आइए, आप सबको, एक कथा सुनाते हैं। सुनते हुए हुंकारा जरूर भरें। कथा यूं है कि पंडित छब्बे जी बड़े परेशान होकर पत्नी से बोले, कोरोना काल में कोई अपने घर पूजा पाठ के लिए नहीं बुलाता, का करें? पहले जजमान के यहां जाते थे। हिलते-डुलते मोबाइल पे, कुछ भी पढ़ देते थे, बिना समझे-बूझे, का (क्या) पढ़ रये हैं? जजमान (यजमान) भी खुस रहता रहा कि लाला के दरबार में रोज पूजा हो रई है।
हव (हाँ)…
जुगाड़ू के दद्दा, पैसा-रुपैया, कपड़ा, लत्ता, मिठाई, गहना, गुरिया भी मिलता रहा। लल्ली के ससुराल में भी दे देते रहे।
हव…
लल्ला की अम्मा खूब छक के प्रसाद भी पाते थे। पांच-छै, ठो कटोरा खीरई खा लेते रहे। कब सैं, खीर नई खाई है।
दद्दा को परेशान देख, लल्ला बोले, दद्दा का हुआ, काहे परेसान हों आप?
लल्ला, कोई इनकम नहीं हो रही। येई चिंता में हैं।
दद्दा चिंता ना करौ, हम कुछ ना कुछ सोचते हैं।
हव, तुम, कुछ ना कुछ जुगाड़ तो करई लेंहो (कर ही लोगे)। जेई से (इसलिए) तो तुमारा नाम हम जुगाड़ू लाल रक्खे।
चार दिनों के बाद, छब्बे जी के फोन पर बार-बार टुन्न टुन्न होने लगी। संदेश पढ़ कर छब्बे जी आसमान में उड़ने लगे।
लल्ला ये का, हमारे खाते में दनादन रुपया जमा होने लगे। ये चमत्कार कहां से होने लगो?
जुगाड़ू बोले, दद्दा ये सब नए साहित्यकारन की किरपा है।
काहे, उनको कोई पूजा पाठ कराने हैं?
नई दद्दा, पुरस्कार पाने हैं!
हैं! छब्बेजी का मुंह खुला रह गया।
पुरस्कार पाने को, बे काहे रुपया दे रये। पुरस्कार में तो उल्टे उनको रुपया मिलता है ना?
दद्दा जिनको, कहीं से पुरस्कार नहीं मिलते, वो भेज रयें हैं, ये रूपैया।
सो कैसे लल्ला?
दद्दा जंगल में मोर नाचा, किसने देखा?
तनिक विस्तार से समझाओ हमें!
दद्दा हमने तीन-चार संस्था बना ली हैं। लोग हमें पैसा भेज रहे हैं। हम अपनी अलग अलग संस्था से उनके लिए छोटे-मोटे पुरस्कार की घोषणा करके सर्टिफिकेट दे देंगे।
अम्मा लल्ला की बलैयां लेते बोली, कितना लायक है, हमारो लल्ला! पिताजी के संस्कार खूबई अच्छे से लिए हैं।
जुगाड़ू बोले, दद्दा आप भजन की नई किताब भी बनाई लो।
लल्ला हमें लिखना, थोड़ी आता है। कहां से बना लें भजन की किताब?
लल्ला ने प्रिंटआउट लिए, बहुत से भजन लाकर पिताजी को दे दिए।
देखो दद्दा, आपके सम्पादन में ये किताब छपेगी। हम इसको बेचेंगे। भजन भी और वजन भी।
पर लल्ला ये भजन कहां से मिले?
दद्दा, उन्हीं लोग ने भेजे हैं। भजन छपवाने के लिए और पुरस्कार के लिए। पांच-पांच सौ रुपैया भी भेजे हैं, और भजन भी भेजे हैं। तीन को हम पुरस्कार देंगे।
चिंतित होकर छब्बेजी ने पूछा, का दोगे पुरस्कार में?
जादा, कुछ नहीं दद्दा। हमारे पास जो रुपैया आ आएगा। उसई में से हम सब मिलाकर पांच हजार का पुरस्कार देंगे। उसई में साल (शॉल), सिरिफल (श्रीफल, नारियल) सब आ जाएंगे।
छब्बे जी का मोबाइल फिर टुनटुनाया। एक दिन में उनके अकाउंट में अच्छे खासे रुपए जमा हो गए थे। लल्ला को प्यार से निहारते बोले, भगवान ऐसी औलाद सबको दे। जो लोग रुपैया भेज रहे हैं, उनके लिए भी पाठ करूंगा, कि उनको बिना रुपैया दिए भी कभी पुरस्कार मिल जायें।
इतनी देर में अम्मा खीर बना लाई, लो, सब लोग मिलकर खीर खाओ। आज छप्पर फाड़ के पैसा आया है। लल्ला के दद्दा, लल्ली के लिए भी कुछ खरीद लेना। ससुराल में लल्ली की नाक ऊंची हो जाएगी।
खीर खाकर, छब्बे जी, बड़े प्रसन्न मन से पुरस्कार ग्रहण करने वालों के लिए पाठ करने बैठ गए। मोबाइल की टून्न, सुनते ही आवाज और तेज हो जाती। और ज्यादा प्रार्थना करते हुए कहते, भगवान आप सबकी झोली पुरस्कारन से भरें।
तो भक्तों, कहानी आगे भी है। आज इतना ही। बाकी अगली बार कहते, सुनते, हुंकारा भरते को भी पुरस्कार मिलें।