनी सरकार बनाई। उसके बाद पिछले 40 वर्षो से इंदौर नगर पालिका में भाजपा का दबदबा बना हुआ है। अपने कार्य से उसने इंदौर का चेहरा पूर्णतः बदल डाला है। इंदौर के कस्बाई स्वरूप ने अब महानगर का रूप धारण कर लिया है। अब तो वह स्मार्ट सिटी बनने की ओर अग्रसर है। इंदौर ने पिछले 6 वर्षों से लगातार देश के सर्वाधिक स्वच्छ शहर का पुरस्कार प्राप्त कर भी एक रिकॉर्ड बनाया है।

1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने पुनः प्रकाशचंद्र सेठी को इंदौर से प्रत्याशी बनाया था। इस सीट पर हर बार पराजित होती रही भाजपा ने इस बार स्त्री शक्ति को जाग्रत करने की रणनीति बनाई और राष्ट्र सेविका समिति की सेविका, ओजस्वी वक्ता, सामाजिक तथा राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय कार्य करने वाली सुमित्रा ताई महाजन को मैदान में उतार दिया। अपनी सीधी-सादी और साफ-सुथरी गृहिणी की छवि से उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता को पराजित कर लोकसभा सीट पर भाजपा का परचम फहराया और उसके बाद लगातार 8 चुनावों में अपराजित रहकर एक कीर्तिमान भी बनाया। 2014 की लोकसभा में उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष का दायित्व निभाकर इंदौर का मान भी बढाया। उनकी निवृत्ति के पश्चात् अब शंकर लालवानी इंदौर से भाजपा सांसद हैं।

– अरविंद जावलेकर

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Tags: politics in indoreprakashchandra sethishankar lalwanisumitra mahajan

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विश्वकवि गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर

Comments 1

  1. डॉ कृष्णा नन्द पाण्डेय says:
    2 years ago

    इंदौर की राजनीतिक प्रगति का सटीक एवं ज्ञानवर्वधक वर्णन

    Reply

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